श्रीकृष्ण और इंद्र का अभिमान
मान्यताओं के अनुसार, एक बार स्वर्गलोक के राजा इंद्रदेव को, अपनी शक्तियों का अभिमान हो गया था, जिसको दूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने एक लीला रची थी। आज हम आपको बताएंगे, कि कैसे इंद्रदेव भगवान की लीला के सामने नतमस्तक हो गए थे और क्या है गोवर्धन पर्वत से जुड़ी यह रोचक कहानी।
एक दिन भगवान श्री कृष्ण ने देखा, कि हर तरफ उत्सव की तैयारियां हो रही हैं और तमाम ब्रजवासियों के घरों में उत्तम पकवान बन रहे हैं। हर तरफ या तो कोई पूजा की तैयारी कर रहा है, या फिर पकवान बनाने की। यह देख, श्री कृष्ण बहुत हैरान हुए और इसी उत्सुकतावश जाकर यशोदा माता से बोले, “मैया! यह आज ब्रज में कैसी तैयारी हो रही है?” मैया ने तब स्नेहपूर्वक कान्हा से कहा, “यह देवराज इंद्र की पूजा और उपासना की तैयारी हो रही है।”
अब कान्हा ने और गंभीर स्वर में कहा, “क्यों?” तब माता कहती हैं, कि “लल्ला, यह सभी लोग ऐसा इसलिए कर रहे हैं, ताकि इंद्र देव प्रसन्न हों और उनकी कृपा से अच्छी वर्षा हो, जिससे हमारे अन्न की पैदावार बढ़ें और हमारी गायों को भरपूर चारा मिल सके।” माता यशोदा की बातें सुनकर, कान्हा ने स्वीकृति में सिर हिलाया। लेकिन अचानक ही उन्होंने कहा, कि “मैय्या, ऐसे तो हमारी गाय गोवर्धन पर्वत पर चरने के लिए जाती है, तो हमें तो उनकी पूजा करनी चहिए।”
इसके बाद, भगवान श्री कृष्ण के इसी प्रकार समझाने से समस्त ब्रजवासियों ने, गोवर्धन पर्वत की पूजा आरंभ कर दी। अब इंद्रदेव यह देखकर बहुत क्रोधित हुए, कि एक नन्हा सा बालक सभी ब्रज के लोगों के सामने, उनकी महत्ता को चुनौती दे रहा है। इसी भावना के साथ, इंद्रदेव ने ब्रज में घनघोर वर्षा शुरू कर दी, जो इतनी तेज़ थी, कि ऐसा लगा मानो पूरा ब्रज उसमें समा जाएगा। अब भगवान श्री कृष्ण अपने आसपास के असहाय लोगों पर, इंद्रदेव का उत्पात देखकर बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने उनके इस घमंड का नाश करने का मन बना लिया।
भगवान श्री कृष्ण ने सप्तकोशी परिधि वाले विशालकाय, गोवर्धन पर्वत को प्रणाम किया और अपने साथियों की मदद से, उन्हें अपनी छोटी ऊँगली पर उठा लिया। फिर उन्होंने वहां मौजूद समस्त ब्रज के लोगों को, उसी पर्वत के नीचे आश्रय भी दिया।
जब देवराज इंद्र ने यह देखा, तो उन्होंने वर्षा के प्रकोप को और बढ़ा दिया। लेकिन भगवान भी कहां रुकने वाले थे, उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से कहा, कि “आप गोवर्धन पर्वत के ऊपर छत्र बनाकर वर्षा की गति को नियंत्रित कीजिए।” फिर उन्होंने शेषनाग से कहा, कि “आप पर्वत के ऊपर एक मेड़ बनाकर, पानी को पर्वत की तरफ आने से रोकिये।”
भगवान श्रीकृष्ण ने जब सभी ब्रजवासियों को भूख-प्यास की पीड़ा और आराम-विश्राम की आवश्यकता से दूर देखा, तो वह लगातार 7 दिन तक उस पर्वत को उठाये रह गए। लगातार 7 दिनों तक तेज़ मूसलाधार बारिश करने के बाद, इंद्रदेव को इस बात का एहसास हुआ, कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं है। तब वह ब्रह्मा जी के पास गए, जिन्होंने इंद्रदेव को बताया, कि “तुम जिससे मुकाबला कर रहे हो, वह स्वयं भगवान विष्णु हैं।”
ब्रह्मा जी की बातें सुनकर, इंद्रदेव को खुद पर बहुत लज्जा आई और उन्होंने अतिशीघ्र जाकर, भगवान श्री कृष्ण से क्षमा मांगी। तब देवराज इंद्र ने खुद मुरलीधर कृष्ण की पूजा कर, उन्हें भोग लगाया और तभी से, विश्व में गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई।
देवराज इंद्र और श्री कृष्ण के बीच हुआ यह लीला प्रसंग हमें यह आभास कराता है, कि हमें अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करने से बचना चाहिए और जहां संभव हो, प्रकृति में मौजूद हर एक चीज़ के प्रति कृतज्ञ रहना चहिए। यही एक सुखी जीवन का रहस्य है। अगर आपको भी कृष्ण जी की यह लीला पसंद आई हो, तो ऐसी ही अनेक लीला वर्णन और धर्म प्रसंग सुनने के लिए, जुड़े रहें श्रीमंदिर के साथ।