image
downloadDownload
shareShare
ShareWhatsApp

देव दीवाली

देव दीवाली 2025: जानें कब है, शुभ मुहूर्त व पूजा विधि, शिव कृपा से पाएं सुख-समृद्धि व शांति का आशीर्वाद।

देव दीवाली के बारे में

दिवाली के त्यौहार के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली का पर्व मनाया जाता है। देव दिवाली का यह त्यौहार देश के कई राज्यों में बेहद ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है लेकिन इसका सबसे ज्यादा उत्साह बनारस में देखने को मिलता है। देव दिवाली के अवसर पर गंगा नदी के घाटों पर दिये जलाये जाते हैं। एक प्रचलित मान्यता के अनुसार इस दिन देवता स्वर्गलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं।

क्या है देव दीपावली?

देव दीपावली जिसे “देव दिवाली” भी कहा जाता है, हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और भव्य पर्व है। यह पर्व कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है, जो दीपावली के ठीक पंद्रह दिन बाद आती है। यह पर्व विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के वाराणसी (काशी) में अत्यधिक धूमधाम और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस दिन गंगा नदी के तटों पर हजारों दीपक जलाए जाते हैं, जिससे सम्पूर्ण शहर दिव्यता से आलोकित हो उठता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन देवता स्वयं स्वर्गलोक से पृथ्वी पर उतरकर गंगा के तट पर दीपदान करते हैं। इसलिए इस दिन को “देवताओं की दीपावली” कहा जाता है।

देव दीपावली क्यों मनाई जाती है?

  • देव दीपावली का पर्व भगवान शिव और देवताओं की विजय का प्रतीक है।
  • पौराणिक कथा के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था।
  • त्रिपुरासुर के वध के उपरांत देवताओं ने हर्ष और विजय के प्रतीक रूप में स्वर्ग लोक में दीप जलाए थे।
  • उसी परंपरा के रूप में यह दिन “देव दीपावली” के रूप में मनाया जाने लगा।
  • एक अन्य कथा के अनुसार, काशी के राजा दिवोदास ने अपने राज्य में देवताओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था।
  • भगवान शिव ने स्वयं काशी में प्रकट होकर गंगा स्नान किया और ध्यान में लीन हो गए।
  • राजा दिवोदास ने जब यह देखा तो उन्हें भगवान शिव की शक्ति का बोध हुआ और उन्होंने देवताओं के प्रवेश की अनुमति दी। उस दिन देवताओं ने काशी में प्रवेश कर दीप प्रज्वलित किए और उत्सव मनाया। तब से यह तिथि देव दीपावली के रूप में प्रसिद्ध हुई।

देव दीपावली कब है?

देव दीपावली 05 नवम्बर 2025, बुधवार (कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा)

  • प्रदोषकाल देव दीपावली मुहूर्त - 05:10 PM से 07:47 PM तक
  • अवधि - 02 घण्टे 37 मिनट
  • पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - 04 नवम्बर, 2025 को 10:36 पी एम बजे
  • पूर्णिमा तिथि समाप्त - 05 नवम्बर, 2025 को 06:48 पी एम बजे

देव दीपावली के शुभ मुहूर्त

मुहूर्त

समय

ब्रह्म मुहूर्त

04:25 ए एम से 05:17 ए एम

प्रातः सन्ध्या

04:51 ए एम से 06:08 ए एम

अभिजित मुहूर्त

कोई नहीं

विजय मुहूर्त

01:32 पी एम से 02:17 पी एम

गोधूलि मुहूर्त

05:15 पी एम से 05:40 पी एम

सायाह्न सन्ध्या

05:15 पी एम से 06:32 पी एम

अमृत काल

02:23 ए एम, नवम्बर 06 से 03:47 ए एम, नवम्बर 06

निशिता मुहूर्त

11:16 पी एम से 12:08 ए एम, नवम्बर 06

एक पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था, तब देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं। इसके बाद से हर साल इस दिन को देव दिवाली के रूप में मनाए जाने की परंपरा आरंभ हुई।

तो ये थी देव दीपावली के मुहूर्त से जुड़ी जानकारी। हमारी कामना है ये पर्व आपके लिये खुशियां लेकर आये, और सभी देवों की कृपा प्राप्त हो।

देव दीपावली का महत्व

  • देव दीपावली केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति और प्रकाश का अद्भुत संगम है।
  • इस दिन गंगा के घाटों, मंदिरों और आश्रमों को लाखों दीपों से सजाया जाता है।
  • वाराणसी में अस्सी घाट से लेकर राजघाट तक के समस्त घाटों पर दीप प्रज्वलित किए जाते हैं, जिससे पूरा नगर मानो स्वर्ग का दृश्य प्रस्तुत करता है।

धार्मिक महत्व

  • इस दिन गंगा स्नान, दीपदान और भगवान शिव की आराधना करने से सभी पापों का क्षय होता है।
  • यह दिन देवताओं की पृथ्वी पर उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इस दिन की गई पूजा, आराधना और दान से व्यक्ति को अपार पुण्य की प्राप्ति होती है।
  • कार्तिक पूर्णिमा का गंगा स्नान और दीपदान सर्वश्रेष्ठ धार्मिक कर्मों में से एक माना गया है।

सांस्कृतिक महत्व

  • देव दीपावली की परंपरा वाराणसी में सबसे पहले सन् 1915 में पंचगंगा घाट पर आरंभ हुई थी, जब हजारों मिट्टी के दीप जलाकर इस पर्व को मनाया गया।
  • धीरे-धीरे यह आयोजन स्थानीय उत्सव से निकलकर विश्व प्रसिद्ध महोत्सव बन गया।
  • आज के समय में इस दिन घाटों पर वैदिक मंत्रोच्चार, दीपदान, महा आरती, नृत्य-संगीत के कार्यक्रम और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ होती हैं।

आध्यात्मिक महत्व

  • यह पर्व अंधकार से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर और नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर बढ़ने का संदेश देता है।
  • देव दीपावली व्यक्ति को यह स्मरण कराती है कि भीतर और बाहर दोनों जगत में प्रकाश फैलाना ही सच्ची आराधना है।

देव दीपावली कहाँ मनाई जाती है?

देव दीपावली पूरे भारत में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाती है, लेकिन इसकी सबसे अधिक भव्यता और प्रसिद्धि उत्तर प्रदेश के वाराणसी (काशी या बनारस) में देखने को मिलती है। यह पर्व गंगा नदी के तटों पर मनाया जाता है, जहाँ हजारों-लाखों दीपक जलाकर गंगा मैया की आराधना की जाती है।

प्रमुख स्थान जहाँ देव दीपावली मनाई जाती है

1. वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

  • देव दीपावली का सबसे भव्य और ऐतिहासिक आयोजन यहीं होता है।
  • इस दिन अस्सी घाट से लेकर राजघाट तक के लगभग 84 घाटों पर लाखों दीये जलाए जाते हैं।
  • गंगा आरती, दीपदान, सांस्कृतिक कार्यक्रम, और वैदिक मंत्रोच्चार से पूरा शहर देवमय वातावरण में बदल जाता है।

प्रमुख घाट

  • दशाश्वमेध घाट
  • पंचगंगा घाट
  • अस्सी घाट
  • राजघाट
  • केदार घाट
  • रविदास घाट

2. प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

  • संगम तट (गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम) पर भी भक्त देव दीपावली के अवसर पर दीपदान करते हैं।
  • यहां का दीपोत्सव धार्मिक आस्था और शांति का प्रतीक माना जाता है।

3. अयोध्या (उत्तर प्रदेश)

  • यहां देव दीपावली के दिन सारयू नदी के किनारे दीपदान किया जाता है।
  • दीपों की पंक्तियों से पूरी नगरी जगमगा उठती है, जिससे अयोध्या की “देव दीपावली” भी विशेष प्रसिद्ध है।

4. हरिद्वार और ऋषिकेश (उत्तराखंड)

  • गंगा तटों पर देव दीपावली के अवसर पर विशेष गंगा आरती और दीपदान किया जाता है।
  • हर की पौड़ी पर यह दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है।

5. गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में

  • गंगा न होने पर भी स्थानीय मंदिरों और नदियों के तटों पर भक्त दीपदान कर देव दीपावली मनाते हैं।
  • विशेष रूप से शिव मंदिरों में इस दिन भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व रहता है।

मुख्य रूप से देव दीपावली का भव्यतम आयोजन वाराणसी में किया जाता है। यहीं से इस परंपरा की शुरुआत हुई थी, और आज यह उत्सव काशी की पहचान बन चुका है। इस दिन वाराणसी के घाट असंख्य दीपों की ज्योति से ऐसे जगमगा उठते हैं, मानो धरती पर देवलोक उतर आया हो।

देव दिवाली की पूजा विधि

दीवाली की ही तरह देव दीवाली की पूजा भी बेहद शुभ और कल्याणकारी होती है। माना जाता है कि सभी देवताओं ने इसी दिन दिवाली मनाई थी, तब से लोग इस दिन पूजा-पाठ करके भगवान जी के आशीष की कामना करते हैं।

  • प्रदोष काल में सबसे पहले ईशान कोण में आप एक चौकी की स्थापना करें और इस पर एक पीला कपड़ा बिछा लें।
  • इस चौकी पर कुछ दानें अक्षत के रख लें और इस आसन पर भगवान विष्णु, भगवान गणेश और भगवान शिव को स्थापित कर लें।
  • उसके ऊपर कुछ दानें अक्षत के रख लें।
  • पुष्प से सभी प्रतिमाओं पर गंगाजल का छिड़काव करें।
  • इसके पश्चात् दीप प्रज्वलित कर लें।
  • चंदन के तिलक से भगवान विष्णु, भगवान शिव और गणपति जी के मस्तक को सुशोभित करें।
  • गणेश जी से शुरूआत करते हुए, सभी को अक्षत, पुष्प, पुष्प माला, धूप, मौली अर्पित करें।
  • भगवान शिव को बिल्व पत्र, भांग, पंचामृत, धतूरा आदि अर्पित करें।
  • भगवान विष्णु को तुलसी दल अवश्य अर्पित करें और गणेश जी को दूर्वा चढ़ाएं।
  • इसके पश्चात् भोग लगाएं, भोग में खीर, पंजीरी, मिठाई, मौसमी फल आदि चढ़ा सकते हैं।
  • पूजा में दक्षिणा रखें।
  • आप चाहें तो इस दिन भगवान विष्णु जी की विशेष कृपा के लिए विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी कर सकते हैं।
  • भगवान गणेश जी से शुरू करते हुए सभी की आरती उतारें।
  • अंत में भगवान से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगे और प्रसाद वितरित करें।
  • संभव हो पाए तो भगवान शिव के मंदिर में जाकर शिवलिंग का पंचामृत से अभिषेक करें।
  • इस दिन दीप-दान का बहुत महत्व है तो आप विष्णु, शिव जी, पीपल के पेड़ और तुलसी जी को अवश्य दीप दान करें।
  • पुण्य प्राप्ति के लिए आप किसी जलाशय, मंदिर और गौशाला में भी दीप-दान कर सकते हैं।
  • आप चाहें तो 365 बातियों वाला दीपक भी जला कर दीप-दान कर सकते हैं।
  • इस प्रकार आपकी देव-दिवाली भक्ति की रोशनी से जगमगा उठेगी

देव दीपावली की शुरुआत कैसे हुई?

उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर जिसे बनारस के नाम से भी जाना जाता है, वहां इस भव्य उत्सव की शुरुआत हुई थी। यह विश्व के सबसे प्राचीन शहर कहे जाने वाले वाराणसी शहर की संस्कृति एवं परम्परा है।

देवदीवाली परम्परा की शुरुआत सबसे पहले सन 1915 में पंचगंगा घाट पर हजारों मिट्टी के दीए जलाकर की गयी थी। उस समय हमारा देश आजादी की लड़ाई लड़ रहा था। ऐसे में प्राचीन संस्कृति में आधुनिकता का रंग घोल कर वाराणसी और काशी के लोगों ने विश्वस्तर पर एक नई परम्परा का प्रारंभ किया था।

यूँ तो यह उत्सव बनारस के तुरही और पड़ा समुदायों के द्वारा विशेष रूप से मनाया जाता है। उनका यह विश्वास है कि इस दिन देवता पृथ्वी पर उतर कर गंगा नदी के किनारे वास करते हैं। यहाँ रविदास घाट से लेकर राजघाट के आखरी छोर तक असंख्य दीए जलाकर गंगा नदी की पूजा की जाती है।

देव दिवाली की भव्यता

देवताओं का उत्सव देवदीवाली! जिसे वहां के निवासियों ने सामाजिक सहयोग से भव्य महोत्सव में परिवर्तित कर दिया, अब यह विश्वविख्यात आयोजन बहुत से लोगों को आकर्षित करने लगा है। इस दिन असंख्य दीपकों की रोशनी से रविदास घाट से लेकर आदिकेशव घाट, वरुणा नदी के तट एवं घाटों पर स्थित मंदिर, भवन, मठ और आश्रम जगमगा उठते हैं। इस दिन यह शहर किसी आकाश गंगा के समान प्रतीत होता है।

ज्ञातव्य सूत्रों की मानें तो देव दीपावली पर 21 ब्राह्मणों द्वारा वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। इसके बाद कई कलाकारों द्वारा मनमोहक प्रस्तुतियां दी जाती है। इसके साथ ही दश-अश्वमेध घाट पर किए जाने वाले दीपदान और महा आरती भी इस दिन का मुख्य आकर्षण होते हैं। वाराणसी में इस दिन बहुत ही अद्भुत सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, साथ ही यहां कई घरों में महाभोग के साथ अखण्ड रामायण का आयोजन भी किया जाता है।

अस्सी घाट, सुपार्श्वनाथ घाट, पंच गंगा घाट, केदार घाट, अहिल्याबाई घाट, मुख्य मंदिर पर स्थित घाट यह सभी भक्तों की भीड़ से भर जाते हैं। इस शहर में स्थित देवी गंगा की 12 फुट ऊँची प्रतिमा इस दिन पर आकर्षण और असीम आस्था का केंद्र बन जाती है।

धार्मिक मान्यताएं

काशी में देव दीवाली का उत्सव मनाये जाने के पीछे एक मान्यता है कि काशी के राजा दिवोदास ने अपने राज्य में देवताओं के प्रवेश को प्रतिबन्धित कर दिया था। इस प्रतिबन्ध को तोड़ने के लिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने रूप बदल कर काशी के पंचगंगा घाट पर प्रकट होकर गंगा स्नान किया और फिर ध्यान मग्न हुए थे। जब यह बात राजा दिवोदास को पता चली तो उन्हें प्रभु की शक्ति का भान हुआ और उन्होंने देवताओं के प्रवेश पर से प्रतिबन्ध को समाप्त कर दिया। तब इस तिथि पर सभी देवताओं ने काशी में प्रवेश कर दीप जलाकर दीपावली मनाई थी।

समापन

देव दिवाली एक अद्भुत पर्व है। इस दिन सूर्यास्त के बाद लाखों की संख्या में मिट्टी के दीए गंगा नदी के पवित्र जल पर तैरते हैं। इस दिन यह शहर धुप की सुगंध और मंत्रों के जप से सराबोर होता है। इन समारोहों में कई लाख मिट्टी के दीपक घाट की सीढ़ियों पर पर जलाया जाता है। यह खास महोत्सव है, जिसे हर मनुष्य को अपने जीवन काल में एक बार तो जरूर देखना ही चाहिए।

काशी की भव्य देव दीपावली

शिव जी की नगरी काशी में देव दीपावली का महापर्व एक उत्सव की तरह अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। आइये जानते है इस दिन किसकी पूजा एवं भक्ति का है विधान और क्या कहती हैं धार्मिक मान्यताएं -

हिन्दू पंचांग के अनुसार देव दीपावली का महोत्सव, दीपावली के 15 दिन बाद कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन आता है। इस दिन को कार्तिक पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है। देवताओं की दीपावली या देव दीवाली वाराणसी में गहरी भक्ति के साथ मनाया जाने वाला एक आध्यात्मिक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह हिंदू त्योहार दुष्ट दानव त्रिपुरासुर पर भगवान शिव की विजय का प्रतीक है, यही कारण है कि इस उत्सव को अक्सर त्रिपुरा उत्सव कहा जाता है। इस दिन महादेव की पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व है।

देव दिवाली से जुड़ी महत्वपूर्ण परम्पराएं

बनारस या वाराणसी में देव दीपावली को बहुत ही धूमधाम और भव्यता के लिए जाना जाता है। इस धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने के लिए हजारों भक्त पवित्र शहर का भ्रमण करते हैं।

देव दीपावली पवित्र शहर वाराणसी में प्रत्येक वर्ष मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध उत्सव है। देव दीपावली, जिसे देव दिवाली भी कहा जाता है, राक्षस त्रिपुरासुर पर भगवान शिव की जीत को चिह्नित करने के लिए मनाया जाता है। इसलिए देव दीपावली उत्सव को त्रिपुरोत्सव या त्रिपुरारी पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है जो कार्तिक पूर्णिमा के शुभ दिन पर मनाया जाता है।

देव दीपावली वाराणसी में गंगा नदी के तट पर बेहद भव्यता के साथ मनाई जाती है। यह दीवाली उत्सव के अंत के साथ-साथ तुलसी विवाह के अनुष्ठान का समापन करती है। देव दीपावली का धार्मिक महत्व इस विश्वास में निहित है कि इस दिन देवी और देवता गंगा नदी में पवित्र स्नान करने के लिए पृथ्वी पर आते हैं। पवित्र नदी का पूरा घाट देवताओं और देवी गंगा नदी के सम्मान में लाखों छोटे मिट्टी के दीपक (दीया) से सुसज्जित किया जाता है।

देव दीपावली देशभक्ति की भावना को ऐसे करता है मजबूत

धार्मिक महत्व के अलावा, यह दिन देशभक्ति के महत्व से भी जुड़ा हुआ है। इस दिन, भारतीय बलों में सभी बहादुर सैनिक, जो भारत के लिए लड़ते हुए शहीद हो गये थे, उनको याद किया जाता है और उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है।

वाराणसी में शहीदों को श्रद्धांजलि के रूप में पुष्पांजलि अर्पित की जाती है। यह आयोजन गंगा सेवा निधि द्वारा भव्य पैमाने पर आयोजित किया जाता है। देशभक्ति के गीत गाए जाते हैं और अंतिम तीन भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा समारोह को समाप्त किया जाता है।

गंगा नदी और चंद्र दर्शन का है बेहद खास संबंध

इस महोत्सव की मुख्य परंपरा चंद्र दर्शन पर मनाई जाती है। गंगा नदी और देवी देवताओं के सम्मान में, गंगा नदी के सभी घाट यानी रवि घाट से लेकर राज घाट तक, को छोटे-छोटे दीयों (मिट्टी के दीयों) से सजाया जाता है देव दीपावली और कार्तिक पूर्णिमा के शुभ दिन पर गंगा में पवित्र डुबकी लगाते हैं और शाम को मिट्टी के दीपक या दीया जलाते हैं। शाम ढलते ही गंगा नदी के किनारे के सभी घाटों की सीढ़ियाँ लाखों मिट्टी के दीयों से जगमगा उठती हैं। इस दिन न केवल गंगा के घाट बल्कि बनारस के सभी मंदिर भी लाखों दीयों से जगमगाते हैं।

बनारस के अतिरिक्त यह त्यौहार गुजरात के कुछ हिस्सों में बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। लोग इस दिन अपने घरों को रंगोली और हर कोने में हल्के तेल के दीयों से सजाते हैं। कुछ घरों में भोग के वितरण के बाद अखंड रामायण का पाठ भी किया जाता है।

तो भक्तों आप भी इस बार देव दीपावली का हिस्सा बनिए और भगवान शिव की भक्ति कर उनकी असीम कृपा प्राप्त करिए।

हर-हर महादेव।

देव दीपावली पूजा के लाभ

देव दीपावली की पूजा का धार्मिक और आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टि से अत्यंत महत्व है। इस दिन की गई पूजा, आराधना और दीपदान से मनुष्य को अनेक शुभ फल प्राप्त होते हैं।

सुख-समृद्धि की प्राप्ति

  • देव दीपावली की पूजा करने से घर में लक्ष्मी जी का आगमन होता है। जीवन में समृद्धि, वैभव और सौभाग्य की वृद्धि होती है।

पापों का नाश

  • इस दिन दीपदान करने से मनुष्य के पाप नष्ट होते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग मिलता है।

देव कृपा और आशीर्वाद

  • ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवता स्वयं पृथ्वी पर अवतरित होते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

रोग-मुक्ति और मानसिक शांति

  • भगवान शिव, विष्णु और गणेश की आराधना करने से व्यक्ति को रोग, दुःख और भय से मुक्ति मिलती है तथा मन को स्थिरता और शांति प्राप्त होती है।

परिवार में सौहार्द और कल्याण

  • इस दिन संयुक्त परिवार द्वारा एक साथ दीप जलाने से परिवार में प्रेम, एकता और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।

अक्षय पुण्य की प्राप्ति

  • कार्तिक पूर्णिमा को किए गए स्नान, दान और दीपदान से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है, जो कभी नष्ट नहीं होता।

पूर्वजों की आत्मा को शांति

  • इस दिन गंगा तट या जलाशय में दीप प्रवाहित करने से पितरों को शांति मिलती है और उनके आशीर्वाद से परिवार उन्नति करता है।
divider
Published by Sri Mandir·October 28, 2025

Did you like this article?

srimandir-logo

श्री मंदिर ने श्रध्दालुओ, पंडितों, और मंदिरों को जोड़कर भारत में धार्मिक सेवाओं को लोगों तक पहुँचाया है। 100 से अधिक प्रसिद्ध मंदिरों के साथ साझेदारी करके, हम विशेषज्ञ पंडितों द्वारा की गई विशेष पूजा और चढ़ावा सेवाएँ प्रदान करते हैं और पूर्ण की गई पूजा विधि का वीडियो शेयर करते हैं।

हमारा पता

फर्स्टप्रिंसिपल ऐप्सफॉरभारत प्रा. लि. 435, 1st फ्लोर 17वीं क्रॉस, 19वीं मेन रोड, एक्सिस बैंक के ऊपर, सेक्टर 4, एचएसआर लेआउट, बेंगलुरु, कर्नाटका 560102
YoutubeInstagramLinkedinWhatsappTwitterFacebook