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विद्यारम्भ संस्कार 2024

विद्यारम्भ संस्कार 2024 की तिथि, समय, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि की पूरी जानकारी प्राप्त करें

विद्यारम्भम् : विशेष जानकारी

मनुष्य को सामाजिक प्राणी बनाने में विद्या का बहुत अहम योगदान होता है। यदि समाज में शिक्षा का अभाव होगा तो वह कुरीतियों, दुष्प्रचार, अराजकता आदि का केंद्र बन जाता है। शिक्षा का आरंभ करने के लिये विद्यारम्भम् अनुष्ठान विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसे अक्षरा अभ्यासम भी कहा जाता है। इस पर्व को भारत के कर्नाटक और केरल जैसे दक्षिणी राज्यों में 'एज़ुथिनिरुथु' नाम से भी जाना जाता है।

साल 2024 में विद्यारंभ कब है?

  • विद्यारंभ13 अक्टूबर 2024, रविवार को मनाया जाएगा। -दशमी तिथि 12 अक्टूबर 2024, शनिवार को 10:58 AM से प्रारंभ होगा। -दशमी तिथि का समापन 13 अक्टूबर 2024, रविवार को 09:08 AM पर होगा।
  • मैसूर दसरा 13 अक्टूबर 2024, रविवार को मनाया जाएगा।

क्या है विद्यारंभ?

विद्यारम्भम् एक महत्वपूर्ण हिंदू परंपरा है जो विजयादशमी के दिन मनाई जाती है। इस अनुष्ठान में 4-5 वर्ष के बीच की आयु के बच्चों को ज्ञान, संगीत, नृत्य और लोक कलाओं की विधा से परिचित कराया जाता है। विद्यारम्भम् सीखने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए अत्यंत शुभ दिन माना जाता है। यह समारोह मंदिरों या घरों में आयोजित किया जाता है। दीक्षा और सीखने की प्रक्रिया शुरू करने लिए इस दिन 'आयुध पूजा' की जाती है।

विद्यारंभ का महत्व

विद्यारंभम बच्चों की शिक्षा दीक्षा आरंभ करने के लिए एक विशेष अनुष्ठान है। मलयालम में, 'विद्या' का अर्थ है 'ज्ञान' और 'अरंभम' का अर्थ है 'एक नई शुरुआत'। ये पर्व दक्षिण भारत में पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, विद्यारम्भम् के दिन भगवान गणेश व ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है, गुरुओं का आशीर्वाद लिया जाता है, और गुरुओं या शिक्षकों को धन्यवाद के प्रतीक के रूप में 'गुरुदक्षिणा' भेंट की जाती है। इसके अलावा विद्यारंभम दिवस पर हजारों भक्त अपने बच्चों को शिक्षा की दुनिया से परिचित कराने के लिए मंदिरों में जाते हैं। विद्यारंभम समारोह केरल के 'थुंचन परम्बु मंदिर' और कर्नाटक के 'कोल्लूर मूकाम्बिका मंदिर' में विशेष रूप से लोकप्रिय है।

विद्यारंभ के अनुष्ठान

  • इस दिन बच्चों को सुबह जल्दी उठाकर स्नान कराया जाता है और उन्हें पारंपरिक कपड़े पहनाये जाते हैं।
  • विद्यारम्भम् के दिन भक्त भगवान विष्णु, देवी सरस्वती और भगवान गणेश की पूजा करते हैं। और सीखने की प्रक्रिया का शुभारंभ करते हैं।
  • इस अनुष्ठान में बच्चे सबसे पहले 'ओम ह्री श्री गणपतये नमः' मंत्र को रेत या चावल के दानों पर लिखते हैं। यह अनुष्ठान किसी गुरु या पुजारी द्वारा किया जाता है।
  • विद्यारम्भम् के समय रेत पर लिखना अभ्यास का प्रतीक है; और चावल के दानों पर लिखना ज्ञान प्राप्ति का प्रतीक माना है।
  • इसके बाद गुरु वही मंत्र बच्चे की जीभ पर सोने से लिखते हैं। विद्यार्थी की जीभ पर सोने से मंत्र लिखने से देवी सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है।
  • विद्यारम्भम् का अनुष्ठान पूर्ण होने के बाद विद्यार्थी द्वारा अन्य बच्चों में शिक्षा से संबंधित वस्तुएं जैसे स्लेट, पेंसिल आदि का वितरण करने का विधान है।

तो यह थी पवित्र पर्व विद्यारम्भम् से जुड़ी संपूर्ण जानकारी, हमारी कामना कि आपकी संतान पर माता सरस्वती की कृपा बनी रहे, वह शिक्षा व कला में निपुण हो, और यशस्वी बने। ऐसे ही व्रत-त्यौहारों से जुड़ी जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' के इस धार्मिक मंच पर।

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Published by Sri Mandir·January 7, 2025

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