अक्षय नवमी की व्रत कथा

अक्षय नवमी की व्रत कथा

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अक्षय नवमी की व्रत कथा (Akshay Navami Vrat Katha)

एक समय की बात है, यमुना नदी के पहाड़ी पर स्थित एक गाँव में राम शर्मा नाम के एक धनवान ब्राह्मण रहते थे। वह बड़े परिश्रमी और दयालु स्वभाव के थे। दान-पुण्य करना और दीन-दुखियों की मदद करना उनका नित्य कर्म था।

ब्राह्मण के कृष्ण और धनञ्जय नाम के दो पुत्र थे। ब्राह्मण अब बूढ़े हो गए थे, इसलिए गृहस्थी का कार्य पुत्रों को सौंप कर वन में तपस्या करने चले गए। वन में कुछ समय रहने के बाद उनकी मृत्यु हो गयी।

उनकी मृत्यु के बाद दोनों पुत्र गलत राह पर चलने लगे। भोग-विलास और शराब में उन्होंने सारा धन खत्म कर दिया और जब घर में धन नहीं बचा तो चोरी-डकैती करने लगे।

एक दिन रात में वह दोनों किसी घर में चोरी कर रहे थे कि राजा के सिपाहियों ने उन्हें पकड़ लिया। सिपाही उन्हें राजा के पास ले आए और राजा ने दंडस्वरुप उन दोनों को देश से निकाल दिया।

राज्य से निकाल दिए जाने के बाद वे दोनों वन में रहने लगे। लेकिन दुर्भाग्यवश, एक दिन एक सिंह ने उन दोनों को मार डाला।

मरने के बाद दोनों यमलोक पहुंचे जहाँ उनके कर्मों का फल मिलना था। पूरा लेखा-जोखा करने के बाद चित्रगुप्त ने कृष्ण को नरक में डालने और धनञ्जय को स्वर्ग ले जाने का आदेश दिया।

चित्रगुप्त की आज्ञानुसार यमदूत ने कृष्ण को नरक में डाल दिया और और धनञ्जय को लेकर स्वर्ग जाने लगा। धनञ्जय को इससे बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने यमदूत से कहा- “हे देवदूत! हम दोनों एक ही माता के गर्भ से उत्पन्न हुए हैं, हमने साथ में अत्याचार किए, पुन्य कर्मों की बात भी कभी नहीं की, फिर यह कैसे संभव हुआ कि मैं स्वर्ग जा रहा हूँ और मेरे भाई को नरक में डाल दिया गया।”

यमदूत ने उत्तर दिया- “हे धनञ्जय! रिश्ते-नाते केवल जन्म के साथी होते हैं, कर्म के नहीं। तुम्हारे कर्मों से तुम एक पुण्यात्मा हो, इसलिए स्वर्ग जा रहे हो। एक समय की बात है, तुम कार्तिक माह में अपने आचार्य के साथ उनके वस्त्र और अन्य सामानों को लेकर यमुना तट पर गए थे। वहां तुमने आचार्य की आज्ञा से शुक्ल पक्ष की नवमी, दशमी और एकादशी तिथि में नदी में स्नान किया था और सभी आवश्यक नियमों का पालन किया था। उसी के पुन्य प्रताप से तुमको अक्षय स्वर्ग जाने का फल प्राप्त हुआ है। उधर तुम्हारे भाई ने ऐसा कोई पुण्य नहीं किया इसलिए वो नरक में सड़ता रहेगा।”

यह सुनकर धनञ्जय को बड़ा दुःख हुआ और उसने यमदूत से अपने भाई की मुक्ति का मार्ग पूछा।

यमदूत ने बताया- “हे धनञ्जय, तुम्हारे पूर्व जन्मों के पुण्य को बतला रहा हूँ। पिछले जन्म में तुमने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को वस्त्र, स्वर्ण, रत्न और कूष्माण्ड दान दिया था। इससे तुम्हें जो पुण्य प्राप्त हुआ है वह स्वर्ग वालों के लिए भी दुर्लभ है। यदि तुम वह पुन्य अपने भाई को दान कर दो तो वह नरक से मुक्ति पा सकता है।”

यह सुनकर धनञ्जय ने अपने पूर्व जन्म का पुण्य अपने भाई को दान कर दिया। उस पुण्य दान के प्रभाव से कृष्ण को नरक से मुक्ति मिल गई और वह अपने भाई धनञ्जय के साथ भगवान विष्णु के परम पद का अधिकारी हुआ।

तो यह थी अक्षय नवमी की संपूर्ण कथा। इस दिन वस्त्र, रत्न, कूष्माण्ड आदि दान करने से उत्तम पुण्य की प्राप्ति होती है। नारद मुनि कहते हैं, कि यदि अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाए, तो अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त होते हैं। इसलिए इस दिन आंवला के पेड़ की पूजा करने का भी विशेष महत्व है।

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