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थाई अमावसाई 2025 कब है ?

क्या आप जानते हैं थाई अमावसाई 2025 कब है? जानिए इसका सही समय और पूजा विधि!

थाई अमावसाई के बारे में

थाई अमावसाई एक महत्वपूर्ण हिंदू त्यौहार है जो विशेष रूप से तमिलनाडु और दक्षिण भारत में मनाया जाता है। इसे तैमिल नववर्ष के अवसर पर भी मनाया जाता है, और यह अमावस्या तिथि को पड़ता है, जो चंद्रमा के न होने के दिन होती है। इस दिन को विशेष रूप से पितरों की पूजा और पितृ दोष से मुक्ति के लिए मनाया जाता है।

थाई अमावसाई

तमिल कैलेंडर में थाई 10वें महीने को कहा जाता है, जो 15 जनवरी से 12 फरवरी के बीच होता है और इसमें 29 या 30 दिन होते हैं। वहीं, थाई अमावसाई दक्षिण भारत का एक प्रमुख पर्व है। अमावसाई का मतलब है अमावस्या। अब आप सोचेंगे, कि अमावस्या तो हर महीने आती है फिर थाई अमावसाई इतनी महत्वपूर्ण क्यों है? तो आइए इसके बारे में आपको बताते हैं।

थाई अमावसाई कब और कहां मनाई जाती है?

इस वर्ष थाई अमावस्या 29 जनवरी 2025, बुधवार को मनाई जाएगी। खासकर दक्षिण भारत के तमिल समुदाय के लोगों में थाई अमावसाई बहुत प्रचलित है और इसे पूरी श्रद्धा से मनाते हैं। यह महीना फसल की कटाई का भी होता है। वहीं, थाई महीना उत्तरायण के पहले दिन से शुरू होता है और थाई अमावसाई वह पहली अमावस्या होती है, जो इस पवित्र महीने में आती है।

  • थाई अमावसाई 29 जनवरी 2025, बुधवार, को है।
  • अमावसाई तिथि प्रारम्भ - 28 जनवरी, 2025 को 07:35 पी एम बजे
  • अमावसाई तिथि समाप्त - 29 जनवरी, 2025 को 06:05 पी एम बजे

इस दिन के अन्य शुभ मुहूर्त

  • ब्रह्म मुहूर्त - 05:25 ए एम से 06:18 ए एम
  • प्रातः सन्ध्या - 05:51 ए एम से 07:11 ए एम
  • अभिजित मुहूर्त - कोई नहीं
  • विजय मुहूर्त - 02:22 पी एम से 03:05 पी एम
  • गोधूलि मुहूर्त - 05:55 पी एम से 06:22 पी एम
  • सायाह्न सन्ध्या - 05:58 पी एम से 07:17 पी एम
  • अमृत काल - 09:19 पी एम से 10:51 पी एम
  • निशिता मुहूर्त - 12:08 ए एम, जनवरी 30 से 01:01 ए एम, (30 जनवरी)

थाई अमावसाई का महत्व

थाई अमावसाई के दिन पितरों की पूजा की जाती है और यह करना इस लिए भी जरूरी है क्योकि ऐसा करने से घर में सुख शांति के साथ-साथ वहां रहने वालों के संबंध भी अच्छे होते हैं। इसके साथ ही, परिवार के लोगों को अच्छा स्वास्थ्य, धन-संपत्ति, सफलता और सुखमय जीवन प्राप्त होता है।

अब एक सच यह भी है, कि हमारे धर्म या संस्कारों से जुड़े सभी कर्मो के पीछे कोई न कोई भेद या कारण जरुर होता है। ऐसे ही, मृत्यु के पश्चात कोई भी पुण्य आत्मा जब स्वर्ग की यात्रा आरंभ करती है तो सबसे पहले पित्र लोक पहुंचती है। ऐसा माना जाता है, कि पित्र लोक में सभी आत्माएं तब तक निवास करती हैं जब तक वह कहीं दूसरी जगह जन्म नहीं ले लेतीं। इस लोक में उन्हें भूख और प्यास भी सताती है लेकिन उनके पास अब शरीर नहीं है इसलिए वह न तो कुछ खा सकते हैं और न कुछ पी सकते हैं। उनकी तृप्ति पृथ्वी लोक से उनके बच्चों द्वारा पहुंचाई गई सामग्री से पूरी होती है।

अब आप सोचेंगे, कि यह कैसे किया जाए? तो आपको बता दें, कि पृथ्वी पर रह रहे मनुष्य की यह जिम्मेदारी है कि वह किसी योग्य पंडित के सानिध्य में मंत्रों उच्चारण द्वारा अपने पितरों के निमित्त सभी जरूरी रस्में पूरी करें। ऐसा माना गया है, कि श्रद्धा भाव से किए गए सभी संस्कार पूर्वजों तक पहुंचते हैं और पूर्वजों को तृप्त करते हैं और वह प्रसन्न होकर उन्हें आनंदमय जीवन का आशीर्वाद देते हैं।

थाई अमावसाई विशेष पूजा और अनुष्ठान

थाई अमावसाई एक महत्वपूर्ण अमावस्या है, जो सभी पूर्वजों को समर्पित है और इस दिन पितरों से जुड़े संस्कार किए जाते हैं। इसे ऐसे समझिये, कि हमारे पूर्वजों ने हमारी परवरिश की है तो उन्हें हम से भी आशा होती है। इसी मान्यता को ध्यान में रखकर लोग पितरों को मनाने के लिए उनसे जुड़े सभी संस्कारों को पूरे विधान से संपन्न करते हैं और सभी पुण्य आत्माओं का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

अमावसाई के अवसर पर आप तिल आदि से हवन कर पूर्वजों को पोषित भी कर सकते हैं और आप पिंडदान भी कर सकते है। ऐसा माना जाता है, कि इस तरह से किये गए सभी संस्कार पितरों तक पहुंच जाते है। एक बात और, अगर यह सभी कार्य किसी तीर्थ स्थान या पवित्र नदी के किनारे पर किया जाए तो इसका फल कई गुना बढ़ जाता है। इस त्योहार पर दान आदि के साथ-साथ प्रार्थना भी की जाती है और अपने पूर्वजों से मिली सभी प्रकार की संपन्नता के लिए उन्हें नतमस्तक होकर विनम्र भाव से धन्यवाद किया जाता है। अब यह तो धर्म में विदित है, कि किसी भी प्रकार का धार्मिक कार्य दक्षिणा के बिना अधूरा है। ऐसे में, आप किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद को यथासंभव दान देकर इस अनुष्ठान को सम्पन्न करें।

थाई अमावसाई को भारत के पूर्वी हिस्सों में मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है, जिस दिन लोग पवित्र गंगा में स्नान करने के साथ स्नान करने तक मौन व्रत रखते हैं।

थाई अमावसाई पौराणिक कथा

एक समय की बात है कांची पुरी नगरी में देवस्वामी नाम का एक ब्राह्मण अपनी पत्नी धनवती के साथ रहता था। उसके सात पुत्र और एक पुत्री थी और पुत्री का नाम मालती था। ब्राह्मण के सातों पुत्रों का विवाह हो चुका था और अब उसे अपनी पुत्री के विवाह की चिंता थी।

ब्राह्मण ने विवाह के लिए अपनी पुत्री की जन्म कुंडली किसी पंडित को दिखाई, तो उन्होंने उसकी कुंडली में वेध दोष बताया। पंडित ने बताया, कि सप्तपदी होते-होते अर्थात सात फेरों के दौरान ही कन्या का पति मर जाएगा और यह विधवा हो जाएगी। फिर जब ब्राह्मण ने पंडित से वेध दोष निवारण के लिए उपाय पूछा, तो उन्होंने कहा कि सोमा का पूजन करने से ही इस दोष का निवारण हो सकता है।

ब्राह्मण के पूछने पर पंडित ने सोमा के बारे में कहा, कि भारत के दक्षिणी समुद्र के बीच एक सिंहल द्वीप है और वहां सोमा नाम की एक धोबिन है, जो पतिव्रता है। उसके पतिव्रत धर्म की शक्ति के सामने यमराज को भी झुकना पड़ता है और तीनों लोकों तक उसका प्रकाश फैला हुआ है। उसकी शरण में जाने से आपकी बेटी का वेध दोष नष्ट हो जाएगा।

पंडित का कहा मानकर इस कार्य को करने के लिए देवस्वामी का सबसे छोटा पुत्र अपनी बहन के साथ सिंहल द्वीप जाने के लिए समुद्र तट पर पहुंच गया। वह समुद्र पार करने की चिंता में वहीं किनारे एक वृक्ष के नीचे बैठ गया। उस वृक्ष पर एक गिद्ध का परिवार रहता था और गिद्ध के बच्चे ऊपर से दोनों भाई-बहन को देख रहे थे।

शाम को जब मादा गिद्धअपने बच्चों के पास आई, तो बच्चों ने भोजन नहीं किया और अपनी मां से उन बहन-भाई की सहायता करने को कहा। तब उसकी मदद से भाई-बहन सोमा के यहां पहुंच गए। दोनों सुबह जल्दी उठकर सोमा के घर की झाड़ू-बुहारी और घर लीपने का काम कर देते थे। इतनी सफाई देखकर सोमा ने अपनी बहुओं से इसका कारण पूछा, तो उन्होंने कहा कि वह यह काम करती हैं। लेकिन सोमा को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ और उसने सच्चाई जानने के लिए एक रात जागकर भाई-बहन को सफाई करते देख लिया।

सोमा ने दोनों से बातचीत की और तब उसे सारी कहानी का पता चला। भाई-बहन ने सोमा से उनके साथ चलने की प्रार्थना की, तो वह उनके साथ चली गई। लेकिन जाते समय सोमा ने अपनी बहूओं से कहा, कि यदि उसके पीछे किसी की मृत्यु हो जाए, तो वह उनके मृत शरीर को संभाल कर रखें और उनके आने तक इंतजार करें। यह कहकर सोमा दोनों भाई-बहन के साथ कांचीपुरी चली गई।

अगले दिन मालती के विवाह की विधि संपन्न हुई, तो सप्तपदी के समय उसके पति की मृत्यु हो गई। सोमा ने तुरंत ही आज तक के किए हुए अपने सभी पुण्यफल मालती को दे दिया, जिसके फलस्वरूप उसका पति जीवित हो गया और तब सोमा उन्हें खूब आशीर्वाद देकर अपने घर वापस चली गई। दूसरी ओर पुण्य का फल दे देने से सोमा के पुत्र, जामाता और पति मृत्यु को प्राप्त हो गए थे।

सोमा ने वापस जाते समय रास्ते में आए पीपल के पेड़ में भगवान विष्णु का पूजन किया और वृक्ष की 108 परिक्रमा की। फिर जैसे ही सोमा के परिक्रमा पूरी हुई, उसके परिवार के सभी मृतक जीवित हो गए। मान्यता है, कि सोमा ने बिना फल की इच्छा किए निस्वार्थ भाव से भगवान का पूजन और सेवा की थी जिसका फल उसे प्राप्त हुआ और आज भी अमावसाई के दिन यह पूजा संपन्न की जाती है, जिससे सभी को भगवान का आशीर्वाद मिले।

अगर थाई अमावसाई के विषय में यह जानकारी आपको पसंद आई हो, तो ऐसे ही त्योहारों के विषय में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए बने रहिए श्रीमंदिर के साथ।

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Published by Sri Mandir·January 9, 2025

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