नंदी पूजा मंत्र | Nandi Ji Ka Mantra | Nandi Maharaj Mantra

नंदी पूजा मंत्र

जानें नंदी महाराज मंत्र के अर्थ, लाभ और सही जप विधि जिससे आपकी मनोकामनाएं पूरी हों


नंदी पूजा मंत्र | Nandi Ji Ka Mantra

नंदी जी को भगवान शिव का सबसे प्रिय भक्त कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि नंदी जी ही भक्तों के मन की बात भोलेनाथ तक पहुंचाते हैं। नंदी जी को भगवान शिव की सभी शक्तियां प्राप्त है। इसलिए भगवान शिव के आशीर्वाद के लिए नंदी जी का प्रसन्न होना बहुत ही आवश्यक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए अपने कंठ में हलाहल विष को धारण किया था और एक बूंद पृथ्वी पर आ गिरी थी। उस समय सृष्टि की रक्षा के लिए उस विष की बूंद को नंदी ने अपनी जीभ से हटाया था। उसी समय से भगवान नंदी को भगवान शिव के परम भक्त के रूप में पूजा जाने लगा था। नंदी जी भगवान शिव के वाहन के रूप में और शिव-पार्वती के द्वारपाल के रूप में रहते है। हिंदू धर्म में, वह पतंजलि और तिरुमुलर सहित अठारह आचार्यों (18 सिद्धार) के प्रमुख गुरु हैं। शिव के मंदिरों में आम तौर पर मुख्य मंदिर के सामने बैठे हुए नंदी की मूर्ति होती हैं। नंदी का मुख शिवलिंग की तरफ रहता हैं। शैव संप्रदाय के अनुसार,नंदीनाथ सम्प्रदाय के आठ शिष्यों – सनक, सनातन, सनाधन , सनत्कुमार, तिरुमूलर, व्याघ्रपाद, पतंजलि और शिवयोग मुनि के मुख्य गुरु के रूप में माना जाता है।

नंदी और शिव की कहानी

पौराणिक मान्यता है कि शिव भगवान के साथ नंदी की पूजा करना भी जरूरी होता है। भगवान शंकर नंदी के माध्यम से ही भक्तों की पुकार सुनते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार,शिव भक्त ऋषि शिलाद ब्रह्मचारी व्रत का पालन कर रहे थे, लेकिन एक दिन अचानक उन्हें भय हुआ कि उनकी मृत्यु के बाद उनके वंश का अंत हो जाएगा। इस बात से परेशान ऋषि शिलाद ने काफी सोच-विचार करने के बाद भगवान शिव की कठोर तपस्या करने का फैसला लिया और पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की।

ऋषि शिलाद के तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने ऋषि को दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। शिलाद ऋषि ने अपनी इच्छा के अनुरूप भगवान शिव से कहा कि मुझे ऐसा पुत्र चाहिए, जिसके पास कभी मृत्यु न पहुंच सके और उस पर हमेशा आपकी कृपा बनी रहे। भगवान शिव ने ऋषि शिलाद को आशीर्वाद देते हुए कहा कि आपको ऐसे ही पुत्र की प्राप्ति होगी। कुछ दिन बाद ऋषि शिलाद को खेत में एक नवजात शिशु मिला। तभी शिवजी की आवाज़ आई कि ऋषि शिलाद यही तुम्हारा पुत्र है।

ऋषि शिलाद ने उस बच्चे का नाम नंदी रखा और उसका अच्छे से देखभाल करने लगे । कुछ समय बाद ऋषि के घर पर दो सन्यासी पहुंचे । ऋषि ने उनका अच्छे से आदर सत्कार किया, जिससे प्रसन्न होकर सन्यासियों ने ऋषि शिलाद को दीर्घ आयु का आशीर्वाद दिया, लेकिन नंदी को कोई आशीर्वाद नहीं दिया । ऋषि शिलाद ने सन्यासियों से जब इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नंदी की अल्प आयु है । इसलिए हम इन्हें आशीर्वाद नहीं दे सकते ।

सन्यासियों की बात सुन कर नंदी ने अपने पिता से कहा कि मेरा जन्म भोलेनाथ के आशीर्वाद से हुआ है, इसलिए मेरे जीवन की रक्षा भी वे करेंगे । इसके बाद नंदी भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या करने लगे । नंदी की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी प्रकट हुए और नंदी को अपना प्रिय वाहन बना लिया । तब से भगवान शिव के साथ नंदी की भी पूजा होने लगी । ऐसे मान्यता है कि भगवान शिव नंदी के माध्यम से ही भक्तों की पुकार सुनते हैं ।

नन्दिकेश्वर मंत्र और उनके अर्थ

  • ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, नन्दिकेश्वराय धीमहि, तन्नो वृषभ: प्रचोदयात् ।। अर्थ - हे नन्दिकेश्वर भगवान आप सबके कष्टों का अंत करते हैं, आप सबके पालनहार हैं ‘मैं आपको नमन करता हूँ, मेरे कष्टों का अंत करें।

  • ॐ तत्पुरुषाय विद्महे चक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो नन्दिः प्रचोदयात् || अर्थ - नन्दिकेश्वर भगवान मेरा प्रणाम स्वीकार करें और आप मुझे सद्बुद्धि दें।

  • ॐ शिववाहनाय विद्महे तुण्डाय धीमहि, तन्नो नन्दी: प्रचोदयात! अर्थ - देवाधिदेव महादेव शिव जी के अनन्य सेवक नंदी जी मुझे अपना आशीर्वाद दें और मेरे दुखों का निवारण करें।

  • भवेशं भवेशानमीड्यं सुरेशं विभुं विश्वनाथं भवानीसमार्द्रम् । शरच्चन्द्रगात्रं सुधापूर्णनेत्रं भजे नन्दिकेशं दरिद्रार्तिनाशम् ॥ १ ॥ देवादिदेव हे पार्वती-प्रिय नन्दिकेश! अर्थ - आप संसार मोक्षदाता स्तुत्यदवश विभु तथा दीन-दुखियों का दुःख दूर करते है। शरीर शरत्काल के चन्द्रमा के समान उज्ज्वल है और नेत्र अमृतधर्मा हैं । मैं आपका स्तवन करता हूं ।

  • हिमाद्रौ निवासं स्फुरच्चन्द्रचूडं विभूतिं दधानं महानीलकण्ठम् । प्रभुं दिग्भुजं शूलटङ्कायुधाढ्यं भजे नन्दिकेशं दरिद्रार्तिनाशम् ॥ २ ॥ अर्थ - निर्धनों के दुखों का नाश करने वाले और कैलासवासी हे नन्दिकेश्वर ! आपके माथे पर हिमालय से निकलते चमकीले चांद का मुकुट है, कण्ठ नीला है, शरीर पर विभूति है । त्रिशूल और तलवार वाली आपकी भुजाएं लंबी हैं अर्थात् आप महाबाहु हैं । मैं आपका भजन करता हूं । मेरे दुःख दूर करो ।

नन्दिकेश्वर मंत्र का जाप कैसे करें

  • नन्दिकेश्वर मंत्र का जाप करने से पहले स्नान करके साफ-सुथरे कपड़े धारण कर लें।
  • इसके बाद घर के ईशान कोण या पूजा कर स्थल की सफाई करें और कुश के आसान पर बैठ कर भगवान शिव और माता पार्वती जी के साथ नंदी महाराज की स्थापना करें।
  • इसके बाद गणेश भगवान की स्तुति कर उनकी स्थापना करें।
  • फिर नन्दिकेश्वर भगवान के समक्ष घी का दीपक जलाएं और धूप दिखाएं।
  • इसके बाद नन्दिकेश्वर भगवान को वस्त्र और जनेऊ चढ़ाएं।
  • नन्दिकेश्वर भगवान को प्रसन्न करने के लिए पूजा करते समय सफेद चंदन, चावल, कलावा, धूप-दीप, पुष्प, माला और शुद्ध मिश्री को प्रसाद के लिए रखें।
  • फिर मूर्ति के पास तांबे के लोटे में साफ जल में गंगाजल मिलाकर रख दें। इसके बाद नन्दिकेश्वर भगवान का ध्यान करें।
  • इसके बाद नन्दिकेश्वर मंत्र का जाप शुरू करें।

नन्दिकेश्वर मंत्र का जाप करने से लाभ

  • नन्दिकेश्वर मंत्र का जाप करने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  • नन्दिकेश्वर मंत्र का जाप करने से जातक के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
  • नन्दिकेश्वर मंत्र का नियमित जाप करने से जातक को मनवांछित फल प्राप्त होता है।
  • नन्दिकेश्वर मंत्र का नियमित जाप करने से मन से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
  • नन्दिकेश्वर मंत्र का नियमित जाप करने से ग्रहों के बुरे प्रभाव दूर होते हैं।
  • नन्दिकेश्वर मंत्र का नियमित जाप करने से घर में खुशहाली आती है।
  • नन्दिकेश्वर मंत्र का जाप करने से व्यापार व नौकरी में तरक्की मिलती है।
  • नन्दिकेश्वर मंत्र का जाप करने से शिव चालीसा का निरंतर पाठ करना चाहिए।
  • नन्दिकेश्वर मंत्र का जाप करने से शत्रु बाधा का निवारण होता है।
  • नन्दिकेश्वर मंत्र का जाप करने से निसन्तान को संतान की प्राप्ति होती है।

नन्दिकेश्वर मंत्र का जाप करते समय किन बातों का रखें ख्याल

  • बिना स्नान किए नन्दिकेश्वर मंत्र का जाप नहीं करना चाहिए।
  • नन्दिकेश्वर मंत्र का जाप करते समय शंख नहीं बजाना चाहिए।
  • नन्दिकेश्वर मंत्र का जाप करते समय शिव जी को कभी भी तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाना चाहिए।
  • नन्दिकेश्वर मंत्र का जाप करते समय भोलेनाथ को केतकी का फूल नहीं चढ़ाएं।
  • नन्दिकेश्वर मंत्र का जाप करते समय भगवान शिव को काला तिल, हल्दी, सिंदूर और कुमकुम नहीं चढ़ाना चाहिए।

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