गंगा सप्तमी 2025 कब है? जानिए इस पावन पर्व की तारीख, महत्व और मां गंगा की पूजा कैसे करें।
गंगा सप्तमी का पर्व मां गंगा के पृथ्वी पर अवतरण की स्मृति में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मनाया जाता है। इस दिन गंगा स्नान, दान-पुण्य और पूजन का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से समस्त पाप नष्ट होते हैं।
हिंदू धर्म में बिना गंगाजल के कोई भी धार्मिक कार्य संपन्न नहीं होता, और इस बात से ज्ञात होता है कि मां गंगा हमारे लिए कितनी महत्वपूर्ण हैं। गंगा सप्तमी, मां गंगा की उपासना के लिए समर्पित एक विशेष दिन है। इसे हम गंगा जयंती के रूप में भी मनाते हैं।
गंगा सप्तमी या गंगा जयंती हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर मनाई जाती है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:09 ए एम से 04:52 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:31 ए एम से 05:35 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:47 ए एम से 12:41 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:27 पी एम से 03:20 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:52 पी एम से 07:13 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:53 पी एम से 07:57 पी एम तक |
अमृत काल | 10:13 ए एम से 11:47 ए एम तक |
निशिता मुहूर्त | 11:52 पी एम से 12:35 ए एम तक (04 मई) |
मुहूर्त | समय |
त्रिपुष्कर योग | 07:51 ए एम से 12:34 पी एम |
रवि योग | 05:35 ए एम से 12:34 पी एम |
गंगा सप्तमी या गंगा जयंती अपने नाम के अनुरूप गंगा मैया को समर्पित पर्व है। इस दिन भक्त मां गंगा की उपासना करते हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस दिन गंगा जी का पुनर्जन्म हुआ था।
गंगा सप्तमी उत्तर भारत में विशेष तौर पर मनाया जाता है। इस दिन प्रयागराज, ऋषिकेश, हरिद्वार, गंगा सागर, गढ़मुक्तेश्वर, आदि तीर्थ स्थानों पर बड़ी संख्या में भक्त गंगास्नान करते हैं, और गंगा आरती व पूजा आराधना कर अपना जन्म सफल बनाते हैं।
पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण व नारद पुराण में गंगा सप्तमी के महात्म्य के बारे में वर्णन मिलता है, जिसके आधार पर गंगा जी गंगा दशहरा के दिन पहली बार पृथ्वी पर अवतरित हुईं थीं। परंतु उस समय शंकर जी ने उन्हें अपनी जटा में रोक लिया था।
इसके पश्चात् भगीरथ ने अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शिव की तपस्या की, और गंगा को उनकी जटा से मुक्त कराया। इसके उपरांत गंगा जी भगीरथ द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने लगीं। गंगा शीघ्र गति से पृथ्वी की ओर बढ़ रही थीं, अतः उनके प्रवाह के कारण एक ऋषि जाहनु का आश्रम नष्ट हो गया। आश्रम नष्ट होने पर ऋषि जाहनु क्रोधित हो उठे, और उन्होंने संपूर्ण गंगा नदी को पी लिया।
इसके पश्चात् भगीरथ व अन्य देवी देवताओं ने उनकी बहुत विनती की, तब ऋषि ने वैशाख के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गंगा जी को एक बार पुनः मुक्त कर दिया। तभी से यह तिथि माता गंगा के पुनर्जन्म का प्रतीक है, और इस कारण इसे लोग ‘जाहनु सप्तमी’ के नाम से भी जानते हैं। ऋषि जाहनु के उदर से निकलने के कारण गंगा जी को जाह्नवी भी कहा जाता है।
तो भक्तों, ये थी गंगा सप्तमी या गंगा जयंती से जुड़ी संपूर्ण जानकारी। हमारी कामना है आप पर मां गंगा की कृपा सदैव बनी रहे, और सभी बुरे कर्मों का नाश हो। ऐसे ही व्रत, त्यौहार व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' पर।
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