केरल के सबसे खूबसूरत और प्राचीन मंदिर! कौन से हैं ये 11 प्रसिद्ध मंदिर और क्यों हैं खास? जानने के लिए आगे पढ़ें!
केरल यानी की भारत का एक ऐसा राज्य जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ भव्य और ऐतिहासिक मंदिरों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ के मंदिर केवल पूजा-अर्चना के स्थल ही नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और दिव्यता का संगम हैं। इस लेख में हम केरल के 11 सबसे प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में जानेंगे, जो न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं बल्कि वास्तुकला और इतिहास की दृष्टि से भी अनमोल धरोहर हैं।
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और यह भारत के सबसे समृद्ध मंदिरों में से एक है। यह मंदिर 8वीं शताब्दी में बनवाया गया था, लेकिन वर्तमान संरचना 16वीं शताब्दी में त्रावणकोर के राजाओं द्वारा निर्मित की गई। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर के तहखानों में अरबों रुपये की संपत्ति छुपी हुई है, जिससे यह विश्व के सबसे धनी मंदिरों में शामिल हो गया है। इसकी वास्तुकला द्रविड़ शैली की है, जो दक्षिण भारत के मंदिरों की विशिष्ट पहचान है।
यात्रा जानकारी
तिरुवनंतपुरम रेलवे स्टेशन से यह मंदिर केवल 1.5 किलोमीटर दूर है और निकटतम हवाई अड्डा तिरुवनंतपुरम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (6 किमी) है। इस मंदिर में केवल हिंदू भक्तों को ही प्रवेश की अनुमति है और यहाँ पारंपरिक केरल वेशभूषा (पुरुषों के लिए धोती और महिलाओं के लिए साड़ी) पहनना अनिवार्य है। दर्शन का समय सुबह 3:30 बजे से दोपहर 12:00 बजे और शाम 5:00 बजे से रात 7:20 बजे तक निर्धारित है।
भगवान कृष्ण को समर्पित यह मंदिर केरल का सबसे प्रसिद्ध वैष्णव मंदिर है। इसे 'दक्षिण भारत का द्वारका' भी कहा जाता है। यहाँ भगवान कृष्ण को 'उन्निकृष्णन' (बाल गोपाल) के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर का निर्माण 16वीं शताब्दी में हुआ था और यह अपनी भव्यता और चमत्कारी कथाओं के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी होने की कई कथाएँ प्रचलित हैं। मंदिर परिसर में भव्य दीप स्तंभ और सुंदर नक्काशीदार मंडप हैं।
यात्रा जानकारी
गुरुवायूर रेलवे स्टेशन से यह मंदिर मात्र 500 मीटर दूर है और निकटतम हवाई अड्डा कोच्चि अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (80 किमी) है। यहाँ दर्शन सुबह 3:00 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक और शाम 4:30 बजे से रात 9:15 बजे तक किए जा सकते हैं।
सबरीमाला मंदिर भगवान अयप्पा को समर्पित है और यह घने जंगलों के बीच पहाड़ों पर स्थित है। यह मंदिर हिंदू भक्तों के लिए सबसे कठिन तीर्थयात्राओं में से एक माना जाता है, क्योंकि यहाँ पहुँचने के लिए भक्तों को 41 दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है और कठिन पैदल यात्रा करनी होती है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ केवल 'मंडल काल' (नवंबर से जनवरी) में ही दर्शन होते हैं।
यात्रा जानकारी
निकटतम रेलवे स्टेशन चेंगन्नूर (90 किमी) और निकटतम हवाई अड्डा कोच्चि (160 किमी) है। यहाँ केवल पुरुषों और 10 वर्ष से कम या 50 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को ही प्रवेश की अनुमति है।
अट्टुकल भगवती मंदिर को 'महिलाओं का सबरीमाला' कहा जाता है। यह मंदिर देवी भगवती (पार्वती) को समर्पित है और यहाँ अट्टुकल पोंगल महोत्सव विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस उत्सव में लाखों महिलाएँ एक साथ पोंगल चढ़ाती हैं, जिससे यह 'गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' में भी शामिल हो चुका है।
यात्रा जानकारी
यह मंदिर तिरुवनंतपुरम रेलवे स्टेशन से 2 किमी दूर है और निकटतम हवाई अड्डा 7 किमी दूर है। दर्शन का समय सुबह 4:30 बजे से दोपहर 12:30 बजे और शाम 5:00 बजे से रात 8:30 बजे तक है।
अंबालापुझा श्रीकृष्ण मंदिर 17वीं शताब्दी में त्रावणकोर के राजा चिथिरा थिरुनाल भूपति द्वारा निर्मित है। यह भगवान श्रीकृष्ण के रूप में 'गुरुवायूरप्पन' को समर्पित है। मंदिर का प्रमुख आकर्षण है 'अंबालापुझा पायसम', जो चावल, दूध और गुड़ से बनता है और इसे भगवान श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से तैयार माना जाता है। यहाँ की वास्तुकला केरल शैली की है, और मंदिर की दीवारों पर भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं के चित्रित दृश्य हैं। एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा के अनुसार, श्रीकृष्ण ने शतरंज के खेल में चावल मांगा था, और तभी से यह प्रसाद देने की परंपरा शुरू हुई।
यात्रा जानकारी
अंबालापुझा मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन अंबालापुझा (2 किमी) और हवाई अड्डा कोच्चि (100 किमी) है। यहाँ दर्शन का समय सुबह 3:00 बजे से 12:00 बजे और शाम 5:00 बजे से रात 8:00 बजे तक है।
वैकोम महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और 12वीं शताब्दी में चोल वंश के शासकों द्वारा निर्मित है। यह 'थ्री शिवालय यात्रा' का हिस्सा है, जिसमें वैकोम, कडुथुरुथी और एट्टुमानूर शामिल हैं। इस मंदिर में स्थित शिवलिंग को महर्षि परशुराम द्वारा स्थापित किया गया माना जाता है। यह मंदिर केरल के समाज सुधार आंदोलन से जुड़ा हुआ है और 1924 में यहाँ 'वैकोम सत्याग्रह' हुआ था, जिससे दलितों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति मिली।
यात्रा जानकारी
वैकोम महादेव मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन कोट्टायम (30 किमी) और हवाई अड्डा कोच्चि (75 किमी) है। दर्शन का समय सुबह 4:00 बजे से रात 8:00 बजे तक है।
भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर केरल के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का उल्लेख संगम साहित्य में भी मिलता है, जिससे पता चलता है कि यह लगभग 2000 वर्ष पुराना हो सकता है। यहाँ भगवान श्रीवल्लभ की भव्य प्रतिमा स्थापित है, और भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी करने के लिए यह मंदिर प्रसिद्ध है। इस मंदिर की एक अनूठी विशेषता है कि यहाँ भक्तों को 'कथकली' नृत्य के माध्यम से भगवान की कथाएँ सुनाई जाती हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे 'कथकली सेवा' के रूप में जाना जाता है।
यात्रा जानकारी
निकटतम रेलवे स्टेशन तिरुवल्ला (3 किमी) और निकटतम हवाई अड्डा कोच्चि (110 किमी) है। मंदिर में दर्शन का समय सुबह 4:30 बजे से दोपहर 11:30 बजे और शाम 5:00 बजे से रात 8:00 बजे तक निर्धारित है।
चोट्टानिक्कारा देवी मंदिर देवी भगवती को समर्पित है और यह विशेष रूप से मानसिक रोगों के इलाज के लिए प्रसिद्ध है। मान्यता है कि यहाँ देवी के दर्शन से मानसिक रूप से परेशान व्यक्ति ठीक हो जाते हैं। मंदिर में देवी को तीन रूपों में पूजा जाता है, सुबह महालक्ष्मी, दोपहर में महा सरस्वती और रात में महाकाली के रूप में। यहाँ प्रतिवर्ष 'मकं विलक्कू' महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों भक्त शामिल होते हैं।
यात्रा जानकारी
निकटतम रेलवे स्टेशन एर्नाकुलम (20 किमी) और निकटतम हवाई अड्डा कोच्चि (38 किमी) है। मंदिर में दर्शन सुबह 4:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे और शाम 4:00 बजे से रात 8:30 बजे तक किए जा सकते हैं।
भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर अपनी भव्य वास्तुकला और प्राचीनता के लिए प्रसिद्ध है। यह माना जाता है कि यह मंदिर त्रेता युग में पांडवों द्वारा स्थापित किया गया था। मंदिर की दीवारों पर अद्भुत भित्ति चित्र हैं, जिनमें शिव तांडव नृत्य का दृश्य विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यहाँ हर साल फरवरी-मार्च में 'एट्टुमानूर उत्सव' मनाया जाता है, जिसमें भक्त बड़ी संख्या में भाग लेते हैं।
यात्रा जानकारी
निकटतम रेलवे स्टेशन कोट्टायम (10 किमी) और निकटतम हवाई अड्डा कोच्चि (75 किमी) है। मंदिर में दर्शन सुबह 4:00 बजे से 12:00 बजे तक और शाम 5:00 बजे से रात 8:00 बजे तक किया जा सकता है।
तलिपरंबा राजराजेश्वरी मंदिर केरल के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है, जो देवी राजराजेश्वरी (भगवती) को समर्पित है। इसे परशुराम द्वारा स्थापित 108 शिवलिंगों में से एक माना जाता है। मंदिर की खास विशेषता इसकी देवी मूर्ति है, जो एक विशेष रत्न से बनी हुई है और केवल रात के समय स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। यहाँ महाशिवरात्रि और नवरात्रि उत्सव विशेष भव्यता से मनाए जाते हैं। पारंपरिक केरल शैली में निर्मित यह मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा हुआ है, जो भक्तों को शांति और आध्यात्मिकता का अनूठा अनुभव प्रदान करता है।
यात्रा जानकारी
मंदिर कन्नूर शहर से लगभग 20 किमी दूर स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशन कन्नूर रेलवे स्टेशन (20 किमी) और निकटतम हवाई अड्डा कन्नूर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (40 किमी) है। मंदिर में दर्शन का समय सुबह 5:00 बजे से 12:00 बजे तक और शाम 5:00 बजे से रात 8:00 बजे तक होता है।
तिरुनेल्ली महा विष्णु मंदिर केरल के सबसे प्राचीन और पवित्र मंदिरों में से एक है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे "केरल का काशी" कहा जाता है, क्योंकि यहाँ पिंडदान और पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने इस मंदिर की स्थापना की थी, और यहाँ के पापनाशिनी नदी में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है। मंदिर का निर्माण पारंपरिक केरल वास्तुकला में किया गया है और यह हरे-भरे जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ है। यहाँ विशेष रूप से महा विष्णु आराधना और श्राद्ध कर्म के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।
यात्रा जानकारी
तिरुनेल्ली महा विष्णु मंदिर केरल के वायनाड जिले में स्थित है, जो घने जंगलों और पहाड़ियों के बीच बसा एक पवित्र तीर्थ स्थल है। यह कोझिकोड से लगभग 125 किमी दूर है, जहाँ का निकटतम रेलवे स्टेशन कोझिकोड रेलवे स्टेशन है, जबकि निकटतम हवाई अड्डा कोझिकोड अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (130 किमी) है। मंदिर तक पहुँचने के लिए सड़क मार्ग से बस या टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है। भक्तों के लिए दर्शन का समय सुबह 5:30 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक और शाम 5:30 बजे से रात 8:00 बजे तक निर्धारित है।
केरल के ये 11 मंदिर न केवल धार्मिक आस्था के प्रतीक हैं, बल्कि भारतीय इतिहास, कला और संस्कृति के अद्भुत उदाहरण भी हैं। इन मंदिरों की यात्रा भक्तों को आध्यात्मिक शांति और सांस्कृतिक समृद्धि का अनुभव कराती है। यदि आप दक्षिण भारत की समृद्ध धार्मिक धरोहर को करीब से देखना चाहते हैं, तो इन मंदिरों की यात्रा अवश्य करें।
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