नवरात्रि का पहला दिन | Navratri First Day
शैलपुत्री - ब्रह्मचारिणी - चंद्रघंटा - कूष्मांडा - स्कंदमाता - कात्यायनी - कालरात्रि - महागौरी - सिद्धिदात्री यह माँ दुर्गा के वे नौ रूप हैं जिनकी पूजा नवरात्र के नौ दिनों में की जाती है। नवरात्र शक्ति की साधना का पर्व है। यह ऐसा समय है जब हर साधक संसार की सभी तामसिक ऊर्जाओं को छोड़कर सिर्फ माँ दुर्गा की साधना में खुद को मग्न रखना चाहता है। नवरात्रि के पर्व में शक्ति स्वरूपा माँ दुर्गा की मन से की गई उपासना से साधकों के हर कार्य सिद्ध होते हैं और आपकी पूजा से प्रसन्न होकर माँ दुर्गा आपकी हर मनोकामना को पूरा करती हैं। यह साधना शुरू होती नवरात्र के प्रथम दिन से जब माँ दुर्गा के साथ ही माता के प्रथम रूप माँ शैलपुत्री की पूजा भी की जाती है। आइए, जानते हैं नवरात्र के प्रथम दिन का महत्व, पूजा विधि और इससे जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी।
नवरात्रि के प्रथम दिन का महत्व (Navratri Ka Pahla Din Ka Mahatav)
आदिशक्ति माँ दुर्गा की भक्ति के महा-अनुष्ठान नवरात्रि का प्रथम दिन पूर्ण रूप से देवी शैलपुत्री को समर्पित होता है। नवदुर्गा के सभी नौ स्वरूपों में देवी शैलपुत्री की उपासना प्रथम दुर्गा के रूप में की जाती है। समस्त लोकों में माता शैलपुत्री ही जगत-जननी आदिशक्ति माँ पार्वती के नाम से जानी जाती हैं। अपने भक्तों के बीच मातारानी ‘गौरी एवं उमा’ के नाम से भी अत्यंत लोकप्रिय हैं। शास्त्रों में माँ शैलपुत्री का स्वरुप चंद्र के समान बताया गया है। माँ के मस्तक पर स्वर्ण मुकुट में अर्धचंद्र उनकी शोभा बढ़ाता है। देवी जी वृष अर्थात बैल की सवारी करती हैं, अतः इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। माँ के दाहिने हाथ में त्रिशूल व बाएं हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है, साथ ही चमेली का पुष्प भी माँ को अतिप्रिय है।
माँ शैलपुत्री की पूजा के लाभ (Benefits of Mata Shailputri Puja)
माँ ने अपने शैलपुत्री स्वरुप में अत्यंत कठिन तपस्या कर के महादेव को पति के रूप में प्राप्त किया था। इसलिए यह मान्यता है कि माँ की कृपा से कन्याओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है, साथ ही सफल दांपत्य जीवन का आशीर्वाद मिलता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भाग्य का प्रदाता ग्रह चंद्रमा भी देवी शैलपुत्री द्वारा शासित होता है। चंद्रमा के किसी भी बुरे प्रभाव को आदिशक्ति के इस रूप की पूजा करने से दूर किया जा सकता है। माँ शैलपुत्री की उपासना से साधक का मन ‘शैल’ अर्थात चट्टान के समान स्थिर और एकाग्र हो जाता है, जिससे विचारों में मजबूती आती है और आत्मविश्वास भी बढ़ता है।
नवरात्रि के प्रथम दिन का शुभ मुहूर्त (Navratri First Day Shubh Muhurat)
नवरात्र के पहले दिन माँ दुर्गा की पूजा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन माँ शैलपुत्री स्वरुप की पूजा का विधान है। इसी दिन घटस्थापना/कलशस्थापना की जाती है, जो पूरे नौ दिनों तक रहता है। इस वर्ष नवरात्रि आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 03 अक्टूबर 2024 गुरुवार, 11:24 PM से शुरू होगी और 04 अक्टूबर 2024 शुक्रवार, 02:58 AM को समाप्त होगी। ऐसे में शारदीय नवरात्री की शुरुआत 03 अक्टूबर को पड़ रही है।
अगर हम बात करें घटस्थापना/कलशस्थापना की तो इस वर्ष घटस्थापना मुहूर्त- 03 अक्टूबर, गुरुवार, 05:51 AM से 06:56 AM तक रहेगा जबकि अभिजित घटस्थापना मुहूर्त- 03 अक्टूबर 11:23 AM से 12:10 PM तक रहेगा इसके अलावा कन्या लग्न प्रारम्भ - 03 अक्टूबर, 05:51 AM तथा कन्या लग्न समाप्त - 03 अक्टूबर, 06:56 AM तक रहेगा
माँ शैलपुत्री की पूजा सामग्री और विधि (Mata Shailputri Puja Samagri and Puja Vidhi)
पहले दिन की पूजन सामग्री में माँ शैलपुत्री की प्रतिमा या तस्वीर, सफ़ेद रंग के पुष्प, सफ़ेद रंग की मिठाई, (यदि आपके पास माँ शैलपुत्री व माँ के अन्य रूपों की तस्वीर उपलब्ध नही हो तो आप माँ दुर्गा की ऐसी तस्वीर ले सकते हैं, जिसमें माता के नौ स्वरूप दिखाई दें। अगर वह भी संभव न हों तो माँ दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर भी उपयुक्त है। क्योंकि माँ दुर्गा में ही उनका हर स्वरूप निहित है)
पूजा विधि
- नवरात्रि प्रतिपदा तिथि को सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करें और माँ भगवती और माता शैलपुत्री की पूजा के लिए लाल या पीले रंग के स्वच्छ वस्र धारण करें।
- इसके बाद पूजा स्थल को ठीक से साफ करके गंगा जल से शुद्ध करें। मंदिर को अपनी रूचि अनुसार सजाएं। अब इस स्थान में चौकी स्थापित करें।
- इस बात का ध्यान रखें कि चौकी को पूर्व दिशा में स्थापित करें। यह इस तरह से हो कि माँ दुर्गा और माँ शैलपुत्री का मुख पश्चिम की ओर हो, और पूजा करने वाले का मुख पूर्व दिशा की तरफ हो।
अब मुहूर्त के अनुसार पूजा विधि शुरू करें।
- सबसे पहले चौकी के सामने एक साफ आसन बिछाकर बैठ जाएं। जलपात्र से अपने बाएं हाथ से दाएं हाथ में जल लेकर दोनों हाथों को शुद्ध करें। अब स्वयं को तिलक करें।
- सीधे हाथ में जल ले कर स्वस्ति मंत्र का उच्चारण करें।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो वृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
और इसके बाद इस जल को चौकी के दाएं और बाएं तरफ छिड़कें।
चौकी स्थापना
- अब चौकी रखने वाले स्थान अर्थात जमीन पर सिंदूर, हल्दी और अक्षत में से किसी एक के उपयोग से स्वास्तिक बनाएं।
- इसपर चौकी की स्थापना करें और चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं। इस चौकी को गंगाजल से पवित्र करें
- इस पर बताये गए दिशा के निर्देशों के अनुसार माता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
- इसके बाद माता के सामने चौकी पर दायीं और बाईं तरफ अक्षत से अनुसार दो अष्टदल बनाएं।
- ध्यान रखें कि माता के दाएं तरफ अष्टदल पर कलश की स्थापना की जाती है, और बाएं तरफ के अष्टदल पर दीपक रखा जाता है।
- यह करने के बाद सबसे पहले दीप और धूप जलाएं।
- सर्वप्रथम गणेशजी का आह्वान करने के लिए एक पान के पत्ते पर गणेशजी को माता के बाएं तरफ स्थापित करें। इनपर गंगाजल का छिड़काव करें।
- ‘ॐ गं गणपतेय नमः’ मंत्र का 5 बार जाप करते हुए श्रीगणेश को कुमकुम-हल्दी, अक्षत, फूल-फल आदि चढ़ाएं।
कलश स्थापना
- दाईं ओर के अष्टदल पर कलश स्थापना करें।
- मिट्टी या तांबे के कलश में शुद्ध जल भरें, इसमें गंगाजल की कुछ बूंदे मिलाएं और कलश के उभार पर
- हल्दी-कुमकुम लगाकर इसके मुख पर लाल कलावा बांधे।
- अब दो लौंग, दो सुपारी, एक हल्दी की गांठ, अक्षत, दो इलायची और एक सिक्के को सीधे हाथ में लेकर कलश में डालें।
- यदि इनमें से कुछ सामग्री आपको नहीं मिल पाई हो, तो आप शुद्ध जल में सिर्फ सिक्का और चावल डालकर भी कलश स्थापित कर सकते हैं।
- इसके बाद अष्टदल रूपी आम के पत्तों को हल्दी कुमकुम लगाकर इस कलश के मुख पर रखें।
- अब नारियल पर लाल चुनरी या लाल वस्त्र को कलावा की मदद से लपेट लें और इसे कलश पर रखें।
- इसके बाद नारियल पर हल्दी-कुमकुम और अक्षत अर्पण करें।
**घटस्थापना **
- घटस्थापना के लिए सबसे पहले एक मिट्टी का बड़ा कटोरा लें।
- उसमें साफ गीली काली मिट्टी भरें, अब इसमें ‘जौ या गेहूं’ जो आपके पास उपलब्ध हो, वो बो दें।
- घट पर हल्दी और कुमकुम लगाएं और कलावा चढ़ाएं।
- इसे अंजुली की मदद से पानी डालकर सींचे।
**अखंड ज्योत **
- अखंड ज्योत के लिए एक दीपक में घी या तेल लेकर दीपक जलायें और इसे एक आवरण से ढंकें।
- ध्यान दें की नवरात्रि के दौरान प्रज्जवलित यह ज्योत लगातार जलती रहे।
- अब माता का आह्वान करें- माता दुर्गा के लिए ‘ॐ दुं दुर्गायै नमः’ मंत्र के साथ माता शैलपुत्री का आह्वान करें और ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥ मन्त्र का पांच-पांच बार जप करें।
- इस आह्वान के बाद अब माता को कुमकुम-हल्दी लगाएं।
- तद्पश्चात माँ को फूल और माला पहनाएं।
- इसके बाद माँ दुर्गा को लाल चुनरी, पूरा श्रृंगार और फल अर्पित करें।
- माता शैलपुत्री को सफ़ेद रंग बहुत प्रिय है, इसीलिए माँ शैलपुत्री को सफ़ेद रंग की पुष्पमाला और सफ़ेद रंग का उपवस्त्र चढ़ाएं।
- माता दुर्गा को हलवा-पुड़ी का भोग लगाएं।
- माँ शैलपुत्री को सफेद मिठाई बहुत प्रिय है, इसीलिए पहले दिन की पूजा में सफेद मिठाई का भोग अवश्य लगाएं।
- यदि आप सम्पूर्ण श्रृंगार एकत्रित नहीं कर पाएं, तो माता को मेहन्दी अवश्य अर्पित करें। यह माता के प्रिय श्रृंगारों में से एक है।
- माँ शैलपुत्री के लिए निम्न मंत्र का उच्चारण करें
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
- अब दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। यदि आप दुर्गा सप्तशती का पूर्ण पाठ एक साथ करने में असमर्थ हैं, तो इसे अपने समयनुसार कर सकते हैं।
- अब इसके बाद माता शैलपुत्री की आरती करें।
- अब आरती के बाद सभी में प्रसाद वितरित करने के बाद खुद भी प्रसाद ग्रहण करें।
- चूँकि प्रथम दिन की पूजा बहुत महत्वपूर्ण होती है। यह दिन माँ नवदुर्गा के प्रथम अवतार माँ शैलपुत्री का दिन माना जाता है, और इस दिन की गई पूजा आपके लिए बहुत लाभदायक होगी, इसीलिए इसे अवश्य करें।
नवरात्रि व्रत के नियम- क्या खाएं क्या नही
नवरात्रि भक्तों की आस्था के साथ उनके समर्पण एवं संयम का भी प्रतीक होती है। इस दौरान भक्त माता की आराधना में पूर्णतः लीन हो जाते हैं, और अपने भक्तिभाव को प्रकट करने के लिए पूजा एवं व्रत भी करते हैं। व्रत करने वाले लोगों के मन में इस दौरान खाने-पीने को लेकर कई प्रकार की शंकाएं होती हैं, जिन्हें दूर करने के लिए हम आपके लिए यह खास जानकारी लेकर आए हैं। अगर आप भी नवरात्रि में माता की कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत रखना चाहते हैं, तो उससे पहले यह ज़रूरी है कि आप इन बेहद महत्वपूर्ण बातों को जान लें
क्या खा सकते हैं और क्या नहीं?
व्रत के समय लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि व्रत में वह किन चीज़ों का सेवन कर सकते हैं, तो जानते हैं कि आप व्रत में क्या खा सकते हैं और क्या नहीं- नवरात्रि के 9 दिन केवल सात्विक भोजन ही करना चाहिए। यह भोजन शारीरिक और मानसिक सेहत के लिए फायदेमंद होता है। इससे हमारा पाचन तंत्र भी ठीक रहता है, साथ ही मन और शरीर भी संतुलित रहता है। नियमित रूप से सात्विक भोजन के सेवन से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।
यह तो हम सभी जानते हैं कि व्रत में सादा नमक नहीं खाया जाता है, व्रत के भोजन में केवल सेंधा नमक का प्रयोग करें। आप व्रत के दौरान फलों का सेवन कर सकते हैं, ताज़े फलों का जूस पी सकते हैं, दूध पी सकते हैं और उससे बनी हुई चीज़ें जैसे दही, छाछ, लस्सी और मावे का सेवन भी कर सकते हैं।
कौन सा आटा और चावल खा सकते हैं:
व्रत में अनाज खाना पूरी तरह वर्जित होता है, इसमें केवल फल से बने आटे जैसे कि सिंघाड़े और कुट्टु के आटे का सेवन किया जा सकता है। आमतौर पर, लोग इसकी पूड़ी या पकोड़ी बनाकर खाते हैं। इसके अलावा समा या सामक के चावल का सेवन किया जाता सकता है, इन्हें उपवास के चावल के नाम से भी जाना जाता है।
कौन सी सब्ज़ियां खा सकते हैं
व्रत में सात्विक तरह से बनाई गई सब्ज़ियों को भी खा सकते हैं, हालांकि व्रत में केवल कुछ ही सब्ज़ियां खाई जाती हैं। इनमें आलू, शकरकंद, अरबी, गाजर, कच्चा केला, लौकी, टमाटर, ककड़ी, खीरा, हरा धनिया जैसी सब्ज़ियां शामिल हैं। इन्हें खाने से आपको ऊर्जा मिलती है और पाचन भी ठीक रहता है।
खाने में किस तेल का प्रयोग करें
अगर बात करें, कि व्रत का भोजन बनाने के लिए किस तेल का प्रयोग करना चाहिए तो सबसे बेहतर रहेगा अगर आप खाना शुद्ध घी में बनाएं। अगर ऐसा संभव नहीं है तो सूरजमुखी का तेल, मूंगफली का तेल या नारियल के शुद्ध तेल का प्रयोग भी कर सकते हैं। यह ध्यान रखें कि सरसों के तेल का सेवन बिल्कुल न करें।
कौन से मसाले खाए जा सकते हैं
मसाले खाने का अभिन्न हिस्सा होते हैं, लेकिन व्रत में सभी मसालों का उपयोग नहीं किया जा सकता। व्रत का खाना बनाते वक्त जीरा, काली मिर्च, काली मिर्च पाउडर, लौंग, इलायची और दालचीनी जैसे मसालों का प्रयोग किया जा सकता है।
चाय और कॉफी का सेवन कर सकते हैं या नहीं
व्रत में चाय पी जा सकती है, हालांकि कॉफी को लेकर कई लोगों के मन में संदेह होता है, आप कॉफी ले सकते हैं, अगर उसमें केवल 100 प्रतिशत कॉफी बीन्स का इस्तेमाल किया गया है।
और क्या-क्या खा सकते हैं
- हल्के नाश्ते के लिए आप मखाने और मूंगफली घी में रोस्ट कर सकते हैं और उसे खा सकते हैं। मखाने सेहत के लिए काफी लाभदायक भी होते हैं।
- साबूदाना और उससे बनने वाली खीर व खिचड़ी को भी व्रत में खाने के लिए उपयुक्त माना गया है। इसे खाने से पेट लंबे समय तक भरा रहता है।
- इसके अलावा व्रत में सूखे मेवों का सेवन भी काफी फायदेमंद होता है, क्योंकि यह बेहद पौष्टिक होते हैं।
- आपको बता दें कि विभिन्न जगहों पर विभिन्न परंपराओं के हिसाब से भी व्रत में खाना खाया जाता है। तो आप उस आधार पर भी यह निर्धारित कर सकते हैं कि आपको व्रत में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं।
किन चीज़ों का करें परहेज
व्रत के दौरान स्वास्थ्य का विशेष ख्याल रखना भी काफी महत्वपूर्ण होता है। इसलिए व्रत में ऐसी चीज़ों से परहेज करें, जिससे आपको एसिडिटी या कोई भी अन्य समस्या हो जाए। इसके लिए आप ज़्यादा तली हुई चीज़ें न खाएं। घी, आलू, तेल और सूखे मेवे जैसी चीज़ों का सेवन संतुलित मात्रा में करें। पानी पीते रहे।
व्रत के प्रसाद या फलाहार में प्याज और लहसुन का प्रयोग नहीं किया जाता। प्याज और लहसुन को राजसिक और तामसिक भोजन की श्रेणी में रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इनके सेवन से तमस प्रकृति और वासना में वृद्धि होती है और नवरात्रि के व्रत मन की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अहम माना गया है। इस कारण नवरात्रि या किसी भी धार्मिक कार्य में प्याज़ और लहसुन का उपयोग नहीं किया जाता।
माँ शैलपुत्री को क्या भोग लगाएं (What should be offered to Mata Shailputri?)
नवरात्रि का पहला दिन माँ शैलपुत्री का होता है। इस दिन माता की विधि पूर्वक पूजा के साथ ही, गाय का शुद्ध घी या फिर उससे बने पदार्थों का भोग लगाया जाता है। ऐसा करने से, भक्तों को सभी कष्टों और रोगों से मुक्ति मिलती है। इस दिन आप बादाम का हलवा भी बना सकते हैं।
बादाम का हलवा बनाने के लिए, सबसे पहले बादाम को हल्का उबालें और उन्हें छीलकर इसका दरदरा पेस्ट बनाएं। इसके बाद, एक पैन में देसी घी गर्म करें और इसमें पेस्ट डाल दें। फिर इसमें चीनी डालकर धीमी आंच पर हलवे को सुनहरा रंग होने तक पकाएं। इस तरह, बादाम के हलवे का भोग बनकर तैयार हो जाएगा।
माँ शैलपुत्री के मंत्र और अर्थ (Mata Shailputri- Mantra and Meanings)
माँ शैलपुत्री की कथा (Story of Mata Shailputri)
शिव महापुराण के अनुसार, एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया था । इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवी-देवताओं एवं ऋषियों को अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया। किंतु उन्होंने इस यज्ञ में अपने दामाद अर्थात शिवजी को आमंत्रित नहीं किया। जब यह समाचार माता सती ने सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तो माता सती का मन भी उस यज्ञ में शामिल होने के लिए व्याकुल हो उठा।
इसके बाद माता सती ने यज्ञ में चलने के लिए शिव जी से आग्रह किया तब शिव जी ने उत्तर दिया कि इस यज्ञ में समस्त देवी-देवताओं एवं ऋषियों को निमंत्रित किया गया है। किंतु हमें यज्ञ-भाग हेतु बुलावा नहीं भेजा गया है। ऐसी स्थिति में बिना निमंत्रण के हमारा वहां जाना उचित नहीं है।
किंतु शंकरजी के इन विचारों से माता सती सहमत नहीं हुई और पिता के यज्ञ का हिस्सा बनने के लिए उस आयोजन में पहुंच गई। लेकिन पिता प्रजापति दक्ष ने उनके उस आयोजन में आने की उपेक्षा की, तथा शिव जी के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया। अपने पिता द्वारा अपने पति का यह अपमान देखकर माता सती का मन पश्चाताप, क्षोभ एवं क्रोध से भर उठा, और वह इस दुर्व्यवहार को सहन नहीं कर सकी। उन्होंने उसी क्षण योगाग्नि द्वारा स्वयं को भस्म कर लिया।
इसके बाद अपने अगले जन्म में माता सती ने ही पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे ‘शैलपुत्री’ के नाम से विख्यात हुर्ईं। माता सती के समान ही माँ शैलपुत्री महादेव शिव की अर्धांगिनी बनीं।
माँ शैलपुत्री की आरती (Aarti of Mata Shailputri)
॥ आरती देवी शैलपुत्री जी की ॥
ॐ जय शैलपुत्री माँ मैया जय शैलपुत्री माँ सर्व सुखों की दात्री देना माँ करुणा ॐ जय शैलपुत्री माँ ॐ जय शैलपुत्री माँ मैया जय शैलपुत्री माँ
सर्व सुखों की दात्री देना माँ करुणा ॐ जय शैलपुत्री माँ
हस्त कमल अति सोहे त्रिशूलधारिणी माँ मैया त्रिशूलधारिणी माँ शीश झुकावें हम सब कृपा माँ नित करना ॐ जय शैलपुत्री माँ मैया जय शैलपुत्री माँ
दक्षराज सुता मैया कष्ट निवारणी माँ मैया कष्ट निवारणी माँ नवदुर्गाओं में प्रथम, नवदुर्गाओं में प्रथम तुम्हारी है पूजा ॐ जय शैलपुत्री माँ मैया जय शैलपुत्री माँ
वृषभ पे मैया विराजे शीश मुकुट सोहे मैया शीश मुकुट सोहे ऋषि मुनि नर गुण गावें, ऋषि मुनि नर गुण गावें छवि अति मन मोहे ॐ जय शैलपुत्री माँ
घट घट व्यापनी माता, सुख तुमसे आवे मैया सुख तुमसे आवे जो कोई ध्यावे मन से जो कोई ध्यावे मन से इच्छित फल पावे ॐ जय शैलपुत्री माँ
भक्तों के मन में मैया तुम्हरा नित है निवास मैया तुम्हरा नित है निवास रिद्धि सिद्धि प्रदात्री, रिद्धि सिद्धि प्रदात्री तुमसे है दिव्य प्रकाश ॐ जय शैलपुत्री माँ
नवरात्रों में जो भी व्रत माता का करे जो भी व्रत माता का करे आनंद नित वो पावे…आनंद नित वो पावे माँ भंडार भरे ॐ जय शैलपुत्री माँ
हम सब तुम्हरे मैया, तुम हमरी माता मैया तुम हमरी माता दया दृष्टि माँ करना दया दृष्टि माँ करना हम करें जगराता ॐ जय शैलपुत्री माँ
शैलपुत्री माँ की आरती जो जन नित गावे सुख की बद्री बरसे मन नित हर्षावे ॐ जय शैलपुत्री माँ
ॐ जय शैलपुत्री माँ मैया जय शैलपुत्री माँ सर्व सुखों की दात्री देना माँ करुणा ॐ जय शैलपुत्री माँ