श्राद्ध का ग्यारहवां दिन

श्राद्ध का ग्यारहवां दिन

9 अक्टूबर, 2023 जानें श्राद्ध के ग्यारहवें दिन का महत्व


श्राद्ध का ग्यारहवां दिन( Eleventh Day of Shraddha)

श्राद्ध के ग्यारहवें दिन एकादशी रहती है। इस दिन संन्यासियों का श्राद्ध करना शुभ माना गया है। इसके अलावा जिनकी मृत्यु ग्यारस के दिन होती है उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है। इस दिन श्राद्ध कर्ता को वेदों के ज्ञान की प्राप्ति होती है। साथ ही ऐश्वर्य भी प्राप्त होता है।

ग्यारहवें श्राद्ध का महत्व (Importance of Eleventh Shraddha)

पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों का श्राद्ध करना अनिवार्य माना गया है। ऐसा माना जाता है कि हमारी पिछली तीन पीढ़ियों की आत्माएं स्वर्ग और पृथ्वी के मध्य स्थित 'पितृ लोक' में निवास करती हैं। पितृलोक में अंतिम तीन पीढ़ियों का ही श्राद्ध किया जा सकता है। इस दौरान पितरों का तर्पण करने और पिंडदान करने से उनकी आत्मा को शांति प्राप्त होती है और वह तर जाते है। पितर प्रसन्न होते है और अपने वंश को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। इसलिए श्राद्ध का महत्त्व अधिक होता है। पितृपक्ष में श्राद्ध नहीं करने से पितृदोष लग जाता है। जिससे सुख समृद्धि, धन संतान सभी चीजों की हानि होती है।

ग्यारहवें श्राद्ध की तिथि और शुभ मुहूर्त(Date and auspicious time of Eleventh Shraddha)

एकादशी श्राद्ध - ग्यारहवां श्राद्ध एकादशी तिथि आरम्भ - 09 अक्टूबर, 2023 को दोपहर 12:36 बजे एकादशी तिथि की समाप्ति - 10 अक्टूबर, 2023 को दोपहर 03:08 बजे एकादशी श्राद्ध सोमवार, 09 अक्टूबर, 2023 का शुभ मुहूर्त कुतुप मूहूर्त - सुबह 11:45 बजे से दोपहर 12:32 बजे तक अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट रौहिण मूहूर्त - दोपहर 12:32 बजे से दोपहर 01:18 बजे तक अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट अपराह्न काल - दोपहर 01:18 बजे से दोपहर 03:38 बजे तक अवधि - 02 घण्टे 20 मिनट

ग्यारहवें श्राद्ध की कहानी (Story of Eleventh Shraddha)

गया में श्राद्ध कर्म करने से जुड़ी एक कथा है जिसके अनुसार एक राजा थे जिनका नाम गया था। वह भगवान व‍िष्‍णु के भक्त थे। एक बार वह शिकार के लिए वन में गए। उनका तीर हिरन को लगने के बजाय एक ब्राह्मण को लग गया। तब ब्राह्मण ने उन्हें श्राप दिया तुमने राजा होकर कार्य तो असुर वाले किये है। इसलिए मई तुम्हे श्राप देता हु कि तुम एक असुर बन जायो। श्राप से राजा गयासुर बन गए। लेकिन उनकी प्रवृति आसुरी नहीं थी। वह भगवान् विष्णु का स्मरण करते रहते। वह अपना सभी राज छोड़कर एक जंगल में चले गए। गयासुर ने जंगल में घोर तपस्‍या की और ब्रह्माजी को प्रसन्‍न किया। ब्रह्मा जी से उसने वरदान माँगा कि उसके दर्शन मात्र से पापी से पापी लोगों का उद्धार हो जाए। ब्रह्मा जी ने वरदान दे दिया। आप असुरों को तो ख़ुशी मिल गयी। वह पाप करते गए और अंत में आकर गयासुर को देखकर अपने सभी पापों से मुक्ति पा लेते। ऐसा होने से सृष्टि के कार्य में बाधा आने लगी सभी पापी स्वर्ग जाने लगे। तब समस्त देवता भगवान व‍िष्‍णु के पास गए और उनसे सारी समस्‍या बताई।

तब भगवान विष्णु गयासुर के पास गए और उसे कहा की मुझे यज्ञ करने के लिए कोई पवित्र स्थान बताओ। इस पर गयासुर ने कहा क‍ि प्रभु ज‍िस व्‍यक्ति के दर्शन मात्र से ही पापी से पापी लोग मुक्ति पा लेते है। तो उससे ज्यादा पव‍ित्र स्‍थान क्‍या होगा? इसलिए प्रभु आप मेरे ऊपर ही हवन करें। इसके बाद भगवान विष्णु ने गयासुर के वक्षस्‍थल पर यज्ञ कुंड रखा और यज्ञ के साथ उसे मारने के कई प्रयास भी क‍िए गए लेक‍िन उसकी मृत्यु नहीं हुई। ऐसा देखकर भगवान व‍िष्‍णु ने गयासुर को कहा कि तुमने कोई पाप नहीं किये है परन्तु तुम्‍हारे कारण पापी-असुर भी स्‍वर्ग में प्रवेश कर रहे हैं। ऐसा होने से स्‍वर्ग-नरक का संतुलन ब‍िगड़ रहा है इसलिए अब मुझे तुम्‍हें मारना होगा। तब गयासुर ने कहा क‍ि हे प्रभु यद‍ि आप मेरी पूजा से प्रसन्‍न हैं तो मेरी मात्र दो इच्‍छाएं पूर्ण दीज‍िए तो मेरी मृत्‍यु स्‍वत: ही हो जाएगी। ऐसा करने से अपने ऊपर में मेरी मृत्यु का आरोप भी नहीं होगा। भगवान व‍िष्‍णु ने उससे इच्‍छाओं के विषय में पूछा। गयासुर ने पहली इच्‍छा बताई क‍ि आपके हवन के समय ज‍ितने भी देवी-देवता प्रत्‍यक्ष-अप्रत्‍यक्ष रूप से मुझमें वास कर रहे थे। वह सभी जब तक सूरज-चांद रहेंगे मुझमें वास करते रहेंगे। भगवान व‍िष्‍णु ने तथास्तु कहा कर दूसरी इच्‍छा पूछी ?

गयासुर ने कहा क‍ि वैसे तो श्राद्ध-प‍िंडदान करने से पितरों को मुक्ति म‍िल जाती है। परन्तु यदि कोई नहीं कर पाता है या फ‍िर यह कार्य करने में समर्थ नहीं है तो यद‍ि वह मेरे धाम आये और सच्‍चे मन से कहे क‍ि हे भगवान मेरे पितरों को मुक्ति प्रदान करें। तो आप उनके पितरों को मुक्ति देगें। भगवान व‍िष्‍णु ने तथास्‍तु कहा। इसके बाद ही गयासुर ने अपना शरीर त्‍याग द‍िया। तभी से यह मान्‍यता है क‍ि गया में क‍िया गया श्राद्ध और प‍ितरों की मुक्ति हेतु प्रार्थना भी कर ली जाए तो उन्‍हें मुक्ति प्राप्त हो जाती है।

ग्यारहवें श्राद्ध की विधि(Method of Eleventh Shraddha)

  • श्राद्ध वाले दिन सबसे पहले स्नान करके साफ वस्त्र पहनें।
  • शास्त्रों के अनुसार किसी योग्य ब्राह्मण को बुलाकर ही श्राद्ध कर्म करना चाहिए। ताकि आप विधिवत तरीके से श्राद्ध कर सकें।
  • श्राद्ध में बैठने के लिए कुशा के आसन का ही उपयोग करना चाहिए। साथ ही कुशा से बनी अगूंठी पहननी चाहिए।
  • इसके बाद पिंडदान करना चाहिए। जो कि जौ ,तिल और चावल से बना होता है। इसके बाद पितरों को तर्पण देना चाहिए।
  • श्राद्ध कर्म होने के बाद ब्राह्मण को भोजन करना चाहिए और उसके बाद उन्हें यथाशक्ति दान देकर संतुष्ट करना चाहिए।
  • भोजन का कुछ भाग गाय, कौआ, कुत्ता और चींटी के लिए भी निकालना जरुरी होता है।
  • उन्हें भोजन कराते वक्त अपने पितरों का स्मरण कर उन्हें भी भोजन ग्रहण करने के लिए कहना चाहिए।
  • इस तरह से श्राद्ध की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है।
  • ब्राह्मण भोजन और श्राद्ध कर्म पूर्ण होने के बाद ही परिवारवालों को भोजन करना चाहिए।

ग्यारहवें श्राद्ध से जुड़े रहस्य (Mysteries related to Eleventh Shraddha)

शास्त्रों में बताया गया है कि देवताओं को प्रसन्न करने से पूर्व अपने पितरों को प्रसन्न करना चाहिए। क्योंकि उनके रुष्ट होने पर कुंडली में सबसे बड़ा दोष पितृ दोष लग जाता है। इसलिए श्राद्ध के समय पितरों का श्राद्ध आवश्यक माना गया है।

ग्यारहवें श्राद्ध में क्या करें( What to do on the Eleventh Shraddha)

  • श्राद्ध के समय सात्विक भोजन करें जिसमे लहसुन प्याज का इस्तेमाल न किया गया हो।
  • इसके अलावा मांसाहारी भोजन से दूरी रखनी चाहिए।
  • पितृ गायत्री मंत्र का भी जप करना चाहिए। इससे पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
  • अपनी शक्ति अनुसार गरीबों को दान देना चाहिए। जरूरतमंदों की सहायता करनी चाहिए।
  • श्राद्ध में गाय का घी, गाय का दूध और दही ही उपयोग करना चाहिए। इसका भी विशेष महत्त्व रहता है।

ग्यारहवें श्राद्ध में क्या न करें(What not to do in the Eleventh Shraddha)

सूर्यास्त के बाद श्राद्ध नहीं करना चाहिए। ऐसा करना वर्जित माना गया है। इसके अलावा श्राद्ध के भोजन में चना, लौकी,सरसों की सब्जी आदि नहीं बनाना चाहिए। पितृ पक्ष के दौरान किसी भी दिन पशु पक्षी को परेशान नहीं करना चाहिए। श्राद्ध के समय तामसिक भोजन (लहसुन, प्याज ,मांस और मछली ) का सेवन भी नहीं करना चाहिए। इसे भी शास्त्रों में वर्जित माना गया है। यदि ऐसा किया जाता है तो इससे पितृ नाराज़ हो जाते है और परिवार पर पितृ दोष लग जाता है। पितृ दोष लगने से परिवार की सुख समृद्धि चली जाती है। जानवरों और पशु पक्षियों को भी नहीं मारना चाहिए। बल्कि उन्हें भी भोजन कराना चाहिए।

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