कन्याकुमारी मंदिर का रहस्य क्या है?
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कन्याकुमारी मंदिर का रहस्य क्या है?

कन्याकुमारी मंदिर के रहस्यों को जानिए, जहां देवी की अद्भुत मूर्ति और समुद्र तट का संगम भक्तों को मोहित करता है।

कन्याकुमारी मंदिर के रहस्य के बारे में

कन्याकुमारी मंदिर, तमिलनाडु के दक्षिणी छोर पर स्थित है और यह देवी कन्याकुमारी (भगवती पार्वती का अविवाहित रूप) को समर्पित है। इस मंदिर का रहस्य देवी के अविवाहित रूप और उनसे जुड़ी कथाओं में छिपा है। आइये जानते हैं इस मंदिर से जुड़े रहस्य के बारे में...

कन्याकुमारी मंदिर का रहस्य

कन्याकुमारी मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य के कन्याकुमारी में स्थित एक ऐतिहासिक और धार्मिक मंदिर है। यह मंदिर देवी कन्याकुमारी जिन्हें भगवती के नाम से भी जाना जाता है उन्हें समर्पित है, जिन्हें माता पार्वती का अवतार माना जाता है। कन्याकुमारी मंदिर से जुड़ी कई रहस्यमयी कहानियां आमजन में प्रचलति हैं ।

इनमें ये 5 रहस्य सबसे ज्यादा चर्चा में रहते हैं

  • भगवान शिव और देवी कन्याकुमारी की अधूरी शादी
  • मंदिर का रहस्यमयी पत्थर और गुप्त रास्ता
  • देवी की मूर्ति का चमत्कार
  • तीन समुद्रों का मिलन और जल का रंग बदलना
  • विवेकानंद रॉक और देवी कन्याकुमारी की तपस्या

चलिए हम आपको एक-एक करके और विस्तार से इन रहस्यमयी कहानियों को बताते हैं

भगवान शिव और देवी कन्याकुमारी की अधूरी शादी

पौराणिक कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने राक्षस बाणासुर का वध करने के लिए कन्याकुमारी के रूप में अवतार लिया। उन्हें राक्षस को मारने के लिए अविवाहित रहना था। भगवान शिव, जो कैलाश पर्वत से कन्याकुमारी से विवाह करने आ रहे थे उन्होंने रास्ते में एक धोखे के कारण लौटने का फैसला ले लिया।

दरअसल कहा जाता है कि शादी की रात देवी कन्याकुमारी ने पूरे क्षेत्र में चावल और हल्दी के पकवान तैयार किए थे। लेकिन शिव के न आने से शादी रद्द हो गई, और गुस्से में देवी ने सारा खाना समुद्र में फेंक दिया। कहा जाता है कि आज भी कन्याकुमारी के समुद्र तट पर रंगीन पत्थर दिखाई देते हैं, जो उन पकवानों के अवशेष माने जाते हैं।

मंदिर का रहस्यमयी पत्थर और गुप्त रास्ता

मंदिर के अंदर एक रहस्यमयी पत्थर है, जिसे दीप स्तंभ कहा जाता है। कहा जाता है कि यह पत्थर इतनी चमक रखता है कि दूर से आने वाले जहाज इसे समुद्र में एक लाइटहाउस की तरह देख सकते थे। इसके अलावा, ऐसी मान्यता है कि मंदिर के नीचे एक गुप्त सुरंग है, जो सीधे समुद्र से जुड़ती है। हालांकि, इस सुरंग का इस्तेमाल किस लिए किया जाता था, यह आज तक एक रहस्य ही है।

देवी की मूर्ति का चमत्कार

देवी कन्याकुमारी की मूर्ति नथनी जिसे कई जगह नाक की बाली भी कहा जाता है उसे पहनती हैं, जो हीरे से जड़ी होती है। कहा जाता है कि इस नथनी की चमक इतनी तेज थी कि कई जहाज इसे प्रकाशस्तंभ समझकर रास्ता भटक जाते थे और समुद्र में डूब जाते थे। इस वजह से, अब मंदिर के पुजारियों ने नथनी को बाहर से छुपा दिया है और इसे विशेष अवसरों पर ही दिखाया जाता है।

वहीं एक और मान्यता के मुताबिक यह नथनी एक असली दिव्य हीरा है, जिसे समुद्री डाकुओं ने चुराने की कई बार कोशिश की थी। जब भी समुद्री डाकू इस नथनी को चुराने मंदिर आते, देवी की मूर्ति की आंखों से इतनी तेज़ रोशनी निकलती कि डाकू अंधे हो जाते और समुद्र में डूब जाते। इसलिए, इस नथनी को अब खास पर्दे के पीछे रखा जाता है, जिससे इसकी रोशनी बाहर न निकले और किसी को नुकसान न हो।

तीन समुद्रों का मिलन और जल का रंग बदलना

कन्याकुमारी मंदिर के पास तीन समुद्रों - हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी, और अरब सागर का संगम होता है। कहा जाता है कि इन तीनों समुद्रों का पानी अलग-अलग रंगों में दिखाई देता है, जो अद्भुत दृश्य उत्पन्न करता है। इसके अलावा, यहां सूर्योदय और सूर्यास्त के समय समुद्र का रंग बदल जाता है, जो एक चमत्कारिक अनुभव माना जाता है।

विवेकानंद रॉक और देवी कन्याकुमारी की तपस्या

मंदिर से कुछ दूरी पर समुद्र में एक चट्टान है, जिसे विवेकानंद रॉक मेमोरियल कहा जाता है। माना जाता है कि देवी कन्याकुमारी ने यहां पर खड़े होकर राक्षस बाणासुर के वध के लिए कठोर तपस्या की थी।

यहां स्वामी विवेकानंद ने भी ध्यान लगाया था और उन्हें जीवन की दिव्य प्रेरणा इसी चमत्कारी स्थान से मिली थी।

मान्यता- कहा जाता है कि देवी कन्याकुमारी के दर्शन से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, खासतौर पर शादी में आ रही समस्याओं को दूर करने के लिए यह मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है।

दरअसल कन्याकुमारी मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि यह भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और विरासत का प्रतीक भी है। साथ ही यह चमत्कारों और रहस्यों का भंडार भी है। यहां की हर कहानी में एक गहरा आध्यात्मिक संदेश छिपा हुआ है। यही वजह है कि हर साल यहां लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और देवी से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

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Published by Sri Mandir·February 7, 2025

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