
यह स्तोत्र माँ बगलामुखी की कृपा प्राप्त करने का सर्वोत्तम माध्यम है, जो साधक को नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा और जीवन में सफलता प्रदान करता है। जानिए इसका सम्पूर्ण पाठ और महत्व।
श्री बगला अष्टकम माँ बगलामुखी को समर्पित एक शक्तिशाली स्तोत्र है, जिसमें देवी के आठ पवित्र श्लोकों के माध्यम से उनकी स्तुति की गई है। इसका पाठ शत्रु नाश, विजय, और आत्मबल की वृद्धि के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। श्रद्धा और भक्ति से इसका जप करने पर माँ बगलामुखी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सफलता मिलती है।
हिंदू धर्म में कई देवी देवताओं को पूजा जाता है। इन्हीं में से एक हैं माता बगलामुखी। तंत्र विद्या 10 महाविद्याओं के वर्णन से सजी है, जिसमें से प्रमुख हैं मां बगलामुखी। इनका महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है। विश्व में इनके सिर्फ 3 ही महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर हैं, जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है। माता बगलामुखी को माता पीताम्बरा के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि सम्पूर्ण सृष्टि में जो भी तरंग है वो माता बगलामुखी की वजह से ही है। यह भगवती पार्वती का उग्र स्वरूप हैं। इन्हें भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करने वाली देवी कहा जाता है।
देवी की आराधना में बगला अष्टकम का काफी महत्व है। वाला अष्टक अति गोपनीय, रहस्यपूर्ण व अति दुर्लभ है। कहते हैं कि इसका पाठ करने से भक्तों का भ्रम और गलतफहमी दूर हो जाती है और उनके जीवन को स्पष्ट नजरिया मिलता है। यही नहीं, श्री बगला अष्टक का पाठ करने से जातक को किसी भी प्रकार का भय नहीं होता। उसके शत्रु का विनाश हो जाता है।
देवी बगलामुखी जिन्हें बगला नाम से भी जाना जाता है, ये ब्रह्मांड की सबसे शक्तिशाली रूपों में से एक हैं। इनकी असीमित क्षमताओं के कारण इन्हें सद्गुणों की संरक्षक और सभी बुराइयों का नाश करने वाला माना जाता है। इनकी पूजा के साथ श्री बगला अष्टक का पाठ काफी लाभकारी साबित होता है।
श्री बगला अष्टक को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार, एक बार सतयुग में पूरे जगत को नष्ट करने वाला भयंकर तूफान आया। प्राणियों के जीवन को संकट में देख भगवान विष्णु चिंतित हो गए और हरिद्रा सरोवर के पास जाकर मां भगवती को प्रसन्न करने के लिए तप करने लगे। जिसके बाद श्री विद्या यानी माता ने सरोवर से बगलामुखी रूप में प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिया और विध्वंसकारी तूफान को तुरंत ही शांत कर दिया। तभी से माता बगलामुखी की पूजा के साथ श्री बगला अष्टक का पाठ किया जाता है, जिससे माता जल्द प्रसन्न होती हैं और भक्तों को मुश्किल समय से बाहर निकालकर लाती हैं। कोई भी व्यक्ति इसका पाठ कर सकता है।
श्री बगला अष्टक का पाठ मनुष्य को उसके शत्रुओं पर विजय हासिल करने में कारगर साबित होता है।
कहते हैं कि अगर नियमित रूप से इसका पाठ किया जाए तो मनुष्य किसी भी कठिन परिस्थिति से बाहर निकल सकता है।
मान्यता है कि श्री बगला अष्टकम का पाठ करने से मनुष्य के अंदर एक अलग प्रकार की ऊर्जा का संचार होता है, जिससे उसे आत्मबल मिलता है।
इसका पाठ अगर पूरे श्रद्धाभाव से करें तो यह तत्काल राहत और परम सुरक्षा प्रदान कर सकता है।
माना जाता है कि यह पाठ दुख और मानसिक बीमारियों से राहत प्रदान करने में सहायक होता है, जैसे-जैसे आप इसका पाठ करते जाते हैं, वैसे वैसे आपका मन हल्का होता जाता है।
यह पाठ सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने, अधूरे कार्यों को पूरा करने में मददगार साबित होता है।
कहते हैं कि अगर कोर्ट में कोई मामला लंबे समय से लटका है तो श्री बगला अष्टक स्तोत्र का पाठ आपकी समस्या का त्वरित समाधान करवाने में लाभकारी सिद्ध होता है।
पीत सुधा सागर में विराजत,
पीत-श्रृंगार रचाई भवानी ।
ब्रह्म -प्रिया इन्हें वेद कहे,
कोई शिव प्रिया कोई विष्णु की रानी ।
जग को रचाती, सजाती, मिटाती,
है कृति बड़ा ही अलौकिक तेरो ।
हे जगदम्ब! तूही अवलम्ब,
करों न बिलम्ब हरो दुःख मेरो ॥
पीत वसन, अरु पीत ही भूषण,
पीत-ही पीत ध्वजा फहरावे ।
उर बीच चम्पक माल लसै,
मुख-कान्ति भी पीत शोभा सरसावे ।
खैच के जीभ तू देती है त्रास,
हैं शत्रु के सन्मुख छाये अंधेरो ।
हे जगदम्ब! तूही अवलम्ब,
करो न विलम्ब हरो दुःख मेरो ॥
ध्यावै धनेश , रमेश सदा तुम्हें,
पूजै प्रजेश पद-कंज तुम्हारे ।
गावें महेश, गणेश ,षडानन,
चारहु वेद महिमा को बखाने ।
देवन काज कियो बहु भाँति,
एक बार इधर करुणाकर हेरो ।
हे जगदम्ब! तूही अवलम्ब,
करो न बिलम्ब हरो दुःख मेरो ॥
नित्य ही रोग डरावे मुझे,
करुणामयी काम और क्रोध सतावे ।
लोभ और मोह रिझावे मुझे,
अब शयार और कुकुर आँख दिखावे ।
मैं मति-मंद डरु इनसे,
मेरे आँगन में इनके है बसेरो ।
हे जगदम्ब! तूही अवलम्ब,
करो न विलम्ब हरो दुःख मेरो ॥
नाम पुकारत दौडी तू आवत,
वेद पुराण में बात लिखी है ।
आ के नसावत दुःख दरिद्रता,
संतन से यह बात सुनी है ।
दैहिक दैविक, भौतिक ताप,
मिटा दे भवानी जो है मुझे घेरो ।
हे जगदम्ब! तूही अवलम्ब,
करो न विलम्ब हरो दुःख मेरो ॥
जग में है तेरो अनेको ही पुत्र,
विलक्षण ज्ञानी और ध्यानी, सुजानी ।
मैं तो चपल, व्याकुल अति दीन,
मलिन, कुसंगी हूँ और अज्ञानी ।
हो जो कृपा तेरो, गूंगा बके,
अंधा के मिटे तम छाई घनेरो ।
हे जगदम्ब! तू ही अवलम्ब,
करो न विलम्ब हरो दुःख मेरो ॥
विद्या और लक्ष्मी भरो घर में,
दुःख दीनता को तुम आज मिटा दो ।
जो भी भजे तुमको, पढ़े अष्टक,
जीवन के सब कष्ट मिटा दो ।
धर्म की रक्षक हो तू भवानी,
यह बात सुनी ओ-पढ़ी बहुतेरो ।
हे जगदम्ब! तूही अवलम्ब,
करो न विलम्ब हरो दुःख मेरो ॥
अष्ट ही सिद्धि नवो निधि के तुम,
दाता उदार हो बगला भवानी ।
आश्रित जो भी है तेरे उसे,
कर दो निर्भय तू हे कल्याणी ।
बैजू कहे ललकार, करो न विचार,
बुरा ही पर हूँ तेरो चेरो ।
हे जगदम्ब! तूही अवलम्ब,
करो न विलम्ब हरो दुःख मेरो ॥
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