दुर्गा कवच श्लोक
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दुर्गा कवच श्लोक

क्या आप जानते हैं दुर्गा कवच के पाठ से आप दैवीय रक्षा चक्र में सुरक्षित हो सकते हैं? जानें श्लोक, पाठ विधि और इसके अद्भुत लाभ।

दुर्गा कवच के बारे में

दुर्गा कवच एक पवित्र संस्कृत रचना है जो देवी दुर्गा की कृपा और सुरक्षा प्राप्त करने हेतु पाठ की जाती है। इसमें माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों का वर्णन है, जो शरीर के हर अंग की रक्षा करते हैं। इसे पढ़ने से भय, रोग और नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं।

दुर्गा कवच

जिस तरह कोई योद्धा रणभूमि में उतरने से पहले अस्त्र-शस्त्र और कवच धारण करता है, वैसे ही हमारे जीवन रूपी युद्ध में जब तक आंतरिक और बाहरी संकटों का सामना करने के लिए मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक कवच न हो, तब तक हम असुरक्षित रहते हैं। मां दुर्गा का कवच ऐसा ही एक दिव्य सुरक्षा कवच है, जो न केवल अदृश्य रूप में साधक की रक्षा करता है, बल्कि उसे साहस, आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा से भी भर देता है।

दुर्गा कवच

श्री दुर्गा कवचम्:

ॐ अस्य श्रीदुर्गा कवचस्य।

ब्रह्मा ऋषिः। अनुष्टुप् छन्दः। कात्यायनी देवता।

अङ्गन्यासो करन्यासश्च विनियोगः॥

ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

नमः शिरस्यादित्याय चन्द्राय च नमो नमः।

मङ्गलाय बुधायैव गुरवे च नमो नमः॥

शुक्राय च शनैश्चराय राहवे केतवे नमः।

शरीरं मे बलेनाद्य सर्वं मे रक्षितं कुरु॥

पादौ मे पातु जगदम्बा, उरु मे पातु भैरवी।

जङ्घे महेश्वरी पातु, कटी चायं महादुर्गा॥

नाभिं पातु महालक्ष्मीः, हृदयं पातु वैष्णवी।

कण्ठं पातु शिवा गौरी, वदनं पातु वाराही॥

नेत्रे पातु महा रौद्री, श्रवणे पातु शाङ्करी।

नासिकां सिंहवाहिनी, मुखं पातु महेश्वरी॥

ललाटं पातु कौमारी, भ्रूयुग्मं भैरवी तथा।

कर्णद्वयं च चामुण्डा, पातु नेत्रे च पिङ्गला॥

गण्डद्वयं च वाराही, नासिकां नृसिंही तथा।

ओष्ठद्वयं च महादेवी, जिह्वां चाण्डी निशेविता॥

दन्तान् रक्षतु कालिका, कण्ठदेशे च पार्वती।

स्कन्धौ कालरात्रिश्च, भुजौ पातु महेश्वरी॥

हस्तद्वयं च वराही, हृदयम् पातु नारायणी।

स्तनौ रक्षतु कौमारी, पृष्ठदेशे महेश्वरी॥

नाभिं पातु महा लक्ष्मीः, गुह्यं पातु महासना।

उरू महाबला पातु, जानुनी चण्डिका तथा॥

जङ्घे पातु महादुर्गा, पादौ भद्रकाली तथा।

सर्वाङ्गं पातु मे नित्यं, सर्वशक्तिः स्वलक्षणा॥

इदं कवचं पूर्णं ब्रह्मणा प्रोक्तं महात्मना।

यः पठेत् प्रातरुत्थाय सर्वशत्रुनिवारणम्॥

सर्वरोगप्रशमनं सर्वदुःखनिवारणम्।

रक्षां करोतु मे देवी, जयन्ती पापनाशिनी॥

दुर्गा कवच का महत्व और विशेषता

दुर्गा कवच, जिसे श्री दुर्गा अंगरक्षण स्तोत्र भी कहा जाता है, वैदिक काल से चली आ रही एक ऐसी दिव्य रचना है, जिसमें मां दुर्गा के विभिन्न शक्तिशाली रूपों और उनके द्वारा हमारे शरीर के प्रत्येक अंग की रक्षा करने का आह्वान किया जाता है। साधक जैसे-जैसे इसका पाठ करता है, उसके चारों ओर मां दुर्गा का ऊर्जा क्षेत्र बनता जाता है, जिससे उसे बाहरी बाधाएं, दुर्घटनाएं, रोग, भय, शत्रु, दरिद्रता और मानसिक परेशानियां छू नहीं पातीं।

यह कवच न केवल साधक के जीवन को नकारात्मक शक्तियों से बचाता है, बल्कि भीतर छिपे आत्मबल और साहस को भी जाग्रत करता है। इसे नियमित रूप से पढ़ने से साधक का भाग्य भी प्रबल होता है और आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग प्रशस्त होते हैं।

दुर्गा कवच के पाठ करने के फायदे

  • शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सुरक्षा: यह कवच शरीर के प्रत्येक अंग को देवी के अलग-अलग रूपों द्वारा सुरक्षित करता है। मन, मस्तिष्क और आत्मा में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। नकारात्मक शक्तियों, भूत-प्रेत बाधा, नजर दोष जैसी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
  • शत्रु और विरोधियों पर विजय: कवच साधक को भीतर से इतना शक्तिशाली बना देता है कि वह मानसिक और भौतिक शत्रुओं पर विजय हासिल करता है। कोर्ट-कचहरी, शत्रु बाधा, प्रतियोगी परीक्षा या व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा जैसी स्थितियों में विशेष रूप से लाभकारी है।
  • रोग, भय और दरिद्रता का नाश: नियमित पाठ करने से असाध्य रोग, मानसिक तनाव, भय, अनिश्चितता और आर्थिक अभाव दूर होते हैं। यह कवच रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है।
  • भाग्य, यश और कीर्ति में वृद्धि: मां दुर्गा का आशीर्वाद साधक के भाग्य को प्रबल करता है, जिससे समाज में मान-सम्मान, कीर्ति, सुख-समृद्धि और सौभाग्य मिलता है।
  • साधना में सफलता: जिन साधकों की साधना में विघ्न-बाधाएं आती हैं, उनके लिए यह कवच विशेष सहायक है। इससे साधना में एकाग्रता और आत्मबल बढ़ता है।

दुर्गा कवच पाठ विधि (सही और सरल तरीका)

शुभ समय और दिन

  • सप्ताह के किसी भी दिन पढ़ा जा सकता है, परंतु सोमवार, मंगलवार, शुक्रवार और विशेषकर नवरात्रि में इसका पाठ करने से अत्यंत लाभकारी परिणाम मिलते हैं।
  • प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में या संध्या के समय इसका पाठ श्रेष्ठ माना जाता है।

स्थान चयन

  • घर के पूजा कक्ष, मंदिर या किसी शांत, स्वच्छ स्थान पर आसन लगाकर बैठें।
  • उत्तर या पूर्व दिशा में मुख रखें।

आवश्यक सामग्री

  • लाल आसन, मां दुर्गा की मूर्ति या चित्र।
  • घी या तेल का दीपक, अगरबत्ती, पुष्प, अक्षत (चावल), कुमकुम, फल, मिठाई आदि।

स्नान और शुद्धि

  • स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • चारों ओर गंगाजल का छिड़काव करें, जिससे वातावरण पवित्र हो।

आसन और मुद्रा

  • कुश या लाल कपड़े के आसन पर बैठें।
  • हाथ में रुद्राक्ष या लाल चंदन की माला लें।

प्रारंभिक प्रार्थना

  • सर्वप्रथम भगवान गणेश, गुरु, अपने कुलदेवता का स्मरण करें।
  • मां दुर्गा का ध्यान कर दीपक जलाएँ और पुष्प अर्पित करें।

पाठ क्रम

  • गणेश वंदना।
  • मां दुर्गा का ध्यान।
  • दुर्गा कवच का संपूर्ण पाठ।
  • मां की आरती।

संकल्प

  • मन में यह स्पष्ट भावना रखें कि किस उद्देश्य से पाठ कर रहे हैं—रक्षा, सफलता, रोग मुक्ति, भय नाश, सुख-समृद्धि या साधना सिद्धि के लिए।

पाठ के बाद

  • मां दुर्गा से आशीर्वाद मांगें।
  • परिवार और मित्रों में प्रसाद वितरित करें।
  • कुछ देर शांति से ध्यान करें।

विशेष सुझाव

  • यदि समय हो तो दुर्गा सप्तशती के अन्य स्तोत्र—अर्गला स्तोत्र, कीलक और नवावरण मंत्रों के साथ पाठ करें।
  • उपवास के साथ पाठ करने पर इसका प्रभाव और अधिक बढ़ जाता है।
  • पाठ करते समय पूर्ण श्रद्धा और एकाग्रता रखें, मन विचलित न हो।
  • मोबाइल, टीवी, शोर-शराबे से दूर रहकर पाठ करें।
  • प्रतिदिन एक ही समय पर पाठ करें, जिससे मानसिक स्थिरता बनी रहे।

समापन

दुर्गा कवच एक पवित्र अंगरक्षक स्तोत्र है, जिसे देवी दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों से शरीर के प्रत्येक अंग की रक्षा के लिए रचा गया है। यह कवच केवल मंत्रों का समूह नहीं है, बल्कि इसमें छिपा है मां दुर्गा का वह अपार शक्ति स्रोत, जो साधक के चारों ओर अभेद्य सुरक्षा चक्र बना देता है। यह कवच 'देवी महात्म्य' यानी दुर्गा सप्तशती का महत्वपूर्ण भाग है, और इसका उल्लेख मार्कंडेय पुराण में मिलता है।

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Published by Sri Mandir·April 23, 2025

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