श्राद्ध का चोदहवां दिन

श्राद्ध का चोदहवां दिन

12 अक्टूबर, 2023 जानें श्राद्ध के चौदहवें दिन का महत्व


श्राद्ध का चौदवां दिन( Fourteenth Day of Shraddha)

चौदहवें श्राद्ध के दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु चतुर्दशी को हुई होती है। इसके अलावा इस दिन उनका भी श्राद्ध किया जाता है जिनकी अकाल मृत्यु, एक्सीडेंड हुआ होता है। इस दिन श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को किसी प्रकार के अज्ञात भय या डर का खतरा नहीं होता है।

चौदहवें श्राद्ध का महत्व (Importance of Fourteenth Shraddha)

शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध का बहुत अधिक महत्त्व होता है। श्राद्ध पक्ष में पितरों की पूजा को देवों की पूजा से भी अधिक स्थान दिया गया है। श्राद्ध ही एक ऐसा माध्यम होता है कि जिसमे पितरों के प्रति श्रद्धा भाव व्यक्त किया जा सकता है और उनके लिए तर्पण कर पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त करा सकते हैं।

चौदहवें श्राद्ध की तिथि और शुभ मुहूर्त(Date and auspicious time of Fourteenth Shraddha)

चतुर्दशी श्राद्ध - चौदहवां श्राद्ध चतुर्दशी तिथि आरम्भ - 12 अक्टूबर, 2023 को शाम 07:53 बजे चतुर्दशी तिथि की समाप्ति - 13 अक्टूबर, 2023 को रात 09:50 बजे चतुर्दशी श्राद्ध शुक्रवार, 13 अक्टूबर, 2023 का शुभ मुहूर्त कुतुप मूहूर्त - सुबह 11:44 बजे से लेकर दोपहर 12:30 बजे तक अवधि - 00 घण्टे 46 मिनट रौहिण मूहूर्त - दोपहर 12:30 बजे से लेकर दोपहर 01:17 बजे तक अवधि - 00 घण्टे 46 मिनट अपराह्न काल - दोपहर 01:17 बजे से लेकर दोपहर 03:35 बजे तक अवधि - 02 घण्टे 19 मिनट

चौदहवें श्राद्ध की कहानी (Story of Fourteenth Shraddha)

गरुण पुराण में श्राद्ध से सम्बंधित कथा प्रचलित है जिसके अनुसार भीष्म पितामह और युधिष्ठिर के मध्य संवाद का वर्णन मिलता है। जिसमे भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म और उसके महत्व को बतलाया था। भीष्म पितामह ने बताया कि सर्व प्रथम श्राद्ध के विषय में अत्रि मुनि द्वारा महर्षि निमि को ज्ञान प्राप्त हुआ था। क्योंकि उनके पुत्र की आकस्मिक मृत्यु हुयी थी। वह पुत्र वियोग से दुखी होकर ने अपने पूर्वजों का आह्वान करने लगे । निमि द्वारा ऐसा करने पर उनके पूर्वज प्रकट हुए और और निमि को बताया कि - "आपका पुत्र पितृ देवों के बीच पहले ही स्थान ले चुका है। निमि आपने अपने दिवंगत पुत्र की आत्मा को भोजन कराने और पूजा करने का कार्य किया है। यह सब ठीक उसी प्रकार है जैसे आपने पितृ यज्ञ किया था।” तभी से श्राद्ध करने परंपरा चलने लगी। और श्राद्ध को सनातन धर्म के एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान में स्थान प्राप्त हो गया। इसके बाद से महर्षि निमि ने श्राद्ध कर्म करना आरम्भ कर दिया। फिर ऋषि-मुनियों ने भी श्राद्ध कर्म शुरू कर दिए । धीरे धीरे सभी मनुष्य श्राद्ध करने लगे और अपने पूर्जवों को मोक्ष की प्राप्ति कराकर उनका आशीर्वाद ग्रहण करने लगे।

चौदहवें श्राद्ध की विधि (Method of Fourteenth Shraddha)

श्राद्ध किसी योग्य ब्राह्मण को बुलाकर कराना चाहिए। श्राद्ध के दिन सबसे पहले स्नान करना चाहिए। उसके बाद साफ वस्त्र धारण करना चाहिए। फिर अपने मन में श्रद्धा भाव रखते हुए अपने पूर्वजों का स्मरण करना चाहिए। इसके बाद दोपहर में अपने मृत परिजन की फोटों को एक पाटे पर रखना चाहिए। फिर उनके सामने भोजन की थाली रखनी चाहिए और अपने पूर्जवों को भोजन ग्रहण करने का आग्रह करना चाहिए। इसके बाद तर्पण करना चाहिए। यह होने के बाद भोजन का कुछ अंश गाय, कुत्ते,कौआ और चींटी के लिए निकालना चाहिए। फिर ब्राह्मण को विनम्रता के साथ भोजन कराना चाहिए। और अपनी यथाशक्ति अनुसार उन्हें दान दक्षिणा देकर संतुष्ट करना चाहिए। फिर निकाले गए भोजन को गाय, कुत्ते, कौआ, चींटी को खिलाना चाहिए। इसके बाद घर के सभी लोगों को भी भोजन करना चाहिए।

चौदहवें श्राद्ध से जुड़े रहस्य (Mysteries related to Fourteenth Shraddha)

गरुड़ पुराण में पितृपक्ष के समय कौए को भोजन कराना सबसे अच्छा माना गया है। श्राद्ध पक्ष के दौरान कौए का इतना अधिक महत्व होने का भी एक खास कारण है। शास्त्रों के अनुसार यमराज ने कौए को वरदान दिया था कि तुम्हें दिया गया भोजन पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करेगा। तभी से यह प्रथा चली आ रही है। पितृ पक्ष में कौवे को खाना खिलाने से यमलोक में पितरों को शांति मिलती है। शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि श्राद्ध के समय जितना महत्वपूर्ण ब्राह्मण को भोजन कराना होता है उतना ही आवश्यक कौए को भोजन कराना होता हैं।

चौदहवें श्राद्ध में क्या करें( What to do on the Fourteenth Shraddha)

श्राद्ध कर्म दोपहर के समय ही करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार दोपहर के समय ही पितर धरती पर अपने घर आते है। इसलिए दोपहर के समय ही श्राद्ध करने का महत्त्व है। श्राद्ध कर्म करने वाले व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। व्यक्ति को किसी को भी अपशब्द नहीं बोलना चाहिए। मन में अपने पितरों के लिए श्रद्धा भाव रखना चाहिए। पितृ पक्ष के दौरान शुभ कार्य करने से भी बचना चाहिए। कुशा के आसन का ही इस्तेमाल करना चाहिए और कुशा से बनी अंगूठी पहननी चाहिए।

चौदहवें श्राद्ध में क्या न करें(What not to do in the Fourteenth Shraddha)

श्राद्ध के समय किसी को भी अपशब्द नहीं बोलना चाहिए। और अच्छे मन से श्राद्ध कर्म करना चाहिए। यदि आप शांत और श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध कर्म नहीं करते है तो पितर रुष्ट हो सकते है। जिससे पितृ दोष भी लग सकता है। बता दें कि पितृ दोष लगने से परिवार को धन की हानि होती है। परिवार का कोई न कोई सदस्य सदैव बीमार रहता है। इसलिए इससे बचना चाहिए। इसके अलावा ब्राह्मण को भोजन के लिए लोहे के बर्तनों का इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए। उन्हें तांबे, चाँदी और पत्तल व् अन्य किसी पात्र में भोजन करना चाहिए।

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