क्या आप भी अखंड सौभाग्य और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करते हैं? जानिए जया पार्वती व्रत 2025 की तिथि, पूजा विधि और वह रहस्य जिससे माता पार्वती ने पाया शिव जैसा वर
जय पार्वती व्रत प्रारंभ आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी से होता है। यह व्रत पांच दिनों तक मनाया जाता है। सुहागन स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु और सुखमय दांपत्य जीवन के लिए मां पार्वती की पूजा करती हैं।
श्री मंदिर पर आपका स्वागत है। जयपार्वती व्रत माता पार्वती को समर्पित पर्व है। सुहागिन स्त्रियां इस व्रत को रखकर माता से अपना सुहाग अखंड होने की कामना करती हैं, और कुंवारी कन्याएं ये व्रत सुयोग्य वर पाने के लिए रखती हैं। जयपार्वती व्रत हर वर्ष अषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि से प्रारंभ होकर कृष्ण पक्ष की तृतीया पर समाप्त होता है।
चलिए जानते हैं कि इस साल जया पार्वती व्रत कब है? जानें मुहूर्त व तिथि
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 03:51 ए एम से 04:32 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:12 ए एम से 05:14 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:36 ए एम से 12:30 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:19 पी एम से 03:14 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:51 पी एम से 07:12 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:52 पी एम से 07:54 पी एम तक |
अमृत काल | 05:42 पी एम से 07:26 पी एम तक |
निशिता मुहूर्त | 11:43 पी एम से 12:24 ए एम, जुलाई 09 तक |
रवि योग | 03:15 ए एम, जुलाई 09 से 05:14 ए एम, जुलाई 09 तक |
ऐसा कहा जाता है कि जया पार्वती व्रत का रहस्य विष्णु जी ने लक्ष्मी मां से कहा था। मान्यता है कि जया पार्वती व्रत रखने से विवाहित स्त्रियां सदा सुहागन रहती हैं, और अविवाहित कन्याएं मनचाहा वर पाती हैं। जया पार्वती का व्रत रखने वाली स्त्रियां बालू या रेत का हाथी बनाकर उस पर 5 प्रकार के पुष्प, फल और प्रसाद चढ़ाती हैं।
जया पार्वती के इस व्रत में नमक का प्रयोग पूरी तरह वर्जित माना गया है। इसके साथ ही इस दिन गेहूं का आटा और सभी प्रकार की सब्जियों का सेवन भी नहीं किया जाता है। इस पर्व पर उपवास रखने वाले भक्त फल, दूध, दही, फलों का रस या दूध से बनी मिठाइयां खा सकते हैं। व्रत के अंतिम दिन मंदिर में पूजा करने के बाद नमक और गेहूं के आटे की रोटी या पुड़ी खाकर व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
जया पार्वती व्रत एक विशेष धार्मिक उपवास है जिसे विशेष रूप से कुंवारी कन्याएं भगवान शिव एवं माता पार्वती के आशीर्वाद हेतु करती हैं। यह व्रत पांच दिनों तक चलता है और आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि से प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक मनाया जाता है। कहीं-कहीं इसे "पंचमी व्रत" या "गुजरात की सौभाग्य व्रत परंपरा" के रूप में भी जाना जाता है।
मान्यता है कि एक ब्राह्मण कन्या ने माता पार्वती की प्रेरणा से यह व्रत किया था और उसे एक श्रेष्ठ वर मिला। यह व्रत कन्याएं भगवान शिव जैसे आदर्श और सद्गुणी पति की प्राप्ति के लिए करती हैं। इसके अलावा यह व्रत सौंदर्य, सुख, सौभाग्य और विवाह योग की उत्तम पूर्ति के लिए भी किया जाता है।
इस व्रत में मुख्य रूप से माता पार्वती की पूजा की जाती है, जिनका स्वरूप “जयापार्वती” के रूप में पूजनीय है। साथ ही भगवान शिव और नंदी बैल की भी पूजा की जाती है। व्रती स्त्रियां एक मिट्टी के कलश (या गिलास) में जवारे बोकर पाँच दिनों तक उसकी सेवा करती हैं।
कुंवारी कन्याएं - योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति के लिए। विवाहित स्त्रियां - दांपत्य सुख व सौभाग्य की रक्षा हेतु।
माता-पिता भी अपने बच्चों के अच्छे जीवनसाथी के लिए यह व्रत करवा सकते हैं।
जया पार्वती व्रत न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह आत्मिक शक्ति, संयम और जीवन के शुभ आरंभ की दिशा में एक महत्वपूर्ण साधना भी है। यह व्रत माँ पार्वती के अनन्य प्रेम और समर्पण का उदाहरण है, जिसे आज भी श्रद्धा से निभाया जाता है। तो यह थी जया पार्वती व्रत से जुड़ी जानकारी, हमारी कामना है कि आपका व्रत सफल हो। व्रत, त्यौहार व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर पर।
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