नवरात्रि के नवें दिन देवी सिद्धिदात्री की उपासना से सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
नवरात्रि के अंतिम दिन पर आप सभी की पूजा संपूर्ण हो और साथ ही आपको देवी सिद्धिदात्री का आशीष प्राप्त हो, इसके लिए हम नवमी की पूजन विधि लेकर आए हैं। अगर आप अपनी पूजा को फलीफूत एवं संपूर्ण करना चाहते हैं तो इस लेख को ध्यानपूर्वक पढ़ें।
कमल पुष्प पर विराजमान माँ सिद्धिदात्री की चार भुजाएं हैं, और उनका वाहन सिंह है। देवी जी के सिरपर ऊंचा मुकुट है और उनके चेहरे पर मंद सी मुस्कान है।
देवी सिद्धिदात्री, सर्व सिद्धियां प्रदान करने वाली हैं। उपासक या भक्त पर इनकी कृपा से कठिन से कठिन कार्य भी आसानी से संभव व सिद्ध हो जाते हैं। साथ ही वह हर प्रकार के भय व रोगों को भी दूर करती हैं।
वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्। कमलस्थिताम् चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्विनीम्॥ स्वर्णवर्णा निर्वाणचक्र स्थिताम् नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्। शङ्ख, चक्र, गदा, पद्मधरां सिद्धीदात्री भजेम्॥ पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्। मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥ प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन पयोधराम्। कमनीयां लावण्यां श्रीणकटिं निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता। तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता॥
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि। तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम। जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है। तू जगदम्बें दाती तू सर्व सिद्धि है॥
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो। तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥
तू सब काज उसके करती है पूरे। कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया। रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली। जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली॥
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा। महा नंदा मंदिर में है वास तेरा॥
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता। भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥
इस प्रकार आपकी पूजा विधिपूर्वक संपूर्ण हो जाएगी।
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