अमावस्या का श्राद्ध

अमावस्या का श्राद्ध

13 अक्टूबर, 2023 जानें अमावस्या के श्राद्ध का महत्व


अमावस्या का श्राद्ध (Shraddha of Amavasya)

अमावस्या श्राद्ध के दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु अमावस्या के दिन हुई होती है। इसके अलावा इस दिन नानी का श्राद्ध भी किया जाता है। साथ ही जिनकी मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो उनका भी श्राद्ध इस दिन किया जाता है। इस दिन श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को अत्यंत सुख की प्राप्ति होती है।

अमावस्या के श्राद्ध का महत्व (Importance of Shraddha of Amavasya)

श्राद्ध को शास्त्रों में बहुत महत्त्व दिया गया है। श्राद्ध करने के कई लाभ भी मिलते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो परिवार अपने पितरों का पिंडदान करता है वह लक्ष्मी, दीर्घायु, यश, पुत्र-पौत्रादि, स्वर्ग, बल, पुष्टि, सुख-साधन, वैभव और धन-धान्य प्राप्त करता है। इतना ही नहीं बल्कि पितरों की कृपा होने से उन्हें समस्त प्रकार की समृद्धि, राज्य ,मोक्ष और सौभाग्य की भी प्राप्ति होती है। और यह सब कभी नष्ट नहीं होता है। साल भर में एक बार आने वाला पितृ पक्ष हमारे लिए सौभाग्य और सुख समृद्धि लेकर आता है। इसलिए सभी को इसका स्वागत-सत्कार अवश्य ही करना चाहिए।

अमावस्या के श्राद्ध की तिथि और शुभ मुहूर्त (Date and auspicious time of Shraddha of Amavasya)

अमावस्या श्राद्ध - पंद्रहवां श्राद्ध अमावस्या तिथि आरम्भ - 13 अक्टूबर, 2023 को रात 09:50 बजे अमावस्या तिथि की समाप्ति - 14 अक्टूबर, 2023 को दोपहर 11:24 बजे अमावस्या श्राद्ध शनिवार, 14 अक्टूबर, 2023 का शुभ मुहूर्त कुतुप मूहूर्त - सुबह 11:44 बजे से लेकर दोपहर 12:30 बजे तक अवधि - 00 घण्टे 46 मिनट रौहिण मूहूर्त - दोपहर 12:30 बजे से लेकर दोपहर 01:16 बजे तक अवधि - 00 घण्टे 46 मिनट अपराह्न काल - दोपहर 01:16 बजे से लेकर दोपहर 03:35 बजे तक अवधि - 02 घण्टे 18 मिनट

अमावस्या के श्राद्ध की कहानी (Story of Amavasya Shraddha)

श्राद्ध से जुड़ी एक पौराणिक कथा महाभारत काल की है। महाभारत के दौरान कर्ण की मृत्यु होने पर उनकी आत्मा स्वर्ग में गयी। वहां उन्हें भोजन में सोना और गहनें दिए गए। सोना और गहने देखकर कर्ण की आत्मा को तृप्ति नहीं मिली। उन्हें तो केवल अन्न की तलाश थी। इसलिए उन्होंने इंद्र देव से पूछा कि उन्हें भोजन में सोना क्यों दिया गया? इंद्र देव ने बताया कि- "आपने अपने जीवन काल में सिर्फ सोने और आभूषण का ही दान दिया है इसलिए आपको खाने में वही परोसा गया। आपने कभी भी अपने पूर्वजों को भोजन का दान नहीं दिया।" यह बात सुनकर कर्ण ने कहा कि उन्हें इसके बारे में ज्ञात नहीं था कि उनके पूर्वज कौन है ? इस कारण उन्हें अन्न दान नहीं दे सके। कर्ण ने इन्द्र देव से अपनी गलती को सुधरने का मौका माँगा। तब इन्द्र ने उन्हें 16 दिन के लिए पृथ्वी पर भेज दिया। पृथ्वी पर आने पर कर्ण ने अपने पितरों को याद किया और उन्हें भोजन दान दिया तथा तर्पण भी किया। तब से इन्ही 16 दिन के समय को पितृपक्ष कहा जाने लगा। ऐसी मान्यता है कि तब से ही श्राद्ध की शुरुआत हुयी थी।

अमावस्या के श्राद्ध की विधि (Method of Shraddha of Amavasya)

श्राद्ध को विधिवत तरीके से पूर्ण करने के लिए श्राद्ध के दिन किसी योग्य ब्राह्मण को बुलाकर श्राद्ध कर्म करें। उस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान कर लें। और भी साफ वस्त्र पहन लें। इसके बाद अपने पूर्वजों की आत्म शांति के लिए और दान देने का संकल्प लें। जब तक श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं हो जाता जब तक भोजन ना करें। श्राद्ध कर्म के दिन सात्विक भोजन ही बनाये। भोजन को एक थाली में निकाल लें। भोजन का कुछ अंश निकाल कर गाय,कुत्ते, कौए और चींटी के लिए रख दे। भोजन को अपने मृत परिजन की फोटों के समक्ष रखें। इसके बाद हाथ जोड़कर उन्हें भोजन ग्रहण करने का आग्रह करें साथ ही परिवार की सुख समृद्धि का आशीर्वाद भी मांगे। जल से तर्पण करें और फिर ब्राह्मण को भोजन करवाएं। इसके बाद अपनी श्रद्धा अनुसार ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देकर संतुष्ट करें साथ ही उनका भी आशीर्वाद लें। फिर जो भोजन अगल निकाला था उसे गाय, कुत्ते, कौआ और चींटी को दें। इसके बाद घर के सभी सदस्य भी भोजन करें।

अमावस्या के श्राद्ध से जुड़े रहस्य (Secrets related to Amavasya Shraddha)

पितृ पक्ष में यदि अन्नदान करना चाहते हैं तो हमेशा गेहूं और चावल का ही दान करें। ऐसा माना जाता है कि यदि ये दान किसी संकल्प सहित किया जाता है तो इससे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। श्राद्ध पक्ष में चाँदी का दान करने से पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है। यदि यह संभव न हो सके तो काले तिल का दान करना चाहिए। यह दान संकट और आने वाली विपदाओं से रक्षा प्रदान करता है। पितृ पक्ष में गुड़ के दान का भी विशेष महत्त्व है। इसका दान करने से पितरों को तो शांति मिलती है साथ ही दान कर्ता के परिवार में क्लेश भी नहीं होता है।

अमावस्या के श्राद्ध में क्या करें (What to do in Amavasya Shraddha)

श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित गीता का पाठ करना चाइये। यदि आप गीता पाठ प्रतिदिन नहीं कर सकते है तो आप गीता के सातवें अध्याय का पाठ भी कर सकते है। गीता के सातवें पाठ को करने से पितरों को मोक्ष मिलता है। जो व्यक्ति विधिविधान के साथ श्राद्ध कर्म करता है वह पितृ दोष से मुक्त हो जाता है। परिवार में सुख समृद्धि का वास होता है। श्राद्ध कर्म में काले तिल का इस्तेमाल करना चाहिए। पिंडदान के समय तुलसी का उपयोग करना चाहिए। तुलसी जी का विशेष महत्त्व होता है।

अमावस्या के श्राद्ध में क्या न करें(What not to do during Amavasya Shraddha)

श्राद्ध पक्ष के दौरान किसी भी जीव जंतु यहाँ तक की चींटी को भी नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए। अंडा, मछली, मांस जैसे भोजन को नहीं खाना चाहिए। बाल और नाख़ून को भी नहीं काटना चाहिए। महिलाओं को इस दिन बाल धोना भी वर्जित माना गया है। ऐसा करने से व्यक्ति को कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। सिगरेट, तम्बाकू और मदिरा का सेवन भी श्राद्ध के दौरान निषेध माना गया है। श्राद्ध कर्म करते समय खुद को शांत रखना चाहिए। और मन में पितरों के लिए श्रद्धा भाव रखना चाहिए। श्राद्ध कर्म को किसी दूसरे के घर पर नहीं करना चाहिए। इसे अपने घर या फिर अपनी ही जमीन पर करना चाहिए। साथ ही सार्वजानिक स्थानों पर भी श्राद्ध कर्म किया जा सकता है।

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