श्राद्ध का चौथा दिन (Fourth day of Shraddha)
श्राद्ध के चौथे दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु चतुर्थी तिथि को हुई होती है।
चौथे श्राद्ध का महत्व (Importance of fourth Shraddha)
पुराणों के अनुसार यमराज प्रत्येक वर्ष श्राद्ध पक्ष में समस्त जीवों को मुक्त कर देते हैं। ताकि वह अपने स्वजनों के पास जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। बता दें कि तीन पूर्वज पिता, दादा तथा परदादा को तीन देवताओं के समान माना गया है। पिता को वसु के समान माना जाता है। रुद्र देवता को दादा के समान माना जाता है। आदित्य देवता को परदादा के समान माना जाता है। श्राद्ध के दौरान यही अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते हैं।
चौथे श्राद्ध की तिथि और शुभ मुहूर्त(Date and Auspicious Time of Fourth Shraddha)
चौथा श्राद्ध चतुर्थी तिथि आरंभ - 02 अक्टूबर, 2023 को सुबह 07:36 बजे चतुर्थी तिथि ख़त्म - 03 अक्टूबर, 2023 को सुबह 06:11 बजे
चतुर्थी श्राद्ध सोमवार, 02 अक्टूबर, 2023 का शुभ मुहूर्त
कुतुप मूहूर्त - सुबह 11:47 बजे से दोपहर 12:34 बजे तक
अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट
रौहिण मूहूर्त - दोपहर 12:34 बजे से दोपहर 01:22 बजे तक
अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट
अपराह्न काल - दोपहर 01:22 बजे से दोपहर 03:44 बजे तक
अवधि - 02 घण्टे 22 मिनट
चौथे श्राद्ध की कहानी (Story of Fourth Shraddha)
श्राद्ध को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार जोगे और भोगे दो भाई थे। ये दोनों अलग अलग घरों में रहते थे। जोगे के पास अपार धन था परन्तु भोगे निर्धन था। अमीरी गरीबी का फर्क होने पर भी दोनों भाइयों के बीच बहुत प्रेम था। परन्तु जोगे की पत्नी को धन का घमंड था। जबकि भोगे की पत्नी शांत स्वाभाव और एक सुशिल महिला थी। जब पितृ पक्ष का समय आया तो जोगे की पत्नी ने जोगे से श्राद्ध कर्म करने के लिए कहा। जोगे ने इसे व्यर्थ कहकर टाल दिया। परन्तु जोगे की पत्नी शान दिखाने के लिए यह श्राद्ध करना चाहती थी। जिससे वह अपने मायके वालों को दावत दे सके। जोगे की पत्नी से उसने कहा कि इसे करने में मुझे कोई परेशानी न होगी। मैं भोगे की पत्नी को भी बुला लूंगी। हम दोनों मिलकर सारा काम संभल लेंगी। दूसरे ही दिन भोगे की पत्नी सुबह सुबह आ गई और सारा काम करवने लगी। बहुत सारे पकवान बनाए गए। काम समाप्त होने के बाद वह अपने घर वापस आ गई क्योंकि उसे भी पितरों का तर्पण करना था। जब पितर धरती पर उतरे तो सबसे पहले वे जोगे के घर गए। वहां उन्होंने देखा कि उसके ससुराल पक्ष के सभी लोग भोजन कर रहे हैं। यह सब देखकर वे बहुत निराश हुए। उसके बाद पितर भोगे के घर गए, तो देखते हैं कि यहाँ पर केवल पितरों के नाम पर 'अगियारी' दे दी गई है। पितर उसकी राख खा लेते हैं और भूखे ही नदी के तट पर जाते हैं।
कुछ देर में ही सारे पितर अपने-अपने यहां का श्राद्ध ग्रहण करके नदी के तट पर इकठ्ठा हो गए और सभी बताने लगे कि उनकी संतानों ने किस-किस प्रकार से उनके लिए श्राद्धों के पकवान बनाए थे। जोगे-भोगे के पितरों ने भी अपना सारा किस्सा बताया। उन्होंने सोचा कि यदि भोगे निर्धन न होता तो वह श्राद्ध करने में समर्थ होता फिर उन्हें शायद भूखा वापस नहीं आना पड़ता। क्योंकि भोगे के घर में तो खाने के लिए रोटी भी नहीं थी। ये सारी बातें सोचकर पितरों को भोगे पर दया आई। अचानक ही वे नाच-नाचकर गाने लगे और कहने लगे भोगे के घर धन हो जाए, भोगे के घर धन हो जाए।
शाम हो गई पर भोगे के घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं था। उसके बच्चे भूखे थे। बच्चों ने अपनी मां से कहा भूख लग रही है। तब बच्चो को टालने के लिए गुस्से से भोगे की पत्नी ने कहा जाओ आंगन में हौदी औंधी रखी हुई है, जाकर उसे खोल लो उसमें से जो मिल जाए बांटकर खा लेना। बच्चे जाकर हौदी देखते हैं, तो वे दौड़े-दौड़े मां के पास आते है और कहते हैं कि मां हौदी तो मोहरों से भरी पड़ी है। वह भी आंगन में आकर यह सब कुछ देखती है, उसके तो आश्चर्य का ठिकाना ही नहीं रहा।
इस तरह पितरों के आशीर्वाद से भोगे अमीर बन जाता है। परन्तु उसे पैसे का घमंड नहीं रहता है। और जब अगले साल श्राद्ध का समय आता है तो भोगे और उसकी पत्नी दोनों मिलकर श्रद्धा के साथ अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं। भोगे की पत्नी पितरों के लिए 56 प्रकार के व्यंजन बनती है। वे दोनों ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं साथ ही वह अपने जेठ-जेठानी को भी बुलाते हैं और उन्हें सम्मान के साथ सोने और चांदी के बर्तनों में भोजन कराते हैं। ऐसा करने से उनके पितर बहुत प्रसन्न होते हैं।
चौथे श्राद्ध की विधि (Method of Fourth Shraddha)
- चौथे श्राद्ध में ब्राह्मण को बुलाकर श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए।
- फिर उन्हें भोजन करवाकर, दान दक्षिणा देकर संतुष्ट करना चाहिए। ब्राह्मण द्वारा श्राद्ध कर्म करवाने के बाद जल से तर्पण अवश्य करना चाहिए।
- पिंडदान का समय दोपहर का ही होना चाहिए। भोजन का भोग लगाने के बाद उसमे से कुछ अंश कौए, गाय ,चींटी और कुत्ते के लिए निकालें। उन्हें भोजन कराते समय अपने मन में पितरों का स्मरण करें और उनसे भोजन ग्रहण करने की विनती करें।
- यदि संभव हो सके तो श्राद्ध कर्म गंगा नदी के किनारे करें और यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो अपने घर पर भी श्राद्ध कर सकते है।
चौथे श्राद्ध से जुड़े रहस्य (Mysteries Related to the Fourth Shraddha)
बता दें कि श्राद्ध कर्म तीन पीढ़ियों तक का होता है। इसमें मातृकुल और पितृकुल दोनों ही शामिल होते हैं। तीन पीढ़ियों से ज्यादा का श्राद्ध कर्म नहीं होता है। ऐसा माना गया है कि घर की दक्षिण दिशा में ही पितरों का वास होता है। इसलिए इस दिशा में चीजों का विशेष ध्यान रखना ज़रूरी होता है। यदि इन बातों का ध्यान नहीं दिया जाता है तो घर में पितृ दोष लग सकता है।
चौथे श्राद्ध में क्या करें (What to do in the fourth Shraddha)
- पितृ के निमित लक्ष्मी नारायण का ध्यान करते हुए गीता चौथे अध्याय का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से पितरों को इसका फल मिलता है।
- श्राद्ध के दौरान जल से तर्पण जरूर करना चाहिए। यह श्राद्ध कर्म का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।
- श्राद्ध में गाय का दूध, दही और घी का उपयोग करना चाहिए।
चौथे श्राद्ध में क्या न करें (What Not to do in the Fourth Shraddha)
- श्राद्ध को संध्या काल और रात्रि में नहीं करना चाहिए। इस दिन सात्विक भोजन बनाना चाहिए।
- श्राद्ध के समय झगड़ा करना और गुस्सा आदि नहीं करना चाहिए शांत मन से श्राद्ध कर्म करना चाहिए।