guru Vashisht  | गुरू वशिष्ठ, जीवन परिचय, आयु, रचनाएँ

गुरू वशिष्ठ

जानें गुरू वशिष्ठ का जीवन परिचय, आयु और रचनाएं, जो भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं!


गुरु वशिष्ठ कौन थे?

हिंदू धर्म में वैदिक काल के सबसे प्रसिद्ध ऋषि थे गुरु वशिष्ठ। वशिष्ठ का अर्थ होता है कि सबसे प्रकाशवान, उत्कृष्ट, सभी में श्रेष्ठ और महिमावंत। इन्हें प्रभु श्री राम के गुरु के रूप में भी जाना जाता है। ये राजा दशरथ के राजकुल गुरु भी थे। ब्रह्मा जी के मानस पुत्र गुरु वशिष्ठ त्रिकालदर्शी व बहुत ज्ञानवान ऋषि थे।

इनका विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री अरुंधती से हुआ था। सूर्यवंशी राजा, वशिष्ठ जी की आज्ञा के बिना कोई धार्मिक कार्य नहीं करते थे। कहते हैं कि त्रेता युग के अंत में ये ब्रह्मलोक चले गए थे। गुरु वशिष्ठ सप्तर्षियों में भी शामिल हैं। यानी ये उन 7 ऋषियों में से एक जिन्हें ईश्वर द्वारा सत्य का ज्ञान एक साथ हुआ था और जिन्होंने मिलकर वेदों का दर्शन या रचना की थी। वहीं आकाश में चमकते 7 तारों के समूह में से एक स्थान पर वशिष्ठ जी को स्थित माना जाता है।

गुरु वशिष्ठ का जीवन परिचय

वेद, इतिहास, पुराणों में गुरु वशिष्ठ के अनगिनत कार्यों का उल्लेख किया गया है। पुराणों में महर्षि वशिष्ठ जी की उत्पत्ति का वर्णन कई रूपों में किया गया है। कहीं ये ब्रह्मा जी के मानस पुत्र तो कहीं मित्रावरुण के पुत्र और कहीं अग्निपुत्र कहे गये हैं।

पुराणों के अनुसार, जब इनके पिता ब्रह्मा जी ने इन्हें मृत्युलोक में जाकर सृष्टि का विस्तार करने व सूर्यवंश का पौरोहित्य कर्म करने की आज्ञा दी, तब इन्होंने पौरोहित्य कर्म को अत्यन्त निन्दित कार्य मानकर उसे करने से मना कर दिया। इस पर ब्रह्मा जी ने कहा- हे वशिष्ठ, सूर्यवंश में ही आगे चलकर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम अवतार लेंगे। यह पौरोहित्य कर्म ही तुम्हारी मुक्ति का मार्ग बनेगा।

ब्रह्मा जी द्वारा मार्ग दिखाने के बाद वशिष्ठ जी ने धरा धाम पर मानव-शरीर में आना स्वीकार किया। गुरु वशिष्ठ ने सूर्यवंश का पौरोहित्य कार्य करते हुए कई लोक कल्याणकारी कार्यों को सम्पन्न किया। इन्हीं के उपदेश देने के बाद भागीरथ ने प्रयास करके लोक कल्याणकारी गंगा नदी को धरती पर लाए थे।

महाराज दशरथ की निराशा में आशा का संचार करने वाले गुरु वशिष्ठ ही थे। इन्हीं की सलाह से महाराज दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया था, जिसके बाद प्रभु श्री राम का अवतार हुआ। प्रभु श्री राम को शिष्य के रूप में प्राप्त करके गुरु वशिष्ठ का पुरोहित जीवन सफल हो गया।

गुरु वशिष्ठ क्षमा की प्रतिमूर्ति थे। कहते हैं कि एक बार विश्वामित्र वशिष्ठ जी के आश्रम में आए। गुरु वशिष्ठ ने कामधेनु के सहयोग से विश्वामित्र का राजोचित सत्कार किया। कामधेनु की अलौकिक क्षमता को देख विश्वामित्र ने गुरु वशिष्ठ से उस गाय को अपने साथ ले जाने की इच्छा प्रकट की।

कामधेनु गुरु वशिष्ठ जी के लिए आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए महत्त्वपूर्ण साधन थी, इस वजह से वशिष्ठ जी ने उसे देने से इनकार कर दिया। इस पर विश्वामित्र ने कामधेनु को बलपूर्वक ले जाना चाहा, जिसके बाद वशिष्ठ जी के संकेत पर कामधेनु ने अपार सेना खड़ी कर दी। इतनी विशाल सेना देख विश्वामित्र को वहां से खाली हाथ लौटने पर विवश होना पड़ा।

गुरु वशिष्ठ से बदला लेने के लिए विश्वामित्र ने भगवान शंकर की तपस्या की और उनसे दिव्यास्त्र प्राप्त किया। दिव्यास्त्र प्राप्त करने के बाद विश्वामित्र ने गुरु वशिष्ठ पर दोबारा से आक्रमण कर दिया, लेकिन वशिष्ठ के ब्रह्मदण्ड के सामने उनके सारे दिव्यास्त्र विफल हो गए। गुरु वशिष्ठ से हारने के बाद विश्वामित्र तपस्या के लिए वन चले गए। जहां उनकी अपूर्व तपस्या से सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए।

सभी ने उन्हें ब्रह्मर्षि मान लिया, लेकिन गुरु वशिष्ठ के ब्रह्मर्षि कहे बिना वे ब्रह्मर्षि नहीं कहला सकते थे। विश्वामित्र ने एक बार फिर से वशिष्ठ जी को मारने की योजना बनाई और उनके आश्रम में जाकर छुप गए। इस दौरान उन्होंने वशिष्ठ जी के मुख से अपनी अपूर्व तप की प्रशंसा सुनी, जिसके बाद विश्वामित्र को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे वशिष्ठ जी के शरण में चले गए। गुरु वशिष्ठ ने उन्हें गले से लगाया और ब्रह्मर्षि की उपाधि से विभूषित किया।

गुरु वशिष्ठ के महत्वपूर्ण योगदान

  • महाराजा दशरथ को पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने की सलाह गुरु वशिष्ठ जी ने ही दी थी, जिसके बाद भगवान राम अवतरित हुए थे।
  • मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का गुरु होने का सौभाग्य वशिष्ठ जी को प्राप्त है।
  • मां गंगा को धरती पर लाने वाले भागीरथ जी को उपदेश देने वाले भी गुरु वशिष्ठ जी ही थे।
  • वशिष्ठ जी ने ही दिलीप को नंदिनी की सेवा की शिक्षा दी थी, जिससे रघु जैसे पुत्र की प्राप्ति हुई थी।

गुरु वशिष्ठ से जुड़े रहस्य

कहते हैं महाराज दशरथ जी के सभी पुत्रों का नामकरण गुरु वशिष्ठ ने ही किए थे। महाभारत में गुरु वशिष्ठ जी के सूत्र कुछ इस तरह जुड़े हैं मानों वे ही धृतराष्ट्र व पाण्डु के आदि-पूर्वज हैं।

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