भुवनेश्वरी कवच
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भुवनेश्वरी कवच

क्या आप जानते हैं कि माँ भुवनेश्वरी के कवच का पाठ करने से जीवन में सुख-शांति और सौभाग्य बढ़ता है? जानिए इसकी पाठ विधि और अद्भुत लाभ।

भुवनेश्वरी कवच के बारे में

भुवनेश्वरी कवच एक दिव्य स्तोत्र है जो देवी भुवनेश्वरी की आराधना हेतु पाठ किया जाता है। यह कवच साधक को भय, रोग और बाधाओं से रक्षा प्रदान करता है। इसके जप से आत्मविश्वास, मानसिक शांति और सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मां की कृपा से जीवन में सफलता मिलती है।

कौन है माता भुवनेश्वरी

माँ भुवनेश्वरी दस महाविद्याओं में से एक हैं और त्रिपुरा सुंदरी, माँ काली, माँ तारा जैसी शक्तियों का ही एक रूप हैं। "भुवन" का अर्थ होता है ब्रह्मांड या जगत और "ईश्वरी" का अर्थ होता है स्वामिनी, इस प्रकार भुवनेश्वरी का तात्पर्य हुआ – समस्त ब्रह्मांड की स्वामिनी।

त्रिदेवों की संयुक्त शक्ति के रूप में, भुवनेश्वरी देवी को 'सृष्टि की अधिष्ठात्री’ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्मा ने इनके ही आशीर्वाद से सृष्टि की रचना की। इनका वर्ण लालिमा युक्त होता है और ये लाल वस्त्र धारण किये हुए हैं। माता की चार भुजाएं हैं जिनमें माँ अंकुश व पाश धारण करती हैं और दो हाथ वरद एवं अभय मुद्रा में हैं, होने माँ भवनेश्वरी अपने भक्तों को आशीर्वाद देती है।

देवी भुवनेश्वरी की पूजा-अर्चना करने से भक्तों को आतंरिक ज्ञान, मानसिक शांति एवं जीवन की कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति प्राप्त होती है। जो व्यक्ति अपने जीवन में किसी प्रकार की सिद्धि पाना चाहता है, उसे माँ भुवनेश्वरी कवच का पाठ करके, माँ की साधना करनी चाहिए। इससे वह व्यक्ति अपने लक्ष्य में अवश्य सफल होता है।

भुवनेश्वरी कवच

॥ देव्युवाच ॥

देवेश भुवनेश्वर्या या या विद्याः प्रकाशिताः ।

श्रुताश्चाधिगताः सर्वाः श्रोतुमिच्छामि साम्प्रतम् ॥

त्रैलोक्यमङ्गलं नाम कवचं यत्पुरोदितम् ।

महादेव मम प्रीतिकरं परम् ॥

॥ ईश्वर उवाच ॥

श्रृणु पार्वति वक्ष्यामि सावधानावधारय ।

त्रैलोक्यमङ्गलं नाम कवचं मन्त्रविग्रहम् ॥

सिद्धविद्यामयं देवि सर्वैश्वर्यसमन्वितम् ।

पठनाद्धारणान्मर्त्यस्त्रैलोक्यैश्वर्यभाग्भवेत् ॥

ॐ अस्य श्रीभुवनेश्वरीत्रैलोक्यमङ्गलकवचस्य

शिव ऋषिः ,विराट् छन्दः, जगद्धात्री भुवनेश्वरी

देवता , धर्मार्थकाममोक्षार्थे जपे विनियोगः ।

ह्रीं बीजं मे शिरः पातु भुवनेशी ललाटकम् ।

ऐं पातु दक्षनेत्रं मे ह्रीं पातु वामलोचनम् ॥

श्रीं पातु दक्षकर्णं मे त्रिवर्णात्मा महेश्वरी ।

वामकर्णं सदा पातु ऐं घ्राणं पातु मे सदा ॥

ह्रीं पातु वदनं देवि ऐं पातु रसनां मम ।

वाक्पुटा च त्रिवर्णात्मा कण्ठं पातु परात्मिका ॥

श्रीं स्कन्धौ पातु नियतं ह्रीं भुजौ पातु सर्वदा ।

क्लीं करौ त्रिपुटा पातु त्रिपुरैश्वर्यदायिनी ॥

ॐ पातु हृदयं ह्रीं मे मध्यदेशं सदावतु ।

क्रौं पातु नाभिदेशं मे त्र्यक्षरी भुवनेश्वरी ॥

सर्वबीजप्रदा पृष्ठं पातु सर्ववशङ्करी ।

ह्रीं पातु गुह्यदेशं मे नमोभगवती कटिम् ॥

माहेश्वरी सदा पातु शङ्खिनी जानुयुग्मकम् ।

अन्नपूर्णा सदा पातु स्वाहा पातु पदद्वयम् ॥

सप्तदशाक्षरा पायादन्नपूर्णाखिलं वपुः ।

तारं माया रमाकामः षोडशार्णा ततः परम् ॥

शिरःस्था सर्वदा पातु विंशत्यर्णात्मिका परा ।

तारं दुर्गे युगं रक्षिणी स्वाहेति दशाक्षरा ॥

जयदुर्गा घनश्यामा पातु मां सर्वतो मुदा ।

मायाबीजादिका चैषा दशार्णा च ततः परा ॥

उत्तप्तकाञ्चनाभासा जयदुर्गाऽऽननेऽवतु ।

तारं ह्रीं दुं च दुर्गायै नमोऽष्टार्णात्मिका परा ॥

शङ्खचक्रधनुर्बाणधरा मां दक्षिणेऽवतु ।

महिषामर्द्दिनी स्वाहा वसुवर्णात्मिका परा ॥

नैऋत्यां सर्वदा पातु महिषासुरनाशिनी ।

माया पद्मावती स्वाहा सप्तार्णा परिकीर्तिता ॥

पद्मावती पद्मसंस्था पश्चिमे मां सदाऽवतु ।

पाशाङ्कुशपुटा मायो स्वाहा हि परमेश्वरि ॥

त्रयोदशार्णा ताराद्या अश्वारुढाऽनलेऽवतु ।

सरस्वति पञ्चस्वरे नित्यक्लिन्ने मदद्रवे ॥

स्वाहा वस्वक्षरा विद्या उत्तरे मां सदाऽवतु ।

तारं माया च कवचं खे रक्षेत्सततं वधूः ॥

हूँ क्षें ह्रीं फट् महाविद्या द्वादशार्णाखिलप्रदा ।

त्वरिताष्टाहिभिः पायाच्छिवकोणे सदा च माम् ॥

ऐं क्लीं सौः सततं बाला मूर्द्धदेशे ततोऽवतु ।

बिन्द्वन्ता भैरवी बाला हस्तौ मां च सदाऽवतु ॥

इति ते कथितं पुण्यं त्रैलोक्यमङ्गलं परम् ।

सारात्सारतरं पुण्यं महाविद्यौघविग्रहम् ॥

अस्यापि पठनात्सद्यः कुबेरोऽपि धनेश्वरः ।

इन्द्राद्याः सकला देवा धारणात्पठनाद्यतः ॥

सर्वसिद्धिश्वराः सन्तः सर्वैश्वर्यमवाप्नुयुः ।

पुष्पाञ्जल्यष्टकं दद्यान्मूलेनैव पृथक् पृथक् ॥

संवत्सरकृतायास्तु पूजायाः फलमाप्नुयात् ।

प्रीतिमन्योऽन्यतः कृत्वा कमला निश्चला गृहे ॥

वाणी च निवसेद्वक्त्रे सत्यं सत्यं न संशयः ।

यो धारयति पुण्यात्मा त्रैलोक्यमङ्गलाभिधम् ॥

कवचं परमं पुण्यं सोऽपि पुण्यवतां वरः ।

सर्वैश्वर्ययुतो भूत्वा त्रैलोक्यविजयी भवेत् ॥

पुरुषो दक्षिणे बाहौ नारी वामभुजे तथा ।

बहुपुत्रवती भूयाद्वन्ध्यापि लभते सुतम् ॥

ब्रह्मास्त्रादीनि शस्त्राणि नैव कृन्तन्ति तं जनम् ।

एतत्कवचमज्ञात्वा यो भजेद्भुवनेश्वरीम् ।

दारिद्र्यं परमं प्राप्य सोऽचिरान्मृत्युमाप्नुयात् ॥

॥ इति श्री भुवनेश्वरी कवचं सम्पूर्णम् ॥

भुवनेश्वरी कवच का पाठ करने के लाभ

भुवनेश्वरी कवच एक शक्तिशाली स्तोत्र है, जिसका पाठ माँ भुवनेश्वरी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। यह कवच तंत्र-मंत्र साधना में विशेष महत्व रखता है, एवं इसका नियमित पाठ से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।

दैवीय सुरक्षा एवं शक्ति प्राप्ति

भुवनेश्वरी कवच का पाठ करने से साधक को दिव्य कवच के रूप में अदृश्य सुरक्षा प्राप्त होती है। मान्यता है कि यह कवच नकारात्मक शक्तियों, भूत-प्रेत, बुरी नजर और आकस्मिक संकटों से रक्षा करता है।

मानसिक शांति एवं आत्मबल की वृद्धि

इस कवच के नियमित जाप से मन शांत होता है, चिंता एवं भय दूर होते हैं। यह साहस एवं आत्मविश्वास बढ़ाता है और मनोबल को मजबूत करता है।

सिद्धि एवं मोक्ष प्राप्ति

भुवनेश्वरी कवच को मंत्र सिद्धि के लिए उत्तम माना गया है। साधक को ध्यान, तप व मंत्र जाप में सफलता मिलती है। इसके प्रभाव से साधकों के लिए मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है।

सांसारिक सुखों की प्राप्ति

इस कवच के पाठ से आर्थिक समस्याएँ दूर होती हैं और धन प्राप्ति के नए मार्ग खुलते हैं। साथ ही परिवार में सभी सदस्यों को शारीरिक एवं मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है। कहा जाता है कि इस कवच का पाठ करने से शत्रुओं पर विजय और कानूनी विवादों में सफलता मिलती है।

देवी भुवनेश्वरी की कृपा

नियमित पाठ करने वाले साधक पर माँ भुवनेश्वरी की विशेष कृपा बनी रहती है। भुवनेश्वरी कवच एक संपूर्ण सुरक्षा कवच है, जो सिद्धियों के साथ सांसारिक सुख भी प्रदान करता है। इसे शुद्ध मन से नियमित रूप से पढ़ने पर अद्भुत फल प्राप्त होते हैं।

भुवनेश्वरी कवच पाठ विधि

भुवनेश्वरी कवच माँ दुर्गा के सबसे शक्तिशाली स्वरूप को प्रसन्न करने का मार्ग है। इसे सही विधि से पढ़ने से बहुत लाभ मिलते हैं।

  • इस पाठ के लिए सबसे पहले स्नान करके साफ वस्त्र पहनें।
  • अब लाल या पीले रंग का आसन बिछाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
  • अपने दाईं ओर एक घी का दीपक जलाकर माँ भुवनेश्वरी का ध्यान करें। अब देवी को लाल फूल, अक्षत और नेवैद्य अर्पित करें।
  • "ॐ ऐं ह्रीं श्रीं भुवनेश्वर्यै नमः" इस ध्यान मंत्र को 3 बार बोलकर मन में देवी का स्वरूप याद करें।
  • भुवनेश्वरी कवच को स्पष्ट व श्रद्धा से पढ़ें। अगर संपूर्ण कवच याद न हो, तो इसे कागज पर लिखकर या किताब से पढ़ सकते हैं।
  • पाठ के बाद पुनः "ॐ ऐं ह्रीं श्रीं भुवनेश्वर्यै नमः" मंत्र का 11 या 108 बार जप करें। कवच पढ़ने के बाद कुछ देर मौन रहकर माँ का धन्यवाद करें।
  • भुवनेश्वरी कवच को सुबह ब्रह्म मुहूर्त अर्थात प्रातः 4 बजे से 6 बजे या संध्या को गोधूलि समय में पढ़ना अच्छा रहता है।
  • नवरात्रि, मंगलवार या शुक्रवार को अवश्य पढ़ें, इस समय यह कवच विशेष लाभ देता है।

भुवनेश्वरी कवच का पाठ सरल है, लेकिन श्रद्धा और नियम से करने पर ही इसका पूरा फल मिलता है, तथा यह आपको सुरक्षा, शक्ति और सफलता देता है। ऐसे ही अन्य शक्तिशाली जाप-मंत्र एवं श्लोकों से जुड़ी जानकारी के लिए बने रहिये श्री मंदिर के साथ।

देवी भुवनेश्वरी की कृपा आप पर बनी रहे, जय माँ भुवनेश्वरी!

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Published by Sri Mandir·April 15, 2025

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