इस मंत्र का अर्थ और लाभ जानें और ब्रह्मा की कृपा से अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जाएँ।
सनातन धर्म के अनुसार ब्रह्मा जी सृजन के देव हैं। हिन्दू दर्शनशास्त्रों में 3 प्रमुख देव बताये गए है- ब्रह्मा, विष्णु और महेश। ब्रह्मा जी को सृष्टि के सर्जक, विष्णु जी को पालक और महेश जी विलय करने वाले देवता माना जाता है। भारतीय दर्शन शास्त्र के अनुसार, जो निर्गुण यानी तीनों गुणों -सत्व, रज और तम से परे हों, मतलब निराकार और सर्वव्यापी है वह ब्रह्म कहलाता है। इसलिए ये सभी गुण होने के कारण उन्हें ब्रह्मा नाम से पुकारा जाता है। आइए इस आर्टिकल में जानते हैं ब्रह्मा जी के मंत्र के बारे में।
ब्रह्मा जी को स्वयंभू, विधाता, चतुरानन जैसे नामों से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार भगवान ब्रह्मा जी के चार मुख हैं और उनके चार हाथ हैं, जिनमें वे वरमुद्रा, अक्षर सूत्र, वेद तथा कमण्डल धारण किए हुए हैं। भगवान ब्रह्मा का सबसे प्रमुख मंदिर ब्रह्मा मंदिर पुष्कर (राजस्थान) है। ब्रह्म गायत्री मंत्र की आराधना करने से धन-सम्पत्ति के साथ यश की प्राप्ति होती है। ब्रह्म गायत्री मंत्र का जाप करने से सबसे बड़ा लाभ ये मिलता है कि ये साधनारत मनुष्य को दुनियावी चिंताओं से मुक्त कर मृत्यु पश्चात ब्रह्मलोक गमन का मार्ग प्रशस्थ करता है। ब्रह्मा जी हमारे पूर्वजों और उनके पूर्वजों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ब्रह्म मंत्र का जाप करने से रचनात्मकता, सफलता, ज्ञान और प्रचुरता मिलती है। पितृ पक्ष में उनका नामजप करना वास्तव में सहायक होगा।
हिन्दू पौराणिक कथाओं में सारी सृष्टि, जीव-जंतु, पेड़-पौधे, नर-नारी सभी भगवान ब्रम्हा द्वारा रचित बताए गए हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रम्हा जी के चार सिर हैं जो चारों वेदों के प्रतीक हैं। लेकिन पुराणों में ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्मा जी के 5 सिर थे। कथाओं में उल्लेख मिलता है कि जब ब्रम्हा जी ने सृष्टि की रचना कर ली, तब सृष्टि में मानव विकास के लिए उन्होंने एक बेहद सुन्दर स्त्री सतरूपा को बनाया। ब्रह्मा जी देवी सतरूपा की सुन्दरता पर मोहित हो गए और उनके साथ विवाह करने का मन बना लिया।
सतरूपा जिस दिशा में जाती ब्रम्हा जी उस दिशा की ओर अपना एक सिर एक निकाल लेते, जब देवी सतरूपा की ब्रम्हा जी से बचने की हर कोशिश नाकाम साबित हो गई, तब उन्होंने शिव जी मदद मांगी, ब्रम्हा जी की कुदृष्टि से सतरूपा को बचाने के लिए शिव जी ने अपने एक गण भैरव को प्रकट किया और उन्हें आदेश दिया कि ब्रम्हा जी का पांचवा सिर काट दो। जब भैरव जी ने ब्रम्हा का पांचवां सिर काट दिया तो तब उन्हें होश आया और उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ।
ॐ चतुर्मुखाय विद्महे हंसारूढाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्
अर्थ- हे चार मुखों वाले ब्रह्मा जी मैं आपको नमन करता हूं, हंस पर सवार हे प्रभु मुझे बुद्धि दें और मेरे मन को शांत करो। ॥ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात्॥ अर्थ- वेदों के सृजनकर्ता और सृष्टि के रचयिता करने वाले प्रभु मेरा प्रणाम स्वीकार करें और मुझे बुद्धि दें।
ॐ ब्रह्मणे नमः
अर्थ- पराशक्ति परब्रह्म परमात्मा को नमस्कार है।
॥ ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौह सतचिद एकं ब्रह्मो ॥
इस मंत्र के जाप से धन, संपत्ति, यश और समाज में मान सम्मान बढ़ता है और ब्रह्मा जी हर मनोकामना पूरी करते हैं।
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरु देवो महेश्वरः, गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
अर्थ - गुरु ही ब्रह्म है जो सृष्टि के रचियता हैं। गुरु ही श्रष्टि के पालक हैं जैसे श्री विष्णु जी। गुरु ही इस श्रष्टि के संहारक भी हैं जैसे श्री शिव। गुरु साक्षात पूर्ण ब्रह्म हैं जिनको अभिवादन है। भाव है की ईश्वर तुल्य ऐसे गुरु को मैं नमस्कार करता हूँ।
ॐ नमस्ते परमं ब्रह्मा नमस्ते परमात्ने। निर्गुणाय नमस्तुभ्यं सदुयाय नमो नम:।।
अर्थ - इस मंत्र का मतलब .ये है कि इसमें पराशक्ति परब्रह्म परमात्मा जी को नमस्कार कहा जा रहा है।
ब्रह्मा जी के मंत्र का जाप करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसके साथ ही आपको धन-सम्पति, यश, मान-सम्मान, और सभी तरह की भौतिक सुख-सुविधाएं जिनकी आप मोनकामना रखते हैं, सभी ही आपको प्राप्त होती हैं। ऐसा भी माना जाता है की ब्रह्मा जी मंत्रों के जाप से मृत्यु के पश्च्यात आपको स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
बिना स्नान किए ब्रह्मा जी की मंत्रों का जाप नहीं करना चाहिए।
दक्षिण दिशा की ओर मुख करके ब्रह्मा जी की मंत्रों का जाप नहीं करना चाहिए।
ब्रह्मा जी की मंत्रों का जाप करते समय मन में किसी के प्रति बुरा ख्याल नहीं रखना चाहिए।
ब्रह्मा जी की मंत्रों का जाप करते समय तामसिक भोजन को ग्रहण नहीं करना चाहिए।
ब्रह्मा जी की मंत्रों का जाप करते समय ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
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