कैसे हुआ श्री कृष्ण जी का जन्म
भगवान श्री कृष्ण, स्वयं इस सम्पूर्ण सृष्टि के रचयिता हैं। लेकिन बात जब उनके जन्म की आती है, तो उससे जुड़े शब्द हैं कारागार, माता-पिता से वियोग और जन्म के पूर्व ही मृत्यु की तैयारी। क्या आप जानते हैं, कि राजमहल की किस्मत लिखवाकर जन्में श्री कृष्ण, कैसे पैदा होते ही अपने माता-पिता से दूर हो गए थे? कैसे सोने के पालने में झूलने की किस्मत वाले कान्हा ने, कारागार में अपनी आंखें खोली? अगर नहीं, तो आज हम आपको श्री कृष्ण के जन्म से जुड़ी अत्यंत रोचक और महत्वपूर्ण कथा से अवगत कराएंगे।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।
श्रीमदभागवत गीता के इस श्लोक में, भगवान श्री कृष्ण ने अपने अवतार का रहस्य बताया है। महाभारत के दौरान उन्होंने अर्जुन से कहा था, कि संसार में जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ जाता है, तब-तब धर्म की पुनर्स्थापना के लिए मैं अवतार लेता हूं। इसी प्रकार, जब द्वापर युग में क्षत्रियों की शक्ति बहुत बढ़ गई और वह अपने बल के अहंकार में स्वयं देवताओं को भी तुच्छ समझने लगे, तब श्री कृष्ण ने माता देवकी की गर्भ से जन्म लिया था। आइए प्रभु के जन्म की लीला के साक्षी बनें और जानें, कैसे प्रकट हुए धरती पर सृष्टि के रचयिता, भगवान श्री कृष्ण।
द्वापरयुग में उस वक़्त, मथुरा में एक दयालु राजा उग्रसेन का राज था। उनका पुत्र कंस, अत्याचारी और लालची था, जिसे राजगद्दी का अत्यंत मोह था। कंस, अपनी बहन देवकी से बहुत प्यार करता था और जब उनकी शादी शूरसेन के पुत्र वसुदेव के साथ हुई, तब कुछ ऐसा हुआ जिसका किसी को आभास भी नहीं था। शादी के बाद, जब कंस देवकी को विदा करने लगा, तभी एक आकाशवाणी हुई, कि देवकी की 8वीं संतान ही कंस की मृत्यु का कारण बनेगी। यह सुनकर, वह अपना आपा खो बैठा और अपनी बहन को उसके पति वसुदेव समेत कारागार में डाल दिया।
कंस हर वक्त यही सोचता रहता, कि देवकी की 8 संतानों में से आखिर कौन सी संतान उसका वध करेगी। यह सोचते हुए उसने, एक-एक कर के देवकी की 6 संतानों को पैदा होते ही मार दिया। देवकी हर बार उसके सामने रोती-गिड़गिड़ाती, लेकिन वह उसकी एक नहीं सुनता। ऐसा करते-करते उनके 7वें संतान के जन्म का समय आ गया। भगवान विष्णु के अनुसार, देवकी की 7वीं संतान के रूप में शेषनाग का जन्म होने वाला था, जिसे प्रभु ने एक लीला का सहारा लेकर, वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी की गर्भ में पहुंचा दिया और यहां देवकी का गर्भपात हो गया। आज शेषनाग के उस स्वरूप को, हम भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम के रूप में जानते हैं। इसके बाद, भाद्र पद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में, देवकी की 8वीं संतान श्री कृष्ण ने जन्म लिया।
हैरानी की बात यह थी, कि उसके जन्म लेते ही सारे सैनिक अपने आप सो गए। देवकी और वसुदेव, बंधन से मुक्त हो गए और कारागार के दरवाज़े अपने आप खुल गए। फिर एक आकाशवाणी हुई, कि इस नन्हें बालक को गोकुल में नंदबाबा के घर छोड़ आओ और वसुदेव ने भी ठीक वैसा ही किया। वह एक छोटी सी टोकरी में प्रभु को लिटाकर, यमुना नदी पार करके उनको नंदबाबा और यशोदा मैया के पास छोड़ आए। उसी क्षण, यशोदा ने भी एक पुत्री को जन्म दिया था, जो योगमाया थीं। वसुदेव ने आकाशवाणी के अनुसार, योगमाया को लाकर देवकी के पास सुला दिया।
प्रभु की लीला देखिये, कि अभी कुछ देर पहले जो पहरेदार सो रहे थे, अब वह जाग गए और कंस भी 8वीं संतान की खबर सुनकर, दौड़ता हुआ कारागार में जा पहुंचा। मगर जैसे ही उसने योगमाया को हाथ लगाया, वो उसके हाथ से छूटकर हवा में चली गईं और बोलीं, “हे दुराचारी कंस! मैं योगमाया हूं। तुझे मारने के लिए, भगवान विष्णु ने गोकुल में अवतार ले लिया है। तेरा अंत निश्चित है।”
लीलाओं में ऐसा वर्णित हैं, कि कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए, काफ़ी सारे राक्षसों को गोकुल भी भेजा था, लेकिन कोई भी अपने कार्य में सफ़ल नहीं हुआ। आखिर में भगवान श्री कृष्ण ने कंस का संहार किया और मथुरावासियों को उसके आतंक से आज़ाद किया।
ऐसे तो भगवान श्री कृष्ण का जीवन, अनेक रोचक कहानियों और लीलाओं से परिपूर्ण हैं, लेकिन उनके जन्म का प्रसंग इतना सुंदर है, कि सुनने वाले का रोम-रोम हर्षित हो जाता है। प्रभु का जन्म हमें यह सीख देता है, कि मनुष्य का जन्म और उसके जीवन का उद्देश्य सदैव ही निश्चित होता है, लेकिन उसके कर्म ही उसके जीवन की परिभाषा बदलते हैं। अतः लिखी हुई तकदीर को बदलने के बजाय, अपना ध्यान कर्म पर लगाएं। अगर आपको श्री कृष्ण से जुड़ी हमारी यह लीला वृतांत पसंद आई हो, तो ऐसी ही और कथाओं को जानने के लिए जुड़े रहिये, श्री मंदिर के साथ।