मौनी अमावस्या व्रत की कथा

मौनी अमावस्या व्रत की कथा

धुल जाते हैं सात जन्मों के पाप


मौनी अमावस्या व्रत की कथा (Mouni Amavasya Vrath Katha)

असंभव को भी संभव करने वाली मौनी अमावस्या व्रत की कथा बड़ी ही चमत्कारी है। इस मंगलकारी अद्भुत कथा का आइए पाठ करते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, कांचीपुरी में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी धनवती, सात बेटों और बेटी गुणवती के साथ रहा करता था। उस ब्राह्मण का नाम देवस्वामी था। देवस्वामी के सातों बेटों का विवाह हो गया, लेकिन बेटी गुणवती अभी भी कुवांरी थी। इसलिए देवस्वामी ने अपने बड़े बेटे को गुणवती के लिए सुयोग्य वर ढूंढने का कार्य सौंपा।

इसी बीच एक दिन एक पंडित ने गुणवती की कुंडली देखी और बताया कि गुणवती के कुंडली में मौजूद दोष के कारण गुणवती विवाह के तुरंत बाद विधवा हो जाएगी। ऐसा सुनकर देवस्वामी के पैरों तले जमीन खिसक गई। घबराते हुए उसने पंडितजी से इस घोर संकट से बचने का उपाय पूछा।

तब पंडितजी ने कहा कि - “सिंहल द्वीप में सोमा नाम की एक धोबिन रहती है, वह विष्णु जी की परम भक्त है। उसे यहां ले आओ, उसकी पूजा में इतनी शक्ति है कि वह गुणवती को विधवा होने से बचा सकती है।”

पंडित के कहने पर देवस्वामी का छोटा बेटा और गुणवती स्वयं सोमा को लाने के लिए निकल पड़े। रास्ते में सागर पार करने के बाद थके-हारे दोनों भाई-बहन एक पेड़ के नीचे आराम करने लगे। उस पेड़ पर एक गिद्ध का घोंसला भी था। उस घोंसले में गिद्ध के बच्चे थे, जो गुणवती और उसके भाई की बातों को सुन रहे थे। जब गिद्ध ने अपने बच्चों को खाना खिलाने की कोशिश की तो वह बच्चे खाना खाने से मना करते हुए बोले कि पहले इन इंसानों की मदद कीजिए तभी हम खाना खाएंगे। अपने बच्चों की जिद मान कर उस गिद्ध ने गुणवती और उसके भाई को सिंहल तक पहुंचा दिया, जहां धोबिन सोमा का घर था।

अब दोनों भाई-बहन सोमा को खुश करने के लिए तरकीबें सोचते रहे। हर सुबह दोनों भाई-बहन सोमा को प्रसन्न करने के लिए उसका घर साफ करके घर की लीपा-पोती करने लगे। जब सोमा ने अपनी बहुओं से इस बारे में पूछा तो उसकी बहुओं ने उससे झूठ बोला की घर की साफ-सफाई बहुएं स्वयं ही करती हैं। किन्तु सोमा भी अत्यंत चतुर थी उसने अगली सुबह जल्दी उठकर गुणवती और उसके भाई को साफ-सफाई करते हुए देख लिया। वह दोनों के काम से बहुत ही खुश हुई और सारी बात जानकर दोनों के साथ उनके गांव चलने के लिए तैयार हो गई।

चलते समय सोमा ने अपनी बहुओं से कहा कि मेरी अनुपस्थिति में यदि किसी का देहान्त हो जाए तो उसका दाह-संस्कार मत करना। बल्कि मेरे वापस आने की प्रतीक्षा करना।

और फिर सोमा बहन-भाई के साथ कांचीपुरी पहुंच गई। दूसरे दिन गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हो गया। कुंडली दोष के अनुसार सप्तपदी होते ही गुणवती के पति का देहांत हो गया। सोमा ने तुरन्त अपने संचित पुण्यों का फल गुणवती को प्रदान कर दिया। जिसके फलस्वरूप तुरन्त ही उसका पति जीवित हो उठा। सोमा उन्हें आशीर्वाद देकर अपने घर चली आई। उधर गुणवती को पुण्य-फल देने से सोमा के पुत्र, जमाई तथा पति की मृत्यु हो गई। उस दिन मौनी अमावस्या का दिन था। सोमा ने पुनः पुण्य फल संचित करने के लिए अश्वत्थ अर्थात पीपल के वृक्ष की छाया में विष्णुजी का पूजन करके 108 परिक्रमाएं की। अंतत: उसके परिवार के मृतक जन जीवित हो उठे, और इस प्रकार सोमा को उसकी निस्वार्थ भक्ति का महाफल प्राप्त हुआ।

इस प्रकार मौनी अमावस्या के दिन किसी पवित्र नदी में स्नान कर विधिवत भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने व पीपल के पेड़ की परिक्रमा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है तथा परिवार के सदस्यों पर भगवान का आशीर्वाद सदैव बना रहता है। निष्काम भाव एवं भक्ति से सेवा का फल मधुर होता है, इस व्रत का यही लक्ष्य है। हम प्रार्थना करते हैं कि श्री विष्णु जी ने जैसे गुणवती और सोमा का कल्याण किया वैसे ही आप सभी का कल्याण हो।

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