पावागढ़ मंदिर के रहस्यों को जानिए, जहां मां काली की पूजा करने लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं।
पावागढ़ मंदिर, गुजरात के पंचमहल जिले में स्थित एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह मंदिर माँ कालिका देवी को समर्पित है और इसे शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। मंदिर पावागढ़ की पहाड़ियों पर स्थित है, जो लगभग 800 मीटर की ऊँचाई पर है। श्रद्धालु यहाँ माँ कालिका के दर्शन के लिए पैदल यात्रा या रोपवे का उपयोग करते हैं।
भारत के ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों में पावागढ़ का महाकाली मंदिर अपनी विशेष पहचान रखता है। यह मंदिर गुजरात के पंचमहल जिले में पावागढ़ पहाड़ियों के बीच स्थित है। यहां का ख़ास आकर्षण है मां काली की दक्षिणमुखी मूर्ति, जो तांत्रिक पूजा के लिए प्रसिद्ध है। यहां तक पहुंचने के लिए रोपवे का सहारा लिया जा सकता है, और बाकी दूरी 250 सीढ़ियां चढ़कर पूरी की जाती है। इस मंदिर का संबंध देवी सती की कहानी, भगवान राम और विश्वामित्र से जुड़ा हुआ है।
पावागढ़ का नाम इसकी भौगोलिक स्थिति और विशेषताओं से जुड़ा है। इस दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में चारों ओर गहरी खाइयां हैं, और हवा का वेग हमेशा स्थिर रहता है। “पावागढ़” का अर्थ है वह स्थान जहां पवन का प्रवाह हमेशा समान रहता है।
पावागढ़ की पहाड़ी की शुरुआत ऐतिहासिक चंपानेर नगर से होती है, जिसे राजा वनराज चावड़ा ने अपने मंत्री चंपा के नाम पर बसाया था। चंपानेर से ऊपर की ओर बढ़ते हुए, 1,471 फीट की ऊंचाई पर माची हवेली स्थित है। यहां से भक्त रोपवे की सुविधा का उपयोग करके मंदिर तक पहुंच सकते हैं। रोपवे से सफर करना एक अद्भुत अनुभव है, जहां पहाड़ियों का मनोरम दृश्य भक्ति के सफर को और भी आनंददायक बना देता है।
पावागढ़ का महाकाली मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। देवी पुराण के अनुसार, जब सती ने अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में शिव का अपमान सहन न कर पाने पर अपने प्राण त्याग दिए, तो भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करने लगे। सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े किए। जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए। पावागढ़ वो स्थान है, जहां देवी सती का वक्षस्थल गिरा था। इसलिए यह स्थल अत्यंत पवित्र और पूजनीय माना जाता है। यहां काली मां की मूर्ति दक्षिणमुखी है, जो विशेष रूप से तांत्रिक पूजा के लिए प्रसिद्ध है।
पावागढ़ मंदिर के बारे में यह मान्यता है कि इसका संबंध त्रेतायुग से है। इसे पहले “शत्रुंजय मंदिर” कहा जाता था। विश्वामित्र ऋषि ने यहां काली मां की मूर्ति स्थापित की थी, और उनके नाम पर यहां बहने वाली नदी को “विश्वामित्री” कहा गया।
ऐसी मान्यता है कि भगवान राम, उनके पुत्र लव-कुश और कई बौद्ध भिक्षुओं ने यहां आकर मोक्ष प्राप्त किया था। पावागढ़ का यह मंदिर धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व का अनोखा उदाहरण है।
पावागढ़ का ‘महाकाली मंदिर’ भारत के उन चुनिंदा स्थलों में से एक है, जो धार्मिक आस्था, ऐतिहासिक महत्व और प्राकृतिक सौंदर्य का अनूठा संगम है। यहां की यात्रा हर उस व्यक्ति के लिए विशेष हो सकती है, जो आध्यात्मिक शांति और प्रकृति के बीच समय बिताना चाहता है।
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