आयुध पूजा | Ayudha Puja 2024 Date, Time, Shubh Muhurat, Puja Vidhi

आयुध पूजा 2024

आयुध पूजा 2024 की तिथि, समय, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि की पूरी जानकारी प्राप्त करें


आयुध पूजा | Ayudha Puja

माँ दुर्गा को समर्पित नवरात्रि के पावन दिनों में हमें भक्ति और उत्सव के कई रंग देखने को मिलते हैं, इनमें आयुध पूजा का अपना अलग महत्व है। आयुध पूजा को दक्षिण भारत में विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दौरान अस्त्र और शस्त्र दोनों की पूजा की जाती है, हालांकि इस उत्सव में अस्त्र पूजा का विशेष महत्व होता है।

आयुध का अर्थ

सामान्य रूप से आयुध उन यंत्रों को कहते हैं, जिनका प्रयोग युद्ध में होता है। इस प्रकार तीर, तलवार से लेकर बड़ी-बड़ी तोपों तक सभी यंत्र आयुध कहलाते हैं। जिन्हें हम अस्त्र या शस्त्र के रूप में भी जानते हैं। इसके अलावा दैनिक जीवन में इस्तेमाल होने वाली वस्तु, साधन और उपकरणों को भी आयुध कहा गया है। हम आयुध पूजा के माध्यम से इन उपकरणों का आदर करते हैं और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं, क्योंकि इनका हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है।

आयुध पूजा और इसका इतिहास

पौराणिक कथाओं के अनुसार आयुध पूजा से जुड़ी एक कहानी देवी दुर्गा द्वारा भैंस रूपी राक्षस महिषासुर को हराने की है। इस राक्षस को हराने के लिए सभी देवताओं ने अपने हथियारों, प्रतिभा और शक्तियों को मां दुर्गा को प्रदान किया था। युद्ध नौ दिनों की अवधि तक चला। नवमी की संध्या पर, देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध कर उसका कल्याण किया और युद्ध समाप्त किया। इस प्रकार, यह दिन महानवमी के रूप में मनाया जाता है और इसके अगले दिन आयुध पूजा का अनुष्ठान किया जाता है। आयुध पूजा मुख्य रूप से कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल में होती हैं मुख्यतः इस दिन लोग अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं। दक्षिण भारत में विश्वकर्मा पूजा के समान वहां के लोग अपने उपकरणों और शस्त्रों की पूजा करते हैं।

आयुध पूजा कब है? | Ayudha Puja Kab Hai

  • शास्त्रों के अनुसार इस त्यौहार को आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन मनाया जाता है।
  • इस बार यह 12 अक्टूबर 2024 को मनाया जाएगा।
  • आयुध पूजा विजय मुहूर्त - 01:41 PM से 02:27 PM तक रहेगा।
  • जिसकी कुल अवधि 47 मिनट्स रहेगी।

चलिए अब जानते हैं कि दशहरा (विजयदशमी) कब है

  • दशहरा (विजयादशमी) 12 अक्टूबर 2024, शनिवार को मनाई जायेगी।
  • दशमी तिथि 12 अक्टूबर 2024, शनिवार को सुबह 10 बजकर 58 मिनट पर प्रारंभ होगी।
  • दशमी तिथि का समापन 13 अक्टूबर 2024, रविवार को सुबह 09 बजकर 08 मिनट पर होगा।
  • दशहरा पूजा का समय दोपहर 12 बजकर 54 मिनट से 03 बजकर 14 मिनट तक रहेगा।
  • श्रवण नक्षत्र का प्रारम्भ 12 अक्टूबर 2024, शनिवार को शाम 05 बजकर 25 मिनट पर होगा।
  • श्रवण नक्षत्र का समापन 13 अक्टूबर 2024, रविवार को शाम 04 बजकर 27 मिनट पर होगा।

चलिए अब जानते हैं इस दिन के अन्य शुभ मुहूर्त:

  • इस दिन ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 04 बजकर 16 मिनट से प्रातः 05 बजकर 06 मिनट तक रहेगा।
  • प्रातः सन्ध्या मुहूर्त प्रात: 04 बजकर 41 मिनट से सुबह 05 बजकर 55 मिनट तक होगा।
  • अभिजित मुहूर्त दिन में 11 बजकर 21 मिनट से 12 बजकर 07 मिनट तक रहेगा।
  • विजय मुहूर्त दिन में 01 बजकर 41 मिनट से 02 बजकर 27 मिनट तक रहेगा।
  • इस दिन गोधूलि मुहूर्त शाम में 05 बजकर 33 मिनट से 05 बजकर 58 मिनट तक रहेगा।
  • इस दिन सायाह्न सन्ध्या मुहूर्त - 05 बजकर 33 मिनट से 06 बजकर 48 मिनट तक रहेगा।
  • अमृत काल मुहूर्त शाम 06 बजकर 28 मिनट से 08 बजकर 01 मिनट तक रहेगा।
  • इस दिन निशिता मुहूर्त रात 11 बजकर 20 मिनट से 13 अक्टूबर को मध्यरात्रि 12 बजकर 09 मिनट तक रहेगा।

इस दिन यह दो विशेष योग बन रहे हैं:

  • सर्वार्थ सिद्धि योग प्रातः 05 बजकर 55 मिनट से 13 अक्टूबर की सुबह 04 बजकर 27 मिनट तक रहेगा।
  • दशहरा के अवसर पर रवि योग पूरे दिन रहेगा।

कैसे करें आयुध पूजा?

  • इस दिन प्रातः जल्दी उठें। शौच आदि कार्य को संपन्न कर शस्त्रों की साफ-सफाई करें।
  • शुभ मुहूर्त से पहले शस्त्र पूजन की तैयारी करें। शुभ मुहूर्त में पूजा के दौरान शस्त्र पर पहले गंगा जल छिड़कें। इसके पश्चात महाकाली स्त्रोत का पाठ करें।
  • अब अपने शस्त्र या अस्त्र पर कुमकुम, हल्दी का तिलक लगाएं। अब उस पर पुष्प माला चढ़ाएं।
  • फिर स्वास्तिक बना कर धूप-दीप और अगरबत्ती दिखा कर ईश्वर से कार्य में सफलता की कामना की जाती है।
  • अब शस्त्र को धूप दिखाकर मिष्ठान का प्रसाद चढ़ाएं। पूजा के पश्चात इस प्रसाद को बांटे।

विशेष- दक्षिण भारत में इस उत्सव को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने उपकरणों के साथ ही वाहनों की पूजा भी बड़ी भक्ति भाव से करते हैं। वाहनों को बड़े बड़े केले के पत्तों से सजाकर कच्चे कुम्हड़े से वाहन की पूजा की जाती है।

आयुध पूजा में अस्त्र पूजा का महत्व

ऐसा माना जाता है कि असुरों का संहार करने के लिए देवी दुर्गा द्वारा उपयोग किए गए सभी शस्त्रों और औजारों से उनका उद्देश्य पूरा हुआ था। और अब यह उनका सम्मान करने का समय था और उन्हें संबंधित देवताओं को वापस लौटना था। इस प्रकार, युद्ध समाप्त होने के बाद, सभी हथियारों की पूजा की गई और तब से लेकर आज तक इस दिन को आयुध पूजा के रूप में मनाया जाता है।

माँ दुर्गा को समर्पित नवरात्रि के पावन दिनों में हमें भक्ति और उत्सव के कई रंग देखने को मिलते हैं, इनमें आयुध पूजा का अपना अलग महत्व है। आयुध पूजा को दक्षिण भारत में विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दौरान अस्त्र और शस्त्र दोनों की पूजा की जाती है, हालांकि इस उत्सव में अस्त्र पूजा का विशेष महत्व होता है।

उम्मीद है कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी। अगर आप आगे भी ऐसी अद्भुत जानकारियाँ प्राप्त करना चाहते हैं, तो श्रीमंदिर के साथ बने रहें।

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