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गणगौर 2025

गणगौर 2025 में माँ गौरी की कृपा कैसे प्राप्त करें? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और पौराणिक कथा।

गणगौर पूजा के बारे में

गणगौर पूजा मुख्यतः राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और कुछ उत्तर भारतीय राज्यों में मनाई जाने वाली एक प्रमुख लोक पर्व है। यह पूजा गौरी माता (पार्वती जी) और भगवान शिव को समर्पित होती है। "गण" का अर्थ है शिव और "गौर" का मतलब है गौरी (पार्वती)।

गणगौर कब है?

हिंदू धर्म में चैत्र तृतीया का बहुत महत्व है। इस दिन भगवान शंकर और गौरी को समर्पित एक महत्वपूर्ण पर्व मनाया जाता है, जिसे गौरी तृतीया, गणगौर या सौभाग्य तृतीया के नाम से जाना जाता है। यह त्यौहार राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और हरियाणा के कुछ हिस्सों में अत्यंत लोकप्रिय है। गणगौर का त्यौहार चैत्र माह के पहले दिन से प्रारंभ होकर 18 दिनों तक चलता है।

गणगौर कब मनाया जाएगा?

  • गणगौर पूजा - 31 मार्च, 2025 सोमवार को है।
  • तृतीया तिथि प्रारम्भ - 31 मार्च 2025 को 09:11 AM बजे से
  • तृतीया तिथि समाप्त - 01 अप्रैल 2025 को 05:42 AM बजे तक

इस दिन के शुभ मुहूर्त

मुहूर्त

समय

ब्रह्म मुहूर्त

04:18 ए एम से 05:04 ए एम तक

प्रातः सन्ध्या

04:41 ए एम से 05:50 ए एम तक

अभिजित मुहूर्त

11:37 ए एम से 12:27 पी एम तक

विजय मुहूर्त

02:06 पी एम से 02:56 पी एम तक

गोधूलि मुहूर्त

06:13 पी एम से 06:36 पी एम तक

सायाह्न सन्ध्या

06:14 पी एम से 07:23 पी एम तक

अमृत काल

07:24 ए एम से 08:48 ए एम तक

निशिता मुहूर्त

11:39 पी एम से 12:25 ए एम अप्रैल 01 तक

रवि योग

01:45 पी एम से 02:08 पी एम तक

गणगौर के पावन पर्व पर विवाहित स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र के लिए भगवान शंकर और माता गौरी की उपासना करती हैं। इसके साथ ही कुंवारी कन्याएं भी उत्तम वर पाने के लिए यह व्रत करती हैं और विधि-विधान से गणगौर पूजा के नियमों का पालन करती हैं। ऐसी मान्यता है कि गणगौर के नियमों का पालन करने वाली स्त्रियों को सुख-सौभाग्य प्राप्त होता है एवं वैवाहिक जीवन अत्यंत सुखमय रहता है।

तो भक्तों, यह थी गणगौर के शुभ मुहूर्त से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी। आप भी इस पावन पर्व के नियमों का पालन अवश्य करें।

गणगौर का महत्व व अन्य जानकारियां

गणगौर का पावन पर्व चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है। नव विवाहित महिलाएं व कुंवारी कन्याएं होली के दूसरे दिन से यह पूजा प्रारंभ करती हैं और चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन किसी नदी तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौर को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन शाम को उनका विसर्जन करती हैं। ऐसी मान्यता है कि कुंवारी कन्याओं को इस व्रत से उत्तम पति मिलता है, और सुहागिनों का सुहाग अखंड रहता है।

चलिए जानते हैं,

  • गणगौर क्यों मनाया जाता है?
  • गणगौर कैसे मनाया जाता है?
  • गणगौर का महत्त्व क्या है?
  • गणगौर कहाँ कहाँ मनाया जाता है?
  • गणगौर मेला/उत्सव क्या है?

गणगौर क्यों मनाया जाता है?

चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को यानी नवरात्रि की तीसरे दिन गणगौर माता की पूजा की जाती है। माता पार्वती को गौर व भगवान शंकर के अवतार को ईशर माना जाता है। इस दिन को लेकर एक मान्यता है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए अत्यंत कठिन व्रत और तपस्या की। भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और कहा- हे पार्वती! वरदान मांगो! पार्वती ने कहा- हे शिव-शंकर, मेरी एक ही आकांक्षा है कि मैं आपकी अर्धांगिनी बनूं। माता पार्वती जी की मनोकामना पूर्ण हुई और भगवान शंकर उन्हें पति रूप में मिले। तभी से कुंवारी कन्याएं अपनी इच्छा के अनुरूप वर पाने के लिए गणगौर और ईश्वर की उपासना करती हैं। सुहागिन स्त्रियां यह व्रत अपने सुहाग को अटल रखने के लिए करती हैं।

गणगौर कैसे मनाया जाता है?

गणगौर प्रारंभ होने से लेकर 16 दिन तक महिलाएं हर सुबह जल्दी उठकर बगीचे में जाती हैं। वहां से दूब और फूल चुनकर लाती हैं, और गणगौर माता पर दूब से दूध के छीटें देती हैं। इस पूजा में माता को दही, सुपारी, चांदी का छल्ला आदि अर्पित किया जाता है। ऐसी मान्यता है की आठवें दिन ईशर अपनी पत्नी गणगौर के साथ ससुराल आते हैं। इस दिन सभी लड़कियां कुम्हार के घर जाकर वहां से मिट्टी के बर्तन और गणगौर की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी लाती हैं।

उसी मिट्टी से ईशर जी, गणगौर माता, मालिन आदि की कई मूर्तियां बनाई जाती हैं। जिस स्थान पर पूजा की जाती है उसको गणगौर का मायका और जहां पर मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है, वह स्थान उनका ससुराल कहा जाता है। शादी के उपरांत कन्या पहली बार गणगौर अपने मायके में मनाती है, बाद में प्रतिवर्ष वो अपनी ससुराल में ही गणगौर का पूजन करती है। गणगौर का उद्यापन करते समय स्त्रियां अपनी सास को बायना, कपड़े तथा सुहाग की वस्तुएं देती हैं। साथ ही सोलह सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराकर उन्हें सम्पूर्ण श्रृंगार की वस्तुएं और दक्षिण दी जाती है।

गणगौर का महत्व क्या है?

गणगौर का पर्व स्त्रियों के लिए विशेष महत्वपूर्ण है। ऐसा माना जाता है, कि इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को एवं पार्वती ने समस्त स्त्रियों को सौभाग्य का वरदान दिया था। ये व्रत धारण करने से पहले सुहागिनें रेणुका यानि मिट्टी की गौरी की स्थापना कर उनका पूजन करती हैं। इसके बाद गणगौर की कथा कही जाती है, जिसके पश्चात् गौरी जी पर चढ़ाए हुए सिन्दूर से स्त्रियाँ अपनी माँग भरती हैं। इस व्रत में केवल एक बार भोजन करके दूसरे दिन व्रत का पारण किया जाता है। पुरुषों के लिए गणगौर का प्रसाद वर्जित माना जाता है।

गणगौर कहाँ कहाँ मनाया जाता है?

यूं तो भारत के सभी प्रांतों में जहां मारवाड़ी रहते हैं, वहां शिव-गौरी पूजन का यह त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता हैं। लेकिन राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के निमाड़, मालवा, बुंदेलखण्ड और ब्रज क्षेत्रों में गणगौर का पर्व प्रमुख रूप से मनाया जाता है।

गणगौर मेला/उत्सव क्या है?

गणगौर उत्सव पर वस्त्र और आभूषणों से सजी-धजी, सुंदर लोटियों को सिर पर रखे, हज़ारों की संख्या में गाती हुई स्त्रियों के स्वर से जोधपुर का पूरा बाज़ार गूँज उठता है। पूरे राजस्थान में जगह-जगह गणगौर माता की सवारी निकाली जाती है। उदयपुर की धींगा, और बीकानेर की चांदमल गणगौर सबसे ज़्यादा प्रसिद्ध मानी जाती हैं।

तो ये थी गणगौर पर्व से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी। ऐसी ही धार्मिक जानकारियां के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर के साथ...

गणगौर की पूजा विधि

गणगौर राजस्थान और मध्य प्रदेश में मुख्य रूप से मनाया जाने वाला त्यौहार है। देवी पार्वती और भगवान शिव को समर्पित ये पर्व भक्त बहुत ही श्रद्धा और धूमधाम के साथ मनाते हैं। विवाहित स्त्रियां और कुंवारी कन्याएं गणगौर का व्रत रखती हैं और विधि-विधान से पूजा करती हैं।

चलिए यहां हम आपको बता रहे हैं गणगौर की पूजा विधि

  • सूर्योदय होने से पहले स्नानादि करके शुद्ध होकर गणगौर का व्रत प्रारंभ करें।
  • सबसे पहले पूजा की चौकी पर गंगाजल छिड़ककर उसे स्वच्छ कर लें
  • अब चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं
  • इसके पश्चात् चौकी पर जल से भरा कलश रखें
  • कलश पर मौली बांधें, साथ ही उसमें थोड़ा गंगाजल, एक सुपारी, हल्दी, अक्षत और सिक्का डालें।
  • अब कलश पर आम का पल्लव रख कर मौली बंधा हुआ नारियल रखें।
  • अब चौकी पर शिव-पार्वती जी की तस्वीर रखें
  • तस्वीर के दाहिनी ओर एक घी का दीपक रखें।
  • अब आसन ग्रहण करें और आचमन लें। अपने बाएं हाथ से जल लें और दाएं हाथ में डालें और दोनों हाथों को शुद्ध करें।
  • अब आचमन से थोड़ा सा जल लें और ॐ अंबिकाय नमः बोलकर उसे ग्रहण करें।
  • एक बार पुनः आचमन से जल लें और ॐ गौरियाय नमः बोलकर ग्रहण करें।
  • फिर से जल लें और ॐ शिवाय नमः बोलकर इसे ग्रहण करें।
  • इसके बाद फिर से दोनों हाथ धो लें। अब हाथ में फूल, सुपारी, अक्षत लेकर संकल्प लें कि मैं शुद्ध कर्म-धर्म से आपकी पूजा करने जा रही हूं। फिर भी यदि अज्ञानतावश कोई भूल हो तो क्षमा करें।
  • ऐसा बोलने के बाद हाथ में जो सुपारी, चावल, और फल है, वह भगवान के चरणों में छोड़ दें
  • इसके बाद पहले से रखा हुआ घी का दिया जला दें
  • अब मिट्टी या बेसन से बनी हुई छह गौर चौकी पर रखें।
  • यदि गौर ना बना पाएं तो आजकल बाज़ार में गणगौर चार्ट भी मिलता है, उसे आप दीवार पर लगा सकते हैं। यदि वह भी ना मिले तो बाज़ार में बनी-बनाई सजी हुई गुड़िया भी मिलती है, वह रख सकते हैं।
  • गौर पर अब हल्दी कुमकुम का छिड़काव करें। साथ ही अक्षत और फूल चढ़ाएं
  • अब गौरी को सिंदूर लगाएं, और वहीं से थोड़ा सा सिंदूर लेकर अपनी मांग में लगाएं और बोलें ॐ गौरी देव्याय नमः
  • अब अगरबत्ती दिखा कर गौर को मिठाई और फल चढ़ाएं
  • अब एक काग़ज़ लें। उसपर 16 कुमकुम के टीके, 16 मेंहदी के टीके और 16 काजल के टीके लगाएं।
  • एक कटोरी लें। उसमें पानी, दूध, सिक्का, कौड़ी और सुपारी डालें।
  • उस कटोरी को हाथ में रखें और अपनी किसी सखी से गणगौर की पावन कथा सुनें।
  • कथा समाप्त होने के बाद यह कटोरी गौर माता के सामने रखें और उन्हें प्रणाम करें। साथ ही अपने सुहाग को अटल रखने के लिए प्रार्थना करें।
  • अगले दिन सुबह प्रसाद ग्रहण करें और गणगौर के व्रत का पारण करें

तो भक्तों, ये थी गणगौर की पूजा विधि। हमारी कामना है कि आपका यह व्रत सफल हो। सभी विवाहित स्त्रियों का सुहाग अचल रहे, और कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिले।

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Published by Sri Mandir·February 24, 2025

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