Saptami Shradh (सप्तमी श्राद्ध) Kya Hai, Date, Muhurat, Kaise Kare

सप्तमी श्राद्ध

सप्तमी श्राद्ध में पूर्वजों की आत्मा की शांति और आशीर्वाद के लिए पूजा इस प्रकार करें


सप्तमी श्राद्ध क्या होता है? | Saptami Shradh Kya Hai

गीता में कहा गया है कि, आत्मा का मिलन जब तक परमात्मा से नहीं होता है, तब तक वह विभिन्न योनियों में भटकती रहती है। मृत आत्माओं की इस अवस्था को अघम कहा जाता है। मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान जब पूर्वजों की मृत्यु तिथि पर उनके निमित्त श्राद्ध पिंडदान तर्पण आदि किया जाता है, तभी उनकी आत्मा को संतुष्टि मिलती है। इसी तरह सप्तमी तिथि पर उन पितरों का श्राद्ध करने का विधान है, जिनका स्वर्गवास सप्तमी तिथि पर हुआ हो।

सप्तमी श्राद्ध कब है? | Saptami Shradh Date & Muhurt

  • सप्तमी श्राद्ध 23 सितंबर, सोमवार को किया जाएगा।
  • सप्तमी तिथि 23 सितंबर को दोपहर 01 बजकर 50 मिनट पर प्रारंभ होगी।
  • सप्तमी तिथि का समापन 24 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट पर होगा।
  • कुतुप मुहूर्त दिन में 11 बजकर 26 मिनट से दोपहर 12 बजकर 14 मिनट तक रहेगा।
  • रौहिण मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 14 मिनट से 01 बजकर 03 मिनट तक रहेगा।
  • अपराह्न काल मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 03 मिनट से 03 बजकर 28 मिनट तक रहेगा।

सप्तमी श्राद्ध कैसे करें? | Saptami Shradh Kaise Kare

  • सप्तमी श्राद्ध के लिए सबसे पहले स्नान करके शुद्ध हो जाएं।
  • श्राद्ध करने के लिए हाथ में कुश, जल, अक्षत, काला तिल और जौ लेकर संकल्प करें, और ये मंत्र पढ़ें "ॐ अद्य श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त सर्व सांसारिक सुख-समृद्धि प्राप्ति च वंश-वृद्धि हेतव देवऋषिमनुष्यपितृतर्पणम च अहं करिष्ये."
  • पिंडदान करने के लिए पके हुए चावल में गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद मिलाएं, और इसका पिंड बना लें। बता दे कि पिंड को पितरों के शरीर का प्रतीक माना जाता है।
  • इसके बाद पितरों का स्मरण कर उनके निमित्त पिंडदान करें। इस समय आपको जिन पितरों के नाम याद हों, उन सभी का आह्वान करें।
  • पिंडदान करने के बाद पंचबली और ब्राह्मण भोजन कराने का विधान है। इसके लिए सबसे पहले गए कौवा, कुत्ता, चींटी आदि के लिए भोजन का एक-एक अंश निकालें।
  • पंचबली क्रिया पूरी करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं। सप्तमी श्राद्ध के दिन सात ब्राह्मणों को भोजन करने का विधान है।
  • इस दिन कुशा के आसन पर बैठकर भगवान विष्णु के पुरुषोत्तम रूप की आराधना करने और गीता के सातवें अध्याय का पाठ करने से पितरों की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है।
  • सप्तमी श्राद्ध के दिन किसी भी जरूरतमंद को अपने द्वारा से खाली हाथ ना लौटाएं, वरना आपके पितृ निराश हो सकते हैं। क्योंकि कहा जाता है कि पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज हमसे किसी भी रूप में मिल सकते हैं।

सप्तमी श्राद्ध का महत्व | Saptami Shradh Ka Mahatav

शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि मनुष्य के कल्याण के लिए श्राद्ध कर्म सबसे बड़ा मार्ग है। सप्तमी श्राद्ध सप्तमी तिथि के दिन स्वर्गवासी हुए पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष महत्वपूर्ण है। मार्कंडेय पुराण और गरुण पुराण में कहा गया है कि श्राद्ध से तृप्त होकर पितृ अपने वंशजों को स्वास्थ्य, संतान, दीर्घायु, और सुख-संपन्नता का वरदान देते हैं।

ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि मृत्यु के बाद हमारे पितरों की आत्मा किसी भी पशु-पक्षी की योनि में भटक सकती है। ऐसे में पितृपक्ष के दौरान उनके निमित्त किए गए पिंडदान और जल से ही उनका पोषण होता है। जिस परिवार में हर पितृपक्ष पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म किए जाते हैं, उस कुल का कोई भी व्यक्ति दुखी नहीं रहता। मान्यता है कि श्राद्ध कर्म करने से न सिर्फ पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, बल्कि पितृ दोष से भी छुटकारा मिलता है।

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