
बृहस्पति स्तोत्र भगवान बृहस्पति (गुरु) की स्तुति करने वाला शक्तिशाली स्तोत्र है। इसके नियमित पाठ से जीवन में ज्ञान, धन, वैभव और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। जानिए सम्पूर्ण पाठ, अर्थ और लाभ।
बृहस्पति स्तोत्र गुरु बृहस्पति देव को समर्पित एक पवित्र और प्रभावशाली स्तोत्र है। इसका पाठ जीवन में ज्ञान, समृद्धि, सौभाग्य और सफलता प्राप्ति के लिए किया जाता है। श्रद्धा और भक्ति से इसका जप करने पर बुद्धि, मान-सम्मान और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
सनातन धर्म में देवताओं के गुरु बृहस्पति को एक शुभ देवता और ग्रह माना जाता है। देव गुरु बृहस्पति को न्याय शास्त्र और वेदों का ज्ञाता कहा गया है। नवग्रहों में से एक बृहस्पति के शुभ प्रभाव से सुख, सौभाग्य, लंबी आयु, धर्म लाभ आदि मिलता है। आमतौर पर देवगुरु बृहस्पति शुभ फल ही प्रदान करते हैं, लेकिन यदि कुंडली में यह किसी पापी ग्रह के साथ बैठ जाएं तो कभी-कभी अशुभ संकेत भी देने लगते हैं। ऐसे में बृहस्पति देवता की विधि-विधान से पूजा करने और बृहस्पति स्तोत्र का जाप करने से उनकी कृपा मिलने लगती है और दोष दूर हो जाता है।
जन्म कुंडली में गुरु यानी बृहस्पति ग्रह का महत्वपूर्ण स्थान है। गुरु ग्रह का संबंध भाग्य से होता है। यदि किसी जातक की कुंडली में गुरु ग्रह कमजोर है तो ऐसी स्थिति में उसका भाग्य साथ नहीं देता है। ज्योतिषों के अनुसार, बृहस्पति स्तोत्र का नियमित पाठ करने से कुंडली में गुरु का प्रभाव प्रबल होता है और जातक का भाग्य चमकता है। बृहस्पति स्तोत्र को स्कन्द पुराण से लिया गया है। किसी भी कार्य में सफलता के लिए गुरु ग्रह का मजबूत होना जरूरी है। ज्योतिषों की माने तो अगर जातक की कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत स्थिति का हो तो वो जिस काम में हाथ डालता है उसे उस काम में सफलता मिलती है। साथ ही गुरु ग्रह मजबूत होने पर विवाह समय से होता है, शिक्षा अच्छी मिलती है। वहीं गुरु ग्रह के कमजोर होने पर विवाह में देरी, काम में असफलता, जीवन में निराशा जैसी नकारात्मकता बढ़ती है। बुधवार को बृहस्पति स्तोत्र का पाठ करने से बृहस्पति देव जल्दी प्रसन्न होते हैं और जातक के भाग्य को प्रबल करते हैं।
गुरुर्बुधस्पतिर्जीवः सुराचार्यो विदांवरः। वागीशो धिषणो दीर्घश्मश्रुः पीताम्बरो युवा।।
अर्थ - हे देव गुरु बृहस्पति आप देवताओं के आचार्य हैं, वागीश और धिषणा धारी हैं, आपके लंबे केश हैं, आप पीताम्बर वस्त्र में चीर युवा दिखते हैं। आप मेरा प्रणाम स्वीकार करें।
सुधादृष्टिः ग्रहाधीशो ग्रहपीडापहारकः। दयाकरः सौम्य मूर्तिः सुराज़: कुङ्कमद्युतिः।।
अर्थ - हे देव गुरु बृहस्पति आप ग्रहों में सबसे वरिष्ठ हैं, आप ग्रहों की पीड़ा को हरने वाले हैं। आपका दयालु, सौम्य स्वरूप सोने के समान बहुमूल्य हैं और सूर्य की तरह चमकते हैं।
लोकपूज्यो लोकगुरुर्नीतिज्ञो नीतिकारकः। तारापतिश्चअङ्गिरसो वेद वैद्य पितामहः।।
अर्थ - हे देव गुरु बृहस्पति आप तीनों लोक में पूज्य हैं, आप लोकगुरु, नीति ज्ञानी हैं। आपको नीतियों का कारण कहा गया है, आप माँ तारा के पति हैं, अंगिरा के पुत्र हैं। आप वेदों के ज्ञाता, वैद्य और पितामह हैं आपको मेरा प्रणाम हैं।
भक्तया वृहस्पतिस्मृत्वा नामानि एतानि यः पठेत्। आरोगी बलवान् श्रीमान् पुत्रवान् स भवेन्नरः।।
अर्थ - हे देव गुरु बृहस्पति जो भी व्यक्ति भक्ति भाव से आपका स्मरण करता है और आपके सभी नामों का पाठ करता है, वह स्वस्थ, बलशाली और पुत्रवान बनता है।
जीवेद् वर्षशतं मर्त्यः पापं नश्यति तत्क्षणात्। यः पूजयेद् गुरु दिने पीतगन्धा अक्षताम्बरैः।
अर्थ - जो व्यक्ति बृहस्पति देव का पूजन दिन में करता है, वह सौ वर्षों तक जीवित रहता है और उसके पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं।
पुष्पदीपोपहारैश्च पूजयित्वा बृहस्पतिम्। ब्राह्मणान् भोजयित्वा च पीडा शान्ति:भवेद्गुरोः।।
अर्थ - देव गुरु बृहस्पति जी की पूजा पुष्प, दीप, उपहार से करनी चाहिए और उसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए, इससे गुरु की कृपा से पीड़ा शांति प्राप्त होती है।
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