शंकराचार्य रचित शिव स्तुति | Shankaracharya Rachit Shiv Stuti
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शंकराचार्य रचित शिव स्तुति | Shankaracharya Rachit Shiv Stuti

शंकराचार्य रचित शिव स्तुति भगवान शिव के सौंदर्य, शक्ति और करुणा का सुंदर वर्णन करती है। इसके पाठ से पापों का नाश होता है, मन को शांति मिलती है और आत्मिक ऊर्जा का जागरण होता है। जानिए सम्पूर्ण पाठ, अर्थ और लाभ।

शिव स्तुति के बारे में

शिव स्तुति भगवान भोलेनाथ की आराधना के लिए की जाने वाली एक पवित्र प्रार्थना है। इसका पाठ करने से मन, शरीर और आत्मा को शुद्धि मिलती है तथा जीवन में शांति, शक्ति और सुख का संचार होता है। श्रद्धा और भक्ति से की गई शिव स्तुति सभी पापों का नाश करती है और शिव कृपा प्राप्ति का मार्ग खोलती है।

शंकराचार्य रचित शिव स्तुति

आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित शिव मानस पूजा शिव जी की एक अनूठी स्तुति है। इस स्तुति में मात्र कल्पना से शिव को सामग्री अर्पित की गई है और पुराण कहते हैं कि साक्षात शिव ने इस पूजा को स्वीकार किया था।

यहां आप अर्थ के साथ ही श्री शिव मानस पूजा स्तोत्र को प्रस्तुत कर रहे हैं। कहते हैं कि सच्चे मन से भोलेनाथ के इस स्तोत्र का स्मरण करने पर जीवन और परिवार में सुख शांति समृद्धि का वास होता है।

श्री शिवमानसपूजा स्तोत्र पाठ की विधि

  • श्री शिवमानसपूजा स्तोत्र का पाठ सोमवार के दिन उत्तम माना गया है।
  • सबसे पहले स्नान आदि करके खुद को पवित्र कर लें।
  • अब किसी आसन पर बैठकर महादेव शिव का ध्यान लगायें।
  • श्री शिवमानसपूजा स्तोत्र पाठ करते समय अपना ध्यान सिर्फ महादेव शिव पर लगाए रखें।

श्री शिवमानसपूजा स्तोत्र पाठ से लाभ

  • श्री शिवमानसपूजा स्तोत्र द्वारा शिव की आराधना करने से मनुष्य को समस्त प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
  • श्री शिवमानसपूजा स्तोत्र पाठ करने वाले भक्त की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

श्री शिवमानसपूजा स्तोत्र एवं अर्थ

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रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं। नानारत्नविभूषितं मृगमदा मोदाङ्कितं चन्दनम्।। जातीचम्पकविल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा। दीपं देव! दयानिधे ! पशुपते ! हृत्कल्पितं गृह्यताम् ॥1॥

अर्थ: हे पशुपति देव! मैं अपने मन में ऐसी भावना करता हूं कि संपूर्ण रत्नों से निर्मित सिंहासन पर आप विराजमान हों। हिमालय के शीतल जल से मैं आपको स्नान करा रहा हूं। स्नान के बाद रत्नजड़ित दिव्य वस्त्र आपको अर्पित है। केसर कस्तूरी में बनाया गया चंदन आपके अंगों पर लगा रहा हूं। जूही, चंपा, बेलपत्र आदि की पुष्पांजलि आपको समर्पित है। सभी प्रकार की सुगंधित धूप और दीपक आपको अर्पित कर रहा हूं, हे प्रभु आप इसे ग्रहण करें।

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सौवर्णे नवरलखण्डरचिते पात्रे घृतं पायसं। भक्ष्यं पञ्चविधं पयोदधियुतं रम्भाफलं पानकम्।। शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूरखण्डोज्ज्वलं। ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥2॥

अर्थ: हे महादेव! मैंने नवीन स्वर्णपात्र, जिसमें विविध प्रकार के रत्न जड़ित हैं, उसमे खीर, दूध और दही सहित पांच प्रकार के स्वाद वाले व्यंजनों के साथ कदलीफल, शर्बत, शाक, कपूर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मृदु जल और ताम्बूल आपके समक्ष प्रस्तुत किया है। हे कल्याण नाथ! आप मेरी इस भावना को स्वीकार करें।

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छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं। वीणाभेरिमृदङ्गकाहलकला गीतं च नृत्यं तथा।। साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा ह्येतत्समस्तं मया। संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो !॥3॥

अर्थ: हे भोलेनाथ! मैं आपके ऊपर छत्र लगाकर चंवर झल रहा हूं। निर्मल दर्पण, जिसमें आपका स्वरूप सुंदरतम व भव्य दिख रहा है, उसे भी प्रस्तुत कर रहा हूं। वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभि आदि की मधुर ध्वनियां आपको प्रसन्न करने के लिए की जा रही है। स्तुति का गायन एवं आपके प्रिय नृत्य को करके मैं आपको साष्टांग प्रणाम कर रहा हूं। हे प्रभु! आप मेरी यह नाना विधि स्तुति को स्वीकार करें।

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आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं। पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रासमाधिस्थितिः।। सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो। यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम् ।।4।।

अर्थ: हे शंकर! आप मेरी आत्मा हैं। मेरी बुद्धि आपकी शक्ति पार्वती जी हैं। मेरे प्राण आपके गण हैं। मेरा यह भौतिक शरीर आपका मंदिर है। संपूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा ही है। मैं जो सोचता हूं, वह आपकी ध्यान समाधि है। मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है। मेरी वाणी से निकला हर शब्द आपके स्तोत्र व मंत्र हैं। इस प्रकार मैं आपका भक्त जिन-जिन कर्मों को करता हूं, वह आपकी ही आराधना है।

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करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा, श्रवणनयनजं वा मानसं वाऽपराधम्। विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व, जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो ॥5॥

अर्थ: हे परमेश्वर! मैंने हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्ण, नेत्र अथवा मन से अभी तक जो भी अपराध किए हैं, वे जान में किए हों या फिर अनजाने में अर्थात वे विहित हों अथवा अविहित हों, उन सब पर क्षमा पूर्ण दृष्टि प्रदान करें। हे करुणा के सागर भोले भंडारी महादेव, आपकी जय हो।

॥इति श्रीशिवमानसपूजा सम्पूर्णम्॥

श्री शिवमानसपूजा स्तोत्र में कुल 5 श्लोक है। इस स्तोत्र से शिव की आराधना करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। इस स्तोत्र का जाप करते समय साधक भगवान शिव को काल्पनिक वस्तुएं अर्पित करता है।

कहते हैं, जो शिव भक्त सोमवार को श्री शिवमानसपूजा स्तोत्र का जाप कर भोलेनाथ को जल अर्पित करता है, उसके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। श्री शिवमानसपूजा स्तोत्र का वर्णन शिवपुराण में मिलता है।

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Published by Sri Mandir·November 5, 2025

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