जब हर रास्ता बंद लगे, तब याद करें बटुक भैरव चालीसा! संकटों से रक्षा पाने के लिए पढ़ें पूरी चालीसा हिन्दी में विधि और लाभ सहित।
बटुक भैरव चालीसा एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है, जो भैरव बाबा के बटुक रूप की स्तुति और आराधना के लिए समर्पित है। यह चालीसा न केवल भक्तों को शत्रु बाधाओं, तांत्रिक प्रभावों और नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है, बल्कि अदृश्य सुरक्षा कवच प्रदान करता है। श्रद्धा और नियमपूर्वक इसका पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि और भयमुक्ति का आगमन होता है।
विश्वनाथ को सुमिर मन । धर गणेश का ध्यान ।
भैरव चालीसा रचूं । कृपा करहु भगवान॥
बटुकनाथ भैरव भजं । श्री काली के लाल ।
छीतरमल पर कर कृपा । काशी के कुतवाल॥
जय जय श्रीकाली के लाला । रहो दास पर सदा दयाला॥
भैरव भीषण भीम कपाली । क्रोधवन्त लोचन में लाली॥
कर त्रिशूल है कठिन कराला । गल में प्रभु मुण्डन की माला॥
कृष्ण रूप तन वर्ण विशाला । पीकर मद रहता मतवाला॥
रुद्र बटुक भक्तन के संगी । प्रेत नाथ भूतेश भुजंगी॥
त्रैल तेश है नाम तुम्हारा । चक्र तुण्ड अमरेश पियारा॥
शेखरचंद्र कपाल बिराजे । स्वान सवारी पै प्रभु गाजे॥
शिव नकुलेश चण्ड हो स्वामी । बैजनाथ प्रभु नमो नमामी॥
अश्वनाथ क्रोधेश बखाने । भैरों काल जगत ने जाने॥
गायत्री कहैं निमिष दिगम्बर । जगन्नाथ उन्नत आडम्बर॥
क्षेत्रपाल दसपाण कहाये । मंजुल उमानन्द कहलाये॥
चक्रनाथ भक्तन हितकारी । कहैं त्र्यम्बक सब नर नारी॥
संहारक सुनन्द तव नामा । करहु भक्त के पूरण कामा॥
नाथ पिशाचन के हो प्यारे । संकट मेटहु सकल हमारे॥
कृत्यायु सुन्दर आनन्दा । भक्त जनन के काटहु फन्दा॥
कारण लम्ब आप भय भंजन । नमोनाथ जय जनमन रंजन॥
हो तुम देव त्रिलोचन नाथा । भक्त चरण में नावत माथा॥
त्वं अशतांग रुद्र के लाला । महाकाल कालों के काला॥
ताप विमोचन अरि दल नासा । भाल चन्द्रमा करहि प्रकाशा॥
श्वेत काल अरु लाल शरीरा । मस्तक मुकुट शीश पर चीरा॥
काली के लाला बलधारी । कहाँ तक शोभा कहूँ तुम्हारी॥
शंकर के अवतार कृपाला । रहो चकाचक पी मद प्याला॥
कशी के कुतवाल कहाओ । बटुक नाथ चेतक दिखलाओ ॥
रवि के दिन जन भोग लगावें । धूप दीप नैवेद्य चढ़ावें॥
दरशन करके भक्त सिहावें । दारुड़ा की धार पिलावें॥
मठ में सुन्दर लटकत झावा । सिद्ध कार्य कर भैरों बाबा॥
नाथ आपका यश नहीं थोड़ा । करमें सुभग सुशोभित कोड़ा॥
कटि घूँघरा सुरीले बाजत । कंचनमय सिंहासन राजत॥
नर नारी सब तुमको ध्यावहिं । मनवांछित इच्छाफल पावहिं॥
भोपा हैं आपके पुजारी । करें आरती सेवा भारी॥
भैरव भात आपका गाऊँ । बार बार पद शीश नवाऊँ॥
आपहि वारे छीजन धाये । ऐलादी ने रूदन मचाये॥
बहन त्यागि भाई कहाँ जावे । तो बिन को मोहि भात पिन्हावे॥
रोये बटुक नाथ करुणा कर । गये हिवारे मैं तुम जाकर॥
दुखित भई ऐलादी बाला । तब हर का सिंहासन हाला॥
समय व्याह का जिस दिन आया । प्रभु ने तुमको तुरत पठाया॥
विष्णु कही मत विलम्ब लगाओ । तीन दिवस को भैरव जाओ॥
दल पठान संग लेकर धाया । ऐलादी को भात पिन्हाया॥
पूरन आस बहन की कीनी । सुर्ख चुन्दरी सिर धर दीनी ॥
भात भेरा लौटे गुण ग्रामी । नमो नमामी अन्तर्यामी॥
जय जय जय भैरव बटुक । स्वामी संकट टार ।
कृपा दास पर कीजिए । शंकर के अवतार॥
जो यह चालीसा पढे । प्रेम सहित सत बार ।
उस घर सर्वानन्द हों । वैभव बढ़ें अपार॥
बटुक भैरव चालीसा का पाठ मुख्यतः मंगलवार, शनिवार, अमावस्या, अष्टमी तिथि या फिर रात्रि के समय करना चाहिए। मंगलवार और शनिवार ये दोनों दिन रौद्र देवताओं की आराधना के लिए विशेष माने गए हैं। मंगलवार को शक्ति और रक्षात्मक ऊर्जा अधिक सक्रिय होती है, वहीं शनिवार को ग्रह बाधा शांति हेतु भैरव आराधना अत्यंत फलदायी मानी जाती है। वहीं अमावस्या और अष्टमी तिथि को शक्ति जागरण, तंत्र प्रयोग और आध्यात्मिक रक्षा के लिए विशेष रूप से उपयुक्त माना गया है। इन दिनों तामसिक शक्तियां अधिक जाग्रत होती हैं, जिनपर भैरव आराधना से नियंत्रण पाया जाता है। अष्टमी की तिथि भैरव आराधना के लिए इसलिए भी खास है क्योंकि अष्टमी तिथि के दिन ही भैरव का प्राकट्य हुआ था।
इसके अलावा मध्यरात्रि 3 से 5 बजे ब्रह्ममुहूर्त का समय होता है। यह समय साधना और मंत्र जाप के लिए सर्वोत्तम काल माना जाता है है। इस काल में वातावरण सबसे शांत होता है और ऊर्जा अत्यधिक सकारात्मक रहती है। इसलिए बटुक चालीसा हेतु यह समय भी सर्वोतम काल है। समय सुनिश्चित करने के बाद बारी आती है कि पाठ कैसे किया जाए। तो सबसे पहले पाठ शुरू करने से पहले शुद्धिकरण करें। तीन बार आचमन करके शरीर और मन को पवित्र करें। यह वेदों की विधि है जिससे साधना के पूर्व आत्मिक शुद्धता आती है।
इसके बाद अपने नाम, तिथि और उद्देश्य के साथ स्पष्ट संकल्प लें। यह संकल्प साधना को उद्देश्य प्रदान करता है और ब्रह्मांडीय शक्तियों को आपकी मनोकामना से जोड़ता है।
पवित्र भैरव मंत्रों के जाप द्वारा बटुक भैरव को आमंत्रित करें। पुष्प अर्पण करके उनका आवाहन कर स्थान पवित्र बनाएं। दीपक जलाकर अग्नि तत्व को सक्रिय करें। भोग अर्पण से उन्हें तृप्त करें और अपने भाव समर्पित करें। उसके बाद बटुक भैरव चालीसा का श्रद्धा और एकाग्रता से पाठ करें। 1, 3, 5 या 11 बार पाठ करना शुभ फल देता है। काल भैरव अष्टक, कवच आदि को भी जोड़ सकते हैं।
पाठ के अंत में मंत्र साधना करें यह आपके पाठ को और भी अधिक प्रभावशाली बनाता हैं। विशेष फल प्राप्ति हेतु 108 बार जाप संख्या पूर्ण करें। अंत में नम्रतापूर्वक क्षमा माँगें। यह भाव बताता है कि साधक विनम्र और समर्पित है। चालीसा और पूजन विधि समाप्त होने के बाद पूजा की समस्त सामग्री को सम्मानपूर्वक नदी या किसी पवित्र स्थान में विसर्जित करें। कुत्ते को रोटी या गुड़-चना देना दें। कुत्ता भैरव बाबा का वाहन है, इसलिए इसकी सेवा किए बिना भैरव आराधना अधूरी मानी जाती है।
इस सम्पूर्ण विधि से भैरव चालीसा का पाठ करने से भैरव बाबा बहुत अधिक प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को तांत्रिक बाधाओं, अदृश शक्तियों और नकारात्मकता से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
चालीसा पाठ करने से साधक के चारों ओर एक दिव्य सुरक्षा कवच निर्मित होता है। यह कवच उसे दुष्ट शक्तियों, बुरी दृष्टि नजर दोष, और तांत्रिक बाधाओं से बचाता है। यह गुण विशेषकर उन लोगों के लिए उपयोगी है जो नकारात्मक ऊर्जा या मानसिक भय से ग्रसित होते हैं।
पुराणों के अनुसार बटुक भैरव का स्मरण करने से “शत्रु स्तंभन” यानी विरोधियों की नकारात्मक शक्ति निष्क्रिय हो जाती है। जो व्यक्ति कोर्ट-कचहरी, राजनीतिक संघर्ष या सामाजिक विरोधों का सामना कर रहा है, उसके लिए यह पाठ अचूक माना गया है।
शनि, राहु, केतु आदि से उत्पन्न ग्रहदोष, कालसर्प दोष, या पितृदोष को शांत करने के लिए बटुक भैरव का चालीसा पाठ अत्यंत प्रभावशाली होता है। तंत्र शास्त्रों में बताया गया है कि बटुक भैरव की कृपा से दुर्लभ योग और अनिष्ट ग्रह भी अनुकूल प्रभाव देने लगते हैं।
चालीसा के माध्यम से बटुक भैरव की कृपा साधक की बुद्धि, साहस, और निर्णयशक्ति को बढ़ाती है। विशेषकर विद्यार्थियों, नौकरीपेशा और निर्णयात्मक क्षेत्रों में काम करने वालों के लिए यह एक मानसिक ऊर्जा स्त्रोत के रूप में कार्य करता है।
कई तांत्रिक ग्रंथों में वर्णित है कि भैरव स्तोत्रों के पाठ से रात्रि में उत्पन्न भय, नींद न आना, और भूत-प्रेत संबंधी परेशानियों से मुक्ति मिलती है। जो लोग रात में डरते हैं या अज्ञात भय से घिरे रहते हैं, उनके लिए यह पाठ अमोघ औषधि के समान है।
श्रद्धा और नियमपूर्वक किया गया चालीसा पाठ साधक की इच्छाओं को पूर्ण करता है। विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार को पाठ करने से व्यक्ति को आत्मिक बल और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का साक्षात्कार होने लगता है।
बटुक भैरव चालीसा न केवल एक स्तुति है, बल्कि एक दिव्य साधना है। जो साधक को भय, शत्रु, नकारात्मकता, और मानसिक कमजोरी से मुक्त कर आत्मरक्षा, शांति और सफलता की ओर अग्रसर करती है। यह कलियुग में त्वरित फलदायी स्तोत्रों में से एक माना गया है। श्रद्धा, नियम और विश्वास से किया गया यह पाठ जीवन में अद्भुत चमत्कार ला सकता है।
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