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श्री हरि स्तोत्र | Shri Hari Stotram

श्री हरि स्तोत्र भगवान विष्णु की आराधना का शक्तिपूर्ण स्तोत्र है, जो भक्तों को संरक्षण, सफलता और सुख प्रदान करता है। इसके पाठ का आध्यात्मिक महत्व, विधि और लाभ की विशेष जानकारी यहाँ प्राप्त करें।

श्री हरि स्तोत्र के बारे में

श्री हरि स्तोत्र भगवान विष्णु को समर्पित एक पवित्र और शक्तिशाली स्तोत्र है। इसका पाठ करने से मन, वाणी और कर्म में पवित्रता आती है तथा जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। यह स्तोत्र पापों का नाश कर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। इस लेख में जानिए श्री हरि स्तोत्र का महत्व और इसके पाठ से मिलने वाले लाभ।

श्री हरि स्तोत्र (Shri Hari Stotram)

भगवान विष्णु को समर्पित श्री हरि स्तोत्र की रचना श्री आचार्य ब्रह्मानंद द्वारा की गई है। इस स्तोत्र के पाठ से भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद मिलता है। इस स्तोत्र को भगवान श्री हरि की उपासना के लिए सबसे शक्तिशाली मंत्र कहा गया है।

श्री हरि स्तोत्र पाठ विधि

  • पाठ शुरू करने से पहले सुबह उठकर नित्य क्रिया के बाद स्नान कर लें।
  • श्री गणेश का नाम ले कर पूजा शुरू करें।
  • पाठ को शुरू करने के बाद बीच में रुकना या उठना नहीं चाहिए।

श्री हरि स्तोत्र से लाभ

  • श्री हरि स्तोत्र के जाप मनुष्य को तनाव से मुक्ति मिलती है।
  • श्री हरि स्तोत्र के जाप से भगवान विष्णु का विशेष आशीर्वाद मिलता है।
  • श्री हरी स्तोत्र के पाठ से जीवन में आगे बढ़ने की शक्ति मिलती है।
  • श्री हरी स्तोत्र के पाठ से बुरी लत और गलत संगत से छुटकारा मिलता है।
  • पूरी श्रद्धाभाव से यह पाठ करने से मनुष्य वैकुण्ठ लोक को प्राप्त होता है।
  • वह दुख,शोक,जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है।

श्री हरि स्तोत्र एवं अर्थ

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जगज्जालपालं कचतकण्ठमालं, शरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालम्। नभोनीलकायं दुरावारमायं, सुपद्मासहायं भजेहं भजेहम्॥1॥

अर्थ: जो समस्त जगत के रक्षक हैं, जो गले में चमकता हार पहने हुए है, जिनका मस्तक शरद ऋतु में चमकते चन्द्रमा की तरह है और जो महादैत्यों के काल हैं। आकाश के समान जिनका रंग नीला है, जो अजय मायावी शक्तियों के स्वामी हैं, देवी लक्ष्मी जिनकी साथी हैं उन भगवान विष्णु को मैं बारंबार भजता हूँ।

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सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासं, जगत्संनिवासं शतादित्यभासम्। गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रं, हसच्चारुवक्रं भजेहं भजेहम्॥2॥

अर्थ: जो सदा समुद्र में वास करते हैं,जिनकी मुस्कान खिले हुए पुष्प की भांति है, जिनका वास पूरे जगत में है,जो सौ सूर्यों के समान प्रतीत होते हैं। जो गदा,चक्र और शस्त्र अपने हाथों में धारण करते हैं, जो पीले वस्त्रों में सुशोभित हैं और जिनके सुंदर चेहरे पर प्यारी मुस्कान हैं, उन भगवान विष्णु को मैं बारंबार भजता हूँ।

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रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारं, जलांतर्विहारं धराभारहारम्। चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं, धृतानेकरूपं भजेहं भजेहम्॥3।

अर्थ: जिनके गले के हार में देवी लक्ष्मी का चिन्ह बना हुआ है, जो वेद वाणी के सार हैं, जो जल में विहार करते हैं और पृथ्वी के भार को धारण करते हैं। जिनका सदा आनंदमय रूप रहता है और मन को आकर्षित करता है, जिन्होंने अनेकों रूप धारण किये हैं, उन भगवान विष्णु को मैं बारम्बार भजता हूँ।

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जराजन्महीनं परानंदपीनं, समाधानलीनं सदैवानवीनं। जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुं, त्रिलोकैकसेतुं भजेहं भजेहम्॥4॥

अर्थ: जो जन्म और मृत्यु से मुक्त हैं, जो परमानन्द से भरे हुए हैं, जिनका मन हमेशा स्थिर और शांत रहता है, जो हमेशा नूतन प्रतीत होते हैं। जो इस जगत के जन्म के कारक हैं। जो देवताओं की सेना के रक्षक हैं और जो तीनों लोकों के बीच सेतु हैं। उन भगवान विष्णु को मैं बारंबार भजता हूँ।

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कृताम्नायगानं खगाधीशयानं, विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानम्। स्वभक्तानुकूलं जगद्दृक्षमूलं, निरस्तार्तशूलं भजेहं भजेहम्॥5॥

अर्थ: जो वेदों के गायक हैं। पक्षीराज गरुड़ की जो सवारी करते हैं। जो मुक्तिदाता हैं और शत्रुओं का जो मान हारते हैं। जो भक्तों के प्रिय हैं, जो जगत रूपी वृक्ष की जड़ हैं और जो सभी दुखों को निरस्त कर देते हैं। मैं उन भगवान विष्णु को बारम्बार भजता हूँ।

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समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशं, जगद्विम्बलेशं ह्रदाकाशदेशम्। सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहं, सुवैकुंठगेहं भजेहं भजेहम्॥6॥

अर्थ: जो सभी देवताओं के स्वामी हैं, काली मधुमक्खी के समान जिनके केश का रंग है, पृथ्वी जिनके शरीर का हिस्सा है और जिनका शरीर आकाश के समान स्पष्ट है। जिनका शरीर सदा दिव्य है, जो संसार के बंधनों से मुक्त हैं, बैकुंठ जिनका निवास है, मैं उन भगवान विष्णु को बारम्बार भजता हूँ।

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सुरालीबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं, गुरुणां गरिष्ठं स्वरुपैकनिष्ठम्। सदा युद्धधीरं महावीरवीरं, भवांभोधितीरं भजेहं भजेहम्॥7॥

अर्थ: जो देवताओं में सबसे बलशाली हैं, त्रिलोकों में सबसे श्रेष्ठ हैं, जिनका एक ही स्वरूप है, जो युद्ध में सदा विजय हैं, जो वीरों में वीर हैं, जो सागर के किनारे पर वास करते हैं, उन भगवान विष्णु को मैं बारंबार भजता हूँ।

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रमावामभागं तलानग्ननागं, कृताधीनयागं गतारागरागम्। मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतं, गुणौघैरतीतं भजेहं भजेहम्॥8॥

अर्थ: जिनके बाईं ओर लक्ष्मी विराजित होती हैं। जो शेषनाग पर विराजित हैं। जो राग-रंग से मुक्त हैं। ऋषि-मुनि जिनके गीत गाते हैं। देवता जिनकी सेवा करते हैं और जो गुणों से परे हैं। मैं उन भगवान विष्णु को बारम्बार भजता हूँ।

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**॥ फलश्रुति॥** इदं यस्तु नित्यं समाधाय, चित्तं पठेदष्टकं कष्टहारं मुरारेः। स विष्णोर्विशोकं ध्रुवं याति लोकं, जराजन्मशोकं पुनरविंदते नो॥

अर्थ: भगवान हरि का यह अष्टक जो कि मुरारी के कंठ की माला के समान है,जो भी इसे सच्चे मन से पढ़ता है वह वैकुण्ठ लोक को प्राप्त होता है। वह दुख, शोक, जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है।

॥ इति श्रीपरमहंसस्वामिब्रह्मानंदविरचितं श्रीहरिस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥

भगवान श्री हरि की आराधना करने के लिए धर्म ग्रंथों में कुछ दिव्य मंत्र बताए गए हैं। इन दिव्य मंत्रों से हमारे आराध्य देव प्रसन्न होते हैं। श्री हरि स्तोत्र को भगवान श्री हरि की स्तुति के लिए सबसे शक्तिशाली और प्रभावी मंत्र बताया गया है। इसके जाप से नारायण की असीम कृपा मिलती है।

सृष्टि के पालनहार की श्री हरि की कृपा जिस पर होती है, उसका जीवन धन्य हो जाता है। श्री विष्णु के स्मरण से मनुष्य के सारे पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं।

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Published by Sri Mandir·November 3, 2025

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