काल भैरव मंदिर का रहस्य क्या है?
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काल भैरव मंदिर का रहस्य

काल भैरव मंदिर के रहस्यों को जानिए, जहां भक्त भगवान की अनोखी पूजा विधियों से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

काल भैरव मंदिर के रहस्यों के बारे में

काल भैरव, जो भगवान शिव के रौद्र रूप में जाने जाते हैं। अलौकिक शक्तियों और रहस्यों से भरा ये मंदिर सभी को आश्चर्यचकित कर देती हैं। कहा जाता है कि जो भी भक्त इस मंदिर में जाता है, तो भगवान शिव उसकी सभी मुराद को जरूर पूरी करते हैं। करोड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र ये मंदिर शक्ति, भक्ति, और रहस्य का प्रतिक है। आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी कहानियों को

काल भैरव मंदिर का रहस्य

क्या आप कालभैरव मंदिर के रहस्य बारे में जानते हैं। यहां माना जाता है कि शंभू अपने अवतारी रूप काल भैरव के रूप में साक्षात दर्शन देते हैं और भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं। वहीं, मंदिर के कुछ ऐसी चमत्कारिक घटनाएं जिन पर यकीन करना आसान नहीं हो पाता, लेकिन भोलनाथ की महिमा अपंरपार है। तभी तो यह मंदिर वैज्ञानिकों के लिए आज भी अबुझ पहेली है तो आइए जानते हैं इस मंदिर के रोचक रहस्य के बारे में....

रहस्यमयी कालभैरव मंदिर कहां है?

मध्यप्रदेश के शहर उज्जैन के भैरवगढ़ क्षेत्र में शिप्रा नदी के तट पर स्थित काल भैरव का मंदिर शिव के भैरव स्वरूप को समर्पित है। काल भैरव को उज्जैन नगर का सेनापति कहा जाता है। इस मंदिर में भगवान कालभैरव के वैष्णव स्वरूप का पूजन किया जाता है। यहां भगवान काल भैरव का दर्शन करने से भक्तों की इच्छाएं पूरी होती हैं और उनके कष्ट दूर होते हैं।

जानें काशी विश्वनाथ और काल भैरव का नाता 

पौराणिक कथा अनुसार, ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त होने पर शिव प्रेरणा से जिस स्थान पर काल भैरव रह गए। बाद में वहां काल भैरव का मंदिर स्‍थापित हुआ। शिवजी के आशीर्वाद से काल भैरव को काशी का कोतवाल माना जाता है। काशी में मान्‍यता है कि भक्‍तों को काशी के राजा बाबा विश्वनाथ के बाद काल भैरव के दर्शन करना अनिवार्य है अन्‍यथा बाबा विश्वनाथ के दर्शन भी अधूरे माने जाते हैं। वहीं, काल भैरव मंदिर का वर्णन स्कंदपुराण के अवंति खंड में भी मिलता है।

अद्भुत है भोले का मदिरा सेवन

इस मंदिर का सबसे करिश्माई दृश्य मूर्ति का मदिरा सेवन करना है, जो एक अबुझ पहेली है, जिसका आज तक पता नहीं लगाया जा सका कि आखिर यह मदिरा जाती कहां है। मदिरा को प्रसाद के रूप में मंदिर में चढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि मदिरा से भरा बर्तन भगवान के मुख पर आते ही खाली हो जाता है। 

ग्रह दोष निवारण की मान्यता

जानकारी के अनुसार, इस मंदिर में भक्त मदिरा प्रसाद स्‍वरूप में खुद ग्रहण नहीं करते हैं। वहीं, मंदिर में रोजाना करीब 2000 बोतल मदिरा यानि शराब का भोग लगाया जाता है।  साथ ही मान्यता अनुसार इस मंदिर में रविवार के दिन मदिरा चढ़ाने से व्यक्ति सभी प्रकार के ग्रह दोष भी दूर होते हैं। कालसर्प दोष, अकाल मृत्यु और पितृदोष जैसे खतरनाक दोषों से भी राहत मिलती है। भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने पर लड्डू, चूरमा, और बेसन के लड्डू बाबा के दरबार में चढ़ाए जाते हैं।

दीपस्तंभ और उसकी महत्वता

कालभैरव मंदिर का दीपस्तंभ काफी प्रसिद्ध है। यहां की प्रज्ज्वलित दीपमालिकाओं से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। वहीं, मंदिर में शीघ्र विवाह के लिए दीपस्तंभ की पूजा की जाती है और शत्रु नाश तथा अच्छे स्वास्थ्य के लिए सरसों के तेल का दीपक जलाने की परंपरा है। इसके साथ ही, मान-प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए चमेली के तेल का दीपक जलाया जाता है। इसके अलावा काल भैरवाष्टमी मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है। माना जाता है कि  इस दिन काल भैरव अवतरित हुए थे। वहीं, अघोरी अपने ईष्टदेव की आराधना के लिए इस दिन की साल भर से प्रतीक्षा करते हैं। यहां तंत्र-मंत्र आदि भी किया जाता है।

सिंधिया पगड़ी की परंपरा

कालभैरव मंदिर में भगवान की प्रतिमा पर सिंधिया पगड़ी दिखती है, जो ग्वालियर के सिंधिया परिवार द्वारा अर्पित की जाती है। यह परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है और इसकी शुरुआत राजा महादजी सिंधिया से जुड़ी हुई है। जानकारी अनुसार, करीब 400 साल पहले, राजा महादजी सिंधिया शत्रु राजाओं से बुरी तरह पराजित हो गए थे। जब वे कालभैरव मंदिर पहुंचे, उनकी पगड़ी गिर गई थी, जिसे उन्होंने भगवान को अर्पित कर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की प्रार्थना की। इस घटना के बाद से सिंधिया परिवार की पगड़ी मंदिर में अर्पित की जाती है और यह परंपरा आज भी जारी है। यह मंदिर जीवन और मौत के चक्र को खत्म कर भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति भी कराता है।

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Published by Sri Mandir·February 3, 2025

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