कुंडली में योग क्या होते हैं? योग का ज्योतिष शास्त्र में महत्व
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कुंडली में योग क्या होते हैं? योग का ज्योतिष शास्त्र में महत्व

कुंडली में योग क्या होते हैं और ये आपकी किस्मत पर कैसे असर डालते हैं?

कुंडली में योग के बारे में

कुंडली में योग व्यक्ति के जीवन में विशेष प्रभाव डालते हैं। यह ग्रहों की स्थिति और उनके आपसी संबंधों से बनते हैं। जैसे राजयोग, धनयोग, विपरीत राजयोग, और गजकेसरी योग आदि। ये योग किसी व्यक्ति के जीवन में सफलता, धन, प्रसिद्धि, और समृद्धि ला सकते हैं। नकारात्मक योग जैसे कालसर्प योग या पितृ दोष चुनौतियां उत्पन्न कर सकते हैं।

कुंडली में योग क्या होते हैं?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मनुष्य की कुंडली में ग्रहों की युति, गोचर, दृष्टि, और भावों के संयोग से विशेष योगों का निर्माण होता है। ये योग कभी अत्यंत शुभ फल देते हैं, तो कभी अशुभ परिणाम भी उत्पन्न करते हैं।

जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति और भावों के अनुसार, ग्रह एक-दूसरे पर दृष्टि डालते हैं, जिसका प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर पड़ता है। आपने अक्सर देखा होगा कि अचानक किसी की किस्मत बदल जाती है—कोई रातों-रात सफलता और सत्ता के शिखर पर पहुंच जाता है, तो किसी का बना-बनाया जीवन बिखर जाता है। ये सभी परिवर्तन व्यक्ति की कुंडली में बने योगों के कारण ही संभव होते हैं। इस प्रकार, कुंडली में ग्रहों के संयोग और उनके आपसी प्रभाव का मनुष्य के जीवन पर गहरा असर पड़ता है।

वहीं ज्योतिष शास्त्र में कुंडली योग का अत्यधिक महत्व है, क्योंकि मनुष्य के जीवन में घटित होने वाली प्रत्येक घटना के पीछे उसकी किस्मत का हाथ होता है, और यह योग ही निर्धारित करते हैं कि भविष्य में क्या होने वाला है। कुंडली में योगों का निर्माण ग्रहों के संयोग, गोचर (ग्रहों की स्थिति में परिवर्तन), ग्रहों के आपसी प्रभाव और उनके भावों के आधार पर होता है। इन योगों का प्रभाव व्यक्ति के स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति, रिश्तों, और करियर पर गहरा पड़ता है।

कुंडली योग का महत्व:

भाग्य का निर्माण:

कुंडली में बनने वाले योग यह निर्धारित करते हैं कि एक व्यक्ति के जीवन में क्या होगा। यदि उसकी कुंडली में शुभ योग होंगे तो उसे उसको बड़ी सफलताएं मिलेंगी, उसके जीवन में सुख और समृद्धि आएगी। लेकिन इसी जगह अगर अशुभ योग बन रहे होंगे तो उसे चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा और ऐसी मुश्किलें देखनी पड़ेंगी जो असहनीय पीड़ा देगी।

जीवन पर प्रभाव:

कुंडली में बनने वाले योग कई पहलुओं को प्रभावित करते हैं जिसमें उसका दैनिक जीवन, स्वास्थ्य, कमाई, शादी और संतान का सुख आता है। जैसे जिनकी कुंडली मे राज योग बनता है उन्हें अपार सफलता, सम्मान और समृद्धि मिलती है। लेकिन जब किसी मनुष्य की कुंडली में दुष्ट योग बनता है तो उसे कई बड़ी कठिनाईयां देखनी पड़ती है, उसकी बनी बनाई दुनिया खत्म हो जाती है, जीवन के सुख छिन जाते हैं।

प्रेरणा और मार्गदर्शन:

एक मनुष्य की कुंडली में कुछ ऐसे योग बनते हैं जो व्यक्ति को प्रेरणा देते है और ऐसे रास्ते पर लेकर आते हैं जहां उसको सही रास्ता नजर आता है। जब ऐसे योग बनते है तो एक व्यक्ति अपने लक्ष्य को बड़ी आसानी से हासिल कर पाता है ऐसे योग व्यक्ति को ताकत देते हैं और सही निर्णय लेने में भी मदद करते हैं।

धन और संपत्ति:

जन्म कुंडली में बनने वाले योग से व्यक्ति यह जान सकता है कि जीवन के किस समय में उसको अपार धन मिलेगा या आर्थिक दिक्कतें होंगी, जिन्हें जाकर पहले से भी सावधान रहा जा सकता है। इतना ही नहीं इन योग के ज्ञान से व्यक्ति को अपनी क्षमता का भी पता चलता है।

जन्म कुंडली में योगों का निर्माण:

जन्म कुंडली में कई योगों का निर्माण ग्रहों के बीच बनने वाले संबंध, उनकी स्थिति और विशेष भाव के आधार पर होता है। कुंडली में बनने वाले ये योग ही निर्धारित करते हैं कि एक व्यक्ति विशेष के जीवन में आखिर कब और कौन से घटनाएं होंगी। यह योग शुभ होंगे या अशुभ, इसका ज्ञान भी कुंडली को देखकर लगाया जा सकता है। कुंडली में बनने वाले योग का निर्माण कुछ खास तत्वों के कारण होता है।

योग निर्माण के मुख्य तत्व:

ग्रहों की स्थिति:

ग्रहों का केंद्र, स्थिति और उनका त्रिकोण भाव में होना। इसके साथ ही उनका किसी मित्र राशि में जाना, ऐसी दशाओं से ही योग का निर्माण होता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है गुरु ग्रह का केंद्र या तरीकों में होना एक बहुत शुभ योग बनाता है।

ग्रहों के बीच के संबंध:

जब एक साथ दो या इससे अधिक ग्रह एक ही भाव में आ जाते हैं, तब एक विशेष योग बनता है। ग्रहों की दृष्टि किस दिशा में है या किस राशि पर पड़ रही है उससे भी योग निर्माण में मदद मिलती है। जब गजकेसरी योग बनता है तो गुरु और चंद्र एक साथ आते हैं और इनका संयोग होता है।

भाव और भावेश:

जिस भाव में कोई ग्रह स्थित होता है, उस भाव और उसके स्वामी (भावेश) का अन्य ग्रहों से संबंध योग निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जैसे, जब लग्न भाव का स्वामी नवम भाव (भाग्य भाव) या दशम भाव (कर्म भाव) में स्थित होता है, तो यह शुभ योग का निर्माण करता है।

ग्रहों का बल:

ग्रह की उच्च स्थिति, स्वग्रही होना, या मित्र राशि में स्थित होना योगों को अधिक प्रभावशाली बनाता है। उदाहरण के लिए, शुक्र का मीन राशि में उच्च स्थिति में होना महालक्ष्मी योग का निर्माण करता है।

शुभ और अशुभ ग्रहों का प्रभाव:

शुभ ग्रह, जैसे गुरु, चंद्र, शुक्र और बुध का केंद्र या त्रिकोण भाव में होना शुभ योग का निर्माण करता है। वहीं, अशुभ ग्रह, जैसे शनि, राहु और केतु, जब गलत स्थिति में होते हैं, तो अशुभ योग का निर्माण करते हैं।

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Published by Sri Mandir·January 15, 2025

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