हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है। 'नव' का अर्थ है 'नौ' और 'रात्रि' का अर्थ है 'रात', अर्थात नौ रातों तक चलने वाला यह पर्व मां दुर्गा के नौ स्वरूपों को समर्पित है। नवरात्रि का छठवां दिन मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप को समर्पित है। मां कात्यायनी को अमोघ फलदायिनी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथानुसार, महर्षि कात्यायन की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने महर्षि के यहां जन्म लिया था। महर्षि कात्यायन के यहां जन्म के कारण माता का नाम कात्यायनी पड़ा। आगे चलकर इन्हें महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना गया। महिषासुर मर्दिनी, देवी आदिशक्ति की वो स्वरूप हैं जो महिषासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए प्रकट हुई थीं। कहा जाता है कि देवी का यह स्वरुप महिषासुर नामक राक्षस का संहार करने के लिए देव स्तुति के बाद अस्तित्व में आया। महिषासुर एक बहुत ही शक्तिशाली राक्षस था, उसे कई वरदान प्राप्त थे। एक बार वह देवों पर विजय पाने के लिए उन पर आक्रमण कर दिया। जब देव उसे परास्त नहीं कर पाएं तो वे देवी आदिशक्ति के शरण में और उनकी स्तुति करने लगें। जिसके बाद देवी का एक दिव्य रूप प्रकट हुआ और उन्होंने असुर महिषासुर का वध कर देवों को भय मुक्त किया। इसके बाद देवों ने उनके स्तुति यानि महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ कर उन्हें प्रसन्न किया। इसके बाद से यह मान्यता है कि देवी की आराधना से बड़े से बड़ा कष्ट तुरंत दूर हो जाता है।
वहीं बात करें अगर कात्यायनी देवी कवच की तो यह अत्यंत लाभकारी हैं। यह कवच समस्त ग्रह दोष, नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करता है। शास्त्रों में मां कात्यायनी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए माँ कात्यायनी महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र पाठ, कवच के साथ हवन को सबसे लाभकारी बताया गया है। माना जाता है कि यदि यह अनुष्ठान 51 शक्तिपीठों में से एक मां कात्यायनी शक्तिपीठ में किया जाए तो यह अधिक फलदायी हो सकता हैं, क्योंकि भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा में स्थित यह मंदिर प्राचीन सिद्धपीठों में से एक है। पौराणिक कथानुसार, मां सती के बाल इसी स्थान पर गिरे थे, जिससे यह अत्यंत महत्वपूर्ण और प्राचीन सिद्धपीठ बन गया। इसलिए नवरात्रि के छठवें दिन पर शक्तिपीठ मां कात्यायनी मंदिर में माँ कात्यायनी महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र पाठ, कवच एवं हवन का आयोजन किया जा रहा है। जीवन में बुराई और नकारात्मकता के विनाश के लिए श्री मंदिर के माध्यम से इस विशेष अनुष्ठान में भाग लें।
वहीं दूसरी ओर, नव चंडी हवन मां दुर्गा के नौ रूपों का सम्मान करता है और नवरात्रि के दौरान किए जाने पर इसे सबसे शुभ माना जाता है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, मां दुर्गा के नौ रूपों की कृपा से, यह हवन अच्छे स्वास्थ्य, धन, समृद्धि, दीर्घायु, प्रचुरता, प्रसिद्धि, सफलता और शक्ति प्रदान करता है। यह नौ ग्रहों के हानिकारक प्रभावों को शांत करने के साथ-साथ बीमारी, खतरे और विरोधियों द्वारा हार के डर को दूर करने में भी मदद करता है। ऐसा माना जाता है कि यदि ये अनुष्ठान 51 शक्तिपीठों में से किसी एक, विशेष रूप से मां कात्यायनी शक्तिपीठ में किए जाएं, तो इससे अधिक फल मिल सकते हैं। भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा में स्थित यह मंदिर प्राचीन सिद्धपीठों में से एक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह स्थान अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गया क्योंकि कहा जाता है कि मां सती के बाल यहाँ गिरे थे, जिससे यह सबसे महत्वपूर्ण और प्राचीन सिद्धपीठों में से एक बन गया। इसलिए नवरात्रि के छठे दिन शक्तिपीठ मां कात्यायनी मंदिर में मां कात्यायनी महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र पाठ एवं नव चंडी हवन का आयोजन किया जाएगा। श्री मंदिर के माध्यम से इस विशेष पूजा में भाग लें और जीवन में बुराई और नकारात्मकता के विनाश का आशीर्वाद प्राप्त करें।