दुर्गा स्तोत्र पाठ करने के क्या फायदे हैं

दुर्गा स्तोत्र पाठ करने के क्या फायदे हैं

इस विधि से करें पाठ, होंगे सभी कष्ट दूर


दुर्गा स्तोत्र पाठ (Durga Stotra Path)

जगत जननी मां दुर्गा की कृपा पाने के लिए उन्हें प्रसन्न करना सबसे जरूरी है। अच्छे कर्म करने वालों लोगों पर मां भगवती जल्द प्रसन्न होती है। आदिशक्ति को प्रसन्न करने के लिए धार्मिक ग्रंथों में दुर्गा स्तोत्र का उल्लेख किया गया है। पौराणिक मान्यता है कि भक्तों के लिए शिव कृत दुर्गा स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत कल्याणकारी होता है। इसका पाठ करने से मनुष्य हर संकट से दूर रहता है मां भगवती की कृपा हमेशा बनी रहती हैं, जो व्यक्ति निश्चल मन से ध्यान करके इस स्त्रोत का नियमित पाठ करता है, वह निश्चय ही सिद्धि को प्राप्त होता है। उसके जीवन सुख-समृद्धि, खुशहाली और धन प्राप्ति होती है।

कैसी हुई दुर्गा स्तोत्र की रचना (How was Durga Stotra composed?)

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, त्रिपुरासुर का वध करते समय भगवान शिव को परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। ऐसे में भगवान विष्णु ने शत्रु के चंगुल में फंसे शिवजी को देखकर ब्राह्मा जी को इस स्तोत्र के बारे में बताया था। इसके बाद ब्रह्मा जी युद्ध के मैदान में मौजूद भगवान शिव को इस स्तोत्र और इसकी महिमा के बारे में बताया। तब भगवान शिव जी ने इस स्तोत्र का पाठ किया। भगवान शिव से खुद को शुद्ध करते हाथों में कुश लेकर आचमन किया। इसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करके दुर्गा मां का स्मरण करने लगें। इसी कारण इसे शिव कृत दुर्गास्तोत्र कहा जाता है।

दुर्गा स्तोत्र पाठ का महत्व (Importance of Durga Stotra Path)

देवी दुर्गा शक्ति स्वरूपा हैं। मां की आरधना से जातक के जीवन पर आने वाले सभी संकट टल जाते हैं। मां की पूजा-उपासना करने से भक्त पर मां की विशेष कृपा बरसती है। साथ ही जातक के सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं। अगर आप भी मां की कृपा पाना चाहते हैं, तो नवरात्रि में रोजाना पूजा के समय दुर्गा स्त्रोत का पाठ करें। दुर्गा स्त्रोत का पाठ करने से सभी दुखों से छुटकारा मिलता है। मां दुर्गा की कृपा से हर काम में सफलता प्राप्त होती है। इसके साथ ही शत्रु के ऊपर विजय होते हैं।

दुर्गा स्तोत्र पाठ करने की विधि (Method of reciting Durga Stotra)

  • दुर्गा स्तोत्र का पाठ करने से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
  • इसके बाद मां की प्रतिमा या फोटो के समाने कुश के आसान पर पूर्व दिशा की ओर बैठ जाएं।
  • मां की आराधना शुरू करने से पहले गणेश भगवान की पूजा करें और कलश की स्थापना करें।
  • इसके बाद जगत जननी के सामने धूप-दीप जलकार आरंभ करें।
  • हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर दुर्गा स्तोत्र का संकल्प करें।
  • दुर्गा स्तोत्र का पाठ आरंभ करने से पहले मां को वस्त्र, श्रृंगार का समान, फल और मिष्ठान चढ़ाएं।
  • दुर्गा स्तोत्र का पाठ करने के बाद मां की आरती जरूर करें और पूजा के बीच हुई गलतियों के लिए क्षमा याचना करें।

दुर्गा स्तोत्र पाठ करने का लाभ (Benefits of doing Durga Stotra Path)

  • दुर्गास्तोत्र का पाठ करने से भक्त को सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है।
  • दुर्गास्तोत्र का पाठ करने से जातक के दिमाग शांत रहता है और वो धैर्यवान बनता है।
  • दुर्गास्तोत्र का पाठ करने से जातक शत्रुओं के ऊपर विजय प्राप्त करता है।
  • जिन जातकों के दांपत्य जीवन में कटिनाइयाँ आ रहीं होती हैं उन्हें दुर्गास्तोत्र का पाठ का विशेष लाभ मिलता है और जीवन में खुशहाली आती है।
  • प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे जातकों को दुर्गास्तोत्र का पाठ करने से जल्दी सफलता मिलती है।
  • दुर्गास्तोत्र का पाठ करने से व्यापार और नौकरी में सफलता मिलती है।
  • दुर्गास्तोत्र का पाठ करने से समाज में मान-सम्मान बढ़ता है।

दुर्गा स्तोत्र का पाठ करते समय ना करें ये काम (Avoid these things while doing Durga Stotra Path)

  • दुर्गा स्तोत्र का पाठ करते समय शरीर को न हिलाएं और न ही अपने पैरों को स्पर्श करें।
  • दुर्गा स्तोत्र का पाठ करते समय अपने मन और विचारों को पवित्र बना कर रखें।
  • दुर्गा स्तोत्र का पाठ करते समय ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  • दुर्गा स्तोत्र का पाठ करते समय मां को कनेर, धतूरा और मदार नहीं चढ़ाना चाहिए।
  • मां दुर्गा को टूटे हुए अक्षत नहीं चढ़ाना चाहिए।
  • कलश स्थापना के समय टूटे हुये नारियल का इस्तेमाल न करें।

माँ दुर्गा स्तोत्र (Durga Stotram Lyrics in Hindi)

जय भगवति देवि नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे। जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥1॥

जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे। जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥2॥

जय महिषविमर्दिनि शूलकरे जय लोकसमस्तकपापहरे। जय देवि पितामहविष्णुनते जय भास्करशक्रशिरोवनते॥3॥

जय षण्मुखसायुधईशनुते जय सागरगामिनि शम्भुनुते। जय दु:खदरिद्रविनाशकरे जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥4॥

जय देवि समस्तशरीरधरे जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे। जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे॥5॥

एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:। गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥6॥

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