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तिलक लगाने के लिए मंत्र

जानें इसे पढ़ने और जाप करने के अद्भुत लाभ। दैनिक जीवन में मानसिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक बल पाने का सरल उपाय।

तिलक लगाने के मंत्र के बारे में

तिलक लगाने का मंत्र आत्मशुद्धि और भगवान की कृपा प्राप्त करने का प्रतीक माना गया है। तिलक न केवल धार्मिक परंपरा है बल्कि यह ऊर्जा, आस्था और भक्ति का चिन्ह भी है। तिलक लगाते समय बोले जाने वाला मंत्र व्यक्ति के मन, बुद्धि और आत्मा को दिव्यता से जोड़ता है तथा जीवन में सकारात्मकता बढ़ाता है। इस लेख में जानिए तिलक लगाने के मंत्र का महत्व, विधि और इसके आध्यात्मिक लाभ।

तिलक लगाने की परंपरा एवं महत्व

भारतीय संस्कृति में तिलक लगाने की परंपरा एक पवित्र और शुभ रिवाज माना जाता है, जो कि धार्मिक, सामाजिक और आध्यत्मिक महत्व रखती है। तिलक (या टीका) माथे पर लगाया जाता है, जिसे ‘आज्ञा चक्र’ (तीसरी आंख का स्थान) माना जाता है। यह परंपरा हज़ारों सालों से चली आ रही है और विभिन्न अवसरों पर इसका विशेष महत्व होता है।

  • धार्मिक महत्व: तिलक को भगवान की कृपा और आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है। यह आध्यात्मिक चेतना को जगाने और मन को शांत करने में मदद करता है। तिलक लगाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों का एक अभिन्न अंग है। विभिन्न देवी-देवताओं के लिए अलग-अलग प्रकार के तिलक लगाए जाते हैं।

  • सामाजिक महत्व: तिलक सम्मान और आदर का प्रतीक है। यह किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में लगाया जाता है। मेहमानों का स्वागत तिलक लगाकर किया जाता है। तिलक लगाने से व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है।

  • आध्यात्मिक महत्व: तिलक आज्ञा चक्र (तीसरी आंख) पर लगाया जाता है, जो ज्ञान और अंतर्दृष्टि का स्थान है। यह एकाग्रता और ध्यान को बढ़ाता है। तिलक लगाने से मन शांत होता है और विचारों में स्पष्टता आती है।

तिलक लगाने के प्रकार

  • चंदन का तिलक: चंदन का तिलक शांति, शीतलता, और तेजस्विता प्रदान करता है। इसे वैष्णव संप्रदाय के लोग लगाते हैं।
  • कुमकुम का तिलक: कुमकुम का तिलक शक्ति और उत्साह का प्रतीक है। इसे शाक्त संप्रदाय के लोग लगाते हैं।
  • भस्म का तिलक: भस्म का तिलक आत्मिक स्थिति में वृद्धि करता है और मन को स्थिर करता है। इसे तांत्रिक या शैव संप्रदाय के लोग लगाते हैं।
  • केसर का तिलक: केसर का तिलक मंगल कार्यों और यात्रा से पहले लगाया जाता है।
  • गोपी चंदन: गोपी चंदन वैष्णव संप्रदाय में पवित्र माना जाता है और इसे द्वारका के पास गोपी सरोवर की रज से बनाया जाता है।
  • अष्टगंध: अष्टगंध का तिलक विद्या और बुद्धि की प्राप्ति के लिए लगाया जाता है।
  • रोली: रोली का तिलक आकर्षण और उत्साह के लिए लगाया जाता है।

तिलक लगाने की विधि

भारतीय धार्मिक परंपराओं में तिलक लगाने की विधि जितनी सरल है, उतनी ही पवित्र और प्रभावशाली भी मानी जाती है। यह प्रक्रिया केवल शारीरिक क्रिया नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुशासन है, जिसमें मन, वाणी और कर्म की शुद्धता का समावेश होता है।

स्वच्छता और मानसिक शुद्धता

तिलक लगाने से पहले हाथ, चेहरा और पैर धो लें। मन को शांत करें और किसी भी प्रकार के विकारों (जैसे क्रोध, ईर्ष्या आदि) से मुक्त रहें। शांत भाव से ईश्वर का ध्यान करें।

सामग्री तैयार करें

तिलक के लिए आवश्यक सामग्री जैसे – चंदन, कुमकुम, भस्म, रोली या तुलसी लेप तैयार रखें। यदि पूजा के दौरान तिलक लगा रहे हैं, तो पूजा की थाली में सामग्री रखी जाती है।

तिलक अंगुली से लगाएं

अनामिका (रिंग फिंगर) से तिलक लगाना सबसे शुभ माना जाता है। चंदन या कुमकुम को थोड़ा सा जल मिलाकर अंगुली से उठाएं।

तिलक लगाते समय इस मंत्र का उच्चारण करें

उदाहरण के लिए- ‘ॐ केशवाय नमः’, ‘ॐ नारायणाय नमः’, ‘ॐ गोविंदाय नमः’ – इन नामों का स्मरण करते हुए तिलक लगाना अत्यंत शुभ होता है।

तिलक का स्थान और आकार

तिलक को भौंहों के बीच (आज्ञा चक्र) में लगाना चाहिए। आकृति आपके संप्रदाय या श्रद्धा के अनुसार हो सकती है – सीधी रेखा, त्रिपुंड, ऊर्ध्वपुंड, गोल बिंदी आदि।

तिलक के बाद हाथ जोड़कर प्रणाम करें

ईश्वर को प्रणाम करें और मन में एक शुभ संकल्प लें – जैसे दिनभर अच्छे कर्म करें, मन शांत रखें आदि।

तिलक लगाने का मंत्र

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**‘केशवानन्द गोविन्द वाराह पुरुषोत्तम।** **पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु।** **कान्तिं लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम्।** **ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम्।’**

इसका अर्थ है- ‘हे केशव, आनन्द, गोविन्द, वाराह, पुरुषोत्तम, यह तिलक मुझे पुण्य, यश, और आयु प्रदान करे। यह तिलक मुझे कांति, लक्ष्मी, धैर्य, सुख, सौभाग्य और अतुल बल प्रदान करे। मैं हमेशा चंदन का तिलक धारण करता हूं।’

इसके अलावा तिलक लगाते समय आप इन मंत्रों का भी जाप कर सकते हैं-

  • मस्तक पर – ‘ओम श्री केशवाय नमः’
  • कंठ पर - ‘ओम श्री गोविंदाय नमः’
  • छाती पर – ‘ओम श्री माधवाय नमः’
  • दाहिनी भुजा पर - ‘ओम गोविन्दाय नमः’
  • बाईं भुजा पर - ‘ओम विष्णवे नमः’
  • शिखा पर - ‘ओम श्री वासुदेवाय नमः’
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Published by Sri Mandir·October 18, 2025

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