गोपाष्टमी 2025: जानें गोपाष्टमी कब है, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि। गौ माता की पूजा कर पाएं उनके आशीर्वाद से सुख-समृद्धि।
गोपाष्टमी महोत्सव गोवर्धन पर्वत से जुड़ा है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है, यह मथुरा, वृंदावन और अन्य ब्रज क्षेत्रों में प्रसिद्ध त्योहार है।
गोपाष्टमी हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और गौ-पूजन से जुड़ा त्योहार है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन से भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार गौ-चारण लीला आरंभ की थी - अर्थात गायों को चराने का दायित्व अपने हाथों में लिया था। इसलिए यह दिन गाय और ग्वालों (गोपों) के सम्मान में “गोपाष्टमी” कहलाता है।
इस दिन गायों को स्नान कराकर फूल-मालाओं, हल्दी, चंदन और रंगोली से सजाया जाता है। उनके सींगों पर रंग लगाए जाते हैं और उनकी आरती उतारकर पूजा की जाती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गाय में सभी देवी-देवताओं का वास माना गया है। जब श्रीकृष्ण बड़े हुए और उन्हें गौ-चारण की अनुमति मिली, तो ब्रजवासियों ने इस अवसर को उत्सव के रूप में मनाया। तभी से गोपाष्टमी का पर्व गौमाता और गोपालक श्रीकृष्ण के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए मनाया जाता है।
इस दिन भक्तजन गायों को भोजन कराते हैं, गौशालाओं में सेवा करते हैं और भगवान श्रीकृष्ण तथा बलराम की पूजा करते हैं। यह दिन गौसेवा और धर्म पालन का प्रतीक माना जाता है।
गौमाता की कृपा प्राप्ति
कृष्ण भक्ति का प्रतीक
गौसेवा का विशेष पुण्य
पितरों की तृप्ति
धन और सौभाग्य की वृद्धि
गोपाष्टमी के दिन गौमाता (गाय) और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। यह दिन गौ-सेवा और श्रीकृष्ण भक्ति का प्रतीक माना जाता है। हिंदू धर्मग्रंथों में कहा गया है कि “गावो विश्वस्य मातरः” — अर्थात गाय संपूर्ण जगत की माता हैं। इसलिए इस दिन गायों के साथ-साथ भगवान श्रीकृष्ण के गोपाल रूप की भी आराधना की जाती है।
गोपाष्टमी पूजा से प्राप्त होता है
पूजन का शुभ समय चुनें
पूजा की तैयारी करें
पूजन सामग्री
पूजा विधि
आरती और पूजन
आरती के दौरान निम्न मंत्र बोलें
“नमो अस्तु नित्यं नमतः सुरभ्यै, नमो नमः शम्भवमर्दनाय। नमो नमः गोकुलसंवर्धिन्यै, नमो नमः श्रीकृष्णप्रियायै।”
विशेष मान्यता
गोपाष्टमी का दिन गौमाता और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्ति का विशेष अवसर माना जाता है। इस दिन सच्चे भाव से की गई पूजा और सेवा से अनेक दिव्य फल प्राप्त होते हैं
सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति
संतान और आरोग्य लाभ
पितृ शांति और पाप मुक्ति
कृष्ण कृपा और भक्ति का आशीर्वाद
दीर्घायु और परिवारिक सुख
गोपाष्टमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि जीवन में शुभता और पवित्रता लाने वाला अनुष्ठान है। इस दिन कुछ विशेष उपाय करने से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं
गौसेवा का उपाय
गौदान या गौशाला दान
गाय के गोबर या मूत्र से घर शुद्ध करें
गाय की परिक्रमा करें
भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करें
भगवान श्री कृष्ण ने जब छठे वर्ष की आयु में प्रवेश किया तब एक दिन भगवान माता यशोदा से बोले- मैय्या अब हम बड़े हो गए हैं।
मैय्या यशोदा ने कहा- अच्छा लल्ला अब तुम बड़े हो गए हो तो बताओ अब क्या करें? श्री कृष्ण जी ने कहा- अब हम बछड़े चराने नहीं जाएंगे, अब हम गाय चराएंगे।.
मैय्या यशोदा ने कहा- ठीक है बाबा से पूछ लेना। मैय्या के इतना कहते ही झट से कृष्ण जी नंद बाबा से पूछने पहुंच गए, नंद बाबा ने कहा- लाला अभी तुम बहुत छोटे हो अभी तुम बछड़े ही चराओ, श्री कृष्ण जी ने कहा- बाबा अब मैं बछड़े नहीं गाय ही चराऊंगा।
जब भगवान नहीं माने तब बाबा बोले- ठीक है लाल तुम पंडित जी को बुला लाओ, वह गौ चारण का मुहूर्त देख कर बता देंगे।
बाबा की बात सुनकर भगवान कृष्ण झट से पंडित जी के पास पहुंचे और बोले- पंडित जी आपको बाबा ने बुलाया है, गौ चारण का मुहूर्त देखना है, आप आज ही का मुहूर्त बता देना मैं आपको बहुत सारा माखन दूंगा।
पंडित जी नंद बाबा के पास पहुंचे और बार-बार पंचांग देख कर गणना करने लगे तब नंद बाबा ने पूछा, पंडित जी क्या बात है? आप बार बार क्या गिन रहे हैं? पंडित जी बोले, क्या बताएं नंदबाबा जी केवल आज का ही मुहूर्त निकल रहा है, इसके बाद तो एक वर्ष तक कोई मुहूर्त नहीं है, पंडित जी की बात सुन कर नंदबाबा ने भगवान को गौ चारण की स्वीकृति दे दी। भगवान जिस समय कोई कार्य करें वही शुभ मुहूर्त बन जाता है उसी दिन भगवान ने गौ चारण आरंभ किया और वह शुभ तिथि थी कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष अष्टमी, भगवान के गौ-चारण आरंभ करने के कारण यह तिथि गोपाष्टमी कहलाई।।
माता यशोदा ने अपने लल्ला का श्रृंगार किया और जैसे ही पैरों में जूतियां पहनाने लगी तो लल्ला ने मना कर दिया और बोले मैय्या यदि मेरी गौएं जूतियां नहीं पहनती तो मैं कैसे पहन सकता हूं। यदि पहना सकती हो तो उन सभी को भी जूतियां पहना दो। बता दें भगवान कृष्ण जब तक वृंदावन में रहे, उन्होंने कभी पैरों में जूतियां नहीं पहनी। आगे-आगे गाय और उनके पीछे बांसुरी बजाते भगवान कृष्ण जी, उनके पीछे बलराम और श्री कृष्ण के यश का गान करते हुए ग्वाल-गोपाल चल दिए। इस प्रकार से विहार करते हुए भगवान कृष्ण जी ने उस वन में प्रवेश किया तब से भगवान की गौ-चारण लीला का आरंभ हुआ।
जब भगवान कृष्ण गौएं चराते हुए वृंदावन जाते तब उनके चरणों से वृंदावन की भूमि अत्यंत पावन हो जाती, वह वन गौओं के लिए हरी भरी घास से युक्त एवं रंग-बिरंगे पुष्पों की खान बन गया था।
तो यह थी गोपाष्टमी की सम्पूर्ण जानकारी, ऐसी ही व्रत, पर्व, त्यौहार से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर के साथ। धन्यवाद!
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