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श्री गणेशाष्टक स्तोत्र

श्री गणेशाष्टक स्तोत्र का पाठ कर पाएं श्री गणेश जी का आशीर्वाद! विघ्नों का नाश, समृद्धि और सुख की प्राप्ति के लिए आज ही पढ़ें यह शक्तिशाली स्तोत्र।

श्री गणेशाष्टक स्तोत्र के बारे में

श्री गणेशाष्टक स्तोत्र भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने का एक प्रभावशाली स्तोत्र है। इसका पाठ करने से बुद्धि, ज्ञान और सफलता के साथ जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं। यह स्तोत्र भक्त के मन को शुद्ध करता है और हर कार्य में शुभ फल प्रदान करता है। इस लेख में जानिए श्री गणेशाष्टक स्तोत्र का महत्व, इसके पाठ से मिलने वाले लाभ और इससे जुड़ी विशेष बातें।

श्री गणेशाष्टक स्तोत्र क्या है?

श्री गणेशाष्टक स्तोत्र को गणपति स्तोत्र के प्रसिद्ध स्तोत्रों में जाना जाता है। यह स्तोत्र बहुत ही सरल और प्रभावशाली है। इसे थोड़े-से अभ्यास द्वारा बड़ी सरलता से पढ़ा जा सकता है एवं इसे आत्मसात् किया जा सकता है। यहां हम अर्थ सहित श्री गणेशाष्टक स्तोत्र प्रस्तुत कर रहे हैं।

गणेशाष्टक स्तोत्र जातक के सभी संकटों का नाश करता है। गणेशाष्टक स्तोत्र का पाठ कोई भी कर सकता है, लेकिन इसे करने के लिए जातक के मन में भगवान गणेश के लिए अटूट श्रद्धा और विश्वास होना चाहिए।

श्री गणेशाष्टक स्तोत्र पाठ विधि

  • श्री गणेशाष्टक स्तोत्र का पाठ बुधवार से शुरू कर सकते हैं।
  • श्री गणेशाष्टक स्तोत्र पाठ शुक्ल पक्ष के बुधवार से शुरू करने से विशेष फल मिलता है।
  • श्री गणेश स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से लगातार 40 दिनों तक करना चाहिए।
  • पाठ का आरंभ गणेश जी को प्रणाम करने के बाद उनकी पूजा कर करनी चाहिए।
  • पाठ समाप्त होने के बाद गणेश जी को प्रणाम करते हुए अपनी महत्वाकांक्षा बताएं।

गणेशाष्टक स्तोत्र पाठ से लाभ

  • पूरे विधि-विधान के साथ गणेशाष्टक स्तोत्र का पाठ करने से जातक को सभी प्रकार के कष्टों से राहत मिलती है।
  • इसके पाठ से कुछ ही दिनों में जातक को सुखद परिणाम मिलने लगते हैं।
  • जीवन में आ रही किसी भी प्रकार की कोई भी परेशानी और संकट से छुटकारा के लिए गणेशाष्टक स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

श्री गणेशाष्टक स्तोत्र एवं अर्थ

सर्वे उचु: यतोऽनन्तशक्तेरनन्ताश्च जीवा यतो निर्गुणादप्रमेया गुणास्ते।

यतो भाति सर्वं त्रिधा भेदभिन्नं सदा तं गणेशं नमामो भजामः॥

अर्थ: सब भक्तों ने कहा – जिन अनन्त शक्ति वाले परमेश्वर से अनन्त जीव प्रकट हुए हैं, जिन निर्गुण परमात्मा से अप्रमेय ( असंख्य ) गुणों की उत्पत्ति हुई है, सात्विक, राजस और तामस – इन तीनों भेदों वाला यह सम्पूर्ण जगत् जिनसे प्रकट एवं भासित हो रहा है, उन गणेश को हम नमन एवं उनका भजन करते हैं।

यतश्चाविरासीज्जगत्सर्वमेतत्तथाब्जासनो विश्वगो विश्वगोप्ता।

तथेन्द्रादयो देवसङ्घा मनुष्याः सदा तं गणेशं नमामो भजामः॥

अर्थ: जिनसे इस समस्त जगत् का प्रादुर्भाव हुआ है, जिनसे कमलासन ब्रह्मा, विश्वव्यापी विश्व रक्षक विष्णु, इन्द्र आदि देव-समुदाय और मनुष्य प्रकट हुए हैं,उन गणेश का हम सदा ही नमन एवं उनका भजन करते हैं।

यतो वह्निभानूद्भवो भूर्जलं च यतः सागराश्चन्द्रमा व्योम वायुः।

यतः स्थावरा जङ्गमा वृक्षसङ्घाः सदा तं गणेशं नमामो भजामः॥

अर्थ: जिनसे अग्नि और सूर्य का प्राकट्य हुआ, पृथ्वी, जल, समुद्र, चन्द्रमा, आकाश और वायु का प्रादुर्भाव हुआ तथा जिन से स्थावर-जंगम और वृक्ष समूह उत्पन्न हुए हैं, उन गणेश का हम नमन एवं भजन करते हैं।

यतो दानवाः किंनरा यक्षसङ्घा यतश्चारणा वारणाः श्वापदाश्च।

यतः पक्षिकीटा यतो वीरुधश्च सदा तं गणेशं नमामो भजामः॥

अर्थ: जिनसे दानव, किन्नर और यक्ष समूह प्रकट हुए, जिनसे हाथी और हिंसक जीव उत्पन्न हुए तथा जिनसे पक्षियों, कीटों और लता-बेलों का प्रादुर्भाव हुआ, उन गणेश का हम सदा ही नमन और भजन करते हैं।

यतो बुद्धिरज्ञाननाशो मुमुक्षोर्यतः सम्पदो भक्तसन्तोषिकाः स्युः।

यतो विघ्ननाशो यतः कार्यसिद्धिः सदा तं गणेशं नमामो भजामः॥

अर्थ: जिनसे मुमुक्षु को बुद्धि प्राप्त होती है और अज्ञान का नाश होता है, जिनसे भक्तों को संतोष देने वाली सम्पदाएँ प्राप्त होती हैं तथा जिनसे विघ्नों का नाश और समस्त कार्यों की सिद्धि होती है, उन गणेश का हम सदा नमन एवं भजन करते हैं।

यतः पुत्रसम्पद् यतो वाञ्छितार्थो यतोऽभक्तविघ्नास्तथानेकरूपाः।

यतः शोक मोहौ यतः काम एव सदा तं गणेशं नमामो भजामः॥

अर्थ: जिन से पुत्र-सम्पत्ति सुलभ होती है, जिनसे मनोवांछित अर्थ सिद्ध होता है, जिनसे अभक्तों को अनेक प्रकार के विघ्न प्राप्त होते हैं तथा जिनसे शोक, मोह और काम प्राप्त होते हैं, उन गणेश का हम सदा नमन एवं भजन करते हैं।

यतोऽनन्तशक्तिः स शेषो बभूव धराधारणेऽनेकरूपे च शक्तः।

यतोऽनेकधा स्वर्गलोका हि नाना सदा तं गणेशं नमामो भजामः॥

अर्थ: जिनसे अनन्त शक्ति सम्पन्न सुप्रसिद्ध शेषनाग प्रकट हुए, जो इस पृथ्वी को धारण करने एवं अनेक रूप ग्रहण करने में समर्थ हैं, जिनसे अनेक प्रकार के अनेक स्वर्गलोक प्रकट हुए हैं, उन गणेश का हम सदा ही नमन एवं भजन करते हैं।

यतो वेदवाचो विकुण्ठा मनोभिः सदा नेति नेतीति यत्ता गृणन्ति।

परब्रह्मरूपं चिदानन्दभूतं सदा तं गणेशं नमामो भजामः॥

अर्थ: जिनके विषय में वेद वाणी कुंठित है, जहाँ मन की भी पहुंच नहीं है तथा श्रुति सदा सावधान रहकर नेति-नेति‘ – इन शब्दों द्वारा जिनका वर्णन करती है, जो सच्चिदानन्द स्वरूप परब्रह्म है, उन गणेश का हम सदा ही नमन एवं भजन करते हैं।

श्री गणेश उवाच

पुनरूचे गणाधीशः स्तोत्रमेतत्पठेन्नर:।

त्रिसंध्यं त्रिदिनं तस्य सर्वं कार्यं भविष्यति॥

अर्थ: श्री गणेश कहते हैं कि जो मनुष्य तीन दिनों तक तीनों संध्याओं के समय इस गणाधीश स्तोत्र का पाठ करेगा, उसके सारे कार्य सिद्ध हो जायेंगे।

यो जपेदष्टदिवसं श्लोकाष्टकमिदं शुभम्।

अष्टवारं चतुर्थ्यां तु सोऽष्टसिद्धिरवानप्नुयात्॥

अर्थ: जो आठ दिनों तक इन आठ श्लोकों का एक बार पाठ करेगा और चतुर्थी तिथि को आठ बार इस स्तोत्र को पढ़ेगा, वह आठों सिद्धियों को प्राप्त कर लेगा।

यः पठेन्मासमात्रं तु दशवारं दिने दिने।

स मोचयेद्वन्धगतं राजवध्यं न संशयः॥

अर्थ: जो एक माह तक प्रतिदिन दस-दस बार इस स्तोत्र का पाठ करेगा, वह कारागार में बंधे हुए तथा राजा के द्वारा वध-दण्ड पाने वाले कैदी को भी छुड़ा लेगा, इसमें संशय नहीं है।

विद्याकामो लभेद्विद्यां पुत्रार्थी पुत्रमाप्नुयात्।

वाञ्छितांल्लभते सर्वानेकविंशतिवारतः॥

अर्थ: इस स्तोत्र का इक्कीस बार पाठ करने से विद्यार्थी विद्या को, पुत्रार्थी पुत्र को तथा कामार्थी समस्त मनोवांच्छित कामनाओं को प्राप्त कर लेता है।

यो जपेत् परया भक्त्या गजाननपरो नरः।

एवमुक्तवा ततो देवश्चान्तर्धानं गतः प्रभुः॥

अर्थ: जो मनुष्य पराभक्ति से इस स्तोत्र का जप करता है, वह गजानन का परम भक्त हो जाता है-ऐसा कहकर भगवान गणेश वहीं अंतर्धान हो गए।

॥ इति श्रीगणेशपुराणे उपासनाखण्डे श्रीगणेशाष्टकं सम्पूर्णम्॥

गणेशाष्टक स्तोत्र का जाप करने वाले जातक को सभी कार्य को पूरा करने का सामर्थ्य मिलता है। भगवान श्री गणेश को सभी देवों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

कहते हैं, जिस पर शिव नंदन भगवान गणेश की कृपा हो जाती है, उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। गणेशाष्टक स्तोत्र में श्री गणेश का सुमिरन किया गया है।

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Published by Sri Mandir·October 14, 2025

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