पुष्कर स्नान | Pushkar Snan 2024
पुष्कर जी, राजस्थान राज्य में अजमेर से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ है। यह हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है और यहां पर बने हुए सरोवर की भी धार्मिक विशेषता है। धार्मिक आधार पर, यहां मौजूद सरोवर में स्नान करने के लिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक पांचों दिन श्रेष्ठ होते हैं।
पुष्कर स्नान का पर्व मुख्यतः कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दौरान, इस पावन सरोवर में स्नान करना विशेष लाभकारी होता है।
पुष्कर स्नान कब है ? पुष्कर स्नान की तिथि
पुष्कर स्नान कार्तिक मास के अंतिम पांच दिन यानी कि देवउठनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक मनाया जाता है। मगर विशेषकर यह स्नान कार्तिक पूर्णिमा को किया जाता है और इस साल 2024 में पुष्कर स्नान, कार्तिक पूर्णिमा 15 नवंबर शुक्रवार को है।
इन 5 दिनों में स्नान करने से मनुष्य के पूर्व जन्म तथा इस जन्म के भी सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इसलिए इन पांच दिनों में यहां आकर स्नान, ध्यान, पूजा- अर्चना, दान करना चाहिए। मान्यताओं में पुष्कर के पवित्र सरोवर की चार परिक्रमा लगाने का विधान भी बताया जाता है। यह परिक्रमा मौन रहकर लगाई जाती हैं। इससे पुष्कर राज का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पुष्कर स्नान का महत्व
पुष्कर जी में स्थित पवित्र सरोवर में लोगों की गहरी आस्था है और इस सरोवर में डुबकी लगाने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है। इस पावन सरोवर में स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
ऐसा माना जाता है, कि इस सरोवर में स्नान करने से त्वचा के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और निरोगी काया की प्राप्ति होती है। वहीं, इस सरोवर में 52 स्नान घाट है और इन सभी स्नान घाटों में से कुछ घाटों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। उन महत्वपूर्ण घाटों के नाम इस प्रकार हैं - वराह घाट, ब्रह्म घाट तथा गव घाट जहां सभी घाटों के जल में प्रभावशाली शक्तियां समाहित हैं। इस सरोवर के नाग कुंड को प्रजनन क्षमता के लिए जाना जाता है। रूप तीरथ कुंड को सुंदरता के लिए, जबकि कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए कपिल व्यिपी कुंड का विशेष महत्व है। ज्ञान की प्राप्ति के लिए मिराकंद मुनि कुंड को वरदान प्राप्त है।
मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति इस समय या अवधि में इस पवित्र सरोवर में स्नान करता है और एक वराह अर्थात सूअर, जिसे विष्णु का अवतार माना जाता है, उस जीव के दर्शन करता है, उसे पुनः जन्म नहीं लेना पड़ता है। वह व्यक्ति सदा के लिए स्वर्ग में आनंद से रहता है। इस सरोवर में स्नान करने से सौ बार तपस्या करने के बराबर फल की प्राप्ति होती है। इसी विश्वास और गहरी आस्था को लेकर हजारों श्रद्धालु कार्तिक मास के अंतिम पांच दिनों में यहां आते हैं और पवित्र सरोवर में स्नान कर पुण्य का लाभ उठाते है।
पुष्कर मेले में आना हिंदुओं के लिए एक तीर्थ यात्रा जैसा है। इस अवसर पर यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु स्नान और दर्शन करने आते हैं। माना जाता है, कि यह मेला सौ वर्षों से भी अधिक पहले से लगता आ रहा है। इन्हीं महत्वपूर्ण मान्यताओं और आस्था से जुड़ा होने के कारण यह स्थान तीर्थराज कहलाया जाता है, जो इस स्थान को और भी गौरवशाली बना देता है। पुष्कर स्नान के पांच दिनों में यहां विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है, जो विश्वभर में प्रसिद्ध है और इस मेले को धार्मिक मेले के रूप में देखा जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त
- पूर्णिमा तिथि आरंभ - 15 नवंबर प्रातः 06:19 AM
- पूर्णिमा तिथि समाप्त – 16 नवंबर रात 02:58 AM
कार्तिक पूर्णिमा के दिन इस पवित्र झील में डुबकी लगाने से साल भर किए जाने वाले तीर्थ स्नान का पुण्य मिलता है। ऐसा भी माना जाता है, कि कार्तिक मास के अंतिम 5 दिन विशेष फलदायक होते हैं। इस समय हिंदू धर्म के त्रिदेव कहे जाने वाले तीनों प्रमुख देवता तथा अन्य सभी देवी- देवता, सभी तीर्थ और साथ में सभी नदियां पुष्कर जी की झील में वास करते हैं। इसलिए इस समय पुष्कर में स्नान करना बहुत महत्वपूर्ण माना गया है।
एक और मान्यता के अनुसार, समुद्र मंथन के समय अमृत कलश निकला था। मगर फिर उस अमृत कलश के लिए देवताओं और राक्षसों में युद्ध होने लगा। राक्षस उस कलश को लेकर भाग रहे थे, तब अमृत कलश की कुछ बूंदे इस सरोवर में भी गिरी थीं और इसलिए इस सरोवर में स्नान करना अमृत देने वाला है। यह भी माना जाता है कि चारों धाम- जगन्नाथ जी, रामेश्वरम धाम, द्वारका पुरी तथा बद्रीनाथ धाम के दर्शन के साथ अगर पुष्कर जी के दर्शन नहीं किए, तो आपकी यात्रा सफल नहीं होती है।
पुष्कर झील में 52 घाट हैं और हर घाट की अपनी विशेषता है। इस झील का आकार अर्धचंद्राकार है और अधिकतम गहराई 10 मीटर है। इस स्थान को सभी तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ तीर्थराज कहा जाता है। इस दिन दूर- दूर से लोग यहां स्नान करने आते हैं और पुण्य का लाभ उठाते हैं। इस दिन, प्रातः काल 4:00 बजे से ही श्रद्धालु पवित्र डुबकी लगाने के लिए एकत्रित होने लगते हैं। वहीं, स्नान के बाद लोग यहां स्थित ब्रह्मा जी के एकमात्र मंदिर के दर्शन करते हैं और विधि-विधान से पूजा अथवा दान भी करते हैं।
कब-कहां से हुई पुष्कर स्नान की शुरुआत?
राजस्थान राज्य में स्थित पुष्कर जी को तीर्थराज अर्थात सभी तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। कार्तिक के महीने में इस तीर्थ पर आने से और यहां के असीम फलदायक सरोवर में स्नान करने से बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है। आज हम आपको इसी पुष्कर स्नान के बारे में बताने जा रहे हैं।
पुष्कर स्नान की शुरुआत कब हुई
अजमेर जिले के पुष्कर कस्बे में एक पवित्र सरोवर है, पुष्कर! जिसका अर्थ होता है नीले कमल का फूल। इसी कमल के फूल से संबंधित है पुष्कर जी में स्थित सरोवर की उत्पत्ति। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, परम पिता ब्रह्मा जी ने पुष्कर जी में एक कमल का फूल गिराया था, जिससे वहां पर जल की धारा फूटी थी और इस सरोवर का निर्माण हुआ था। ऐसा कहा जाता है, कि जगत पिता ब्रह्मा जी ने पांच दिनों तक इसी सरोवर के बीचों बीच यज्ञ किया था, इसीलिए इस सरोवर में स्नान करना विशेष फलदायक माना जाता है।
पुष्कर स्नान कहां पर मनाया जाता है?
पुष्कर स्नान, पुष्कर जी में स्थित पवित्र सरोवर में किया जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में अंतिम पांच दिन देव उठनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक, इस सरोवर में स्नान करने का विशेष महत्व है। धार्मिक आधार पर ऐसा कहते हैं, कि इस समय सरोवर में सभी देवी-देवताओं का वास होता है। इसलिए यह पांच दिन, इस सरोवर में स्नान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
सरोवर के निकट परमपिता ब्रह्मा जी का एक मंदिर भी है, जो विश्व में इकलौता ब्रह्मा जी का मंदिर है। इस दौरान यहां ब्रह्मा जी का भव्य श्रृंगार किया जाता है, फिर प्रातः 5:00 बजे महाआरती की जाती है और 101 किलो मेवों का महाभोग अर्पित किया जाता है। सरोवर में स्नान करने के बाद मंदिर में पूजा अर्चना करने से भगवान का आशीर्वाद मिलता है और सभी इच्छाएं पूरी होती है।
जानें पुष्कर झील का इतिहास
पुष्कर झील राजस्थान की एक पवित्र झील है और हिंदू धर्म में इसे विशेष स्थान प्राप्त है। यह झील राजस्थान में अजमेर से 11 किलोमीटर दूर तीर्थराज पुष्कर जी में स्थित है। माना जाता है कि, कार्तिक पूर्णिमा के दिन इस पवित्र पुष्कर झील में डुबकी लगाने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या आपको मालूम है कि इस झील की उत्पत्ति एक कमल के पुष्प से हुई थी? तो आइये, आज हम आपको इस रोचक कहानी से अवगत कराते है।
पुराणों में पुष्कर झील का उल्लेख
धार्मिक ग्रंथ पद्म पुराण के अनुसार, एक बार जगत पिता ब्रह्मा जी ने पृथ्वी पर यज्ञ करने का विचार किया। उस समय ब्रजनाभ नामक एक राक्षस ने पृथ्वी पर हाहाकार मचा रखा था। उसके आतंक से संपूर्ण पृथ्वी लोक त्रस्त था। ऐसे में, देवताओं ने ब्रह्मा जी से सहायता मांगी और उनकी सुंदर और उत्तम स्तुति की थी।
फिर जब ब्रह्मा जी को इस बात का पता चला, तो वह चिंतित हो गए और उन्होंने पृथ्वी को ब्रजनाभ के आतंक से मुक्त करने का निश्चय कर लिया। ऐसे में, उन्होंने ब्रजनाभ पर अपने सबसे प्रिय कमल के पुष्प से प्रहार किया था, जिसके लगते ही वह असुर मृत्यु को प्राप्त हो गया। इस प्रकार ब्रह्मा जी ने पृथ्वी को विनाशकारी दैत्य के भार से मुक्ति दिलाई थी।
इसके बाद, ब्रह्मा जी के इस पुष्प ने और क्या-क्या चमत्कार किए, आइए आपको उस पुष्कर झील से जुड़ा रोचक प्रसंग रोचक प्रसंग से परिचित कराते हैं-
धार्मिक आधार पर ऐसा कहा गया है, कि वह पुष्प राक्षस का वध करने के बाद पृथ्वी पर तीन जगह गिरा था। जहां पर भी वह पुष्प गिरा था, उन तीन स्थलों से जल की तीन धाराएं फूटी और वहां तीन अलग-अलग झील बहने लगी थी।
पहली झील का नाम जेष्ठ पुष्कर कहलाया, दूसरी झील का नाम मध्य पुष्कर और तीसरी झील को कनिष्ठ पुष्कर कहा गया था। इस वजह से, यह तीनों ही झील महत्वपूर्ण हैं, लेकिन जेष्ठ पुष्कर झील में ब्रह्मा जी ने यज्ञ किया था, इस कारण इस झील का महत्व अधिक है और इसकी गिनती भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में की जाती है। इस तरह पुष्कर जी में इस पावन झील की उत्पत्ति ब्रह्मा जी द्वारा एक कमल के पुष्प से हुई थी।
प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, पुष्कर झील का अस्तित्व चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से है। यह भी कहा जाता है, कि 12वीं शताब्दी में लूनी नदी के ऊपर बांध बनाने के बाद से पुष्कर झील अस्तित्व में आई थी। तब बहुत से राजपूत राजाओं ने झील के आसपास के क्षेत्र में उत्थान का कार्य किया और बहुत से घाटों का निर्माण करवाया था, जिन्हें आज भी देखे जा सकते हैं।
यह थी पुष्कर स्नान से संबंधित जानकारी। उम्मीद है यहां उपलब्ध जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी। ऐसे ही महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सवों के विषय में अवगत होने के लिए बने रहिए श्री मंदिर के साथ।