भगवत गीता में कितने श्लोक हैं?
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भगवत गीता में कितने श्लोक हैं?

क्या आप जानते हैं भगवद गीता में कितने श्लोक हैं? हर अध्याय के श्लोकों की संख्या और उनका गूढ़ अर्थ जानें।

भगवत गीता के बारे में

क्या आप जानते हैं कि भगवद गीता में कुल कितने श्लोक हैं और उनका महत्व क्या है? यह दिव्य ग्रंथ न केवल आध्यात्मिक ज्ञान का स्रोत है, बल्कि जीवन की गूढ़ समस्याओं का समाधान भी बताता है। इस आर्टिकल में हम गीता के श्लोकों की संख्या और उनके गहरे अर्थ को जानेंगे।

भगवत गीता

भगवद गीता एक पवित्र ग्रंथ है, जो महाभारत के भीष्म पर्व के अंतर्गत आता है। ये संस्कृत में रचित है और इसमें भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि में हुआ संवाद वर्णित है। गीता में कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। इसे सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण दार्शनिक और आध्यात्मिक ग्रंथ माना जाता है।

भगवद गीता में कुल 700 श्लोक हैं

यह श्लोक 18 अध्यायों में विभाजित हैं और महाभारत के भीष्मपर्व के अध्याय 25 से 42 के बीच आते हैं। भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को धर्म, कर्म, ज्ञान, भक्ति और मोक्ष का उपदेश दिया है

विभाजन

  • अर्जुन द्वारा पूछे गए प्रश्न और श्रीकृष्ण के उत्तरों को मिलाकर कुल 574 श्लोक भगवान श्रीकृष्ण द्वारा कहे गए हैं।
  • 84 श्लोक अर्जुन द्वारा बोले गए हैं।
  • शेष श्लोक संजय और धृतराष्ट्र के संवाद हैं।

भगवद गीता का विस्तार निम्न प्रकार से है

700 श्लोकों का विभाजन

1. धृतराष्ट्र

भगवद गीता का पहला श्लोक धृतराष्ट्र द्वारा बोला गया है।

2. संजय

41 श्लोक संजय द्वारा कहे गए हैं। वह युद्धक्षेत्र में हुए संवाद का वर्णन करते हैं।

3. अर्जुन

84 श्लोक अर्जुन द्वारा बोले गए हैं। ये उनकी जिज्ञासाओं, संदेहों और भावनाओं को प्रकट करते हैं।

4. श्रीकृष्ण

574 श्लोक भगवान श्रीकृष्ण द्वारा कहे गए हैं, जिसमें उन्होंने धर्म, ज्ञान, भक्ति, योग और मोक्ष के गूढ़ रहस्यों को समझाया है।

अध्यायों का संक्षेप

भगवद गीता में 18 अध्याय हैं, जो योग (आध्यात्मिक मार्ग) के अलग-अलग पहलुओं पर केंद्रित हैं।

  • अध्याय 1: अर्जुन का विषाद योग (47 श्लोक)
  • अध्याय 2: सांख्य योग (72 श्लोक)
  • अध्याय 3: कर्म योग (43 श्लोक)
  • अध्याय 4: ज्ञान योग (42 श्लोक)
  • अध्याय 5: कर्म संन्यास योग (29 श्लोक)
  • अध्याय 6: ध्यान योग (47 श्लोक)
  • अध्याय 7: ज्ञान-विज्ञान योग (30 श्लोक)
  • अध्याय 8: अक्षर ब्रह्म योग (28 श्लोक)
  • अध्याय 9: राजविद्या-राजगुह्य योग (34 श्लोक)
  • अध्याय 10: विभूति योग (42 श्लोक)
  • अध्याय 11: विश्वरूप दर्शन योग (55 श्लोक)
  • अध्याय 12: भक्ति योग (20 श्लोक)
  • अध्याय 13: क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग (35 श्लोक)
  • अध्याय 14: गुणत्रय विभाग योग (27 श्लोक)
  • अध्याय 15: पुरुषोत्तम योग (20 श्लोक)
  • अध्याय 16: दैवासुर सम्पद विभाग योग (24 श्लोक)
  • अध्याय 17: श्रद्धात्रय विभाग योग (28 श्लोक)
  • अध्याय 18: मोक्ष संन्यास योग (78 श्लोक)

भगवद गीता की यह संरचना इसे एक गहन दार्शनिक और आध्यात्मिक ग्रंथ बनाती है। यह जीवन के हर पहलू के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती है।

भगवद गीता का हर अध्याय एक विशेष योग (मार्ग) पर केंद्रित है और जीवन के विभिन्न पहलुओं का मार्गदर्शन करता है। गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक दर्शनशास्त्र और जीवन जीने की कला है। आइए इसे और विस्तार से समझें:

भगवद गीता के अध्याय और उनकी मुख्य शिक्षाएं

1. अर्जुन का विषाद योग (अध्याय 1)

  • अर्जुन के मोह और कर्तव्य भ्रम का वर्णन।
  • युद्ध से पहले अर्जुन का मानसिक संघर्ष और शोक।

2. सांख्य योग (अध्याय 2)

  • आत्मा का अमरत्व और शरीर का नाशवान होना।
  • कर्तव्यपालन और निष्काम कर्म का महत्व।

3. कर्म योग (अध्याय 3)

  • कर्म करने का महत्व और फल की आसक्ति छोड़ने का उपदेश।
  • कर्म ही पूजा है।

4. ज्ञान योग (अध्याय 4)

  • ज्ञान और कर्म का समन्वय।
  • अज्ञानता को ज्ञान से समाप्त करना।

5. कर्म संन्यास योग (अध्याय 5 )

  • गृहस्थ जीवन में रहकर भी ध्यान और योग।
  • सच्चा संन्यास वह है जो मोह को त्यागे।

6. ध्यान योग (अध्याय 6)

  • मन का नियंत्रण और आत्म-निर्माण।
  • ध्यान के माध्यम से परमात्मा से जुड़ना।

7. ज्ञान-विज्ञान योग (अध्याय 7)

  • ईश्वर की महिमा और उनके तत्वज्ञान की व्याख्या।
  • भक्ति का महत्व और ईश्वर की शरण में जाना।

8. अक्षर ब्रह्म योग (अध्याय 8)

  • मृत्यु के समय ध्यान और परमात्मा की प्राप्ति।
  • जीवन और ब्रह्मांड का रहस्य।

9. राजविद्या-राजगुह्य योग (अध्याय 9)

  • ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण।
  • हर प्राणी में भगवान का निवास।

10. विभूति योग (अध्याय 10)

  • भगवान की विभूतियां (महिमाएं)।
  • ईश्वर के अंश को हर जगह देखना।

11. विश्वरूप दर्शन योग (अध्याय 11)

  • भगवान श्रीकृष्ण का विराट रूप।
  • संसार की अनंतता और भगवान की सर्वव्यापकता।

12. भक्ति योग (अध्याय 12)

  • भक्ति का महत्व और सरलता।
  • भक्त और भगवान का संबंध।

13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग (अध्याय 13)

  • शरीर (क्षेत्र) और आत्मा (क्षेत्रज्ञ) का रहस्य।
  • प्रकृति और पुरुष का वर्णन।

14. गुणत्रय विभाग योग (अध्याय 14)

  • सत्व, रजस और तमस गुणों का वर्णन।
  • गुणों से ऊपर उठने का मार्ग।

15. पुरुषोत्तम योग (अध्याय 15)

  • संसार के वृक्ष का प्रतीकात्मक वर्णन।
  • आत्मा और परमात्मा का संबंध।

16. दैवासुर सम्पद विभाग योग (अध्याय 16)

  • दिव्य और आसुरी गुणों का वर्णन।
  • धर्म और अधर्म का भेद।

17. श्रद्धात्रय विभाग योग (अध्याय 17)

  • श्रद्धा के तीन प्रकार: सत्व, रजस, तमस।
  • भोजन, यज्ञ, तप और दान का महत्व।

18. मोक्ष संन्यास योग (अध्याय 18)

  • संन्यास और त्याग का वास्तविक अर्थ।
  • मोक्ष प्राप्ति का मार्ग।

मुख्य संदेश

भगवद गीता जीवन का मार्गदर्शन करती है और कर्तव्य, धर्म, और मोक्ष की ओर प्रेरित करती है। इसका मुख्य उद्देश्य मनुष्य को अपने कर्म करते हुए ईश्वर की शरण में रहकर जीवन को उच्चतम उद्देश्य तक ले जाना है।

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Published by Sri Mandir·January 28, 2025

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