जानें भीष्म पंचक व्रत कथा, महत्व और पूजा विधि। इन पाँच दिनों में व्रत कर पाएं भगवान विष्णु और भीष्म पितामह का आशीर्वाद।
यह व्रत महाभारत के भीष्म पितामह से जुड़ा हुआ है। भीष्म पंचक हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह के अंतिम पांच दिनों में मनाया जाता है, जो कि देव उठनी एकादशी से शुरू होता है और कार्तिक पूर्णिमा के साथ सम्पूर्ण होता है। इस प्रकार हरि प्रबोधिनी एकादशी को भीष्म पंचक के पहले दिन के रूप में मनाया जाता है। इस व्रत का पालन पांच दिनों तक किया जाता है। माना जाता है कि कार्तिक एकादशी व्रत पितामह भीष्म को स्मरण करने से प्रारम्भ होता है और पूर्णिमा के दिन सम्पूर्ण होता है। इसे पन्चभीका भी कहते हैं, साथ ही भीष्म पंचक को विष्णु पंचक के रूप में भी जाना जाता है।
प्राचीन काल में जब महाभारत का युद्ध हुआ तब पाण्डवों की विजय हुई थी। माना जाता है कि पाण्डवों की जीत के उपरांत श्रीकृष्ण पाण्डवों को लेकर भीष्म पितामह के पास गए, ताकि पितामह उन्हें कुछ ज्ञान दे सकें। श्रीकृष्ण के अनुरोध करने पर सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में मृत्यु शैय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह ने पाण्डवों को ज्ञान प्रदान किया था। जिसमें पितामह भीष्म ने पाण्डवों को वर्ण धर्म, मोक्ष धर्म और राज धर्म के बारे में उपदेश दिया था। भीष्म ने यह ज्ञान पाण्डवों को पाँच दिनों तक दिया था। ज्ञान देने के पश्चात श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामह से कहा कि ‘यह पाँच दिन लोगों के लिए अत्यंत मंगलकारी होंगे और आने वाले समय में इन्हें भीष्म पंचक के नाम से जाना जाएगा। ये पाँच दिन भीष्म पंचक के ही है जो एकादशी से पूर्णिमा तक मनाये जाते हैं।
तो ये थी भीष्म पंचक से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी। ऐसे ही अन्य महत्वपूर्ण लेख पढ़ने के लिए श्री मंदिर से जुड़े रहें।
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