महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त 2025
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महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त 2025

महाशिवरात्रि शुभ मुहूर्त 2025: इस महाशिवरात्रि पर शिव जी की पूजा का सही समय! जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि से कैसे पाएं आशीर्वाद।

महाशिवरात्रि के बारे में

महाशिवरात्रि भगवान शिव की उपासना का परम पर्व है, जिसे फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन शिव भक्त उपवास रखते हैं, रात्रि जागरण करते हैं और "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करते हैं। शिवलिंग का जल, दूध, बेलपत्र और धतूरा से अभिषेक किया जाता है। यह पर्व आध्यात्मिक शक्ति, भक्ति और मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक है।

महाशिवरात्रि 2025

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

यह है भगवान शिवशंकर को समर्पित शिव गायत्री मन्त्र! जिसका जाप करने मात्र से ही मनुष्य को ज्ञान, बुद्धि और परम शान्ति के साथ ही भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

भगवान शिव से शक्ति के मिलन की तिथि महाशिवरात्रि आने को है। इस दिन महादेव के भक्तों का उल्लास कैलाश की चोटी के समान चरम पर होता है। तो आइए इस शुभ अवसर पर जानते हैं कि इस वर्ष महाशिवरात्रि कब मनाई जाएगी।

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। महा शिवरात्रि के दिन भक्त ‘कठिन व्रत’ और चारों प्रहर में भगवान शिव की ‘विशेष पूजा’ करते हैं।

महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त 2025

  • वर्ष 2025 में महाशिवरात्रि 26 फरवरी 2025, बुधवार को मनाई जाएगी।
  • चतुर्दशी तिथि 26 फरवरी 2025, बुधवार को 11:08 AM पर प्रारंभ होगी।
  • चतुर्दशी तिथि का समापन 27 फरवरी 2025, गुरुवार को 08:54 AM पर होगा।

आपके शहर में महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त

महाशिवरात्रि का महापर्व आने वाला है। इसी क्रम में हम लेकर आए हैं अलग-अलग शहरों के अनुसार इस दिन का शुभ मुहूर्त। आइये, शुरुआत करते हैं महाराष्ट्र के पुणे से -

पुणे

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:39 PM से 09:43 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:43 PM से 12:47 AM, (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:47 AM से 03:51 AM, (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:51 AM से 06:55 AM, (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 27 फरवरी, 12:23 AM से 01:12 AM
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:55 AM से 08:54 AM

नई दिल्ली

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:19 PM से 09:26 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:26 PM से 12:34 AM, (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:34 AM से 03:41 AM, (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:41 AM से 06:48 AM, (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:09 AM से 12:59 AM, (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:48 AM से 08:54 AM

चेन्नई

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:17 PM से 09:20 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:20 PM से 12:22 AM, (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:22 AM से 03:24 AM, (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:24 AM से 06:26 AM, (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 11:57 PM से 12:46 AM, (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:26 AM से 08:54 PM

जयपुर

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:26 PM से 09:33 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:33 PM से 12:39 AM, (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:39 AM से 03:46 AM, (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:46 AM से 06:53 AM, (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:15 AM से 01:04 AM, (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:53 AM से 08:54 AM

हैदराबाद

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:22 PM से 09:25 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:25 PM से 12:29 AM, (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:29 AM से 03:32 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:32 AM से 06:36 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:04 AM से 12:53 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:36 AM से 08:54 AM

गुरुग्राम

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:20 PM से 09:27 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:27 PM से 12:34 AM, (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:34 AM से 03:42 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:42 AM से 06:49 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:09 AM से 12:59 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:49 AM से 08:54 AM

चण्डीगढ़

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:19 PM से 09:27 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:27 PM से 12:35 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:35 AM से 03:43 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:43 AM से 06:52 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:10 AM से 01:00 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:52 AM से 08:54 AM

कोलकाता

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 05:39 PM से 08:44 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 08:44 PM से 11:49 PM
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 11:49 PM से 02:54 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 02:54 AM से 06:00 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 11:24 PM से 12:14 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को, शिवरात्रि पारण समय - 06:00 AM से 08:54 AM

मुम्बई

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:43 PM से 09:47 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:47 PM से 12:51 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:51 AM से 03:55 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:55 AM से 06:59 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:27 AM से 01:16 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:59 AM से 08:54 AM

बेंगलूरु

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:28 PM से 09:30 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:30 PM से 12:32 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:32 AM से 03:34 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:34 AM से 06:37 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:08 AM से 12:57 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:59 AM से 08:54 AM

अहमदाबाद

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:42 PM से 09:47 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:47 PM से 12:52 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:52 AM से 03:58 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:58 AM से 07:03 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:28 AM से 01:17 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 07:03 AM से 08:54 AM

नोएडा

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:18 PM से 09:26 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:26 PM से 12:33 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:33 AM से 03:40 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:40 AM से 06:48 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:08 AM से 12:58 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:48 AM से 08:54 AM

लखनऊ

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:06 PM से 09:12 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:12 PM से 12:19 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:19 AM से 03:26 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:26 AM से 06:32 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 11:54 PM से 12:44 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:32 AM से 08:54 AM

पटना

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 05:50 PM से 08:56 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 08:56 PM से 12:02 AM
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:02 AM से 03:08 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:08 AM से 06:14 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 11:37 PM से 12:27 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:14 AM से 08:54 AM

इंदौर

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:29 PM से 09:34 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:34 PM से 12:39 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:39 AM से 03:44 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:44 AM से 06:50 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:15 AM से 01:04 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:50 AM से 08:54 AM

लुधिआना

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:23 PM से 09:31 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:31 PM से 12:39 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:39 AM से 03:47 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:47 AM से 06:55 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:14 AM से 01:04 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:55 AM से 08:54 AM

रोहतक

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:21 PM से 09:29 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:29 PM से 12:36 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:36 AM से 03:44 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:44 AM से 06:51 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:11 AM से 01:01 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:51 AM से 08:54 AM

रांची

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 05:50 PM से 08:56 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 08:56 PM से 12:01 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:01 AM से 03:07 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:07 AM से 06:12 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 11:37 PM से 12:26 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:12 AM से 08:54 AM

हिसार

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:25 PM से 09:32 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:32 PM से 12:40 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:40 AM से 03:47 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:47 AM से 06:55 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:15 AM से 01:05 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:55 AM से 08:54 AM

गुवाहाटी

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 05:23 PM से 08:29 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 08:29 PM से 11:36 PM
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 11:36 PM से 02:42 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 02:42 AM से 05:48 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 11:11 PM से 12:00 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 05:48 AM से 08:54 AM

मोहाली

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:19 PM से 09:28 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:28 PM से 12:36 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:36 AM से 03:44 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:44 AM से 06:52 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:11 AM से 01:01 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:52 AM से 08:54 AM

कानपुर

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:08 PM से 09:15 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:15 PM से 12:21 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:21 AM से 03:28 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:28 AM से 06:34 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 11:56 PM से 12:46 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:34 AM से 08:54 AM

भुवनेश्वर

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 05:50 PM से 08:55 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 08:55 PM से 11:59 PM
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 11:59 PM से 03:04 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:04 AM से 06:08 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 11:35 PM से 12:24 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:08 AM से 08:54 AM

करनाल

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:19 PM से 09:27 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:27 PM से 12:35 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:35 AM से 03:42 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:42 AM से 06:50 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:10 AM से 01:00 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:50 AM से 08:54 AM

शिमला

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:17 PM से 09:26 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:26 PM से 12:34 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:34 AM से 03:42 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:42 AM से 06:50 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:09 AM से 12:59 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:50 AM से 08:54 AM

सूरत

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:42 PM से 09:47 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:47 PM से 12:51 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:51 AM से 03:56 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:56 AM से 07:01 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:27 AM से 01:16 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 07:01 AM से 08:54 AM

जोधपुर

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:38 PM से 09:44 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:44 PM से 12:51 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:51 AM से 03:57 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:57 AM से 07:03 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:26 AM से 01:15 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 07:03 AM से 08:54 AM

नागपुर

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:17 PM से 09:22 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:22 PM से 12:26 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:26 AM से 03:31 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:31 AM से 06:36 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:02 AM से 12:51 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:36 AM से 08:54 AM

भोपाल

चारों प्रहर की पूजा के मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:22 PM से 09:28 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:28 PM से 12:33 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:33 AM से 03:38 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:38 AM से 06:44 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:08 AM से 12:58 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:44 AM से 08:54 PM

उज्जैन

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:29 PM से 09:34 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:34 PM से 12:39 AM, (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:39 AM से 03:45 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:45 AM से 06:50 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 12:15 AM से 01:04 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:50 AM से 08:54 AM

वाराणसी

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 05:58 PM से 09:04 PM
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:04 PM से 12:11 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:11 AM से 03:17 AM (27 फरवरी)
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:17 AM से 06:23 AM (27 फरवरी)
  • निशिता काल पूजा समय - 11:46 PM से 12:35 AM (27 फरवरी)
  • 27 फरवरी को शिवरात्रि पारण समय - 06:23 AM से 08:54 AM

महाशिवरात्रि के दिन महाभिषेक का क्या है महत्व

महा शिवरात्रि महादेव की भक्ति करने का विशेष अवसर माना जाता है, इसीलिए इस दिन भक्त भगवान भोलेनाथ के समर्पण में हर संभव प्रयास करके उनको प्रसन्न करते हैं। भक्तों के इन्हीं प्रयासों में से एक हैं शिवलिंग पर किया गया महाभिषेक!

भगवान शिव को महाभिषेक बहुत प्रिय होता है, इसलिए इस दिन शिवलिंग पर किये गए महाभिषेक को बहुत लाभप्रद माना जाता है। तो भक्तों आज हम शिवजी को समर्पित महाभिषेक के बारे में विस्तार से जानेंगे।

सबसे पहले जानते हैं कि महाभिषेक का अर्थ क्या होता है

अभिषेक एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है, शरीर की शुद्धि के लिए कराया गया स्नान। इस शुद्धि स्नान के लिए शुद्ध जल, पंचगव्य, पञ्चामृत, शहद, दूध, गंगाजल आदि सामग्रियों का उपयोग किया जाता है। भक्तजन महा शिवरात्रि पर शिव मंत्रों का जाप करते हुए भोलेनाथ के शिवलिंग स्वरूप का अभिषेक करते हैं, जिसे महाभिषेक या रुद्राभिषेक भी कहा जाता है।

आइये अब इसके महत्व के बारे में जानते हैं

  • महा शिवरात्रि शिव और पार्वती के मिलन की पावन बेला है। इन पावन क्षणों में शिव और शक्ति के सम्मिलित स्वरूप शिवलिंग की ऊर्जा सबसे चरम पर होती है। इस ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए शिवलिंग पर जल और अन्य पवित्र तरल को अर्पित करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

  • सनातन धर्म में एक पौराणिक मान्यता यह कहती है कि जब समुद्र मंथन हुआ, तब समुद्र में से समस्त संसार को नष्ट करने की शक्ति रखने वाला हलाहल भी प्रकट हुआ। तब भोले शंकर ने इस सृष्टि को उस विष की ज्वाला से बचाने के लिए हलाहल को अपने कंठ में धारण कर लिया। परंतु उस विष की ज्वाला इतनी घातक थी कि शिवजी के लिए भी वो असहनीय थी। इसीलिए उस पीड़ा को कम करने के लिए भक्त महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर महाभिषेक करते हैं, जिससे भक्तों के प्रिय भोले बाबा को थोड़ी शीतलता मिल सकें।

  • शिव - जितना सरल यह नाम है, उससे भी कई ज्यादा सरल स्वयं शिव है। अपने भक्तों की आस्था को शिव भलीभांति जानते हैं, और जो भी भक्त सच्चे मन से इस दिन रुद्राभिषेक करते हैं, भगवान शंकर उनकी हर मनोकामना को पूरा करते हैं और जीवन की हर विषम परिस्थितियों से उनकी रक्षा करते हैं।

  • भगवान शिव का एक नाम अनंत भी है और शिवलिंग उसी अनंत को दर्शाता है। शिवलिंग पर किया गया रुद्राभिषेक भक्तों को अनंत शुभफल प्रदान करने वाला होता है। यदि कोई भी जातक किसी भी अज्ञात विपरीत ग्रह दशा से पीड़ित है तो उसे महा शिवरात्रि के दिन महाभिषेक अवश्य करना चाहिए। इससे भगवान शिव जातक को उनकी कुंडली में आ रही हर तरह की बाधाओं से मुक्त करते हैं।

  • भक्तों! शिवरात्रि पर रुद्राभिषेक करने से मनुष्य के जीवन में सुख और शांति का वास होता है। साथ ही रुद्राभिषेक के समय किये गए मंत्रों के उच्चारण से उत्पन्न हुई ध्वनि आपके आसपास के वातावरण में सकारात्मकता बढ़ाती है।

  • महा शिवरात्रि पर रूद्राभिषेक करने से पारिवारिक क्लेश खत्म होता है और यदि घर में किसी भी सदस्य को स्वास्थ्य से संबंधित पीड़ा का लगातार सामना करना पड़ रहा है तो उस सदस्य के नाम से महाभिषेक अवश्य करवाएं। भोले बाबा उनके सभी कष्टों को हरकर उन्हें लंबी आयु का आशीर्वाद देंगे।

दोस्तों! महा शिवरात्रि पर किये जाने वाले महाभिषेक की महत्ता और लाभ असीमित है। महाभिषेक की सम्पूर्ण सामग्री, पंचामृत अभिषेक, जलाभिषेक आदि के बारे में श्री मंदिर पर आपके लिए विशेष वीडिओ एवं लेख उपलब्ध हैं। इनका लाभ अवश्य उठाएं।

आइए इस महा शिवरात्रि को साथ मिलकर शिवमय मनाएं! बोलो हर हर महादेव

शिव के सिर पर क्यों विराजमान है चंद्रमा

दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 नक्षत्र कन्याओं का विवाह चंद्र के साथ किया था। चंद्र इनमें से सिर्फ रोहिणी को ही अधिक प्रेम करते थे और रोहिणी बहुत खूबसूरत थीं। लेकिन अन्य कन्याओं ने अपने पिता से चंद्र की शिकायत की और दक्ष से अपना दु:ख प्रकट किया।

दक्ष स्वभाव से ही क्रोधी प्रवृत्ति के थे और दक्ष ने क्रोध में आकर चंद्र को श्राप दिया कि तुम क्षय रोग से ग्रस्त हो जाओगे। इसके बाद चंद्र का शरीर धीरे धीरे क्षय रोग से ग्रसित होने लगा और उनकी कलाएं क्षीण होना प्रारंभ हो गईं। तब नारदजी ने उन्हें शिव की आराधना करने के लिए कहा। तत्पश्चात उन्होंने भगवान शिव की आराधना करना शुरू की। जब चंद्र की अंतिम सांसें चल रही थी तब प्रदोष काल में शिव ने चंद्र को अपने सिर पर धारण करके उन्हें पुनर्जीवन प्रदान किया और क्षय रोग से उनकी रक्षा की।

भगवान शिव ने चंद्र देव से कहा की यह श्राप वापस तो नहीं लिया जा सकता परन्तु बिना चंद्र के पृथ्वी का संतुलन बिगड़ जायेगा क्यूंकि बिना चंद्र की रौशनी के रात्रि का कोई अर्थ नहीं रहेगा। चंद्र को वरदान देते हुए भगवान शिव ने चंद्र से यह कहा कि कृष्ण पक्ष पर आपका आकार घटेगा और शुक्ल पक्ष पर आपका आकार बढ़ेगा। जिससे किसी को भी आपके अभिशाप और वरदान से दिक्कत नहीं होगी।

फिर पुन: धीरे-धीरे चंद्र स्वस्थ होने लगे और पूर्णमासी पर पूर्ण चंद्र के रूप में प्रकट हुए। चंद्र क्षय रोग से पीड़ित होकर मृत्यु के दोषों को भोग रहे थे। भगवान ने उस दोष का निवारण कर उन्हें पुन:जीवन प्रदान किया। तभी से चंद्रमा शिव के सिर पर विराजमान हैं।

शिवजी का नाम नीलकंठ कैसे पड़ा

हिंदू धर्म के प्रमुख देवों में से देवों के देव महादेव को अलग-अलग नामों से पहचाना जाता है। उनके हर नाम का एक अलग महत्व और मतलब है। इन सभी नामों में से उनका एक नाम नील कंठ भी है। लेकिन क्या आप जानते है कि उनका यह नाम कैसे पड़ा और उनके इस नाम के पीछे की कहानी क्या है।

पुराणों के अनुसार जब क्षीर सागर से समुद्र मंथन हुआ था। तब देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत को लेकर युद्ध हो गया था। राक्षसों ने समुद्र मंथन से निकलने वाले अमृत को लेने के लिए देवताओं के साथ भयंकर युद्ध किया। जिसमें देवताओं ने अपनी चतुराई दिखाई और अमृत को प्राप्त कर लिया। लेकिन समुद्र मंथन से केवल अमृत ही नहीं निकला, उसके साथ लक्ष्मी, शंख, कौस्तुभ मणि, ऐरावत, पारिजात, उच्चैःश्रवा, कामधेनु, कालकूट, रम्भा नामक अप्सरा, वारुणी मदिरा, चन्द्रमा, धन्वन्तरि, अमृत और कल्पवृक्ष ये 14 रत्न भी निकले थे और साथ में विष भी निकला था।

यह विष इतना खतरनाक था कि इसकी एक बूंद पूरे संसार को खत्म करने की शक्ति रखती थी। इस बात को जानकर सभी देवी देवता भयभीत हो गए और इसका हल ढूंढने शिव जी के पास पहुंचे।

भगवान शिव ने इसका एक हल निकाला कि विष का पूरा घड़ा वो खुद पिएंगे। शिव जी ने वो घड़ा उठाया और देखते ही देखते पूरा पी गए, लेकिन उन्होंने ये विष गले से नीचे निगला नहीं। उन्होंने इस विष को गले में ही पकड़कर रखा। इसी वजह से उनका कंठ नीला पड़ गया। जिसके कारण उनका नाम नीलकंठ पड़ा।

भगवान शिव अपने शरीर पर भस्म क्यों लगाते है?

भगवान शिव को भस्म चढ़ती है, यह सभी जानते है। उज्जैन के महाकाल मंदिर में इसका एक सटीक उदाहरण है सुबह की भस्म आरती। जिसमें महाकाल को भस्म चढ़ाकर आरती की जाती है। लेकिन क्या आप जानते है कि महादेव के शरीर पर लगी भस्म के पीछे की कहानी क्या है?

जब माता सती अपने पति शिव के अपमान के चलते अपने पिता दक्ष द्वारा करवाएं जा रहे यज्ञ में कूदकर जलकर मर गई तो इस घटना से शिवजी बहुत आहत हो गए थे। उन्होंने राजा दक्ष का नाश करने के बाद उस जलती हुई अग्नि से अपनी पत्नी सती के शव को निकाला और क्रोधित, दुखी एवं बैचेन होकर प्रलाप करते हुए धरती पर भ्रमण करने लगे। जहां जहां माता सती के शरीर के अंग गिरे वहां वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए।

उनके इस दु:ख के कारण पूरी सृष्टि खतरे में पड़ गई, जिसके चलते भगवान विष्णु ने उनके शरीर को अपनी माया से सती को भस्म में परिवर्तित कर दिया। फिर भी शिव का प्रलाप और दु:ख नहीं मिटा तो शिव ने अपनी प्रिय की निशानी के तौर पर उस भस्म को अपने शरीर पर मल लिया। कहते हैं इसीलिए शिवजी भस्म धारण करते हैं।

इसी के साथ भगवान शिव द्वारा अपने शरीर पर भस्म लगाने को लेकर एक संदेश भी दिया है। कि हमारा यह शरीर नश्वर है और एक दिन इसी भस्म की तरह मिट्टी में विलिन हो जाएगा। अत: हमें इस नश्वर शरीर पर गर्व नहीं करना चाहिए। कोई व्यक्ति कितना भी सुंदर क्यों न हो, मृत्यु के बाद उसका शरीर इसी तरह भस्म बन जाएगा। अत: हमें किसी भी प्रकार का घमंड नहीं करना चाहिए।

भगवान शिव के गले पर विराजमान नाग का रहस्य

भगवान शिव देवों के देव महादेव है। उनके श्रृंगार की बात करें तो वो सबसे ही अलग है। आज हम बात करने जा रहे है महादेव द्वारा गले में धारण किए हुए नाग के रहस्य के बारे में।

शिवजी के गले में एक नाग हमेशा लिपटा होता है जिसे हम वासुकी भी कहते हैं। शिव पुराण के अनुसार नागलोक के राजा वासुकी शिवजी के परम भक्त थे और सागर मंथन के समय उन्होंने रस्सी का काम किया था, जिससे सागर मंथन किया गया था। लिहाजा, उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने अपने गले में आभूषण की तरह लिपटे रहने का वरदान दिया। इसी के साथ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शंकर और सर्प का जुड़ाव गहरा है, तभी तो वह उनके शरीर से लिपटे रहते है। कहते हैं कि अगर आपको भगवान शंकर के दर्शन ना हो और अगर सर्प के दर्शन हो जाएं तो समझ लिजिए कि साक्षात भगवान शंकर के ही दर्शन हो गए।

पुराणों के अनुसार सभी नागों की उत्पत्ति ऋषि कश्यप की पत्नि कद्रू के गर्भ से हुई है। कद्रू ने हजारों पुत्रों को जन्म दिया था। जिसमें प्रमुख नाग थे - अनंत, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख, पिंगला और कुलिक। कद्रू दक्ष प्रजापति की पुत्री थी। सावन के महीने में नाग पंचमी का त्योहार भी मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों में विशेष रूप से सांपों की पूजा की जाती है।

शिवजी की जटा में क्यों विराजमान है गंगा

हिंदू धर्म के सभी देवताओं में शिव का अग्रणी स्थान है। भगवान शिव को निराकार और क्रोध का देवता माना जाता है। अन्य देवताओं की अपेक्षा इनका रंग रुप, वेश भूषा और यहां तक कि सवारी भी काफी अलग है। लेकिन आज हम बात कर रहे हैं भोलेनाथ की जटा में विराजमान गंगा माँ के रहस्य के बारे में।

शिव पुराण के अनुसार भागीरथ नाम का एक प्रतापी राजा थे। उन्होंने अपने पूर्वजों को जीवन-मरण के दोष से मुक्त करने के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने की ठानी। उन्होंने कठोर तपस्या आरम्भ की। गंगा मैया उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न हुईं तथा स्वर्ग से पृथ्वी पर आने के लिए तैयार हो गईं। पर उन्होंने भागीरथ से कहा कि यदि वे सीधे स्वर्ग से पृथ्वी पर गिरेंगीं तो पृथ्वी उनका वेग सहन नहीं कर पाएगी और रसातल में चली जाएगी।

यह सुनकर भागीरथ सोच में पड़ गए। गंगा को यह अभिमान था कि कोई उसका वेग सहन नहीं कर सकता। तब उन्होंने भगवान शिवजी की आराधना शुरू की। कुछ समय बाद भोलेनाथ अपने भक्त की भक्ति को देखकर अति प्रसन्न होकर भागीरथ के सामने प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। तब भागीरथ ने महादेव को अपनी कहानी सुनाई। भक्त की कहानी सुनकर महादेव ने कहा कि भक्त तुम्हारी यह इच्छा मैं पूरी करूंगा।

जिसके बाद भगवान शिव की बात सुनकर भागीरथ बहुत प्रसन्न हुए और गंगा मैया प्रकट हुई। भगवान शिव ने गंगा माँ से कहा कि आपके पृथ्वी पर गिरने के पहले मैं आपको अपनी जटाओं में समा लूंगा जिसके कारण आपका प्रवाह कम हो जायेगा और पृथ्वी पर प्रलय नहीं आएगी।

शिवजी की बात सुनकर गंगा मैया सीधे शिवजी की जटा पर गिरी और शिवजी ने गंगा मैया को अपनी जटा में धारण कर लिया और धारा को एक छोटे से पोखर में छोड़ दिया, जिससे सात धाराएं निकली जो पूरे भारत वर्ष में गंगा माँ नाम से पहचानी गई। गंगा के धरती पर प्रवाह करने से भागीरथ के पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति हुई और तब से भगवान शिव की जटा में गंगा मैया विराजमान है।

रावण की भक्ति और गणपति की बुद्धि

रावण एक महान शिव भक्त था और वह भारत के दक्षिण में स्थित अपने राज्य में शिव की पूजा करता था। एक बार की बात है जब रावण के मन में ख्याल आया कि, “क्यों न मैं कैलाश को अपने घर के पास ले आऊं।” इसलिए भक्ति-भाव से वह लंका से चलकर कैलाश तक गया और कैलाश पर्वत को उठाने लगा। जब शिवजी और माता पार्वती ने देखा की रावण कैलाश पर्वत ले जाना चाहता है तब पार्वती माता रावण के इस अहंकारी कार्य से क्रोधित हो गईं और उन्होंने शिव जी से कहा कि, “चाहे वह आपको कितना भी प्रिय क्यों न हो, आप उसे कैलाश को नहीं ले जाने दे सकते हैं।” शिव जी भी रावण के अहंकारी स्वभाव से नाराज थे, इसलिए उन्होंने पर्वत को नीचे की ओर दबा दिया, जिससे रावण के हाथ कैलाश के नीचे फंस गए। रावण पीड़ा से कराहता रहा, लेकिन शिव ने उसे छोड़ने से मना कर दिया।

तब उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने उसे मुक्त कर दिया। रावण की साधना को देख शिवजी ने रावण को एक शक्तिशाली ज्योतिर्लिंग दिया। इसके बाद शिवजी ने रावण से कहा कि वह उस ज्योतिर्लिंग को अपने देश लेकर जाए। शिवजी ने रावण को चेतावनी देते हुए यह भी कहा की वह उसे जहां पर भी रख देगा, वह शिवलिंग वहीं हमेशा के लिए स्थापित हो जाएगा।

रावण बहुत सावधानी से, पूरी ताकत के साथ ज्योतिर्लिंग को उठा कर लंका की ओर चला गया। वह इतना बड़ा योगी था कि उसने हर पहलू पर ध्यान दिया – उसने खाना भी नहीं खाया और कोई ऐसा काम नहीं किया जो उसे ज्योतिर्लिंग नीचे रखने पर विवश कर देता। रावण ने पैदल ही इतनी लंबी यात्रा तय की थी कि वह कमजोरी महसूस करने लगा था और मूत्र त्याग करना चाहता था! लेकिन वह शिवलिंग को नीचे नहीं रख सकता था और अपने ऊपर शिवलिंग को रखे हुए वह यह कार्य नहीं कर सकता था, क्योंकि उसके अनुसार यह एक पाप होता।

कुछ दूर और चलने पर उसे एक बहुत प्यारा और मासूम सा लड़का दिखा जो एक चरवाहा था। वह लड़का बेहद सीधा दिख रहा था। इसलिए रावण ने लड़के से कहा कि, “जब तक मैं मूत्र त्याग करता हूँ, तब तक यदि तुम इस ज्योतिर्लिंग को अपने हाथ में रखे रहो, तो मैं तुम्हें एक रत्न दूंगा।

पर इसे नीचे मत रखना।” लड़का बोला, “ठीक है”। रावण ने शिवलिंग चरवाहे को दे दिया। रावण को यह बात नहीं पता थी कि वह लड़का असल में गणपति जी है जो नहीं चाहते थे कि रावण उस शिवलिंग को लंका ले कर जाए, क्योंकि ऐसा करने पर वह एक अति शक्तिशाली मनुष्य बन जाता। इसलिए गणपति जी ने तुरंत शिवलिंग को नीचे रख दिया और वह उसी क्षण धरती में धंस गया। जैसे ही रावण ने यह देखा कि उस बालक ने लिंग को नीचे रख दिया है- रावण इतना क्रोधित हुआ कि उसने लड़के के सिर पर प्रहार किया। इसलिए आपको कर्नाटक के गोकर्ण में मौजूद गणपति की मूर्ति के सिर पर एक गड्ढा मिलेगा। रावण के पास कैलाश वापस जाने और फिर से सारा काम करने की ताकत नहीं थी। इसलिए वह घोर निराशा और क्रोध के साथ श्रीलंका लौट गया।

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि आप अच्छे हो या बुरे, अगर आप इच्छुक हैं, तो ईश्वरीय कृपा हर किसी के लिए हमेशा उपलब्ध है। लेकिन आप ईश्वर की उस कृपा का अच्छा या बुरा प्रयोग करते हैं यह आपके अंदरूनी स्वभाव पर निर्भर करता है और वह स्वभाव आपके लिए अभिशाप या वरदान बन सकता है।

काली माँ ने क्यों रखा शिव जी पर पैर?

माँ काली की कुछ ऐसी तस्वीरें होती हैं, जिनमें वे शिव के ऊपर पाँव रखी हुई हैं । आइये जानते हैं शिव और काली की कहानी कि, काली मां ने क्यों रखा शिव जी के ऊपर पैर?

प्राचीन काल में राक्षस अपनी तपस्या के बल पर ऐसी शक्तियां प्राप्त कर लेते थे, जिनके सामने टिकना देवताओं के लिए भी मुश्किल हो जाता था। फिर राक्षस अपनी शक्तियों का प्रयोग करके आतंक और भय फैलाते थे और दुनिया पर राज करने लगते थे। ऐसी ही एक घटना रक्तबीज नाम के राक्षस ने की । रक्तबीज ने भगवान शिव को प्रसन्न किया और बड़ी तपस्या के बाद वरदान हासिल कर लिया। वरदान यह मिला था कि उसका खून जहां भी गिरेगा, उस खून की बूँद से वहां से उसी के समान राक्षस पैदा हो जाएगा। रक्तबीज को अपने इस गुण पर बहुत अभिमान था, इसलिए उसने अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।

उसके भय और आतंक को देखकर देवता रक्तबीज से लड़ने के लिए आ गए, लेकिन जहां भी रक्त बीज का रक्त गिरता, वहां से एक और रक्त बीज पैदा हो जाता। इसका परिणाम यह हुआ कि बहुत सारे रक्तबीज पैदा हो गए, जिन्हें हराने का कोई रास्ता देवताओं को दिखाई नहीं दे रहा था। घबरा कर सभी देवता मां दुर्गा के पास पहुंचे और अपने प्राणों की भीख मांगने लगे।

मां दुर्गा ने रक्तबीज के वध के लिए काली का रूप धारण कर लिया।युद्ध के दौरान अब जहां भी रक्तबीज का रक्त गिरता, मां काली उसे पी जाती।रक्तबीज का अंत मां काली के हाथों हुआ, लेकिन इस दौरान रक्तबीज को समाप्त करते हुए मां इतनी क्रोधित हो गईं कि उनको शांत करना मुश्किल हो गया। उन्होंने जाकर हर चीज़ को मारना-काटना शुरू कर दिया।उनका गुस्सा शांत नहीं हो रहा था। उनका गुस्सा – किसी वजह से परे, उस स्थिति के लिए जरूरी कार्रवाई से भी परे – बस बरसता जा रहा था। इसलिए किसी में हिम्मत नहीं थी कि जाकर उन्हें रोक सके। इसलिए सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और बोले कि आप ही मां का क्रोध शांत कर सकते हैं। वह आपकी पत्नी हैं। कृपया उन्हें काबू में करने के लिए कुछ कीजिए।’

शिव काली के पास उसी अंदाज़ में पहुंचे जिस तरह से वे उनसे पति के रूप में मिलते थे। वह बिना किसी आक्रामकता के उनकी तरफ बढ़े, मां काली के क्रोध को शांत करना भगवान शिव के लिए भी आसान नहीं था। इसलिए भगवान शिव काली मां के मार्ग में लेट गए। क्रोधित मां काली ने जैसे ही भगवान शिव के ऊपर पांव रखा, उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने अपने स्वामी को ऊपर पाँव रख कर घोर पाप किया है। जिससे वह शांत हुईं और इस तरह भगवान शिव ने देवताओं की मदद की और मां काली के गुस्से को शांत किया, जो सृष्टि के लिए भयानक हो सकता था।

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Published by Sri Mandir·February 17, 2025

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