Maa Siddhidatri (देवी सिद्धिदात्री), Puja Vidhi, Aarti, Mantra

देवी सिद्धिदात्री जी की पूजन विधि

नवरात्रि के नवें दिन देवी सिद्धिदात्री की उपासना से सिद्धियों की प्राप्ति होती है।


Maa Siddhidatri (देवी सिद्धिदात्री)

नवरात्रि के अंतिम दिन पर आप सभी की पूजा संपूर्ण हो और साथ ही आपको देवी सिद्धिदात्री का आशीष प्राप्त हो, इसके लिए हम नवमी की पूजन विधि लेकर आए हैं। अगर आप अपनी पूजा को फलीफूत एवं संपूर्ण करना चाहते हैं तो इस लेख को ध्यानपूर्वक पढ़ें।

सबसे पहले बात करते हैं कि नवमी तिथि का प्रारंभ और समापन कब होगा-

नवमी तिथि का प्रारंभ: 11 अक्टूबर, शुक्रवार 12:06 PM नवमी तिथि का समापन: 12 अक्टूबर, शनिवार 10:58 AM

देवी सिद्धिदात्री का स्वरूप:

कमल पुष्प पर विराजमान माँ सिद्धिदात्री की चार भुजाएं हैं, और उनका वाहन सिंह है। देवी जी के सिरपर ऊंचा मुकुट है और उनके चेहरे पर मंद सी मुस्कान है।

देवी सिद्धिदात्री पूजा से होने वाले लाभ:

देवी सिद्धिदात्री, सर्व सिद्धियां प्रदान करने वाली हैं। उपासक या भक्त पर इनकी कृपा से कठिन से कठिन कार्य भी आसानी से संभव व सिद्ध हो जाते हैं। साथ ही वह हर प्रकार के भय व रोगों को भी दूर करती हैं।

देवी सिद्धिदात्री की पूजन विधि | Maa siddhidatri Puja Vidhi

  • नवमी के दिन प्रातः काल उठकर स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
  • पूजा स्थल पर प्रथम दिन जो माता की चौकी स्थापित की गई थी, उसी स्थान पर सिद्धिदात्री जी की पूजा भी की जाएगी।
  • चौकी को साफ लें, वहां गंगाजल का छिड़काव करें, चौकी पर आपने एक दिन पहले जो पुष्प चढ़ाए थे, उन्हें हटा दें।
  • आपको बता दें, चूंकि चौकी स्थापना प्रथम दिन ही हो जाती है, इसलिए पूजन स्थल पर विसर्जन से पहले झाड़ू न लगाएं।
  • आप पूजन स्थल आसन ग्रहण कर लें।
  • इसके बाद आचमन करें, आचमन के लिए हाथ से तीन बार जल ग्रहण करें और चौथी बार उसी जल से हाथ धो लें।
  • इसके बाद पूजन स्थल पर दीपक प्रज्वलित करें।
  • अब हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर गणपति जी का स्मरण करते हुए, “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का जाप करें।
  • इसके बाद आप अक्षत हाथ में लेकर देवी के सिद्धिदात्री स्वरूप का भी आह्वान करें और “ॐ सिध्दिदात्र्यै नमः” मंत्र का जाप करें।

मां सिद्धिदात्री के मंत्र | Maa siddhidatri Mantra

माता के आह्वान के बाद, उनका इस मंत्र के साथ ध्यान करें-

वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
कमलस्थिताम् चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्विनीम्॥
स्वर्णवर्णा निर्वाणचक्र स्थिताम् नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शङ्ख, चक्र, गदा, पद्मधरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटिं निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

  • इसके पश्चात्, प्रथम पूज्य गणेश जी और देवी माँ को कुमकुम का तिलक लगाएं।
  • साथ ही, कलश, घट, चौकी को भी हल्दी-कुमकुम-अक्षत से तिलक करके नमन करें।
  • इसके बाद धुप- सुगन्धि जलाकर माता को फूल-माला अर्पित करें।
  • नर्वाण मन्त्र ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाऐ विच्चे’ का यथाशक्ति अनुसार 11, 21, 51 या 108 बार जप करें।
  • अब आप दुर्गा सप्तशती का पाठ पढ़ें।
  • भोग- किसी भी पूजा में भोग का काफी महत्व होता है, आप देवी जी को ऋतु फल के साथ हल्वा-पूड़ी का भोग लगा सकते हैं। इसके अलावा आप अपनी श्रद्धानुसार भोग लगा सकते हैं।
  • इसके बाद देवी महागौरी जी की आरती गाएं।
  • अंत में अपनी भूल चूक के लिए देवी जी से क्षमा प्रार्थना करें और प्रसाद वितरित करें।

माँ सिद्धिदात्री की आरती: | Maa Siddhidatri Aarti

जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता। तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता॥
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि। तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम। जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है। तू जगदम्बें दाती तू सर्व सिद्धि है॥
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो। तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥
तू सब काज उसके करती है पूरे। कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया। रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली। जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली॥
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा। महा नंदा मंदिर में है वास तेरा॥
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता। भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥

इस प्रकार आपकी पूजा विधिपूर्वक संपूर्ण हो जाएगी।

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