कोणार्क सूर्य मंदिर के अद्भुत रहस्यों को जानिए, जहां इसकी वास्तुकला और सूर्य भगवान की महिमा अद्वितीय है।
कोणर्क सूर्य मंदिर, जो अपने बेमिसाल वास्तुकला और डिजाइन के लिए जाना जाता है, साथ ही ये मंदिर अपने अंदर बहुत से रहस्यों को समेटे हुए है। आइए जानते हैं कोणर्क सूर्य मंदिर के रहस्यों को
कोणार्क सूर्य मंदिर का नाम आपने कभी न कभी सुना ही होगा। सूर्यदेव को समर्पित यह भव्य मंदिर अपनी विशेषताओं के कारण यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में शामिल है। इस मंदिर की वास्तुकला और इतिहास में कई ऐसे रहस्य छिपे हैं, जिनके बारे में शायद ही आपको पता हो। इसके अद्वितीय शिल्प, विशालता और रहस्यमयी पहलुओं के कारण यह मंदिर हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहा है। तो आइए, जानते हैं कोणार्क सूर्य मंदिर के बारे में कुछ खास बातें और इसके छुपे हुए रहस्यों के बारे में जो इसे और भी रोचक बनाते हैं।
ओडिशा के पुरी शहर से 37 किलोमीटर दूर चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर 13वीं शताब्दी (1236-1264 ई.) में गंगवंश के राजा नरसिंह देव द्वारा बनवाया गया था। मंदिर के निर्माण में मुख्य रूप से बलुआ पत्थर, ग्रेनाइट और कीमती धातुओं का उपयोग किया गया है। सन् 1984 में यूनेस्कों के वर्ल्ड हेरिटेज की सूची में इस मंदिर को शामिल किया गया है। वहीं, कोणार्क सूर्य मंदिर के निर्माण में 12 वर्ष लगे और इस मंदिर को 1200 मजदूरों ने कड़ी मेहनत से बनाया था, जिसका अहसास मंदिर की नक्काशी को देखने पर पता चलती है। यह मंदिर 229 फीट ऊंचा है, जिसमें भगवान सूर्य की तीन मूर्तियां एक ही पत्थर से बनाई गई हैं। मंदिर में सूर्य के उगने, ढलने और अस्त होने के भावों को दर्शाया गया है,जो वास्तव में अद्भुत और मनमोहक है।
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को नारद मुनि ने अभद्र व्यवहार के कारण क्रोधित होकर श्राप दिया था, जिससे साम्ब को कुष्ठ रोग हो गया। साम्ब ने 12 वर्षों तक कोणार्क के चंद्रभागा नदी के संगम पर तपस्या की, जिससे सूर्यदेव प्रसन्न हुए और उनका रोग ठीक किया। इसके बाद, साम्ब ने सूर्य भगवान का मंदिर बनाने का निर्णय लिया। रोग-नाश के उपरांत चंद्रभागा नदी में स्नान करते समय साम्ब को सूर्य देव की एक मूर्ति मिली, जिसे देव शिल्पी श्री विश्वकर्मा ने बनाया था। यह मूर्ति वर्तमान में पुरी के जगन्नाथ मंदिर स्थापित है।
कोणार्क सूर्य मंदिर की बनावट एक विशाल रथ जैसी है, जिसमें 12 जोड़ी पहिए और 7 घोड़े हैं। यह 7 घोड़े 7 दिन के प्रतीक हैं। मंदिर के 12 चक्र साल के 12 महीनों को, जबकि प्रत्येक चक्र के 8 अरो यानि ताड़ियां भी हैं जो हर दिन के 8 पहरों को दिखाते हैं। इसके अलावा सात घोड़े हफ्ते के 7 दिनों का प्रतीक हैं। इसके अलावा मंदिर के लगे चक्रों पर पड़ने वाली छाया से समय का सही अनुमान लगाया जा सकता है, जो एक प्राकृतिक घड़ी की तरह काम करती है।
मंदिर का मुख पूर्व की ओर है और इसके तीन प्रमुख हिस्से – देउल गर्भगृह, नाटमंडप, और जगमोहन – एक ही दिशा में स्थित हैं। प्रवेश द्वार नाटमंडप से होता है, फिर जगमोहन और गर्भगृह एक ही जगह पर हैं। सूर्य का उदय और अस्त मंदिर के ऊपरी हिस्से से देखा जा सकता है, जो दृश्य बहुत आकर्षक और चमत्कारी प्रतीत होता है। यह मंदिर सुंदर नक्काशी, मानव, किन्नर, देवताओं के चित्र और प्राचीन उड़िया स्थापत्य कला की मिसाल है।
कोणार्क सूर्य मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य उसकी चुम्बकीय शक्ति है। जानकारी के अनुसार, मंदिर पर 51 मीट्रिक टन का चुंबक था, जिसका प्रभाव समुद्र से गुजरते जहाजों पर पड़ता था, जिससे उनका कम्पास गलत दिशा दिखाता था। इस चुम्बक को बाद में हटा लिया गया। माना जाता है कि मंदिर की संरचना इस तरह से की गई थी कि वह चुम्बकीय शक्ति उत्पन्न करता था। इसके अलावा अन्य रहस्य भी इस मंदिर को चमत्कारिक बनाते हैं।
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