अंकोरवाट मंदिर के रहस्यमय पहलुओं को जानिए, जहां इस अद्वितीय मंदिर की कहानी और इसकी वास्तुशिल्प आपको हैरान कर देगी।
अंकोरवाट मंदिर, कंबोडिया में स्थित विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यह मंदिर अपने अद्भुत वास्तुकला, विशाल संरचना और रहस्यमय (नक्काशी) के लिए प्रसिद्ध है। अंकोरवाट के कई रहस्य और तथ्य आज भी शोधकर्ताओं और इतिहासकारों को चकित करते हैं। आइये जानते हैं ऐसे कुछ रहस्यों के बारे में...
प्राचीन भारत की संस्कृति और सभ्यता की झलक विदेशों में भी देखने को मिलती है। इसका एक अद्भुत उदाहरण है कंबोडिया का अंकोरवाट मंदिर। यह मंदिर न केवल अपने धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी भव्यता, वास्तुकला और इससे जुड़े रहस्यों ने भी इसे एक ऐतिहासिक धरोहर बना दिया है।
कंबोडिया के सिमरिप शहर में स्थित अंकोरवाट मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में खमेर साम्राज्य के राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने करवाया था। पहले इसे 'यशोधरपुर' के नाम से जाना जाता था। यह मंदिर मूल रूप से भगवान विष्णु को समर्पित है। सूर्यवर्मन द्वितीय ने इसे खमेर शास्त्रीय शैली में बनवाया, जो भारतीय वास्तुकला से प्रेरित थी। हालांकि, राजा इसे पूरा नहीं कर सके और इसके निर्माण को उनके उत्तराधिकारी धरणीन्द्रवर्मन ने पूरा किया।
यह मंदिर 402 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है, जो इसे विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल बनाता है। इसकी संरचना स्टेप पिरामिड जैसी है, जिसमें मुख्य शिखर की ऊंचाई लगभग 64 मीटर है। मंदिर के चारों ओर लगभग 3.5 किलोमीटर लंबी पत्थर की दीवार है, जिसके बाहर 30 मीटर चौड़ी खुली भूमि और फिर 190 मीटर चौड़ी खाई है। यह खाई दूर से झील जैसी दिखती है और मंदिर की सुरक्षा का प्रतीक मानी जाती है। मंदिर की कलाकृतियां भारतीय गुप्तकालीन कला की झलक देती हैं। तोरण द्वार, अलंकृत शिखर और मूर्तियों की बारीकी इस बात का प्रमाण हैं कि खमेर के कारीगर भारतीय कला से प्रभावित थे।
अंकोरवाट मंदिर की एक विशेषता यह है कि यह भगवान विष्णु का दुनिया भर में सबसे बड़ा मंदिर है। यहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं की मूर्तियां एक ही स्थान पर स्थापित हैं। मुख्य द्वार के पास एक पुल बना है, जिससे खाई को पार करके मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
मंदिर की दीवारें हिंदू धर्मग्रंथों की कथाओं और प्रसंगों से भरी हुई हैं। यहां रामायण और महाभारत की घटनाओं का चित्रण अद्भुत तरीके से किया गया है। इसके अलावा, समुद्र मंथन का दृश्य भी बहुत ही सुंदरता से उकेरा गया है। अप्सराओं के नृत्य और अन्य पौराणिक दृश्यों की नक्काशी देखने योग्य है।
अंकोरवाट मंदिर को मेरु पर्वत का प्रतीक माना जाता है। खमेर सभ्यता के लोग इसे सृष्टि के केंद्र के रूप में देखते थे। यह धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के साथ-साथ खगोल विज्ञान से भी जुड़ा हुआ है।
हालांकि अंकोरवाट मूल रूप से एक हिंदू मंदिर था, लेकिन बाद के वर्षों में इस पर बौद्ध धर्म का प्रभाव पड़ा। बौद्ध भिक्षुओं ने इस मंदिर को अपना निवास बनाया और इसे एक बौद्ध स्थल के रूप में भी पहचान दिलाई।
अंकोरवाट मंदिर से सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य बेहद सुंदर होता है। पर्यटक इस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए देश विदेश से यहां आते हैं। यह मंदिर न केवल स्थापत्य कला का नमूना है, बल्कि प्राकृतिक सुंदरता का भी प्रतीक है। आपको बता दें कि अंकोरवाट को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया है।
अंकोरवाट मंदिर की भव्य संरचना, खगोलशास्त्रीय महत्व और दीवारों पर उकेरी गई कहानियां अद्भुत हैं। ये मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह यह दिखाता है कि कैसे भारतीय संस्कृति ने विदेशों में अपनी छाप छोड़ी। अंकोरवाट मंदिर कंबोडिया का गौरव और सनातन धर्म की महानता का प्रतीक है। यह न केवल अतीत की झलक प्रस्तुत करता है, बल्कि आज भी विश्वभर के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
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