श्राद्ध का दूसरा दिन (Second day of Shraddha)
श्राद्ध के दूसरे दिन में उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु द्वितीया तिथि को होती है।
दूसरा श्राद्ध का महत्व (Importance of second Shraddha)
हिन्दू धर्म में श्राद्ध का विशेष महत्त्व बताया गया है। कहा गया है की किसी भी मनुष्य के लिए श्राद्ध से बढ़कर कोई भी कल्याणप्रद रास्ता नहीं है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को श्राद्ध कर्म ज़रूर करना चाहिए। श्राद्ध के विषय में विष्णु पुराण में वर्णित है कि श्राद्ध से केवल पितर तृप्त नहीं होते बल्कि सूर्य, अग्नि, इंद्र, वायु, ब्रह्मा, ऋषि, पक्षी और पशु सभी जीव तृप्त हो जाते हैं । श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होकर सुख, धन, संतान, यश आदि का आशीर्वाद देते हैं। इतना ही नहीं बल्कि श्राद्ध करने से व्यक्ति की आयु लम्बी होती है। स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं भी नहीं होती है।
दूसरे श्राद्ध की तिथि और शुभ मुहूर्त (Date and Auspicious time of second Shraddha)
द्वितीया श्राद्ध
दूसरा श्राद्ध द्वितीया तिथि आरम्भ - 30 सितम्बर, 2023 को दोपहर 12:21 बजे द्वितीया तिथि ख़त्म - 01अक्टूबर, 2023 को सुबह 09:41बजे
द्वितीया श्राद्ध शनिवार, 30 सितम्बर, 2023 का शुभ मुहूर्त
कुतुप मूहूर्त - सुबह 11:47 बजे से दोपहर 12:35 बजे तक
अवधि - 00 घंटे 48 मिनट
रौहिण मूहूर्त - दोपहर 12:35 बजे से दोपहर 01:23 बजे तक
अवधि - 00 घण्टे 48 मिनट
अपराह्न काल - दोपहर 01:23 बजे से दोपहर 03:46 बजे तक
अवधि - 02 घण्टे 23 मिनट
दूसरे श्राद्ध की कहानी (Story of Second Shraddha)
गरुण पुराण में भीष्म पितामह और युधिष्ठिर के संवाद का वर्णन है जिसमे महाभारत काल के समय भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने और उसके महत्व को बताया था। भीष्म पितामह ने कहा कि सबसे पहले श्राद्ध के बारे में अत्रि मुनि ने महर्षि निमि को ज्ञान दिया था। क्योंकि उनके पुत्र की आकस्मिक मृत्यु हो गई थी। और पुत्र वियोग से दुखी होकर निमि ऋषि ने अपने पूर्वजों का आह्वान करना आरम्भ कर दिया था। उनके द्वारा ऐसा किए जाने पर पूर्वज प्रकट हुए और उन्होंने कहा - "निमि, आपका पुत्र पहले ही पितृ देवों के मध्य स्थान ले चुका है। आपने अपने दिवंगत पुत्र की आत्मा को खिलाने और पूजा करने का काम किया है। यह उसी प्रकार ही है जैसे आपने पितृ यज्ञ किया था।” इस तरह उस समय से श्राद्ध को सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाने लगा। इसके बाद से ही महर्षि निमि ने श्राद्ध कर्म शुरू कर दिए। फिर समस्त ऋषि-मुनियों ने भी श्राद्ध करना शुरू कर दिया थे। कुछ मान्यताएं ऐसा भी कहती है कि युधिष्ठिर ने महाभारत में कौरवों और पांडवों द्वारा मारे गए सैनिकों के अंतिम संस्कार के उपरांत उनका श्राद्ध किया था।
दूसरे श्राद्ध की विधि (Method of second Shraddha)
श्राद्ध कर्म करने के लिए सबसे पहले तिथि पर किसी योग्य ब्राह्मण को बुलाकर श्राद्ध कर्म (पिंड दान और तर्पण ) करवाना चाहिए। इसके बाद अपनी श्रद्धानुसार ब्राह्मण को दान देना चाहिए। आप यदि जरुरत मंद और किसी गरीब व्यक्ति को दान देते है या फिर उसकी सहायता करने से तो श्राद्ध में इसका भी पुण्य प्राप्त होता है। श्राद्ध के दौरान कौए, गाय और कुत्ते को भी भोजन का कुछ अंश जरूर खिलाना चाहिए। यदि संभव हो सके तो गंगा किनारे श्राद्ध कर्म करना चाहिए। इसका विशेष महत्त्व माना गया है। यदि ऐसा नहीं कर पाते है तो अपने घर में भी श्राद्ध कर सकते है। श्राद्ध तिथि के दिन ब्राह्मणों को घर बुलाकर उनके भोजन करवा कर दान दक्षिणा देना चाहिए। श्राद्ध की पूजा को दोपहर में ही करें। ब्राह्मण की मदद से मन्त्रोपचारण करे और पूजा के बाद जल द्वारा तर्पण करें। फिर जिस भोजन का भोग लगाया गया है उसमे से कुछ भाग निकालकर गाय, कुत्ते और कौए को खिलाये। इन्हे खिलते समय अपने पितरों का स्मरण करें और उनसे भोजन ग्रहण करने का आग्रह करें।
दूसरे श्राद्ध से जुड़े रहस्य (Mysteries related to second Shraddha)
पुत्रियां भी श्राद्ध कर्म कर सकती हैं इस संबंध में वाल्मीकि रामायण में वर्णित है कि वनवास के समय श्रीराम भगवान, लक्ष्मण और माता सीता के साथ पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने हेतु गया धाम पहुंचे थे। तब श्रीराम भगवान और लक्ष्मण श्राद्ध के लिए कुछ सामग्री लेने के लिए नगर की तरफ चले गए। उसी दौरान आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का समय निकल रहा है। तभी माता सीता को दशरथ जी महाराज की आत्मा के दर्शन हुए, जो उनसे पिंड दान के लिए कह रही थी। फिर माता सीता ने फाल्गू नदी, केतकी के फूल, वटवृक्ष और गाय को साक्षी माना और बालू का पिंड बनाकर फाल्गू नदी के समीप श्री दशरथ जी महाराज का पिंडदान कर दिया। सीता जी के इस कार्य से प्रसन्न होकर वो माता सिता को आर्शीवाद देकर चले गए। श्राद्ध करने से आने वाली सभी विपत्तियां भी टल जाती है।
दूसरे श्राद्ध में क्या करें (What to do in second Shraddha)
श्राद्ध के समय पितरों की पसंद का भोजन बनाएं। इस समय उड़द की दाल बनाई जाती है। उनके बड़े भी बनाए जाते हैं। इसके अलावा खीर, दूध, चावल ,घी से निर्मित पकवान व मौसम की सब्जियां जो सब्जी बेल पर लगती है जैसे लौकी, कद्दू, भिंडी कच्चे केले आदि बनाए जाते हैं । श्राद्ध कर्म को दोपहर के समय ही करना चाहिए। तिथि के दिन ब्राह्मण को बुलाकर उन्हें भोजन जरूर करवाएं और दान देकर उन्हें संतुष्ट भी करना चाहिए। श्राद्ध के समय गुड़ का दान करना भी विशेष महत्त्व रखता है। गुड़ का दान करने से घर में शांति बनी रहती है। इसके अलावा अन्न दान भी महत्वपूर्ण होता है।
दूसरा श्राद्ध में क्या न करें (What not to do in second Shraddha)
- श्राद्ध के दौरान दान करने समय लोहे की सामग्री धन में नहीं देनी चाहिए।
- ब्राह्मणों को जो भोजन करवा रहे हैं तो उसमे लहसुन और प्याज का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
- जब तक ब्राह्मण भोजन ना कर लें। तब तक भोजन नहीं करना चाहिए।
- श्राद्ध के दौरान नए और शुभ कार्य करने से भी बचना चाहिए।
- इतना ही नहीं मांगलिक कार्य भी नहीं करने चाहिए।
- नए कपडे भी नहीं खरीदने चाहिए।
- शाम के समय और रात में कभी भी श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए।