गोवर्धन पूजा | Govardhan Puja Kab Hai, Shubh Muhurat, Puja Vidhi, Labh

गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पूजा कब है? जानें पूजा के सही समय और विधि के साथ कैसे प्राप्त करें भगवान कृष्ण का आशीर्वाद और जीवन में उन्नति।


गोवर्धन क्यों मनाया जाता है?

त्योहारों के देश कहे जाने वाले भारत में हर त्यौहार का अलग महत्व और रंग है। पूरे भारत देश में सभी त्योहारों को बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। वेदों के अनुसार गोवर्धन पूजा का हिन्दू धर्म में काफी महत्व है। यह त्यौहार कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। जिस प्रकार से हिन्दू धर्म में दिवाली का त्यौहार बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है उसी प्रकार से ही गोवर्धन पूजा 2024 को भी बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। दिवाली का त्यौहार पांच दिनों तक मनाया जाता हैं। गोवर्धन पूजा वाले दिन मंदिरों में अन्नकूट का भोग लगाया जाता है, जिसे भक्तों में बांटा जाता है। इस वर्ष दिवाली 31 अक्टूबर 2024 को है और गोवर्धन पूजा 02 नवंबर 2024 को है। इस दिन गौ माता के साथ भगवान श्री कृष्ण की भी पूजा का विधान है। इस दिन मंदिरो में अन्नकूट बाँटा जाता है, इसलिए इस दिन को अन्नकूट दिवस भी कहते है। इस दिन लोग बड़ी दूर दूर से मथुरा में यहाँ गोवर्धन के परिक्रमा करने के लिए भी आते है।

भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों के लिए यह पूजा काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे मनाने की शुरूआत उनके द्वारा रची गई लीला के साथ ही हुई थी। भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा पर उठाकर इंद्रदेव के प्रकोप से सभी बृजवासियों की रक्षा की थी। तब से ही यह पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई, इसलिए इस दिन को श्रीकृष्ण की भक्ति और आराधना करने के लिए विशेष माना गया है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। इस दिन गेहूँ, चावल जैसे अनाज, बेसन से बनी कढ़ी और पत्ते वाली सब्जियों से बने भोजन को पकाया जाता है और भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाता है।

गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त

  • हिन्दू कैलेंडर के अनुसार दीपावली के अगले दिन अर्थात कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा की जाती है।
  • गोवर्धन पूजा 02 नवंबर, शनिवार को मनाई जाएगी।
  • इस साल प्रतिपदा तिथि 01 नवम्बर, शुक्रवार को शाम 06:16 से प्रारम्भ होगी और 02 नवम्बर, शनिवार 08:21 बजे समाप्त होगी।
  • इस बार प्रातःकाल गोवर्धन पूजा का प्रातःकाल मुहूर्त सुबह 06:06 से सुबह 08:20 तक रहेगा।
  • गोवर्धन पूजा सायंकाल मुहूर्त 03:02 PM से 05:16 PM तक रहेगा।

गोवर्धन पूजा का महत्व

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन की जाने वाली गोर्वधन पूजा कई मायनों में ख़ास है। भगवान श्री कृष्ण की पूजा के साथ साथ गोवर्धन पूजा के और भी कई महत्व है। चलिए इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि इस पूजा का क्या महत्व है, और इस पूजा को करने से आपको क्या लाभ मिलेंगे-

गौ माता के प्रति कृतज्ञता

हमारे सनातन धर्म की यह खूबसूरती है कि इसमें प्रकृति और यहां तक कि पशुओं को भी पूजनीय स्थान दिया गया है। जिस प्रकार नदियों में गंगा को अत्यंत पवित्र माना जाता है उसी प्रकार पशुओं में गाय को हमारे धर्म में एक विशेष स्थान प्राप्त है। पूजनीय होने के साथ, गाय के साथ ‘माता’ जोड़कर, उन्हें माँ के समान भी माना गया है। गोवर्धन पूजा गौ माता के प्रति कृतज्ञता एवं आभार व्यक्त करने के लिए भी विशेष दिन है, क्योंकि इस पूजा में गाय के गोबर का ही प्रयोग होता है। हमारे शास्त्र हमें बताते हैं कि श्रीकृष्ण को भी गायों से अत्यंत प्रेम था और उनके दूध से बनी चीज़ों को भी वह बड़े चाव से खाते थे।

प्रकृति के प्रति आभार

गोवर्धन पर्व का नाम गोवर्धन पर्वत के नाम पर पड़ा था। भगवान श्रीकृष्ण ने सभी बृजवासियों को यह बताया था कि पर्वत पर ही अन्न और अन्य वनस्पति की उपज होती है, इसलिए यह भी पूजनीय है। एक प्रकार से यह पर्व प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का भी माध्यम है और इससे इसकी महत्ता अधिक बढ़ जाती है।

आपको बता दें, मथुरा और गोकुल में कई भक्त इस दिन गोवर्धन पर्वत के चारों ओर ग्यारह मील मार्ग की 'परिक्रमा' करने के लिए एकत्रित होते हैं, और वहां स्थित कई मंदिरों में फूलों की प्रस्तुति करने के बाद पहाड़ को भोजन प्रस्तुत करते हैं। अन्नकूट, जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, भोजन का पहाड़ होता है। इसकी तैयारी गोवर्धन उत्सव का एक महत्वपूर्ण भाग है।

महाराष्ट्र में यह दिन बलि प्रतिपदा या बलि पड़वा के रूप में मनाया जाता है। वामन जो कि भगवान विष्णु के एक अवतार है, उनकी राजा बलि पर विजय और बाद में बलि को पाताल लोक भेजने के कारण इस दिन उनका पुण्यस्मरण किया जाता है। यह माना जाता है कि भगवान वामन द्वारा दिए गए वरदान के कारण असुर राजा बलि इस दिन पातल लोक से पृथ्वी लोक आते हैं।

पूजा करने के लाभ

  • इस पूजा को पूरी श्रद्धा से करने वालों को भगवान श्रीकृष्ण का आशीष प्राप्त होता है, साथ ही गौमाता भी इस पूजा से प्रसन्न होती हैं।
  • यह पर्व भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि की सौगात लेकर आता है।
  • इस पूजा को करने से और भगवान श्री कृष्ण को अन्नकूट अर्पित करने से घर में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती है।
  • इस पूजा से जातक और उसके परिवारजनों को अच्छी सेहत और लंबी आयु का उपहार भी मिलता है।
  • यह पूजा घर में सकारात्मक ऊर्जा लेकर आती है।

गोवर्धन पूजा विधि

  • गोवर्धन पूजा के दिन प्रातः काल जल्दी उठें, नित्यकर्मों से निवृत्त होने के बाद शरीर पर तेल उबटन लगाकर स्नानादि करें।
  • अपने गाय और बछड़े को लाल-पीले रंग, मोरपंख आदि से सजाएं। इनके सींग पर तेल व गेरू का लेप लगाएं।
  • फिर शुभ मुहूर्त में (श्री मंदिर पर उपलब्ध) गाय के गोबर से गिरिराज गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएं।
  • अपने मवेशियों जैसे कि गाय, बछड़े आदि की आकृति भी बनाएं।
  • इन गोवर्धन देवता को अपामार्ग (चिरचिटा) अवश्य अर्पित करें।
  • इसके बाद पंचोपचार से इन आकृतियों की और गायों की विधिवत पूजा करें।
  • पूजा के बाद गोवर्धनजी को आभार व्यक्त करते हुए उनकी सात परिक्रमाएँ लगाएं।
  • परिक्रमा के समय घर का एक सदस्य हाथ में तांबे का कलश लेकर पानी की धारा गिराता हुआ चलता है, और उसके पीछे दूसरा सदस्य जौ के बीज बोते हुए यह परिक्रमा पूरी करता है।
  • इस पूजा स्थल के पास नैवेद्य, जल, फल, खील, बताशे आदि को भोग के रूप में रखें।
  • अब गायों को घर में बने भोग का प्रथम अंश खिलाएं। यदि आपके घर में गाय नहीं हैं, तो किसी भी अन्य गाय या बछड़े को यह भोग अवश्य लगाएं।
  • इसके बाद अपने घर के पूजाघर में भगवान कृष्ण की पूजा करें।
  • श्री कृष्ण की प्रतिमा को दूध, दही और गंगाजल से स्नान कराएं और पुष्प, कुमकुम-हल्दी, चन्दन अक्षत आदि से उनका पूजन करें।
  • अब भगवान कृष्ण को षोडशोपचार की सामग्री अर्पित करें।
  • इसके बाद भगवान कृष्ण को अन्न से बने गोवर्धन पर्वत अर्थात अन्नकूट का भोग लगाएं।
  • अब भगवान से आने वाले समय में घटने वाली विषम आपदाओं से आपकी रक्षा करने की प्रार्थना करें।

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