बृहदेश्वर मंदिर के अद्भुत रहस्यों को जानिए, जहां चोल साम्राज्य की वास्तुकला का अद्भुत नमूना देखने को मिलता है।
बृहदेश्वर मंदिर, जिसे राजराजेश्वरम मंदिर भी कहा जाता है, तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित है और इसे चोल वंश के राजा राजराजा चोल I ने 11वीं शताब्दी में बनवाया था। यह मंदिर अपने अद्भुत वास्तुशिल्प और रहस्यों के लिए प्रसिद्ध है।
कहते हैं किसी भी इमारत को बनाने के लिए सबसे पहले उसकी नींव रखी जाती है उसके बाद ही उसका निर्माण शुरू होता है, लेकिन आज हम आपको एक ऐसी मंदिर की इमारत के बारे में बताएंगे जिसकी न तो नींव रखी गई और न ही उसके निमार्ण में सीमेंट, प्लास्टर, सरिया या फिर अन्य किसी वस्तु का प्रयोग किया गया। है न अद्भुत और रोचक। दरअसल, जिस इमारत की हम बात कर रहे हैं वह भोले शंकर के नाम से प्रसिद्ध तमिलनाडु के तंजौर शहर में स्थित बृहदेश्वर मंदिर है। इस मंदिर का यह रहस्य न केवल अचंभित करता है बल्कि आश्चर्यचकित भी करता है। तो आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़े और ऐसे ही कई रहस्यों के बारे में....
बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण चोल वंश के राजा राजराजा प्रथम के शासनकाल में 1003-1010 ई. के बीच हुआ था। इसे मंदिर को राजा के नाम से भी जाता है। इसे स्थानीय रूप से राजराजेश्वरम और थंजाई पेरिया कोविल भी कहा जाता है। राजराजा प्रथम भगवान शंकर के बड़े भक्त थे और उन्होंने कई शिव मंदिरों का निर्माण करवाया। मान्यता है कि जब राजराजा चोल-प्रथम श्रीलंका के दौरे पर गए, तो उन्होंने एक सपना देखा जिसमें भोलेनाथ ने राजा को इस मंदिर के निर्माण का आदेश दिया था। इसके बाद ही इस विशालकाय मंदिर का निर्माण शुरू किया गया था।
बृहदेश्वर मंदिर का गुंबद किसी चमत्कार से कम नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह गुंबद 80 टन वजनी विशाल पत्थर से बना हुआ है, जबकि उस समय कोई क्रेन या लिफ्ट नहीं थी, फिर भी इसे स्थापित किया गया। वहीं, मंदिर में स्थापित विशाल शिवलिंग के कारण इसे मंदिर को बृहदेश्वर नाम से जाना जाता है।
यह जानकारी हैरानी होगी कि बृहदेश्वर मंदिर पूरी तरह से ग्रेनाइट से बना है, जिसमें करीब 1.3 लाख टन वजन के ग्रेनाइट पत्थर उपयोग किए गए हैं। इसे दुनिया का पहला ऐसा मंदिर माना जाता है, जो केवल ग्रेनाइट से निर्मित है। इस मंदिर की ऊंचाई करीब 66 मीटर (216 फीट) है और इसका निर्माण पत्थरों के खांचे काटकर किया गया वो बिना किसी केमिकल या चूने के। कहा जाता है कि 3,000 हाथियों की मदद से ये विशाल पत्थर तंजौर तक लाए गए।
बृहदेश्वर मंदिर का एक बड़ा रहस्य इसका वास्तुशिल्प है। क्योंकि यह मंदिर बिना नींव के बना है। जानकारी अनुसार, इस मंदिर के निर्माण के दौरान कोई नींव नहीं खोदी गई, बल्कि सीधे जमीन के ऊपर से ही इसे बनाया गया था। इस अद्वितीय निर्माण को एक हजार साल बाद भी वैसा ही खड़ा देखा जा सकता है।
बृहदेश्वर मंदिर को 1987 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। इस मंदिर में संस्कृत और तमिल में शिलालेख पाए जाते हैं, जो आभूषणों से जुड़ी जानकारी प्रदान करते हैं।
नंदी का स्थान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। क्योंकि वह शिव जी के वाहन के रूप में पूजे जाते है। बृहदेश्वर मंदिर में भगवान शिव की सवारी, नंदी की 13 फीट ऊंची विशाल प्रतिमा स्थापित है, जोकि एक ही पत्थर से तराशी गई है। यह नंदी की प्रतिमा अपनी भव्यता और अद्वितीयता के लिए प्रसिद्ध है।
बृहदेश्वर मंदिर के शीर्ष पर रखा 88 टन वजन का पत्थर और सोने का कलश भी एक रहस्य है। सूरज और चांद की रोशनी में इस पर कोई परछाई नहीं दिखती, केवल मंदिर की परछाई नजर आती है। यह पत्थर बिना क्रेन के इतनी ऊंचाई पर स्थापित किया गया, जो मंदिर की बेहतरीन वास्तुकला को दर्शाता है।
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