भानु सप्तमी 2025 कब है? सूर्य देव की पूजा से पाएं समृद्धि और आरोग्य। सही तिथि और पूजा विधि जानकर अपने जीवन को बनाएं बेहतर।
भानु सप्तमी सूर्य देव को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत और पर्व है, जो शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन सूर्य उपासना, स्नान और दान का विशेष महत्व होता है। श्रद्धालु इस दिन व्रत रखते हैं और सुख-समृद्धि व अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं।
सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है। जीव जंतु, वनस्पति, और मनुष्य सभी के लिए सूर्य की किरणें मिलना अति आवश्यक हैं। इसके साथ ही हिंदू धर्म में सूर्य भगवान को ऊर्जा, शक्ति आदि का प्रतीक माना जाता है। भगवान सूर्य को समर्पित कई ऐसे पर्व हैं, जिस दिन भक्त विधि-विधान से उनकी पूजा व जप-तप आदि करते हैं। उन्हीं में से एक पावन तिथि है 'भानु सप्तमी'। इस पर्व पर जातक सूर्य भगवान की आराधना कर अच्छे स्वास्थ्य और सौभाग्य की कामना करते हैं।
भक्तों नमस्कार, श्री मंदिर पर आपका स्वागत है। सप्तमी तिथि भगवान सूर्य को समर्पित है। मान्यताओं के अनुसार पहली बार भानु सप्तमी के दिन ही पूरी दुनिया सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित हुई थी, इस कारण भानु सप्तमी को भगवान सूर्य का जन्मदिन माना जाता है।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, सप्तमी तिथि पर यदि रविवार होता है, तो उस दिन भानु सप्तमी मनाई जाती है। वैशाख मास में ये विशेष संयोग 4 मई 2025, रविवार को बन रहा है, अतः 4 मई 2025, रविवार को 'भानु सप्तमी' मनाई जाएगी।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04 बजकर 09 मिनट से 04 बजकर 52 मिनट तक |
प्रातः सन्ध्या | 04 बजकर 31 मिनट से 05 बजकर 35 मिनट तक |
अभिजित मुहूर्त | सुबह 11 बजकर 47 मिनट से दोपहर 12 बजकर 41 मिनट तक |
विजय मुहूर्त | दोपहर 02 बजकर 27 मिनट से 03 बजकर 20 मिनट तक |
गोधूलि मुहूर्त | शाम 06 बजकर 52 मिनट से 07 बजकर 13 मिनट तक |
सायाह्न सन्ध्या | शाम 06 बजकर 53 मिनट से 07 बजकर 57 मिनट तक |
अमृत काल | सुबह 10 बजकर 13 मिनट से 11 बजकर 47 मिनट तक |
निशिता मुहूर्त | रात 11 बजकर 52 मिनट से 04 मई की रात 12 बजकर 35 मिनट तक |
मुहूर्त | समय |
त्रिपुष्कर योग | सुबह 07 बजकर 51 मिनट से 12 बजकर 34 मिनट तक |
रवि योग | सुबह 05 बजकर 35 मिनट से दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक |
पुराणों में वर्णन मिलता है कि जब पहली बार सूर्य देव सात घोडे़ के रथ पर सवार होकर प्रकट हुए और धरती से अंधकार को दूर करने के लिए अपनी किरणें फैलाईं, तो उस दिन शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि थी। सूर्यदेव के प्राकट्य के उपलक्ष्य में ही 'भानु सप्तमी' या 'सूर्य सप्तमी' मनाई जाती है। भानु सप्तमी के दिन जातक स्नान के बाद सूर्य देवता को जल चढ़ाने के साथ ही स्थल परिक्रमा करते है। इस दिन उपवास करने का भी विधान है। मान्यता है कि ये व्रत मनुष्य को मोक्ष दिलाने वाला होता है। इस दिन यदि सच्चे मन से सूर्य देव की आराधना की जाए तो समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
भानु सप्तमी को अर्क सप्तमी, अचला सप्तमी, सूर्यरथ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी, सूर्य सप्तमी आदि नामों से भी जाना जाता है।
भक्तों नमस्कार, श्री मंदिर पर आपका स्वागत है। भगवान सूर्य की कृपा पाने के लिए भानु सप्तमी के दिन इनकी उपासना करना उत्तम माना जाता है। यदि जातक इस दिन व्रत धारण कर विधि विधान से सूर्य पूजा करें तो उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
समस्त चराचर जगत को प्रकाश और ऊर्जा देने वाले सूर्य भगवान को समर्पित कई पर्व मनाए जाते हैं। उन्हीं में से एक है 'भानु सप्तमी'। इस दिन जो जातक विधि-विधान से सूर्यदेव की पूजा करते हैं, कथा कहते हैं और कथा सुनते हैं, उनकी समस्त मनोकामनाएं अति शीघ्र पूर्ण होती हैं।
भानु सप्तमी पर्व के बारे में प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार किसी समय में इंदुमती नाम की एक वेश्या हुआ करती थी। वेश्यावृत्ति में लिप्त होने के कारण उसने अपने जीवन में कोई भी धर्म कर्म आदि नहीं किए थे। एक दिन उसने वशिष्ठ ऋषि से पूछा- ऋषि श्रेष्ठ! मैने अपने अब तक के जीवन में कोई पुण्य कार्य नहीं किया है, परंतु मेरी ये अभिलाषा है कि मरणोपरांत मुझे मोक्ष की प्राप्ति हो! यदि मुझ वैश्या को किसी युक्ति से मोक्ष मिल सकता है तो वो उपाय बताने की कृपा करें ऋषिवर।
इंदुमती की ये विनती सुनकर ऋषि वशिष्ठ ने भानु सप्तमी का महात्म्य बताते हुए कहा- स्त्रियों को सुख, सौभाग्य, सौंदर्य एवं मोक्ष प्रदान करने वाला एक ही व्रत है, भानु सप्तमी या अचला सप्तमी। इस सप्तमी तिथि पर जो स्त्री व्रत रखती है और विधि-विधान से सूर्य देव की आराधना करती है, उसे उसकी इच्छानुसार पुण्यफल प्राप्त होता है।
वशिष्ठ जी आगे बोले- यदि तुम इस जीवन के उपरांत मोक्ष पाना चाहती हो तो सच्चे मन से ये व्रत व पूजन अवश्य करना! इससे तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी। ऋषि वशिष्ठ से भानु सप्तमी का महात्म्य सुनकर इंदुमती ने इस व्रत का पालन किया, जिसके फलस्वरूप प्राण त्यागने के बाद उसे जन्म मरण के चक्र से मुक्ति मिल गई, और स्वर्ग में इंदुमती को अप्सराओं की नायिका बनाया गया। इसी मान्यता के आधार पर आज भी जातक इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ करते हैं।
तो भक्तों, ये थी भानु सप्तमी से जुड़ी पौराणिक कथा। हमारी कामना है कि आपकी पूजा सफल हो और आपको इस दिन का लाभ मिले। व्रत त्यौहार से जुड़ी धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर पर।
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