श्रावण पूर्णिमा की व्रत कथा
श्रावण पूर्णिमा की व्रत कथा हिन्दू धर्म के विभिन्न पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित है। यह दिन विशेष रूप से भगवान शिव और गंगा नदी के पूजन के लिए प्रसिद्ध है। इस दिन को लेकर कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से प्रमुख पुण्यदायिनी कथा इस लेख में प्रस्तुत है।
श्रावण पूर्णिमा की व्रत कथा (Shrawan Purnima Ki Vrat Katha)
एक समय की बात है, जब यशोदा मैया ने भगवान श्री कृष्ण से कहा, कि “हे कृष्ण! तुम सारे संसार के उत्पन्नकर्ता, पालनहारी तथा संहारकर्ता हो, आज तुम मुझे कोई ऐसा व्रत बताओ, जिसके करने से मृत्युलोक में स्त्रियों को विधवा होने का भय न रहे तथा यह व्रत सभी मनुष्यों की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला हो।”
श्री कृष्ण कहने लगे, कि माता तुमने अति सुंदर प्रश्न किया है। मैं तुमसे ऐसे ही एक व्रत को विस्तार से कहता हूं। सौभाग्य की प्राप्ति के लिए स्त्रियों को 32 पूर्णमासियों का व्रत करना चाहिए। इस व्रत को करने से उन्हें सौभाग्य और संपत्ति मिलती है। यह व्रत सौभाग्य देने वाला और भगवान शिव के प्रति, मनुष्य मात्र की भक्ति को बढ़ाने वाला है। उनकी बातें सुनकर यशोदा जी कहने लगीं, “हे कृष्णा! सर्वप्रथम इस व्रत को मृत्युलोक में किसने किया था। इसके विषय में विस्तारपूर्वक मुझसे कहो।” तब श्री कृष्ण ने अपनी माता को जो कथा सुनाई है, वह इस प्रकार है -
सावन पूर्णिमा की व्रत कथा (Sawan Purnima Ki Vrat Katha)
राजा चंद्रहास की नगरी कातिका में एक धनेश्वर नाम का ब्राह्मण रहता था, जिसकी पत्नी का नाम रूपवती था। उन ब्राह्मण के पास धन-दौलत की कोई कमी नहीं थी, परंतु वह संतान हीन था, जो उनके दुख की वजह थी। एक बार एक तपस्वी योगी उस नगरी में आया, वह केवल ब्राह्मण के घर को छोड़कर बाकी सारे घरों से भिक्षा मांगता था। कई दिनों तक ऐसा ही चलता रहा, एक दिन ब्राह्मण ने यह देख लिया और उन्होंने तपस्वी योगी से पूछा कि वह उसके घर से भिक्षा क्यों नहीं लेते हैं। इस बात पर योगी ने बताया, कि जिस घर में संतान न हो उस घर से भिक्षा लेना पाप का कार्य है।
तपस्वी की बात सुनकर धनेश्वर को बहुत दुख हुआ और उसने तपस्वी से इसका समाधान पूछा। उस तपस्वी ने धनेश्वर को देवी चंडी की आराधना करने को कहा। अगले दिन धनेश्वर तपस्वी के अनुसार, चंडी की उपासना तथा उपवास करने के लिए जंगल में चला गया। 16 दिन के पश्चात देवी चंडी ने धनेश्वर को दर्शन दिए । जिसमें देवी मॉं ने कहा कि शीघ्र ही तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी, परंतु उसकी आयु केवल 16 वर्ष की होगी और उसके पश्चात उसकी मृत्यु हो जाएगी।
श्रावण पूर्णिमा की प्रचलित कथा (Sawan Purnima ki Prachalit Katha)
देवी की बात से धनेश्वर थोड़ी चिंता में पड़ गए, तब देवी बोलीं, कि यदि ब्राह्मण दंपति 32 पूर्णमासियों का व्रत विधिपूर्वक करेंगे, तो उनके पुत्र को दीर्घायु प्राप्त हो जाएगी। इसके साथ ही, यदि वह लगातार 32 पूर्णमासी तक आटे के दीप बनाकर शिवजी का पूजन करेंगे, तभी यह विधि पूर्ण होगी। इसके अलावा देवी मॉं ने ये भी कहा कि प्रात: काल तुम्हें इस स्थान पर आम का वृक्ष दिखाई देगा। उस पर चढ़कर शीघ्र ही तुम एक फल तोड़कर अपने घर चले जाना और अपनी पत्नी से ये पूरा वृतांत बताना। ब्राह्मण ने ऐसा ही किया और अपनी पत्नी को वो आम का फल खाने को दे दिया। इसके बाद ब्राह्मणी गर्भवती हो गई।
कुछ समय बाद देवी मॉं की कृपा से उनके घर पर एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम उन्होंने देवीदास रखा। चंड़ी माता की आज्ञा अनुसार, उस ब्राह्मण दंपति ने 32 पूर्णमासी का व्रत रखना प्रारंभ कर दिया। जब देवीदास 16 वर्ष का होने वाला था, उस समय उसके माता-पिता ने उसके मामा के साथ उसे विद्या अध्ययन के लिए काशी भेज दिया।
काशी जा रहे मामा और भांजा रात बिताने के लिए किसी गाँव में ठहरे हुए थे और उस दिन, उसी गांव में एक ब्राह्मण की सुंदर कन्या का विवाह होने वाला था। जिस धर्मशाला के अंदर वर और उसकी बारात ठहरी हुई थी। उसी धर्मशाला में देवीदास और उसके मामा भी ठहरे हुए थे। लेकिन लगन के समय वर को धनुरवाद हो गया। इसलिए वर के पिता ने अपने रिश्तेदारों से परामर्श करके निश्चय किया कि देवीदास मेरे ही पुत्र जैसा सुंदर है। मैं इसके साथ ही कन्या का लगन करवाना चाहता हूं। वर के पिता ने देवीदास के मामा से ये बात बताई। जिस पर देवीदास के मामा राजी हो गए।
विवाह के कुछ समय बाद, जब काल देवीदास के प्राण लेने आया, तब ब्राह्मण दंपति के व्रत के कारण देवीदास को कुछ नहीं हुआ और उसके ऊपर से संकट की घड़ी टल गई। उस वक़्त से ऐसा कहा जाता है, कि पूर्णिमा के दिन व्रत करने से व्यक्ति को हर प्रकार के संकट से मुक्ति मिल जाती है। अगर आपको श्रावण पूर्णिमा से जुड़ी यह जानकारी पसंद आई, तो ऐसी ही और भी रोचक तथ्य और चर्चा को सुनने के लिए जुड़े रहिये श्रीमंदिर के साथ।